दिव्यांगों को नौकरी दिलाता है ये स्टार्टअप, कैंडिडेट्स का नहीं होता एक भी रुपया खर्च
नौकरी दिलाने वाले प्लेटफॉर्म्स की कोई कमी नहीं है, लेकिन दिव्यांग लोगों के लिए कोई प्लेटफॉर्म नहीं है. ऐसे में बेंगलुरु के कुछ युवाओं ने एक खास प्लेटफॉर्म शुरू किया है.
इन दिनों दुनिया भर से खबरें आ रही हैं कि कई लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है. हालांकि, भारत में अभी ऐसा बहुत अधिक नहीं हो रहा है, लेकिन फिर भी डर तो है ही. खैर, भारत की सिलकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरू के कुछ युवाओं ने लोगों को नौकरी मुहैया कराने का बीड़ा उठाया है. इसके तहत उन्होंने एक हायरिंग प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है, जिसमें आर्टफीशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से कैंडिडेंट्स का असेसमेंट किया जाता है. इससे उनकी हायरिंग प्रोसेस आसान बनती है. सबसे अच्छी बात ये है कि यह स्टार्टअप दिव्यांगों के लिए भी नौकरी की व्यवस्था करता है, जिन्हें अक्सर कंपनियां नकार दिया करती हैं.
यहां बात हो रही है e2eHiring प्लेटफॉर्म की, जो नौकरी ढूंढने वालों और कंपनियों के बीच एक ब्रिज बनाने का काम करता है. इसी शुरुआत बेंगलुरू के तीन युवाओं ने की है. इसका आइडिया तो 2020 के अंत में ही आ गया था, लेकिन कंपनी को रजिस्टर कराया गया 2021 की शुरुआत में. इस कंपनी के फाउंडर हैं Monuranjan Borgohain उर्फ मोनू. उनके साथ दो को-फाउंडर्स भी हैं, जिनमें से एक हैं हरीश अलवर और दूसरी हैं सुमा एसबी. तीनों ने ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और अब वह एक ऐसे प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं, जिसके जरिए अन्य युवाओं को नौकरी दे रहे हैं.
दिव्यांगों के लिए नौकरी का ख्याल कैसे आया?
ऐसा नहीं है कि इस प्लेटफॉर्म पर सिर्फ दिव्यांगों को नौकरी में मदद मिलती है. यहां से हर कोई नौकरी पा सकता है. लेकिन इस प्लेटफॉर्म की खास बात यही है कि यह दिव्यांगों के लिए भी नौकरी तलाशता है. कंपनी के फाउंडर्स ने पाया कि ओलिंपिक में ये दिव्यांग खूब झंडे गाड़ रहे हैं और देश का नाम रोशन कर रहे हैं. वहीं जब ये लोग कंपनियों में नौकरी के लिए जाते हैं तो बहुत सी कंपनियां इन्हें नौकरी के लिए नहीं चुनती हैं.
ऐसे में कंपनी के फाउंडर्स ने सोचा कि क्यों ना ऐसा प्लेटफॉर्म हो जो लोगों को नौकरी दिलाने में मदद करे. उसमें भी उन्होंने सोचा कि क्यों ना अलग-अलग कम्युनिटी के हिसाब से नौकरी तलाशी जाए. अपने प्लेटफॉर्म के जरिए वह दिव्यांगों और महिलाओं को नौकरी दिलाने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं. मोनू बताते हैं कि उनके पिता एक्स सर्विस मैन हैं, जिनसे उन्हें लोगों की मदद करने का गुण मिला है.
कंपनी के फाउंडर मोनू कहते हैं कि अगर उन्हें एक दिव्यांग और एक सामान्य व्यक्ति में से किसी को चुनना हुआ तो वह दिव्यांग को चुनेंगे. उनके अनुसार दिव्यांग लोग समझते हैं कि नौकरी कितनी मुश्किल से मिलती है और पैसे कमाना कितना मुश्किल है. वह समझते हैं कि सोसाएटी में सर्वाइव करना कितना मुश्किल है. ऐसे में वह अपने काम को बाकी लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा ईमानदारी और लगन से करते हैं.
आखिर कैसे e2eHiring प्लेटफॉर्म दिलाता है दिव्यांगों को नौकरी
अगर कोई दिव्यांग किसी कंपनी में नौकरी से लिए आवेदन करता है तो अधिकतर मौकों पर उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है. इसकी एक बड़ी वजह उस कंपनी में दिव्यांग के हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर का ना होना भी होता है. अगर कोई दिव्यांग व्हीलचेयर पर है तो किसी भी बिल्डिंग में उसकी एंट्री बाकी लोगों से अलग होगी. ऐसे में अगर कंपनी में दिव्यांग की एंट्री के लिए रास्ता नहीं है तो पहले उसके लिए रास्ता बनाना होगा, तब जाकर किसी दिव्यांग को हायर किया जा सकेगा.
कंपनी की एडवाइजरी टीम के मेंबर मनीष आडवाणी कहते हैं कि दिव्यांग लोगों को शारीरिक खामी होती है, लेकिन लोग उन्हें मानसिक रूप से भी बीमार बना देते हैं. वह कहते हैं कि बहुत सारे ऐसे दिव्यांग हैं, जिन्हें मौका मिले तो वह प्रेरणा बनकर उभरते हैं. ऐसे में
प्लेटफॉर्म दिव्यांग लोगों को मदद मुहैया कराने के काम में लगा हुआ है.क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल
अगर e2eHiring के बिजनस मॉडल की बात करें तो पहले ये समझना होगा कि इसमें क्या-क्या होता है. इसके तहत 4 खास चीजें हैं. पहला तो ये है कि यह एक पब्लिक पोर्टल है, जिसमें बहुत सारी चीजें हैं. लोग टेक्निकल ब्लॉग लिख सकते हैं, जॉब देख सकते हैं, कंपनी के बारे में जान सकते हैं, प्रोफाइल के आधार पर उन्हें जॉब सजेशन मिल सकता है. इसमें दूसरी चीज ये है कि कंपनी तमाम एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स के साथ टाईअप करती है. बहुत सारे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के साथ भी टाईअप किया जाता है. इसके अलावा कॉरपोरेट्स के साथ भी टाईअप किया जाता है.
इसके तहत कंपनी 3 तरीके से रेवेन्यू जनरेट करती हैं. कॉरपोरेट के लिए अलग-अलग प्लान हैं, जिसमें से कोई चुन कर कंपनी को पैसे देने होते हैं. यानी पहला तरीका तो ये है कि कंपनियों से रेवेन्यू जनरेट किया जाता है. दूसरा तरीका है कैंडिडेट्स का असेसमेंट करने की सर्विस देना. इसके लिए स्किल डेवलपमेंट के बाद के बच्चों का असेसमेंट किया जाता है कि वह कैंपस रेडी हैं या नहीं. इसके लिए उनका मॉक टेस्ट लिया जाता है. यह सब कॉलेज या यूनिवर्सिटी से टाईअप कर के उनसे रेवेन्यू जरनेट किया जाता है. तीसरा तरीका है जॉब सीकर या ट्रेनिंग ले चुके लोगों को तगड़े डिस्काउंट पर प्लान देना और उन्हें नौकरी मिलने में मदद करना.
चुनौतियां भी कम नहीं
यह अभी बूटस्ट्रैप्ड कंपनी है, ऐसे में सबसे बड़ा चैलेंज तो फाइनेंस ही है. ऑपरेशनल कॉस्ट, सैलरी समेत कई चीजें होती हैं, जिनके लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. वहीं जब ये कंपनी खुद को किसी कंपनी या इंस्टीट्यूट के सामने रखती है तो खुद को दूसरों से बेहतर बताने की चुनौती रहती है. हालांकि, बहुत सारे क्लाइंट आराम से मान जाते हैं, क्योंकि बहुत से लोग आज के वक्त में दूसरों की मदद करना चाहते हैं.
फंडिंग और फ्यूचर प्लान
कंपनी के फाउंडर मोनू बताते हैं कि अभी उनकी कंपनी बूटस्ट्रैप्ड है और लंबे वक्त तक ऐसे ही रहने का प्लान है. अभी वह किसी फंडिंग की तलाश में नहीं हैं, लेकिन कहते हैं कि अगर कोई इसलिए कंपनी में निवेश करता है कि लोगों की मदद करनी है तो वह फंडिंग जरूर लेंगे. भविष्य की बात करते हुए वह बताते हैं कि आने वाले वक्त में कंपनी को स्केल किया जाएगा और विदेशों तक पहुंच बनाई जाएगी. ऐसे केस में फंडिंग की भी जरूरत पड़ेगी. इस कंपनी का मकसद अधिक से अधिक लोगों को मदद पहुंचाना और नौकरी देना है.