10 करोड़ महिलाओं को मिलेगा मातृत्व अवकाश लाभ!
सरकार की योजना सवैतिनिक मातृत्व अवकाश का लाभ असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को भी दिलाने का है। राज्यसभा में औपचारिक क्षेत्र की कामकाजी महिलाओं को 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश के विधेयक को एकमत से पारित कर दिया है।
सरकार का अनुमान है कि असंगठित क्षेत्र के कुल 43 करोड़ के श्रमबल में 8 से 10 करोड़ महिलाएँ हैं। श्रम मंत्रालय यह लाभ असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को भी उपलब्ध कराने को राज्यों को पत्र लिख रहा है जिससे इस मुद्दे पर विचार विमर्श किया जा सके।
श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम इस पर विचार कर रहे हैं कि कैसे इस लाभ को असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को दिया जाए।’’ राज्यसभा ने कल पारित मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 के तहत वेतन के साथ 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का प्रावधान है। पहले यह प्रावधान 12 सप्ताह का था। संसद के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में इस विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद संगठित क्षेत्र की 18 लाख महिलाओं को इसका लाभ मिल सकेगा। यह लाभ उन संगठनों पर लागू होगा जहां कर्मचारियों की संख्या दस या अधिक है।
श्रम सचिव शंकर अग्रवाल ने कहा, ‘‘असंगठित क्षेत्र में करीब 43 करोड़ कामगार हैं। इनमें 8 से 10 करोड़ महिलाएं हैं। श्रम मंत्रालय राज्यांे को पत्र लिखकर उन्हंे यह लाभ उपलब्ध कराने के तरीकों पर विचार करेगा।’’
‘मातृत्व अवकाश बढ़ने से महिला कर्मचारी अधिक मेहनत के लिये प्रेरित होंगी’
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने के प्रावधान वाले नये विधेयक से नियोक्ताओं के लिए कुछ लागत बढ़ सकती है, लेकिन इससे महिला कर्मचारी कठिन मेहनत करने के लिए प्रेरित होंगी और कार्यबल में उनकी भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मातृत्व लाभ कानून में संशोधन करने वाले विधेयक को अपनी मंजूरी दी। हालांकि, इससे पहले इसे संसद में पेश कर दिया गया था। श्रम सचिव शंकर अग्रवाल ने रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया द्वारा आयोजित खुदरा शिखर सम्मेलन में कहा, ‘‘हम एक कानून ला रहे हैं जो महिलाओं को बेहतर मातृत्व लाभ उपलब्ध कराएगा। हम मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर रहे हैं।’’
अग्रवाल के अनुसार इसके बारे में कहा जा रहा है कि वेतन के साथ अवकाश अवधि बढ़ने से नियोक्ताओं की लागत बढ़ेगी। उन्होंने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन यह आपके महिला कर्मचारियों को कठिन मेहनत करने के लिये प्रेरित करेगा और बेहतर उत्पादकता देगा।’’ उन्होंने कहा कि सरकार मॉडल दुकान एवं प्रतिष्ठान कानून भी लायी है जिसमें महिलाओं को रात्रि पाली में भी काम की अनुमति दी गयी है। इसमें खुदरा कंपनियों से महिला कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को भी कहा गया है।
अधिकारी ने कहा कि सरकार ने एक नया विधेयक भी पेश किया है जिसमें कर्मचारियों के लिये प्रति तिमाही ओवरटाइम का समय 50 घंटे से बढ़ाकर 100 घंटे करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा सरकार ने बाल श्रम पर भी कानून बनाया है, जिसके तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को काम पर नहीं रखा जा सकता है।
मातृत्व लाभ कानून, 1961 महिलाओं को मॉं बनने के दौरान उन्हें रोजगार की सुरक्षा देता है। इस दौरान उन्हें अनुपस्थित रहने के बावजूद पूरा वेतन मिलता है, ताकि वह अपने नवजात बच्चे की देखभाल ठीक से कर सके। यह कानून उन सभी प्रतिष्ठानों में लागू होता है जहां दस अथवा इससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली करीब 18 लाख महिला कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा।
खुदरा क्षेत्र के बारे में अग्रवाल ने कहा कि क्षेत्र छोटे शहरों में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर बेहतर रोजगार अवसर सृजित करने में अहम भूमिका निभा सकता है। उन्होंने खुदरा कारोबार क्षेत्र को गुणवत्ता और कीमत के संदर्भ में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये सरकार की तरफ से पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया। साथ ही उन्होंने खुदरा कंपनियों से युवा पेशेवरों को उनकी खुद की दुकान खोलने में मदद करने को भी कहा।
इस मौके पर रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी कुमार राजगोपालन ने कहा, ‘‘सरकार ने हाल ही में खुदरा क्षेत्र के विकास के लिये कई अनुकूल कदम उठाये हैं जिनसे इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। साथ ही कारोबार और आय में भी वृद्धि होगी।’’ हालांकि, उन्होंने ई-वाणिज्य प्लेटफार्म के नाम पर कई कंपनियों द्वारा खुदरा बिक्री कारोबार करने और एफडीआई नियमों का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने इस प्रकार की ई-वाणिज्य कंपनियों पर सरकार से कार्रवाई का आग्रह किया।
कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को देखते हुए रखा गया प्रावधान
मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी। श्रम एवं रोज़गार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने प्रसूति प्रसुविधा (संशोधन) विधेयक 2016 पर हुई चर्चा के जवाब में कहा कि कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को देखते हुए इसमें यह प्रावधान किया गया है। उनके जवाब के बाद उच्च सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया विधेयक में मातृत्व अवकाश की अधिकतम अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किए जाने का प्रावधान किया गया है ताकि माताएँ अपने बच्चों की बेहतर देखभाल कर सकें। दो बच्चों के मामलों में यह सुविधा 26 सप्ताह की होगी। इसके बाद यह सुविधा 12 हफ्ते की होगी। साथ ही प्रसूति सुविधाएँ किसी ‘‘अधिकृत माता’’ या ‘‘दत्तक माता’’ के लिए भी होंगी जो वे बालक के हस्तगत करने की तारीख से 12 सप्ताह की प्रसूति लाभ की हक़दार होंगी।
विधेयक में किसी माता को घर से काम करने की सुविधा को सुगम बनाने पर भी जोर दिया गया है। 50 से अधिक कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों के लिए शिशु कक्ष (क्रेच) की व्यवस्था अनिवार्य होगी। माताओं को प्रति दिन चार बार शिशु कक्ष जाने जाने की अनुमति होगी। ऐसी व्यवस्था न करने वाले संगठनों के लिए दंड का प्रावधान भी किया गया है।
इसके अनुसार प्रत्येक प्रतिष्ठान हर महिला को उसकी आरंभिक नियुक्ति के समय कानून के तहत उपलब्ध सुविधाओं के बारे में लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से जानकारी देगा।
जदयू की कहकशां परवीन ने कहा कि शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के मकसद से यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने सरकार के इस प्रयास को सराहनीय करार दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकारी क्षेत्र में तो स्थिति ठीक है लेकिन कापरेरेट क्षेत्र में क्या स्थिति रहेगी। घर से काम करने की सुविधा के प्रावधान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह सुविधा ग्रामीण क्षेत्रों में कैसे मिल पाएगी। विधेयक में दो बच्चों तक के लिए मातृत्व अवकाश का जिक्र होने पर उन्होंने कहा कि कई ऐसे मामले भी होते हैं जहां दो पुत्रियां रहने पर दत्तक पुत्र लेने की स्थिति रहती है। ऐसी स्थिति में भी लाभ मिलना चाहिए।
माकपा के तपन कुमार सेन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसका प्रयोजन तभी सार्थक होगा जब जमीनी स्तर पर महिलाओं को इसका लाभ मिले। बीजद की सरोजिनी हेम्ब्रम ने विधेयक को अच्छा कदम बताते हुए पितृत्व अवकाश की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि विधेयक लाने का कारण यह है कि आज एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है। संयुक्त परिवारों के न होने से बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है। ऐसे में बच्चे की देखरेख के लिए मां का घर पर रहना बेहद जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि विधेयक लाए जाने का दूसरा कारण यह है कि बच्चों में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है। उन्हें स्तनपान कराना जरूरी होता है, लेकिन जब मां ही घर पर नहीं होगी तो बच्चे को स्तनपान कैसे कराया जा सकता है।
मंत्री ने कहा कि यह कोई अवकाश नहीं है। इसे अवकाश नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि बच्चे के पालन-पोषण के समय माताएं बहुत तनाव में होती हैं। उन्होंने कहा कि माताओं के लिए ऐसे में साढ़े छह महीने का समय पर्याप्त होगा। हालांकि संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन इससे भी ज्यादा अवकाश देते हैं। उन्होंने कहा कि संबंधित समस्याओं को लेकर महिलाओं के बार..बार ई-मेल आ रहे हैं।
मेनका ने कहा कि 50 से अधिक कर्मचारियों वाले संगठन यदि कानून के मुताबिक बच्चों के लिए क्रेच की व्यवस्था नहीं करेंगे तो उनके लिए दंड का भी प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं को अच्छा आहार उपलब्ध कराए जाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है। देश के 200 जिलों में इंदिरा गांधी मातृत्व योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को पोषक आहार उपलब्ध कराया जाता है।
बसपा के अशोक सिद्धार्थ ने विधेयक को स्वागतयोग्य बताया, लेकिन कहा कि मातृत्व अवकाश 26 सप्ताह की बजाय नौ महीने का होना चाहिए। भाकपा के डी राजा ने कहा कि महिलाओं की एक बहुत बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्र में काम करती है जिनमें ज्यादातर दलित और जनजातीय महिलाएं हैं, ऐसे में इनके लिए भी एक केंद्रीय कानून लाया जाना चाहिए।कांग्रेस के नरेंद्र बुढानिया ने मातृत्व अवकाश की अवधि 26 सप्ताह से बढ़ाकर एक वर्ष किए जाने की मांग की और कहा कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। सपा की जया बच्चन ने विधेयक का स्वागत किया और पूछा कि क्या संसद में काम करने वाली महिलाओं को भी ऐसी सुविधा मिलती है।
इस पर मेनका ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संसद में काम करने वाली महिलाओं को ऐसी सुविधा मिलती है। जया ने आगे कहा कि मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर एक वर्ष या फिर कम से कम आठ महीने किया जाना चाहिए तथा आंगवाड़ी में काम करने वाली महिलाओं को भी इस तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए।
बसपा के सतीश मिश्र ने किराए की कोख उपलब्ध कराने वाली माताओं को भी विधेयक के दायरे में लाने की मांग की। इस पर कांग्रेस के आनंद शर्मा और तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने भी उनका साथ दिया और किराए की कोख उपलब्ध कराने वाली माताओं को विधेयक के दायरे में लाने की मांग की। -पीटीआई