लैंगिक हिंसा को रोकने के लिए जरूरी है पॉलिसी के स्तर पर बदलाव
मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज और किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में की गई 6,190 ऑटोप्सी के नतीजे चिंताजनक हैं.
साल 2017 की मई से लेकर अप्रैल, 2022 के बीच मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज और किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में 6,190 ऑटोप्सी की गई. इनमें से कुल 1,467 महिलाएं थीं, जिनकी ऑटोप्सी की गई थी. इन महिलाओं के शवों का पोस्टमार्टम करने और उसकी स्टडी करने के बाद अस्पताल ने पाया कि इनमें से 840 महिलाएं ऐसी थीं, जिनकी मृत्यु अप्राकृतिक कारणों से हुई थी.
इन 840 में से भी 181 में यानी तकरीबन 21.5 फीसदी मामलों उनके साथ हुई हिंसा के सारे सबूत उनके शरीर पर मौजूद थे. इसमें से 75 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं, जिनकी उम्र 15 वर्ष से लेकर 44 वर्ष के बीच थी.
इन 1467 शवों के अध्ययन में निम्नलिखित चीजों को आधार बनाया गया था-
- 1. डेड बॉडी का फोरेंसिक विश्लेषण
- 2. महिला के शरीर पर लगी चोटों की प्रकृति
- 3. चोट के निशान का पैटर्न
- 4. मृत्यु से पहले दर्ज किए गए महिलाओं के बयान
- 5. मृत्यु के बाद दर्ज किए गए परिवारजनों, रिश्तेदारों आदि के बयान
इस अध्ययन से निकले नतीजे इन बातों की तसदीक कर रहे थे-
1. यह महिलाएं जेंडर वॉयलेंस यानी लैंगिक हिंसा का शिकार हुई थीं.
2. तकरीबन सभी मामलों में हिंसा करने वाला व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि पति और परिवार के लोग थे, जिसे कानून की भाषा में इंटीमेट पार्टनर क्राइम भी कहते हैं.
3. हालांकि कुल मृत्यु में से अप्राकृतिक कारणों से हुई 47 फीसदी मौतों को आत्महत्या की श्रेणी में रखा गया था. लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि महिलाओं की आत्महत्या के कारण भी पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियों में ही मौजूद हैं और इसकी वजह भी पितृसत्ता ही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक पूरी दुनिया में फीमेल जेंडर की आत्महत्या के मामले में 15 से 19 वर्ष की लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है. भारत में भी यह आंकड़ा कमोबेश ऐसा ही है.
इस स्टडी के आंकड़े चिंतित करने वाले तो हैं, लेकिन चौंकाने वाले नहीं हैं. यह अध्ययन कोई ऐसी नई बात नहीं कह रहा, जो पहले और अनेकों अध्ययन नहीं बता चुके. स्टडी के अलावा हम अपने आसपास की दुनिया और जिंदगी के अनुभवों के कारण भी इन तथ्यों से वाकिफ हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2013 से लेकर 2022 इंटीमेंट पार्टनर वॉयलेंस पर जारी की गई हर साल की रिपोर्ट यह कहती है कि दुनिया में हर तीसरी महिला के साथ इंटीमेट पार्टनर वॉयलेंस हो रहा है. वर्ष 2018 की यूएन विमेन की रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी मामलों में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के लिए उत्तरदायी कोई नजदीकी व्यक्ति ही होता है.
अगर भारत के आंकड़ों की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2021 में 6,589 लड़कियां और महिलाएं इंटीमेट पार्टनर वॉयलेंस की शिकार हुईं. 2012 में 8,233, 2011 में 8,618 और 2010 में 8,391 लड़कियां करीबी लोगों की हिंसा की शिकार हुई. वर्ष 2008 से लेकर 2021 तक कुल 55,229 महिलाओं की अप्रत्याशित और अप्राकृतिक कारणों से मौत हो गई.
जहां बाकी अध्ययन पुलिस रिपोर्ट पर आधारित हैं, वहीं सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज और किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल की यह स्टडी एक मेडिकल संस्थान के द्वारा की गई मेडिकल जांच पर आधारित है.
इस रिपोर्ट का एक असर ये हुआ है कि महाराष्ट्र के महिला और बाल विकास मंत्री मंगल प्रभात लोधा ने इस रिपोर्ट को चिंताजनक मानते हुए एक कमेठी गठित किए जाने का निर्देश दिया है. यह कमेटी इस तरह के जेंडर वॉयलेंस के मामलों को अलग से रिकॉर्ड करने और इसे दूर करने के लिए नीतिगत स्तर पर किए जाने वाले बदलावों और उठाए जाने वाले कदमों को लेकर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.
इस पूरे प्रकरण में शायद यह सबसे महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य बात है. जेंडर बेस्ड क्राइम और वॉयलेंस का कहानी तो बहुत पुरानी है, लेकिन चिंता की बात ये है कि इतने विकास, कानून और मजबूत न्याय व्यवस्था के बावजूद इस तरह की हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. बल्कि आंकड़े तो साफ इशारा कर रहे हैं कि हर तरह महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का ग्राफ लगातार ऊपर की दिशा में ही बढ़ रहा है.
इसे रोकने के लिए सरकार और पॉलिसी के स्तर पर सशक्त हस्तक्षेप की जरूरत है. सवाल सिर्फ केसेज को रिपोर्ट किए जाने का नहीं है, बल्कि इन घटनाओं को घटने से रोकने का है. यह काम नीतिगत स्तर पर बदलाव के बगैर मुमकिन नहीं.
Edited by Manisha Pandey