देश के दुर्लभ दस्तावेजों को डिजिटली सहेजेगा नेशनल आर्काइव
अब डिजिटल हो जायेगा राष्ट्रीय अभिलेखागार...
अभी जितने भी अभिलेख और दस्तावेज हैं, वे दिल्ली में नैशनल आर्काइव की एक बड़ी सी बिल्डिंग में रखे गए हैं। इन्हें भौतिक रूप में रखने पर नष्ट होने का खतरा बना रहता है। इसीलिए इन्हें डिजिटिल रूप में संग्रहीत करने की योजना बन रही है।
आर्काइव में भारत छोड़ो आंदोलन और आजाद हिंद फौज से लेकर बदलते भारत के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज यहां रखे हुए हैं। इन्हें समय-समय पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए भी रखा जाता है।
अभी 90% से ज्यादा दस्तावेज मूल रूप से कागज पर हैं। ऐसे में उन्हें नुकसान पहुंचने का डर बना रहता है। वहीं रिसर्च मटीरियल की खोज करने वाले लोगों को किसी भी मटीरियल के लिए अभिलेखागार में खुद आना पड़ता है।
देश के स्वतंत्रता संग्राम संघर्ष से लेकर आजादी और उसके बाद बदलते भारत की तस्वीर को संजोते हुए सभी दस्तावेजों को सुरक्षित सहेजने वाला संस्थान यानी राष्ट्रीय अभिलेखागार अब डिजिटल होने जा रहा है। अभी जितने भी अभिलेख और दस्तावेज हैं, वे दिल्ली में नैशनल आर्काइव की एक बड़ी सी बिल्डिंग में रखे गए हैं। इन्हें भौतिक रूप में रखने पर नष्ट होने का खतरा बना रहता है। इसीलिए इन्हें डिजिटिल रूप में संग्रहीत करने की योजना बन रही है। डिजिटल होने के बाद हर व्यक्ति आसानी से इन महत्वपूर्ण अभिलेखों को देख सकेगा।
दिल्ली के जनपथ रोड पर स्थित इस अभिलेखागार की स्थापना अंग्रेजों के जमाने 1891 में हुई थी। सन 1911 में राष्ट्रीय राजधानी के कलकत्ता (कोलकाता) से नई दिल्ली स्थानांतरित होने के पश्चात, इम्पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) को सन 1926 में इसके वर्तमान भवन में स्थानांतरित किया गया। स्वतंत्रता के बाद, आईआरडी को भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के रूप में नया नाम दिया गया और संगठन के प्रमुख के पद को कीपर ऑफ रिकॉर्ड्स से बदल कर अभिलेखागार निदेशक का नाम दिया गया। वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, संस्कृति मंत्रालय का एक सम्बद्ध कार्यालय है और भोपाल में इसका क्षेत्रीय कार्यालय है और जयपुर, पुद्दुचेरी और भुवनेश्वर में इसके अभिलेख केन्द्र हैं।
यहां सदियों पुराने बौद्ध ग्रंथों से लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिकारिक दस्तावेज और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के आखिरी वर्षों से जुड़े वह दस्तावेज भी हैं, जिन्हें हाल में सार्वजनिक किया गया था। आईटी इंडस्ट्री की संस्था नैस्कॉम से हाल में एक मुलाकात में अभिलेखागार के महानिदेशक राघवेंद्र सिंह और उनकी टीम ने प्रस्ताव रखा था कि आईटी कंपनियां राष्ट्रीय दस्तावेजों के एक हिस्से को डिजिटल स्वरूप देने के लिए आगे आएं और कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत काम करें। इस प्रस्ताव को सरकार एक पायलट प्रोग्राम के जरिए जांचेगी।
आर्काइव में भारत छोड़ो आंदोलन और आजाद हिंद फौज से लेकर बदलते भारत के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज यहां रखे हुए हैं। इन्हें समय-समय पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए भी रखा जाता है। इन सभी दुर्लभ फाइलों से हमें ऐतिहासिक घटनाक्रमों की कहानी जानने को मिलती है। राष्ट्रीय अभिलेखागार सुरक्षात्मक, सुधारात्मक और पुनर्स्थापना संबंधी प्रक्रियाओं के माध्यम से ईमानदारी से प्रयास कर रहा है। ताकि इसकी अभिरक्षामें रखे दस्तावेजों की लम्बी आयु को सुनिश्चित किया जा सके ।
अभिलेखागार के महानिदेशक राघवेंद्र सिंह ने कहा, 'दस्तावेजों को डिजिटल करने का ही आइडिया नहीं है। विचार ऐसी व्यवस्था बनाने का है कि किसी विषय पर दूसरे मंत्रालयों या राज्यों के अभिलेखागारों के लिंक भी मुहैया कराए जाएं ताकि शोध में आसानी हो।' अभी 90% से ज्यादा दस्तावेज मूल रूप से कागज पर हैं। ऐसे में उन्हें नुकसान पहुंचने का डर बना रहता है। वहीं रिसर्च मटीरियल की खोज करने वाले लोगों को किसी भी मटीरियल के लिए अभिलेखागार में खुद आना पड़ता है और उनके अनुरोध पर दस्तावेज निकालने की प्रक्रिया में कुछ हफ्तों से महीनों तक का समय लग जाता है।
एक तरीका यह सोचा जा रहा है कि इस काम को नैस्कॉम फाउंडेशन के इंडियन पब्लिक लाइब्रेरीज मूवमेंट का हिस्सा बना दिया जाए, जिसमें बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन मदद दे रहा है। अभिलेखागार के उप महानिदेशक संजय गर्ग ने कहा, 'उन लोगों को कोई मुश्किल नहीं होगी क्योंकि उनमें ऐसी क्षमता है। ब्रिटिश लाइब्रेरी के एक पुस्तक अपनाओ अभियान की तर्ज पर हम आईटी कंपनियों के लिए एक सीरीज अपनाओ अभियान शुरू कर सकते हैं।'
गर्ग ने चौथी सदी के बौद्ध अभिलेखों की बात करते हुए कहा कि जिन्हें डिजिटल स्वरूप में किताब में बदला जा चुका है। इन अभिलेखों को गिलगिट पांडुलिपि कहा जाता है। गर्ग ने कहा, 'वे मूल से बेहतर और साफ हैं। ऐसा कई सॉफ्टवेयर्स के उपयोग से हुआ।' अभिलेखागार पहले से एक थर्ड पार्टी एजेंसी के जरिए डिजिटाइजेशन कर रहा है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड आईटी मिनिस्ट्री सपोर्ट दे रही है। अब तक 40 लाख पेपर्स को डिजिटल किया जा चुका है।
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