सदियों पुरानी बुनकरी की कला को सहेजने का प्रयास करता ‘इंडोफाश’
हाशिये पर रहने वाले बुनकरों द्वारा तैयार किये गए कपड़ों को ई-काॅमर्स के माध्यम से दुनिया के सामने लाने का है प्रयासइंजीनियरिंग कर चुकी पल्लवी मोहादिकर के दादा थे एक बुनकर और लखनऊ से एमबीए करने के दौरान चिकनकारी के काम को देखकर आया यह विचारकर्नाटक की मशहूर शहतूत सिल्क पर लखनवी चिकनकारी का काम करके तैयार किया ‘इंडोफ्यूशन’ पल्लवी का इरादा चार महीने पुराने ‘इंडोफाश’ को जल्द ही एक वैश्विक ब्रांड के रूप में स्थापित करने का है
पल्लवी मोहादिकर के दादा विदर्भ के एक बुनकर थे। उनका बचपन स्वदेशी भारतीय बुनाई से तैयार सूत को देखते बीता था जहां वे अपनेे दादा को इस सूत को सुंदर टसर सिल्क के रूप में परिवर्तित करते हुए देखा करती थीं। पल्लवी ने इंजीनियरिंग के बाद आईआईएम लखनऊ से एमबीए करने के बाद जब उद्यमिता के क्षेत्र में पांव रखने का फैसला किया तो उन्होंनेे अपनी पुरानी जड़ों की ओर रुख किया और Indofash (इंडोफाश’) की स्थापना की। ‘इंडोफाश’ एक ऐसा ई-काॅमर्स पोर्टल है जो जमीनी और जुनूनी भारतीय बुनकारों औरर शिल्पकारों को आजीविका का एक सुनहरा अवसर प्रदान करवाता है। यह पोर्टल इनके द्वारा तैयार किये हुए कपड़े को देशभर के शहरी उपभोक्ताओं तक आसानी से पहुंचाता है जो इन कारीगरों के जीवन यापन के लिये बेहद आवश्यक है।
इलेक्ट्राॅनिक्स और कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग करने के बाद पल्लवी ने दो वर्षों तक एक आईटी कंपनी में नौकरी करने की और उसके बाद उनके मन में एमबीए करने का विचार आया और बस यहीं से उनके उद्यमशीलता की दुनिया में कदम रखने की नींव पड़ी। पल्लवी बताती हैं, ‘‘मैंने एमबीए करने के लिये लखनऊ के आईआईएम में दाखिला लिया और एक दिन जब मैं अपने पिता के साथ स्थानीय बाजार घूमने गई तो स्थानीय चिकनकारी (सफेद धागे से कपड़े पर की जाने वाली बेहक नाजुक कढ़ाई जो लखनऊ की पहचान है) का काम देखकर आश्चर्यचकित और मंत्रमुग्ध होकर रह गई। इसके बाद अगले वर्ष मैंने बाजार का बहुत नजदीकी से अध्ययन किया। मैंने सैंकड़ों स्थानीय कारीगरों से मुलाकात की और उनकी आपूर्ति श्रंखला के बारे में जानने के प्रयास किये। मुझे अहसास हुआ कि इन लोगों के सामने प्रमाणिकता के साथ अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंचना एक सबसे बड़ी चुनौती है। इसके मद्देनजर मैंने एक ऐसे ब्रांड को खड़ा करने का विचार किया जो इनके इन उत्पादों को प्रमाधिकता उपलब्ध करवाने के साथ-साथ इन्हें भारतभर के उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में कामयाब हो। और यही मेरे जीवन में बदलाव लाने वाला क्षण था।’’
उनके परिवार के इतिहास को देखते हुए यह कहना बहुत आसान होगा कि चिकनकारी के काम में लगे कारीगरों ने उन्हें उनके बचपन के विदर्भ के बुनकरों की याद दिला दी थी लेकिन उस समय तक पल्लवी ने ऐसा सोचा भी नहीं था। आईआईएम से एमबीए करने के बाद उन्होंने गोल्डमैन सैच के साथ काम करना शुरू कर दिया लेकिन उनका यह कार्यकाल सिर्फ 9 महीनों तक ही सीमित रहा। वे चहकते हुए बताती हैं, ‘‘मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से आती हूँ और स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरे माता-पिता को मुझसे बहुत उम्मीदें थीं। एक अच्छी खासी तनख्वाह वाली नौकरी को छोड़कर अपना एक व्यवसाय करने के लिये उन्हें कहना और मनाना वास्तव में बहुत कठिन काम था। लेकिन अब वे दोनों बहुत खुश हैं।’’
एक बार चिकनकारी के काम की सौंदर्य से भरपूर अपील से रूबरू होने के बाद उन्होंने उन गहरे संबंधों को प्रतिबिंबित करना शुरू कर दिया जिन्होंने उन्हें इस सदियों पुरानी कला की ओर आकर्षित किया था। ‘‘जब मैंने इन सैंकड़ों कारीगरों से बातचीत करनी शुरू की जिनकी आजीविका इस कला पर ही टिकी थी तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि ये लोग इस काम को पीढि़यों से करते आ रहे हैं और इन्हें अपनी इस विरासत पर काफी गर्व भी है। मैं इस सच्चाई से भी अच्छी तरह वाकिफ हूँ कि मैं हमेेशा से ही अपने दादा की बुनाई की कला के प्रति जुनून और प्रेम से प्रेरित रही हूँ।
इसी दौरान मुझे यह लगा कि भारत जैसे विविधताओं से भरे हुए देश में कितनी और ऐसी कलाएं कोने-कोने में छिपी बैठी हैं जिनके बारे में हमें और दुनिया को मालूम ही नहीं है। औद्योगीकरण के इस दौर में ये कलाएं समय के साथ दम तोड़ती जा रही हैं। लेकिन फिर भी मुझे विश्वास है कि वे भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन्हें सहेजे जाने की आवश्यकता है। ऐसी हर कला के पीछे एक बेहद आकर्षक और अद्वितीय कहानी छिपी है जिसके बारे में हम पूरी तरह से अनजान हैं। ‘इंडोफाश’ एक बिल्कुल सच्चे तरीके से भारतीय फैशन को परिभाषित करने वाली इन प्राचीन कलाओं को दोबारा जीवंत करने का एक सकारात्मक प्रयास है।’’
पल्लवी के अनुसार ‘इंडोफाश’ का केंद्रबिंदु बुनकरों के साथ उनका दिल का संबंध है। ‘‘यह रिश्ता स्वाभाविक रूप से एक व्यवसायिक रिश्ता है लेकिन इसमें बहुत हद तक एक व्यक्तिगत संबंध भी शामिल है। हम उनसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणि उत्पाद हासिल करते हैं और बदले उन्हें मौद्रिक लाभ प्रदान करने के अलावा हम उन्हें समुचित श्रेय भी देते हैं। मेरे लिये यह बहुत गौरवान्वित करने वाली अनुभूति होती है कि वर्तमान समय की गलाकाट होड़ वाले व्यवसायिक माहौल में मैं इस प्राचीन विरासत को जिंदा रखने में कुछ योगदान कर पा रही हूँ।’’
इसके अलावा पल्लवी भौगोलिक दृष्टि से विपरीत क्षेत्रों की कपड़ों और शिल्प के उत्पादन की शैलियों को मिलाकर उनके साथ प्रयोग करती रहती हैं। पल्लवी कहती हैं, ‘‘हम इन विभिन्न कलाओं का संयोजन कर अपनह बहुमूल्यता को और बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिये लिये हमने कर्नाटक की मशहूर शहतूत सिल्क पर इस नाजुक लखनवी चिकनकारी का काम करने में सफलता प्राप्त की है। और इस तरह से ‘इंडोफाश’ की ‘इंडोफ्यूशन’ की अवधारणा को मूर्त रूप मिला।’’ हालांकि यह प्रयोग अभी प्रारंभिक चरण में है लेकिन वे इसकी क्षमताओं और को लेकर बेहद उत्साह और विचारों से ओतप्रोत हैं। पल्लवी आगे जोड़ती हैं, ‘‘‘इंडोफ्यूशन’ भारतीय बाजार में हलचल मचाकर रख देगा। भारतीय कपड़े पर भारतीय प्रिंट और बुनाई का प्रयोग करते हुुए पश्चिमी उत्पादों को तैयार होते देखना काफी रोमांचक होगा!’’
पल्लवी को इस बात का बखूबी अहसास है कि एक ऐसे बाजार में जो पहले से ही ई-काॅमर्स के खिलाडि़यों से भरा हुआ है उसमें उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करना और उन्हें अपना बनाए रखना ‘इंडोफाश’ की सबसे बड़ी चुनौती हैै। ‘‘सबसे बड़ी बात यह है कि अंत उपभोक्ता अब आॅनलाइन खरीददारी का आदी होता जा रहा है। वर्तमान समय में उपभोक्ता के पास उत्पादों के बारे में पूरी जानकारी है और वे नए रुझानों और शैलियों को अपनाने के लिये प्रयासरत हैं।’’
स्केलिंग की योजनाओं के बारे में पूछने पर पल्लवी का जवाब है, ‘‘फिलहाल हमारा पूरा ध्यान सिर्फ आॅनलाइन माध्यम से ही अपने उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने पर है लेकिन आने वाले समय में एक मजबूत वैश्विक उपस्थिति तैयार करने के लिये हमारा इरादा अन्य माध्यमों और चैनलों को भी अपनाने का है। फिलहाल हमारे सामने सबसे बड़ा अवरोध धन की कमी के रूप में है जिसपर हम जल्द ही निवेश के माध्यम से काबू पाने में सफल होंगे।’’
अबतक धन की कमी उनके उत्साह को कम करने में कामयाब नहीं रही है। ‘‘इंटरनेट के तेजी से बढ़ते हुए प्रयोग के चलते भारत में एक उपभोक्ता बाजार बहुत तेजी के साथ बढ़ रहा है। ई-काॅमर्स ने उपभोक्ताओं के सामने ‘सहूलियत’ और ‘विकल्प’ दोनों ही पेश किये हैं। इस क्षेत्र के सभी खिलाड़ी अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये अधिक से अधिक रचनात्मक होने के प्रयास में हैं। इस बाजार के विघटितत होने की बहुत उम्मीद है और हमें उम्मीद है कि हम एक के कारण बनेंगे!’’
‘इंडोफाश’ अबतक पल्लवी के अपने पूंजी निवेश के सहारे खड़ा होने में कामयाब रहा है। प्रतिस्र्पधा के बारे में पूछे जाने पर पल्लवी कहती हैं, ‘‘हम फैब इंडिया को एक बैंच मार्क की तहर देखते हैं और हम अपनी ‘‘इंडोफ्यूशन’ रेंज के सहारे भारतीय कपड़े और डिजाइनों कर श्रृंखला के माध्यम से अद्वितीय समकालीन डिजाइन और पश्चिमी परिधान तैयार करके अपना एक विशिष्ट स्थान बनाना चाहते हैं।’’
इनके अबतक के सफर में इन्हें मिली प्रतिक्रियाएं बेहद उत्साहवर्धक रही हैं। वे कहती हैं, ‘‘हमने अपने इस काम को पूर्णकालिक रूप से मार्च 2015 में प्रारंभ किया और इतने कम समय में हम पूरक कौशल से लैस एक टीम तैयार करने में सफल रहे हैं। इसके अलावा हम अबतक अपने बिक्री के लक्ष्य को पार चुके हैं और उपभोक्ताओं से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं से हम बहद अभिभूत हैं। पूरी दुनिया में फैले हमारे उपभोक्ता हमें वीडियो बनाकर प्रशंसापत्र भेजते हैं। लोगों को ‘इंडोफाश’ की वधारणा बेहद पसंद आ रही है जो हमरे लिये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और इसी वजह से हमें अपने भागीदारों से एक बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।’’
इन सब चीजों के अलावा इस स्टार्टअप की कोर टीम के अन्य साथी वे मुख्य कारक हैं जो पल्लवी को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करते हैं। ‘‘फिलहाल हम 5 लोगों की एक टीम हैं। विकास एक आईआईएम आर के स्नातक हैं और अपनी पिछली नौकरी में वे बुनकरों के समाज के साथ मिलकर बहुत बारीकी से काम कर चुके हैं। वे घूमने के बेहद शौकीन हैं और देशभर में फैली इन कलाओं को खोजने केे काम में लगे रहते हैं। डिग्री से एक सिविल इंजीनियर और पेशे से ग्राफिक डिजाइनर शशिकांत यूआई डिजाइनिंग के क्षेत्र को संभालते हैं। आईआईटी खड़गपुर के इंजीनियर और वित्त में अनुभव रखने वाले प्रमीत इनके ‘मुनीमजी’ हैं। एनआईएफटी की पूर्व छात्र ऋचा इनकें डिजाइनिंग के काम को संभालती हैं।
कौशल के मामले में हम सब वास्तव में एक दूसरे के पूरक हैं और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हम सब अपने काम से बेहद प्यार करते हैं!’’
पल्लवी के लिये इस स्टार्टअप की सबसे अच्छी बात यह रही है कि उन्हें इससे काफी कुछ सीखने को मिला है। वे कहती हैं, ‘‘सही लोगों को काम पर रखने से लेकर सौदेबाजी के बाद अच्छे सौदों को करने तक! यह सब और आजादी। मुझे चुनौतियों का समाना करना बहुत पसंदद है और ‘इंडोफाश’ के पास वे बहुतायत में हैं! मेरे लिये अपनी इस टीम के साथ काम करना बहुत समृद्ध अनुभव रहा है। मैं हर गुजरते दिन के साथ खुद को विकसित होते हुए देखती हूँ और बहुत शानदार अनुभव है। हालांकि मेरे अजीब कार्यसमय को देखते हुए काम के जीवन में संतुलन बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण है।’’
किसी भी क्षेत्र में कामयाब होने के आकांक्षी लोगों को देने के लिये पल्लवी के पास एक सलाह है। ‘‘किसी भी काम में जोखिम उठाने के लिये तैयार रहो। यही सीखने का इकलौता रास्ता है।’’
पल्लवी का विचार मात्र चार महीने पुराने नवजात ‘इंडोफाश’ का पोषण करके इसे जल्द ही एक वैश्विक ब्रांड के रूप में मशहूर करने का है। वे दृढ़ता के साथ कहती हैं, ‘‘मैं भारतीय-फ्यूशन परिधानों के क्षेत्र में ‘इंडोफाश’ को एक वैश्विक अगुवा के रूप में देखती हूँ। यह आने वाले समय में प्रमाणिक भारतीय परिधानों, समकालीन डिजाइनों और आराम का पर्याय बनकर उभरेगा।’’