पति की मौत ने कराया जिम्मेदारी का अहसास, उज्ज्वल कर दिया हवारे समूह
वर्ष 2005 में पति सतीश हवारे की असामयिक मृत्यु के बाद उज्ज्वला ने समूह का अध्यक्ष पद संभाला वास्तुविद् की पढ़ाई कर रही उज्ज्वला शादी के तुरंत बाद ही पति के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगी थी पति के अधूरे सपनों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की जिद ने उन्हें बनाया एक सफल उद्यमीपति की मौत के 12 दिन बाद और मातृत्व सुख पाने के एक हफ्ते बाद ही उज्ज्वला पहुंच गई थीं कार्यालय
हवारे समूह नवी मुंबई और ठाणें के क्षेत्र में निर्माण के व्यवसाय में एक जाना-माना नाम है। वर्ष 1995 में सतीश हवारे द्वारा स्थापित यह समूह अपनी सस्ती आवासीय परियोजनाओं के लिये जाना जाता है जिनकी वजह से आज यह घर-घर में जाना जाने वाले नाम बन गया है। वर्तमान में 750 करोड़ रुपये से अधिक का यह विशाल समूह निर्माण व्यवसाय के क्षेत्र के 10 शीर्ष नामों में से एक है और अब तो ये महाराष्ट्र के सुदूर क्षेत्रों में स्थित पालघर और करजत में भी इमारतों का निर्माण कर रहे हैं। निर्माण वयवसाय से जुड़े अधिकतर लोग व्यवसाय के चरम पर पहुंचने के बाद वर्ष 2005 में हुई सतीश हवारे की असामयिक मौत के बारे में जानते हैं। उन्होंने अपने पीछे सिर्फ एक ऐसे संपन्न व्यवसाय को ही नहीं छोड़ा था जिसपर जिसपर कई लोगों के जीवन निर्भर थे बल्कि उनके जाने के बाद एक उद्यमी के रूप में उनके द्वारा देखे गए सपने और आकांक्षाएं भी एक शून्य में विलीन हो गई थीं।
उज्ज्वला हवारे दो बच्चों की माँ होने के साथ एक कुशल गृहणी भी थीं जो कभी-कभी कार्यालय भी चली जाती थीं, ‘‘क्योंकि सतीश कभी भी मुझे सिर्फ घर के कामों तक सीमित नहीं करना चाहते थे।’’ स्वयं एक प्रशिक्षित वास्तुविद् उज्ज्वला बहुत कम उम्र में ही व्यापार की बारीकियों से रूबरू हो गई थीं और वही एक व्यक्ति थीं जिनके साथ सतीश सितारों को छूने के अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं को साझा करते थे। और यह उनके द्वारा साझा किया गया करीबी रिश्ता ही था जिसकी वजह से उज्ज्वला ने उनके आकस्मिक निधन के 12 दिनों के बाद ही उनके सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। सिर्फ एक सप्ताह पहले मातृत्व सुख की साक्षी बनने वाली उज्ज्वला को मातृत्व के भाव को पीछे छोड़कर जिम्मेदारी का चयन करना पड़ा।
वर्ष 2005 में जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने के बाद से ही उज्ज्वला ने न केवल अपने पति निरंतर सफलता को सुनिश्चित किया है बल्कि अब वे कंपनी को सफलता की नई बुलंदियों तक ले जाने में सफल हो रही है और नए-नए क्षेत्रों में कदम बढ़ाते हुए कंपनी का विस्तार कर रही हैं। हमने हाल ही में जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में उनके रुख को जानने के लिये उनसे विस्तृत चर्चा की।
एक युवा दुल्हन
उज्ज्वला अपनी वास्तुविद् की पढ़ाई के अंतिम वर्ष में ही विवाह के बंधन में बंध गई थीं। उनके परिवार ने एक मराठी अखबार में छपे एक बड़े वैवाहिक विज्ञापन की प्रतिक्रिया दी, जिसमें लिखा था, ‘‘नवीं मुंबई के एक प्रसिद्ध वास्तुकार बिल्डर को विदर्भ क्षेत्र की रहने वाली एक वास्तुविद् दुल्हन की तलाश है।’’ उज्ज्वला ने अपने पति सतीश के साथ बिताये पलों को एक किताब ‘एंड सो ही लिव्ड आॅन’, में सहेजने की कोशिश की है। इसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि उनकी शादी एक जुआ थी जिसमें वे भाग्यशाली रहीं और वह सबकुछ पाने में सफल रहीं जो वे चाहती थीं।
परिवार द्वारा तय किये गए विवाह की बदौलत उज्ज्वला अपने सपनों के राजकुमार को पाने में सफल रहीं और समय के साथ उन्हें सतीश के उत्साह और जोश को जानने का मौका मिला। सतीश ने न केवल उन्हें प्रेरित किया बल्कि उन्हें व्यक्तिगत और पेशेवर हर रूप में अपने साथी का दर्जा दिया। और इस तरह से इस नई-नवेली दुल्हन ने प्रारंभ से ही कार्यालय जाना और विभिन्न परियोजनाओं को तैयार करने में सहयोग करना शुरू कर दिया। हालांकि बेटी के जन्म के समय उन्हें दफ्तर और काम से दूरी बनानी पड़ी क्योंकि पारिवारिक जिम्मेदारियों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था। लेकिन इसके बावजूद भी वे सतीश के साथ हवारे समूह की भविष्य की योजनाओं के बारे में विचार-विमर्श करती रहती थीं और अपनी महत्वपूर्ण राय से उन्हें अवगत करवाती रहती थीं।
वास्तव में पति-पत्नी के बीच हुए इन वार्तालापों और सपनों के आदान-प्रदान ने उज्ज्वला को अपने काॅलेज के अंतिम वर्ष में थीसिस के लिये ‘बेघर लोगों के लिये आवास के दृष्टिकोण’ विषय चुनने के लिये प्रेरित किया। यह एक ऐसा सपना और विषय था जिसे उनके पति भी वास्तुकला की अपनी पढ़ाई के दौरान चुनना चाहते थे। उज्ज्वला मानती हैं कि वे हमेशा अपने पति से प्रेरित होती हैं चाहे वह रिश्तों को संभालने का उनका अंदाज हो, अपने फैसलों पर अमल करने की उनकी क्षमता या फिर जीवन के लिये उनका प्यार हो। वे स्वीकार करती हैं, ‘‘मैं अपने आपको बेहद भाग्यशाली मानती हूँ कि मैं उनके जैसे एक बेहतरीन व्यक्ति की अर्धांग्नि बनने का सौभाग्य पा सकी।’’
सतीश का प्रभाव
सतीश और उज्ज्वला दोनों ही बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं और यह इन दोनों द्वारा दिखाए गए धैर्य और दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है कि हवारे समूह आज देश के चुनिंदा शीर्ष समूहों से शामिल है। बिल्डर बनने से पहले सतीश एक वास्तुकार के रूप में काम करते थे और उसी दौरान उन्होंने इस क्षेत्र में अच्छे संबंध बनाने में सफलता पाई। जब उन्होंने अपना व्यवसाय प्रारंभ करने का फैसला किया तो इन्हीं संपर्कों और परिचितों के समूह ने इनमें विश्वास दिखाया। समूह की पहली परियोजना के बारे में बताते हुए उज्ज्वला कहती हैं, ‘‘हमारी पहली परियोजना खारघर में थी और उस समय वह जमीन पूरी तरह से बंजर थी। यहां तक कि बारिश के मौसम में तो साइट तक पहुंचना बेहद कठिन हो जाता था क्योंकि तब तक ठीक से सड़कें भी मौजूद नहीं थीं।’’ हालांकि उस समय जमीन बहुत सस्ती थी लेकिन एक बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले हवारे दंपत्ति के पास इतना धन नहीं था कि वे जमीन में निवेश कर सकें। लेकिन सतीश के पुराने संपर्कों और उपभोक्ताओं ने उनमें विश्वास जताया और आगे बढ़कर उनकी मदद की। उज्ज्वला आगे बताती हैं, ‘‘सतीश एक बेहद सौहार्दपूर्ण व्यक्ति होने के साथ-साथ बेहद बातूनी भी थे और वे एक ऐसे व्यक्ति जो आसानी से हर किसी का दिल जीत लेते थे। इसके अलावा वे एक बेहद भरोसेमंद व्यक्ति थे और एक ऐसे समय में जब बिल्डर लोगों के पैसे लेकर चंपत हो रहे थे लोग उनकी ईमानदारी और शुचिता पर आंख मूंदकर भरोसा करते थे।’’
इसके अलावा सतीश जोखिम उठाने के लिये भी हरदम तैयार रहते थे और उज्ज्वला के अनुसार इसी वजह से भीड़ से अलग नजर आते थे। उज्ज्वला बताती हैं, ‘‘वे बहुत ही उच्च स्तर पर जोखिम लेने वाले व्यक्ति थे क्योंकि उन्हें खुदपर और अपनी शिक्षा पर पूरा भरोसा था। इसी वजह से उन्होंने सोचा कि अगर मैं एक बिल्डर के रूप में असफल भी हो गया तो, कोई बात नहीं, मैं दोबारा एक वास्तुविद् के रूप में अपना काम शुरू कर दूंगा क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके पास खोने के लिये कुछ भी नहीं है।’’ और चूंकि उज्ज्वला खुद भी एक वास्तुविद् थीं इसलिये वे रास्ते में आने वाली हर परेशानी का मिलकर सामना करने के लिये तैयार थे। वे कहती हैं, ‘‘उनकी निर्णय लेने की क्षमता बहुत बेहतरीन थी। वे फैसले लेने में सक्षम थे क्योंकि उनके पास उन सपनों को पूरा करने का स्पष्ट दृष्टिकोण था।’’ आज हवारे समूह की अध्यक्ष के रूप में उज्ज्वला कहती हैं कि सतीश का दूरदर्शी दृष्टिकोण आज भी उनके आसपास मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के लिये एक प्रेरणा का काम करता है।
इसके अलावा सतीश को सामाजिक कार्यों में संलिप्त होना बेहद पसंद था। सतीश वर्ष 1993 में लातूर में आये भूकंप और वर्ष 2004 की चेन्नई की सूनामी के बाद चले बचाव कार्यों में खुद व्यक्तिगत रूप से शामिल हुए थे और एक सक्रिय भूमिका निभाई थी। उज्ज्वला कहती हैं, ‘‘इस काम में 45 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद उनका इरादा इस व्यवसाय को किसी और को सौंपकर विदर्भ के चिकलदर्रा इलाके के रहने वाले आदिवासियों के उत्थान और उनकी भलाई के लिये कुछ काम करने का था।’’ आज भी हवारे समूह नवी मुंबई, ठाणें और मुंबई में कई धमार्थ पुस्तक बैंकों और अध्ययन केंद्रों का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। यहां तक कि किफायती आवास की अवधारणा, जिसके लिए हवारे समूह जाना जाता है भी सभी को सिर छिपाने के सक्षम बनाने की सोच से आया है।
बागडोर अपने कंधों पर लेना
उज्ज्वला द्वारा लिखी गई किताब को पढ़ने पर एक पाठक के तौर पर हम यह समझ पाते हैं कि उज्ज्वला बहुत हद तक अपने पति पर निर्भर रही हैं। उन्होंने उनका बेहद ख्याल रखा और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें किसी भी प्रकार कर समस्या का समाना न करना पड़े। यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि उन्होंने उज्ज्वला को हर तरह का लाड़-प्यार दिया। इसी वजह से जब सतीश की एक कार दुर्घटना में अचानक मृत्यु हो गई तो उज्ज्वला के लिये इस कड़वी सच्चाई को बर्दाश्त करना कितना मुश्किल रहा होगा इसी कल्पना सहज ही की जा सकती है। लेकिन शायद वह सतीश के साथ साझा किया गया बंधन ही है जिसने उज्ज्वला को आंसू पोंछते हुए तेजी से बढ़ते हुए व्यापार की जिम्मेदारी को संभालने की ताकत दी।
उज्ज्वला स्वीकार करती हैं कि सतीश की मौत के बाद स्थितियां बहुत दुश्वार थीं और प्रारंभिक दौर में उनके सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी थीं। वे कहती हैं, ‘‘कई लोग मेरे साथ खड़े थे लेकिन कईयों के लिये मैं एक आसान निशाना थी। इसी वजह से मुझे कई अदालती और आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा। लेकिन मुझे लगता है कि वह सब व्यापार का एक हिस्सा है और ईश्वर की कृपा से मेरे पास इन चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत थी।’’ लेकिन किसी भी मोड़ पर उज्ज्वला ने हार नहीं मानने की सोची क्योंकि उन्हें न केवल अपने पति के सपनों को पूरा करना था बल्कि दुनिया को यह भी साबित करना था कि एक महिला किस मिट्टी की बनी होती है।
सतीश हवारे नैनो आवास की अवधारणा पहली बार दुनिया के सामने लेकर आये थे। इस अवधारणा में 1 कमरे के आवास का आकार 25 प्रतिशत कम दिया गया जिसके चलते उसकी कीमत में भी 25 प्रतिशत की कमी आ गई जिसकी वजह से वह खरीददार के लिये सस्ता हो गया। जब उन्होंने व्यापार की दुनिया में कदम रखा तब नवी मुंबई में कोई भी छोटे आवासों का निर्माण नहीं कर रहा था और उस समय सस्ती कीमत के घरों की भारी किल्लत थी। सतीश ने इसे एक अवसर के रूप में लिये और हवारे समूह ने किफायती आवास का निर्माण करना शुरू किया। उज्ज्वला बताती हैं, ‘‘वर्ष 1995 के पतन से पहले बाजार में एक बड़ा उछाल आया और फिर धड़ाम। सीबीडी बेलरपुर जैसी जगहों पर सिर्फ बड़े फ्लैट मौजूद थे और जब बाजार गिरा तो ये फ्लैट एक लंबे समय तक बिना बिके ऐसे ही पड़े रहे।’’ इस मंदी और गिरावट के दौर के बावजूद हवारे समूह का व्यवसाय तेजी से बढ़ता रहा और पडगा में स्थित उनकी एक परियोजना निसर्ग तो सिर्फ परियोजना की घोषणा होने के दो दिन के भीतर ही पूरी तरह से बिक गई। फ्लैटों की बुकिंग शुरू होने के मात्र दो दिन के भीतर ही उनके 550 फ्लैट बिक गए।
वर्तमान में इस समूह की परियोजनाएं ठाणे, मुंबई, पालघर और करजात में चल रही हैं जिन्हें उज्ज्वला बहुत ही कुशल तरीके से संचालित कर रही हैं। हालांकि वे अब भी ‘श्रमिक’ जैसी एक परियोजना को का निर्माण करना चाहती हैं जिसे सतीश ने खारघर में तैयार किया था। हवारे समूह ने मात्र 2 लाख रुपये कीमत के 200 छोटे मकानों का निर्माण समाज के गरीब तबके के लोगों के लिये किया था। उन्होंने इन मकानों को खरीदने के लिये इन लोगों को अपनी फाइनेंस कंपनी से लोन भी दिया था और उज्ज्वला बड़े गर्व से बताती हैं कि उनमें से किसी ने भी ऋण लौटाने में कोताही नहीं की और सबसे पाई-पाई चुकाई।
उज्ज्वला कहती हैं, ‘‘हम लोग इस परियोजना को दोहराने में सफल नहीं हो पाए क्योंकि मकानों की कीमतों में भारी उछाल आ गया है और इतने कम दामों पर घर तैयार करके उपलब्ध करवाना फिलहाल की स्थितियों में संभव नहीं है। लेकिन अगर हम भविष्य में ऐसा कर पाने में सफल होते हैं तो मैं इसे करना चाहूंगी।’’ अबतक हवारे समूह 45 हजार लोगों को आवास उपलब्ध करवा चुका है। पहलेपहल एक महिला उद्यमी के रूप में कई लोगों ने उज्ज्वला को तरजीह नहीं दी और कुछ ने तो इस तथ्य का नाजायज फायदा उठाते हुए उन्हें व्यापार में धोखा देने के प्रयास किये। लेकिन अब वे सब बीते दौर की बातें हैं और हवारे समूह अपनी महिला अध्यक्ष की सरपरस्ती में महाराष्ट्र की तेजी से बढ़ती हुई निर्माण कंपनियों में से एक है।
हालांकि व्यापार बहुत अच्छा चल रहा हे लेकिन उज्ज्वला को सिर्फ इस बात का मलाल है कि वे उपने बच्चों, विशेषकर अपनी बेटी को, पर्याप्त समय नहीं दे पाईं। उज्ज्वला हंसते हुए कहती हैं, ‘‘हम अपने बच्चों से पूछते हैं कि वे बड़े होकर क्या बनना पसंद करेंगे? मेरी बेटी कहती है कि वह एक गृहणी बनना चाहती है। उसने शुरू से देखा है कि उसकी अधिकतर सहेलियों की माताएं ‘गृहणी’ हैं जो अपने बच्चों के साथ अपना अधिकतर समय बिताती हैं, और इसीलिये यह उसकी इच्छा है।’’ इसके बावजूद भी वे जब संभव हो उनके लिये समय निकालती हैं और वर्ष में दो बार वे लोग छुट्टियों पर जाने के अलावा जब भी संभव हो पिकनिक पर जाते हैं। अब वे इन दोनों भूमिकाओं का निर्वहन बेहतर तरीके से कर पा रही हैं लेकिन व्यवसायिक क्षेत्र में उज्ज्वला महाराष्ट्र के बाहर विस्तार करते हुए हवारे समूह को देशभर में मशहर करना चाहती हैं।
हम उज्ज्वला के साहस और दृढ़ संकल्प को सलाम करते हैं। हमारी शुभकानाएं उनके साथ हैं!