लोगों की दिक्कतों को समझने के लिए 35 हजार किलोमीटर पैदल चले 74 वर्षीय सीताराम केदिलाय
74 साल के सिताराम केदिलाय पिछले पांच साल से पैदल भारत भ्रमण कर रहे हैं। उन्होंने कुल 35 हजार किलोमीटर तक डग भर डाले हैं। इलस दौरान उन्होंने नौ हजार गांवों तक जीवंत संपर्क किया और परोक्ष रूप से 20 हजार गांवों तक यात्रा का संदेश पहुंचा।
केदिलाय की पदयात्रा कुल 1795 दिन तक चली और उन्होंने लगभग 35 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान वह 25 राज्यों से गुजरे और 1765 गांवों में प्रवास किया।
सिताराम के अनुसार मजदूर श्रम शक्ति की इकाई होते हैं। अगर मजदूरों को ही उनका सही पारिश्रमिक और बेहतर जीवन नहीं मिलता है तो ऊपर की इकाईयां अपने आप कमजोर हो जाएंगी।
भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां तकरीबन हर क्षेत्र की अपनी अलग समस्याएं, अपने अलग चैलेंज हैं। अगर कोई ये सोचे कि वो एक जगह पर बैठकर पूरे देश की दिक्कतों को समझ सकता है और उन्हें हल कर सकता है तो वो गलत सोचता है। विभिन्न प्रकार के भौगोलिक, सांस्कृतिक प्रक्रमों के बीच हमारे देश में कई सारी चीजें हैं जो खतरे के दायरे में हैं। बहुत सारे तत्व ऐसे हैं जिनपर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे ही आठ तत्वों पर पूरे देश का ध्यान केंद्रित किया है सामाजिक कार्यकर्ता सीताराम केदिलाय ने। केदिलाय 74 साल के हैं और इस उम्र में भी वो देश की समस्याओं के प्रति पूरी तरह से सजग हैं। न केवल सजग हैं बल्कि वो उनको चिन्हित करके उनके समाधान की ओर भी काम कर रहे हैं। केदिलाय पिछले पांच साल से पैदल भारत भ्रमण कर रहे हैं। उन्होंने कुल 35 हजार किलोमीटर तक डग भर डाले हैं।
कौन से हैं वो आठ तत्व
सीताराम केदिलाय की यात्रा अब पूरी हो गई है और उन्होंने देश की आठ संपदाओं के संरक्षण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन सौंपा है। कनार्टक के पुठूर निवासी एवं सामाजिक कार्यकर्ता 74 वर्षीय केदिलाय ने 9 अगस्त 2012 को कन्याकुमारी से पदयात्रा शुरू की थी। नौ अगस्त की तारीख उन्होंने इसलिए चुनी क्योंकि यह तारीख गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ी है। केदिलाय के मुताबिक, 'मुझे पता लगा कि भूसंपदा, जल संपदा, वन संपदा, जीव संपदा, गौ संपदा, कुटीर उद्योग और संस्कृति संपदा सहित देश की आठ संपदाएं खतरे में हैं जिनका संरक्षण किए जाने की आवश्यकता है।'
देशहित में एक लंबी यात्रा
केदिलाय की ये पदयात्रा कुल 1795 दिन तक चली और उन्होंने लगभग 35 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान वह 25 राज्यों से गुजरे और 1765 गांवों में प्रवास किया। नौ हजार गांवों तक जीवंत संपर्क किया और परोक्ष रूप से 20 हजार गांवों तक यात्रा का संदेश पहुंचा। वह रोजाना 15 से 20 किलोमीटर तक पैदल चलते थे । इस दौरान वह विद्यालयों में जाते थे और छात्रों तथा शिक्षकों से मिलते थे। वह रात को गांव में ही रुकते थे और शाम के समय सभा का आयोजन करते थे। इस दौरान उन्होंने विभिन्न तीर्थस्थलों के भी दर्शन किए।
तमाम समस्याओं के ओर खींचा ध्यान
केदिलाय के मुताबिक, यात्रा के दौरान पता चला कि गांवों में मनरेगा के तहत मजदूरों को आज भी निर्धारित पारिश्रमिक नहीं मिलता है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री से निरीक्षण व्यवस्था करने का आग्रह किया। केदिलाय मजदूरों के हक के लिए बहुत चिंतित हैं। उनका मानना है कि मजदूर श्रम शक्ति की इकाई होते हैं। अगर मजदूरों को ही उनका सही पारिश्रमिक और बेहतर जीवन नहीं मिलता है तो ऊपर की इकाईयां अपने आप कमजोर हो जाएंगी। इसके अलावा उन्होंने पानी, खाना और स्वास्थ्य से जुड़ी कमियों पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
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