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छोटे शहरों में रोजगार के मौके देकर युवाओं के पलायन रोकने का नाम है 'फाइव स्प्लैश'

छोटे शहरों में रोजगार के मौके देकर युवाओं के पलायन रोकने का नाम है 'फाइव स्प्लैश'

Saturday October 17, 2015 , 7 min Read

उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर एक गांव के रहने वाले लखन जोशी ने ग्रामीण युवाओं के शहरों की ओर पलायन रोकने के लिए उठाया कदम...

परिवार पालने के लिये नौकरी करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखने वाले युवाओं को देते हैं रोजगार के अवसर...

फिलहाल उदयपुर, जोधपुर और अजमेर में हैं क्रियाशील पर आने वाले समय में देश के 15 शहरों में पांव फैलाने का है इरादा...

लखन जोशी मूलतः राजस्थान के उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर एक गांव के रहने वाले हैं। बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ उच्च शिक्षा भी प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने एक टीम मैनेजर के रूप में काम करना प्रारंभ किया और वर्तमान में वे दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों के युवाओं को जीविकोपार्जन अर्जित करने में सहायता करने वाली उदयपुर स्थित एक आईटी सर्विस कंपनी ‘फाइव स्प्लैश’ का सफल संचालन कर रहे हैं। लखन ने फाइव स्प्लैश की अपनी नौकरी के साथ-साथ उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। लखन इस कंपनी के साथ जुड़ने वाले पांचवे कर्मचारी थे।

फाइव स्प्लैश के साथ जुड़ने वाले पहले कर्मचारी तरुण औदिच्य ने कुछ समय के लिये इस कंपनी को अलविदा करके कुछ नामचीन कंपनियों के साथ काम किया लेकिन उन्हें वहां जाकर भी फाइन स्प्लैश में काम करने के जमीनी माहौल की कमी महसूस हुई। आज वे दोबारा फाइव स्प्लैश का हिस्सा हैं और एंड-टू-एंड नेटवर्क साॅल्यूशंस का काम संभालते हैं।

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कंपनी का उद्गम

फाइव स्प्लैश की स्थापना वीटीयू से इलेक्ट्राॅनिक्स के क्षेत्र के स्नातक कपिल शर्मा द्वारा वर्ष 2009 में की गई थी। नए भौगोलिक क्षेत्रों और हरियाली भरे इलाकों की यात्रा करने को बेकरार इंजीनियरों के विपरीत कपिल हमेशा से ही अपने घर उदयपुर वापस आकर वहां कुछ काम करना चाहते थे। उदयपुर में सहायता के नाम पर उनके साथ केवल एक युवा लड़की थी जो उनके साथ काम करना चाहती थी क्योंकि उसकी शिक्षा उनके परिवार द्वारा प्रायोजित की जा रही थी। 

‘‘उसे सहानुभूति के रूप में पैसा नहीं चाहिये था और वह बदले में कुछ करना चाहती थी। बस उसी समय हमें इस बात का अहसास हुआ कि महत्वाकांक्षी लेकिन संसाधनों की कमी से जूझ रहे युवाओं के पास और कुछ हो या न हो लेकिन उनके पास आत्मसम्मान की बहुत ही प्रबल भावना है। इस अहसास ने हमें यह सोचने के लिये मजबूर किया कि हम एक परिवार के रूप में क्या कर सकते हैं।’’
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कपिल आगे कहते हैं, ‘‘वर्ष 2008 में एक मित्र के साथ चाय के दौरान यह विचार हमारे जेहन में आया। बीपीओ सेक्टर में काम करने वाले उस मित्र ने मुझे अपने अनुभवों के बारे में बताने के अलावा यह समझाया कि कैसे इसमें लोगों और विशेषकर युवाओं के लिये असीम संभावनाएं हैं। तो हमनें सोचा कि ऐसा उदयपुर में क्यों नहीं हो सकता?’’

दोनों के लिये फायदे की स्थिति

दूसरे और तीसरे दर्जे के शहर मुद्रास्फीती की आग में जल रहे थे। जिस दर से जीवन निर्वहन की लागत बढ़ती जा रही थी उसके मुकाबले इन क्षेत्रों में ‘अच्छी नौकरियों’ की भारी कमी थी। रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में इन शहरों की युवा प्रतिभाएं अक्सर बड़े शहरों की ओर पलायन कर जाती हैं। ऐसे में कुछ तो सफल होने में कामयाब रहते हैं जबकि उनमें से अधिकतर के हाथ निराशा ही आती है।

छोटे और मझोले शहरों की बात आने पर क्या चीज सबसे अधिक महत्व की होती है इसके बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘इस तरह से वास्तव में हम किसी भी समस्या को हल करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ा रहे हैं। इसकी जगह हम ग्रामीण इलाकों के अलावा दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में रहने वाली 60 से 65 प्रतिशत भारतीय जनसंख्या के भीतर छिपी हुई प्रतिभा को सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं। इन लोगों के अंदर ऐसी अद्भुत समझने की शक्ति और सीखने की क्षमता है कि अगर वास्तविक प्र्रयास किये जाएं तो वे चमत्कार कर सकते हैं। और इस प्रक्रिया के फलस्वरूप हमारा देश एक अधिक बड़ी समस्या का सामना कर रहा है जो कि बड़े शहरों को पलायन की है क्योंकि अधिकतर नौकरियां देश के 15 से 20 बड़े महानगरों तक सीमित हैं। हमारा मानना है कि अगर हम ग्रामीण क्षेत्रों पर अपना ध्यान दें तो हम सामने आने वाली बाधाओं का समाधान तलाश सकते हैं और इन गांवों के युवा प्रतिदिन छोटे और मझोले शहरों के युवाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर सकते हैं। वास्तव में हमारे साथ जुड़े हुए 30 प्रतिशत लोग ग्रामीण इलाकों से आते हैं जिनमें से कई तो हमारे कार्यस्थलों के आसपास किराये के कमरे लेकर रह रहे हैं।’’

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कपिल कहते हैं कि एक नियोक्ता के रूप में वे हमेशा जरूरतमंद लोगों को नौकरी पर रखने को प्राथमिकता देते हैं। वे आगे कहते हैं, ‘‘तो हम वास्तव में ग्रामीण प्रष्ठभूमि से आने वाले उन लोगों को नौकरी पर रखते हैं जिन्हें अपनी शिक्षा के लिये वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है। वे सुबह और दिन के समय काम करने के अलावा रात में भी काम करते हैं और साथ-साथ अपनी शिक्षा पूरी करते हैं। इसके अलावा हम विधवाओं, अकेली माताओं और घर की इकलौती कमाने वाली लड़कियों के द्वारा महिलाओं को सशक्त करने पर जोर देते हैं। साथ ही हम उन विकलांग लोगों को काम करने का मौका देते हैं जो अपनी अक्षमता के बावजूद अपना जीवन अपने दम पर जीना चाहते हैं।’’

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युवाओं को प्रशिक्षण देना

किसी को फाइव स्प्लैश के साथ जुड़ने से पहले पांच कसौटियों पर खरा उतरना पड़ता है। कपिल कहते हैं, ‘‘सबसे पहले हम आवाज की गुणवत्ता और कंप्यूटर साक्षरता की कुछ जांच करते हैं और अगर व्यक्ति हमारे मानदंडों पर खरा उतरता है तो हम उन्हें अपने साथ जोड़ते हैं और उनकी काबिलियत के अनुसार काम का प्रशिक्षण दिया जाता है। हमने कुछ वाॅइस और नाॅन वाइस माड्यूल तैयार कर रखे हैं जिसके माध्यम से हम पहले उन्हें सामान्य भाग के लिये प्रशिक्षण देते हैं और फिर विशेष प्रक्रिया या फिर परियोजना के लिये उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है।’’ इसके अलावा फाइव स्प्लैश ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ जुड़े हुए एनजीओ और विभिन्न संगठनों के माध्यम से भी लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं।

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कपिल का कहना है अबतक उन्हें लोगों से शानदार प्रतिक्रिया मिली है। वे आगे कहते हैं, ‘‘हमे इस तथ्य को समझना होगा कि इन शहरों के युवा ऐसी जगहों पर काम करना पसंद करते हैं जहां उन्हें घर जैसा माहौल मिलता है। उनके लिये एक अच्छा वातावरण वह मुख्य कारक है जो उन्हें जोड़े रखता है। इसके अलावा यहां काम छोड़ने की दर भी बहुत कम है।’’

संचालन और राजस्व

फाइव स्प्लैश नैसकाॅम की एक सहयोगी कंपनी है जोे उदयपुर, जोधपुर और अजमेर में स्थापित है और ये डाटा प्रविष्टि सेवाओं, ओसीआर मिश्रित डिजिटलीकरण, दस्तावेज प्रबंधन की सेवाओं, दस्तावेजों की स्कैनिंग, डाटा माइनिंग सेवाओं, चालान प्रसंस्करण सेवाओं, दावों और छूट संबंधी सेवाओं, बैक आॅफिस समर्थन, ईमेल और चैट समर्थन, इनबाउंड और आउटबाउंड समर्थन सेवाओं जैसे विभिन्न कामों को संभालते हैं। इनकी सेवाएं ई-काॅमर्स, उपयोगिता सेवाओं, दूरसंचार, रियल एस्टेट, खुदरा, बीएफएसआई सहित कई अन्य कार्यक्षेत्रों तक विस्तारित हैं।

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फाइव स्प्लैश एक निजी स्तर पर संचालित कंपनी है जो पूरी तरह से सिर्फ शर्मा परिवार द्वारा वित्तपोषित की जा रही है। कपिल का कहना है कि वे अन्य शहरों में विस्तार करने के क्रम में और अधिक निवेश जुटाने के प्रयत्न कर रहे हैं। कपिल कहते हैं, ‘‘हम वर्तमान के तीन शहरों से बढ़कर 15 शहरों और 3 हजार परिवारों तक अपनी पहुंच बनाना चाहते हैं और हमारा लक्ष्य दक्षिणी भारत, उत्तर पूर्व का इलाका और कश्मीर में अपनी पैठ बनाना है। हमें उम्मीद है कि हम आने वाले तीन से चार वर्षों के भीतर इस लक्ष्य को पाने में सफल रहेंगे।’’

विदा लेते हुए कपिल कहते हैं, ‘‘हम खुद को सिर्फ व्यापार के रूप में नहीं बल्कि एक प्रेरणादायक समूह के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। हम इसे एक ऐसे विचार का रूप देना चाहते हैं जिसेे भारत के कम से कम 500 शहरों में उभरते हुए महत्वाकांक्षी व्यवसायों के रूप में दोहराया जाए। ऐसा होने पर भी देश की अभिसारिता की समस्या का समाधान हो पाएगा। हम अकेले ही 500 स्थानों पर कार्यालयों का निर्माण करने और सेवाओं की पेशकश का काम नहीं कर सकते। हम चाहते हें कि हमारे संभावित हमारी इस मानसिकता को अपनाएं और वे इस सच को पहचानें कि उनका काम भी छोटे या मझोले शहर में उसी प्रकार या उससे भी बेहतर तरीके से पूरा किया जा सकता है और दूरी या प्रतिभा अब कोई बड़ी परेशानी नहीं है।’’