कठात समाज के इतिहास में पहली बार किसी लड़की ने की नौकरी, सुशीला बनीं सब इंस्पेक्टर
कहते हैं कुछ लोग ऐेसे होते हैं जो लीक पर चलने में असहज महसूस करते हैं. चूंकि उन्हें इस बात का अंदाजा हो जाता है कि लीक पर चलना आसान तो है, पर नया नहीं, भीड़ के साथ चलना खुद के वजूद को खो देने जैसा है. इसलिए ऐसे लोग अपनी राह बनाते हैं. ज़ाहिर है रास्ता बनाने में तमाम मुश्किलें आती हैं, समाज ताने मारता है, बात-बात पर परेशान करता है, लेकिन जब जीत होती है तो फिर उस का सब लोहा मानने लगते हैं. अगर लीक से हटने की जुर्रत किसी महिला ने की है तब तो समझ लीजिए समस्या दोगुनी है. पर जो सफलता मिलती है वो भी कई गुणा ज्यादा होती है। ऐसी ही हैं सुशीला कठात।
29 साल की सुशीला कठात की शादी महज 5 साल की उम्र में हो गई थी, मगर होश संभालते ही सुशीला ने पहली लड़ाई अपने समाज के अंदर लड़ी वो भी अपनी शादी को खत्म कराने के लिए. तब पूरे समाज ने सुशीला के परिवार से मुंह मोड़ लिया था, लेकिन सुशीला अब पूरे समाज की रोल माॅडल बन गई हैं. पहली बार कठात समाज की कोई लड़की सरकारी नौकरी में गई है. रिक्शा चलाने वाले अहमद कठात की बेटी सुशीला कठात अपनी समाज की पहली नौकरी करनेवाली बनीं और अब राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर हैं.
राजस्थान में 12 लाख की आबादी वाले कठात समाज में कभी कोई लड़की नही पढ़ती थी. राजस्थान के अजमेर, पाली और भिलवाड़ा जिले में फैले कठात समाज के लोग सभी रीति-रिवाज हिंदू धर्म की तरह ही करते हैं, लेकिन मानते हैं इस्लाम धर्म को. शव को जलाने से लेकर हिंदू धर्म के सभी पर्व मनाते हैं पर नमाज पढ़ते हैं. ये अपनी लड़कियों की शादी बचपन में ही कर देते हैं, लिहाजा कोई लड़की कभी स्कूल नही जाती. लेकिन इसी कठात समाज की लासड़िया गांव की सुशीला ने ससुराल जाने के बजाए पास के शहर ब्यावर के स्कूल में पढ़ने जाने का फैसला किया. सुशीला कहती है,
"हम सात बहनें हैं और माँ चाहती थीं कि हम सब पढ़े. लेकिन ये सब आसान नही था. मैं पहली ऐसी थी जो अपने गांव और समाज से स्कूल जाना शुरु किया था"
सुशीला राजस्थान पुलिस एकेडमी से 14 महीने की पुलिस ट्रेनिंग कर प्रोबेशन पर पुलिस सब इंस्पेक्टर बन गई हैं. सुशीला की इस कामयाबी को देखने के लिए मां इस दुनिया में नही रहीं. 6 महीने पहले ही मां चल बसीं, लेकिन पिता इस खुशी को बांटने के लिए बेटी की पासिंग परेड के दिन ट्रैक्टर किराए पर लेकर पूरे गांव को पुलिस एकेडमी ले कर आए.
लासड़िया में कठात समाज के 350 घर हैं और करीब 3000 आबादी है. पिता अहमद कठात दिल्ली में रिक्शा चलाते थे और मां गांव में खेतों में काम करती थी. लेकिन दोनों अपनी पूरी कमाई इकट्ठा कर बेटी की पढ़ाई में लगाते रहे. पिता अहमद कठात कहते हैं,
"सुशीला की इस कामयाबी ने कठात समाज का भाग्य बदल दिया है. अब लसाड़िया गांव की सभी लड़कियां स्कूल में पढ़ने जाने लगी है. मैं गांव के लोगों को दिखाना चाहता था कि शिक्षा क्या कर सकती है"
सुशीला की तीन और बहनें भी अब नौकरी करने लगी हैं और अन्य भी तैयारी कर रही हैं. अपनी बहनों को याद करते हुए सुशीला की आंखे भर आती है कि किस तरह से अकेली लड़की के लिए पढ़ाई के लिए पहले पास के गांव जाना पड़ता था और फिर बाद में उच्च शिक्षा के लिए शहर ब्यावर जाना पड़ा था. लेकिन इस सब में उसे उसकी मां का साथ हमेशा मिला.
सुशीला अपनी समाज की पहली लड़की हैं, जिन्होंने शहर जाकर ग्रैजुएशन और पोस्टग्रैजुएशन किया. फिर एम.फिल और यूजीसी नेट भी क्लियर किया. सुशीला का मकसद है कि समाज से बाल विवाह को मिटाना. सुशीला कहती हैं,
"मेरी कोशिश यही रहेगी कि कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी बचपन में नही करे. अगर ये परंपरा मिट गई तो समाज की लड़कियां कामयाबी की कई मंजिल हासिल करेंगी"
सुशीला को पहली पोस्टिंग भीलवाड़ा के थाना में मिली है जहां कठात समाज के कई गांव है. लिहाजा ये अपनी शुरुआत यहीं से करना चाहती है