11 वर्ष के 'नन्हे मास्टरजी' गरीब बच्चों के जीवन में बाल-चौपाल से भर रहे हैं ‘आनंद’
लखनऊ का रहने वाला आनंद बाल चौपाल के माध्यम से गरीब बच्चों को कर रहा है शिक्षित...अबतक हजारों गरीब बच्चों को दे चुके हैं शिक्षा और सैकड़ों को स्कूल जाने के लिये कर चुके हैं प्रेरित...सातवीं कक्षा का विद्यार्थी आनंद प्रतिदिन कम से कम एक घंटा निकालते हैं इन गरीब और निरक्षर बच्चों के लिये...बच्चों को खेल-खेल में कहानियों इत्यादि के माध्यम से करते हैं शिक्षित...
कक्षा सात में पढ़ने वाले मात्र 11 वर्ष की उम्र के आनंद कृष्ण मिश्रा का सपना है कि देश में कोई भी बच्चा निरक्षर या अनपढ़ न रहे। इसलिए इन्होंने शिक्षा से वंचित दूसरे बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के करीब 125 गांवों के न जाने कितने बच्चे आज इस ‘छोटे मास्टरजी’ और उनकी ‘बाल चौपाल’ के प्रयासों के फलस्वरूप शिक्षित होने में कामयाब हो रहे हैं। आनंद ने वर्ष 2012 में झुग्गियों में रहकर जीवन व्यतीत करने वाले बच्चों को साक्षर बनाने के लिये प्रयास शुरू किया जिसनें कुछ समय बाद बाल चौपाल का रूप ले लिया।
आनंद अब प्रतिदिन अपनी व्यस्त दिनचर्या में से एक घंटा निकालते हैं और इन बच्चों को गणित, कंप्यूटर और अंग्रेजी पढ़ाते हैं। पिछले तीन वर्षों में आनंद अपनी बाल चौपाल के माध्यम से करीब 700 बच्चों को स्कूल जाने के लिये प्रेरित कर चुके हैं। अपनी इस बाल चौपाल में आनंद बच्चों को पढ़ाने के अलावा उनकी मनोदशा और माहौल के बारे में भी जानने का प्रयास करते हैं और फिर अपने माता-पिता के सहयोग से वे इन बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरुक करते हैं।
आनंद के पिता अनूप मिश्रा और मां रीना मिश्रा उत्तर प्रदेश पुलिस में कार्यरत हैं और दोनों ही उनके इस अभियान में पूरा सहयोग देते हैं। इस अभियान के अलावा यह परिवार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी कई कार्यक्रम आयोजित करता रहता है। यह परिवार अपने खाली समय में लोगों को पर्यावरण की अहमियत के बारे में जागरुक करने के साथ-साथ पौधारोपण के लिये उन्हें प्रेरित भी करते हैं।
कैसे आया विचार
आनंद के पिता बताते हैं कि बचपन में महाराष्ट्र में छुट्टियां बिताने के दौरान हुई एक घटना ने उनके बेटे का जीवन ही बदल दिया। अनूप बताते हैं, ‘‘जब आनंद चैथी क्लास में पढ़ रहा था तक हम घूमने के लिये पुणे गए थे। वहां आनंद ने देखा कि एक बच्चा आरती के समय मंदिर आता और आरती खत्म होने का बाद मंदिर के बाहर चला जाता। बाहर जाकर देखने पर पता चला कि वह बच्चा झुग्गियों में रहता था और वापस जाकर कूड़े के ढेर से उठाकर लाई गई फटी-पुरानी किताबों को पढ़ रहा था।’’ आनंद ने उस बच्चे को कुछ पैसे देने की कोशिश की लेकिन उसने पैसों की पेशकश ठुकराते हुए उनसे कहा कि अगर आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो कुछ किताबें और पेन-पेंसिल दे दो ताकि मैं पढ़ सकूं।‘‘ वे आगे कहते हैं, ‘‘इस घटना ने आनंद के बालमन को भीतर तक प्रभावित किया और उसी दिन से इसने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब बच्चों की शिक्षा के लिये प्रयास करने का फैसला किया।’’
आनंद का हौसला और लगन देखकर उसके माता-पिता उसे लखनऊ के बाहरी क्षेत्र में कुछ ग्रामीण इलाकों में लेकर गए। वहां जाकर इन लोगों ने पाया कि इन क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर बच्चे पढ़ाई-लिखाई से वंचित हैं और वे सारा दिन इधर-उधर घूमकर ही अपना सारा समय बेकार कर रहे हैं। अनूप बताते हैं, ‘‘प्रारंभ में आनंद ने उस इलाके के कुछ बच्चों को अपने साथ पढ़ने के लिये तैयार किया। धीरे-धीरे समय के साथ इनके पास पढ़ने वाले बच्चों को मजा आने लगा और वे अपने दोस्तों को भी इनके पास पढ़ने के लिये लाने लगे। इस प्रकार ‘बाल चौपाल’ की नींव पड़ी।’’
कैसे पढ़ाते हैं बच्चों को
लखनऊ के आशियाना स्थित सिटी मांटसरी स्कूल में पढ़ने वाला आनंद रोजाना सुबह-सवेरे उठकर अपनी खुद की पढ़ाई पूरी करता है और दोपहर में स्कूल से लौटने के बाद कुछ समय आराम करता है। इसके बाद शाम के पांच बजते ही वह अपनी ‘बाल चौपाल’ लगाने के लिये घर से निकल पड़ता है। फोन पर हुई बातचीत में आनंद कहते हैं, ‘‘मैं बच्चों को पढ़ाने के लिये खेल-खेल में शिक्षा देने का तरीका अपनाता हूँ। मैं रोचक कहानियों और शैक्षणिक खेलों के माध्यम से उन्हें जानकारी देने का प्रयास करता हूँ ताकि पढ़ाई में उनकी रुची बने रहे और उन्हें बोरियत महसूस न हो। मुझे लगता है कि इन बच्चों को स्कूल का माहौत भाता नहीं है इसलिये वे पढ़ने नहीं जाते हैं।’’
ऐसा नहीं है कि आनंद अपनी इस बाल चौपाल में बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान ही देते हैं। वे अपने पास आने वाले बच्चों के भीतर देशभक्ति का जज्बा जगाने के अलावा उन्हें एक बेहतर इंसान बननेे के लिये भी प्रेरित करते हैं। आनंद बताते हैं, ‘‘हमारी बाल चौपाल का प्रारंभ ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ गीत से होती है और अंत में हम सब मिलकर राष्ट्रगान गाते हैं। मेरा मानना है कि इस तरह से ये बच्चे शिक्षा के प्रति जागरुक होने के अलावा नैतिकता, राष्ट्रीयता और अपने सामाजिक दायित्वों से भी रूबरू होते हैं।’’
लाइब्रेरी खोलने की योजना
आनंद को अपनी इस बाल चौपाल के लिये अबतक सत्यपथ बाल रत्न और सेवा रत्न के अलावा कई अन्य पुरस्कार भी मिल चुके हैं। आनंद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा देने के अलावा विभिन्न स्थानों पर उनके लिये पुस्तकालय खोलने के प्रयास भी करते हैं और अबतक कुछ स्थानों पर दूसरों के सहयोग से कुछ पुस्तकालय खोलने में सफल भी हुए हैं। आनंद अब अपने इस अभियान को और आगे बढ़ाने के प्रयासों में हैं और वे इन प्रयासों में लगे हुए हैं कि बोर्ड की परीक्षाओं में टाॅप करने वाले दूसरे छात्र इस अभियान में उनके साथी बनें और गरीब बच्चों को शिक्षित करने में उनकी मदद करें।
आनंद प्रतिदिन आसपास के ग्रामीण इलाकों और मलिन बस्तियों के करीब 100 बच्चों को पढ़ाते हैं। हालांकि परीक्षा के दिनों में उन्हें अपनी इस जिम्मेदारी को कुछ समय के लिये अपने दूसरे साथियों के भरोसे छोड़ना पड़ता है लेकिन उनके साथी उन्हें निराश नहीं करते हैं। इसी वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर आनंद ने ‘चलो पढ़ो अभियान’ के नाम से एक नए अभियान की नींव डाली है। इस अभियान के माध्यम से उनका इरादा है कि प्रत्येक शिक्षित नागरिक आगे आए और कम से कम एक अशिक्षित बच्चे को शिक्षित करने का बीड़ा उठाए।
अंत में आनंद हमारे पाठकों से एक बात कहते हैं, ‘‘ आओ ज्ञान का दीप जलायें......मेरी बाल चौपाल में पढ़नेे वाले अभावग्रस्त बच्चों के सहयोगी बन कर आप सभी अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। मलिन बस्ती में रहने वाले बच्चों को स्कूल बैग ,किताब ,कॉपी ,पेंसिल और स्लेट आदि शिक्षण सामग्री भेंट करके उनके अज्ञानता से भरे जीवन में आप भी ज्ञान का दीप जला सकते हैं। सच मानिए आपका एक छोटा सा प्रयास किसी की जिंदगी में बदलाव ला सकता है। आप की दी हुई एक पेंसिल से इन बच्चों को ‘अ’ से अंधकार को मिटाकर ‘ज्ञ’ से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिल सकता है।’’
आनंद से संपर्क करने के लिये आप उनके पिता अनूप मिश्रा के फेसबुक पेज पर जा सकते हैं।