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देश बदलने का जज़्बा रखने वाले स्टार्टप्स को गांधी जी की ट्रस्टीशिप पॉलिसी को जानना ज़रूरी-बिंदेश्वर पाठक

देश बदलने का जज़्बा रखने वाले स्टार्टप्स को गांधी जी की ट्रस्टीशिप पॉलिसी को जानना ज़रूरी-बिंदेश्वर पाठक

Friday January 22, 2016 , 8 min Read

भीड़ से हटकर चलने वाले और बाद में भीड़ को अपने पीछे चलाने वाले गिने-चुने लोग हैं। ऐसे लोग जिन्होंने एक सोच अपनाई, उसको आत्मसात किया और ताउम्र उसी पर चलकर दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बनाई। सिर्फ पहचान ही नहीं बनाई बल्कि दूसरों की पहचान, उनके कामकाज के तरीके और उनके जीवन को नया आकार देकर सामाजिक क्रांति लाई। ऐसे ही शख्स का नाम है बिंदेश्वर पाठक। पीएम मोदी की क्लीन इंडिया आंदोलन में महती भूमिका निभाने वाले जाने माने समाजसेवी और सुलभ इंटरनेशल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक। सामाजिक तमाम पहलूओं, स्टार्टअप इंडिया और आगे की योजनाओं पर बिंदेश्वर पाठक से योर स्टोरी ने बात की। यहां पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।

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योर स्टोरी-सुलभ इंटरनेशनल का आईडिया आपके जेहन में कैसे आया-?

डॉ बिंदेश्वर पाठक-सुलभ का आईडिया आने के पहले कई ऐसी परिस्थितियों का सामना हुआ जो बहुत ही विकट कही जा सकती है। मैं 1968 में गांधी जी के जन्मशती मनाने के लिए बनाई गई एक कमेटी में शामिल हुआ। इसके तहत कई स्थानों पर जाने का मौका मिला और समाज में व्याप्त छूआ-छूत को भी करीब से देखा। इसी दौरान बिहार के मोतिहारी जिले के एक अछूत कॉलोनी में जाने का अवसर मिला। वहां घटी एक घटना ने मेरा जीवन बदल कर रख दिया। एक युवा लड़के को एक सांड ने मारकर बुरी तरह घायल कर दिया था, लेकिन किसी ने भी उसे नहीं उठाया, क्योंकि वो अछूत था। मुझे बड़ी तकलीफ हुई। मैंने उस लड़के को उठाया और लाकर अस्पताल में भर्ती करवाया, लेकिन वो बच नहीं सका। इसके बाद मैंने गांधी का नाम लेकर कसम खाई कि जब तक मैला ढोने की प्रथा को समाप्त नहीं करुंगा, इन अछूतों का उद्धार नहीं होगा तब तक मैं तब तक शांत नहीं बैठूंगा। बस वहीं से उस आइडिया की शुरुआत हुई जो आगे चलकर सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था के रुप में सामने आया।

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योर स्टोरी-मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने के लिए सुलभ ने किस तरह की योजना बनाई थी--?

डॉ पाठक-मैंने टू-पीट स्कीम से टॉयलेट बनाने की पद्धति विकसित की जो की सुलभ की दुनिया को देन है। केंद्र सरकार ने भी हमारी स्कीम को 2008 से मान्यता दी है जबकि राज्य सरकारों ने तो पहले से ही इस तकनीक को मान्यता दे दी थी। इस व्यवस्था में हाथ से मैला को साफ करने की जरुरत नहीं पड़ती। इतना ही नहीं सुलभ ने आगे चलकर पहाड़ी और मुश्किल इलाकों में भी स्थानीय संसाधनों से टू-पीट टॉयलेट बनाने की तकनीक का इजाद किया है।

योर स्टोरी-बिहार के कुलीन ब्राह्मण परिवार से आना और परंपरावादी सामाजिक व्यवस्था के बीच आपके लिए ऐसी शुरुआत करना कितना मुश्किल था जबकि उस वक्त लोग इसके बारे में बातचीत भी करना पसंद नहीं करते थे--?

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डॉ पाठक-अगर माने तो ये हरक्यूलिन टास्क था...हिमालय में चढ़ने जितना मुश्किल भी कह सकते हैं, जिसमें कई लोग सफलता हासिल करते हैं और कुछ हार कर लौट जाते हैं। मैंने लौटने वाले मार्ग का चयन नहीं किया। मैं जानता था अगर मैं ये नहीं करुंगा तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाउंगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि "जबतक हरिजनों का उद्धार नहीं होगा सामाजिक विकास अधूरी रहेगी।" और उस दौर में उनकी बातें करने वाले कम ही लोग थे लेकिन कुछ खास हो नहीं पा रहा था। यहां तक कि मेरी पत्नी के पिताजी(ससुर) ने मुझे बुलाकर कहा कि आपने में मेरी बेटी का जीवन चौपट कर दिया। क्योंकि उस इलाके में उनकी ख्याति थी और लोगों में चर्चा का विषय था कि डॉक्टर साहब (डॉ पाठक के ससुर वैशाली जिले में डॉक्टर थे) का दामाद अछूतों के साथ उठते-बैठते और रहते हैं। लेकिन इन तमाम विरोधों के बावजूद मैंने कभी हार नहीं मानी। बस एक बात जो हमेशा मेरे साथ थी वो थी मेरी हिम्मत। मैंने हिम्मत का दामन कभी नहीं छोड़ा।

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योर स्टोरी-आपने काफी पहले, करीब 45 साल पहले अपनी संस्था सुलभ इंटरनेशनल के द्वारा सोशल इंटरप्राइज करना शुरु कर दिया था जिसके माध्यम से आज करीब 50 हजार से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। आप सोशल इंटरप्राइज करने वाले युवाओं के आदर्श के तौर पर देखे जाते हैं...। आज के युवाओं को जो कि सोशल आंप्रेन्योरशिप में आना चाहते हैं किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए---?

डॉ पाठक-देखिए मैं महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हूं, खासकर गांव और विकास को लेकर जो विचार गांधी जी ने दिए थे वो आज भी प्रसांगिक हैं। स्टार्टअप करने वाले युवाओं या सोशल स्टार्टअप का विचार रखने वाले युवाओं से मैं यही कहना चाहूंगा कि वो गांधी जी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत के मुताबिक काम करें। अपने आईडियाज और सोच को लेकर पहले खुद कंविंस हों तो उन्हें सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। मेरे लिए अगर देखें तो 1968 से 1973 का वक्त काफी मुश्किलों से भरा था लेकिन उनके बाद मुझे एक के बाद एक सफलताएं मिली।

योर स्टोरी-हमें जानकारी मिली है कि आप गांधी जी के अलावा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी से खासे प्रभावित हैं-?

डॉ पाठक-हां, आपने सही कहा। ये सच है कि मेरे ऊपर गांधी जी के अलावा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी का भी प्रभाव है। मैं उनके उस वक्तव्य से खासा प्रभावित हूं जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘यह मत पूछो कि देश ने तुम्हारे लिए क्या किया है, बल्कि खुद से ये पूछो कि तुमने अपने देश के लिए क्या किया’।

योर स्टोरी-मोदी सरकार ने स्वच्छता को लेकर अभियान छेड़ा है, लेकिन आपकी संस्था सुलभ इंटरनेशनल ये काम पिछले 45 सालों से भी ज्यादा वक्त से कर रही है-सरकार के अभियान के बाद क्या फर्क आया है-?

डॉ पाठक-फर्क ये आया है कि कई सारे बैंक, पीएसयूज और प्राइवेट कंपनीयो ने सुलभ इंटरनेशनल से पब्लिक टॉयलेट बनाने के लिए संपर्क साधा है। ये समझ लीजिए कि अगर देश का टॉप लीडरशीप कुछ कहता है तो उसका फर्क तो पड़ता ही लेकिन अगर मोदी जी कुछ कहते हैं तो उसका और ज्यादा फर्क पड़ता है, क्योंकि लोग मोदी जी की बातों को सुनते हैं और अमल करते हैं। सो उनकी स्वच्छता योजना की भी काफी चर्चाएं हो रही है। स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तर और निजी ऑफिसों में भी स्वच्छता को लेकर काफी चर्चाएं हो रही है, जिससे जागरुकता का स्तर काफी बढ़ गया है। बच्चों और युवाओं के बीच ये अभियान काफी लोकप्रिय हो रहा है और ये लोग इसे आगे लेकर जाएंगे। 2019 तक देश के हर गांव में टॉयलेट बनाने की पीएम के मिशन में सुलभ कदम दर कदम मिलाकर चलना चाहता है और हमारे पास इसकी पूरी विस्तृत योजना है कि कैसे असंभव सा दिखने वाला ये मिशन संभव है।

योर स्टोरी-अब तक सुलभ इंटरनेशनल का नाम और काम किन-किन देशों में पहुंच चुका है-?

डॉ पाठक-जहां तक सुलभ के नाम का सवाल है वो तो दुनिया के करीब-करीब सभी देशों में पहुंच गया है। लेकिन काम कि अगर बात करें तो अफ्रीका के देशों, एशियाई देश और मिड्लि ईस्ट के देशों की सरकारें और लोकर बॉडिज ने सुलभ की कंस्लटेंसी ली है। इसके इलावे हमारी संस्था ने दुनिया भर कई देशों में ट्रेनिंग देने और उन्हें कम कीमतों में बेहतर टॉलेट बनाने की योजना दी है।

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योर स्टोरी-इन योजनाओं के अलावे सुलभ और क्या अलग कर रहा है--?

डॉ पाठक-स्टार्टअप के तौर पर हमने पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक प्रभावित इलाकों (इन इलाकों में बड़ी संख्या में लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं) में वाटर-मैनेजमेंट का काम अपने हाथों में लिया है और वहां हम पीने का पानी 50 पैसे प्रति लीटर मुहैया करा रहे हैं।

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सोशल स्टार्टअप के तौर पर हमारी संस्था ने राजस्थान के टोंक और अलवर जिले में स्केभेंजर्स की फैमिली के साथ मिलकर उन्हें लाइवलीहुड प्रदान करने का काम सुलभ की सहयोगी संस्था ‘नई दिशा’ कर रही है। वहां पापड़ और अचार बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। इतना ही नहीं सुलभ के दिल्ली कैंपस में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल भी चलता है जहां बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। इस स्कूल में स्केभेंजर्स के बच्चे और मेन स्ट्रीम के बच्चे साथ-साथ पढ़ते हैं। इतना ही नहीं यहां ब्यूटिशियन, सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग भी दी जाती है। गाजियाबाद में भी हम ऐसी योजनाओं पर काम कर रहे हैं। इलके अलावे वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं के कल्याण के लिए भी सुलभ काम कर रही है।

योर स्टोरी-मोदी जी ने हाल ही स्टार्टअप इंडिया को लॉन्च किया है। उन्होंने जोर देकर युवाओं को आह्वान करते हुए कहा कि युवाओं को सोशल चैलेंजज के समाधान के लिए स्टार्टअप करने चाहिए। ऐसे में आप सोशल स्टार्टअप में कितनी संभावनाए देखते हैं-?

डॉ पाठक-जैसा कि मैंने आपको पहले ही कहा है कि मोदी जी की बातों को लोग सुनते हैं और उस पर अमल करते हैं। उनके आह्वान पर काफी युवा इस चैलेंज को अपने हाथों में लेंगे। इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। सेनिटेशन, वेस्टमैनेजमेंट, वाटर-मैनेजमेंट के क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं।

योर स्टोरी-अंत में एक जरुरी सवाल के साथ हम अपना ये इंटरव्यू खत्म करना चाहते हैं, सोशल स्टार्टअप करने वाले युवाओं को सुलभ की तरफ से क्या-क्या सहुलियतें मिल सकती है-?

डॉ पाठक-सोशल स्टार्टअप करने वाले युवाओं के लिए सुलभ के दरवाजे हमेशा खुले हैं। हमने कई युवाओं को ट्रेनिंग और इंटर्नशिप भी दी है। सुलभ की तकनीक पेटेंट कानून के दायरे में नहीं है सो कोई भी इस तकनीक को लेकर आगे बढ़ सकता है, व्यापार कर सकता है। लेकिन उन युवाओं से मेरी गुजारिश होगी कि जब आप अपने उद्यम से कमाई करते हैं उसका लाभ समाज के जरुरतमंदों को भी मिलना चाहिए, कमाई का एक हिस्सा समाज के कमजोर वर्ग पर खर्च हो, जिससे उनके बच्चे भी विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। तभी जाकर विकास की सही परिभाषा सामने आएगी और तभी जाकर उनका स्टार्टअप एक सोशल स्टार्टअप बन पाएगा। ऐसे युवा उद्यमियों को मेरी असीम शुभकामना।

योर स्टोरी-योर स्टोरी से बात करने के लिए आपका दिल से आभार।

डॉ पाठक-आपका भी धन्यवाद और आपकी कंपनी योर-स्टोरी मीडिया को मेरी शुभकामनाएं जो इतना बेहतरीन काम कर रही है।