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बच्चों को अंग्रेजी सिखाकर बेहतर भविष्य देने की कोशिश है 'वर्डस्वर्थ'

बच्चों के लिए अंग्रेजी सरल और समझनेेेे योग्य बनाने हेतु यंग इंडिया फेलोशिप की छात्रा ने शुरू किया वर्डस्वर्थ प्रोजेक्ट

बच्चों को अंग्रेजी सिखाकर बेहतर भविष्य देने की कोशिश है 'वर्डस्वर्थ'

Monday June 01, 2015 , 8 min Read

भारत जब से दुनियाभर में बड़े बाज़ार के रूप में उभरा है तब से दूसरों देशों में हिन्दी सीखने और बोलने की होड़ लगी है, लेकिन इस देश में अंग्रेजी बोलने के लिए कई तरह की कोशिशें जारी हैं। 'वर्डस्वर्थ' उन्हीं कोशिशों में से एक है। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्टीफन्स काॅलेज से अर्थशास्त्र में डिग्री पाने वाली वर्षा वर्गीज ने 'वर्डस्वर्थ' प्रोजेक्ट की स्थापना अक्तूबर, 2014 में की। फिलहाल, यंग इंडिया फेलोशिप के अन्तर्गत लिबरल स्टडीज एंड लीडरशिप में अपनी स्नातकोत्तर डिप्लोमा कर रही वर्षा कहती हैं, ‘मैं हमेशा से एक ऐसी उत्साही पाठक रही हूं और मेरे जेब खर्च का अधिकांश भाग पुस्तकें खरीदने पर खर्च होता रहा है।’ 

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अपनी स्कूली पढ़ाई दुबई से पूरी करने के उपरान्त वर्षा अपना स्नातक पूरा करने के लिए दिल्ली आईं। वर्षा बताती हैं, ‘मैं इकलौती थी और मैंने विशेष सुविधा सम्पन्न तथा सुरक्षित जीवन जीया है। इसी बीच मेरे अंदर अपनी स्वयं की पहचान बनाने की चाहत बढ़ने लगी। जबकि मेरा परिवार मूलतः केरल से है, लेकिन इस क्षेत्र के साथ मेरी पहचान का जुड़ाव सिर्फ भाषा को लेकर रहा है। संयुक्त अरब अमीरात में आप नागरिकता नहीं प्राप्त कर सकते, इसलिए परिवार या तो अन्य देशों में पलायन कर जाते हैं या भारत लौट आते हैं। मैंने महसूस किया यह लौटने का सही समय है, इसलिए मैंने जान बूझकर भारत लौटने का निर्णय लिया।’ 

भारत लौटने के बाद स्थितियों में बदलाव के बारे में बताते हुए वर्षा कहती हैं, ‘यद्यपि दुबई में मैंने एक बहुत अच्छे स्कूल में पढ़ाई की, पर यहां उत्प्रेरण का स्तर अधिक ऊंचा है। वहां जीवन बहुत आरामदायक था और मैंने शायद ही कभी कोई चुनौती महसूस की।’ 

वर्षा वर्गीज

वर्षा वर्गीज


‘मेरे स्कूल के दिनों के दौरान, मैं स्मार्ट थी और छात्र परिषद की अध्यक्ष भी थी, जिसे मैं एक अच्छी उपलब्धि मानती थी। परन्तु भारत आने के उपरान्त, मैंने पाया कि प्रत्येक विद्यार्थी की कुछ न कुछ उपलब्धियां थीं और हर कोई वास्तव में स्मार्ट थे। यह स्थिति मेरे लिए सुखद अनुभव था। दिल्ली में बिताये ये तीन वर्षों से अधिक समय मेरे व्यक्तित्व के विकास में सहायक रहे हैं।’ 

काॅलेज में अपने प्रथम वर्ष के दौरान, वर्षा ने महसूस किया कि अर्थशास्त्र उनके रुचि का विषय नहीं है क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि उनमें औद्योगिक मनसूबों की कमी है।’ और तब इस बात का एहसास हुआ कि उन्हें कुछ अलग करना चाहिए। इसी उद्देश्य से स्वयंसेवक शिक्षक के रूप में वो ‘मेक अ डिफरेन्स’ (मैड) से जुड़ गईं। जब वो काॅलेज में स्नातक के दूसरे और तीसरे वर्ष में पहुंची लगभग उसी समय उन्होंने अपने नये स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण प्रारम्भ किया। अपना अंग्रेजी प्रोजेक्ट चलाना भी शुरू कर दिया, जहां वो सप्ताहांत में मुख्य रूप से बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाती थीं। 

‘तब मैंने अनुभव किया कि पढ़ाना कुछ और ही है... 'मैड' में मेरा अनुभव भी कुछ अलग था जिसे मैंने सावधानीपूर्वक निभाया। ऐसा भी समय आया जब मुझे स्वेच्छा से पढ़ानेवालों को प्रशिक्षण देना और उनके साथ-साथ काम करना पड़ा। वेे मुझसे उम्र में बड़े थे, वैसे उम्र कोई मायने नहीं रखती। मेरे जीवन में सच में यह समय एक निर्णायक क्षण था।’ 

समय के साथ वर्षा ने महसूस किया कि जब वह कक्षा में कुछ घंटों के लिए पढ़ाती हैं, ऐसे में आप बच्चों के जीवन में वांछित प्रभाव नहीं डाल सकते। इस दौरान उसने सोचना प्रारम्भ किया कि ‘वह एक चीज मैं क्या कर सकती हूं जिससे बड़ा प्रभाव पड़े और बड़ा अंतर आए?’ हर किसी को ऐसे प्रश्नों का अमूमन जवाब मिल जाता है, वर्षा के लिए यह भाषा थी। उसके लिए, इस विषय में भाव बहुत सामान्य था, प्रत्येक विषय कोई भी भाषा के माध्यम से ही सीखते हैं। 

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‘यदि आप चौथी कक्षा में हैं और गणित मे अच्छे हैं, परन्तु अंग्रेजी में अच्छे नहीं हैं, तो आपको अपनी अभिव्यक्ति की समस्या को सुलझाने में परेशानी आ सकती है। कई बच्चे बिना अर्थ समझे रट्टा मारने लगते हैं, क्योंकि वे शब्द को समझने में असमर्थ होते हैं।’ 

वर्षा को यह विचार आया कि बच्चे उन कठिन शब्दों से जूझ रहे हैं, जिसे उन्हें समझना मुश्किल था। ‘मैने यूं ही सोचा कि इस स्थिति के बारे में कुछ करने की जरूरत है। मैंने महसूस किया कि स्वयं भाषा से भाषा का प्रभाव अधिक ताकतवर होना है’, वर्षा बताती हैं। 

अंग्रेजी ही क्यों चुना, इसके बारे में बताते हुए वर्षा कहती हैं, ‘अधिकतर जगहों पर अंग्रेजी भाषा का उपयोग होता है, और मैंने देखा भी है कि दरअसल निम्न-आय पृष्ठभूमि के परिवार, अपने बच्चों को अंग्रेजी-माध्यम स्कूल में पढ़ने भेजते हैं। वे ऐसा इस उम्मीद और विश्वास के साथ करते हैं कि यह उनके बच्चों को जीवन में बेहतर अवसर प्रदान करेगा। इसलिए आपके पास बच्चों का एक ऐसा समूह है जो एक अजनबी विदेशी भाषा का सामना करने के लिए बाध्य है, जिसका उपयोग केवल कक्षा की चहारदीवारी के दौरान प्रतिबंधित है। वे घर लौटकर जाएंगे और फिर अपनी मातृभाषा में बातचीत करना शुरू कर देंगे, इसलिए अंग्रेजी समझने की उनकी योग्यता बहुत सीमित रहती है।’ 

इसके अलावा, वर्षा ने किताबों के बारे में भी बहुत गहराई से महसूस किया कि कई मामलों में, किताबें जो पुस्तकालयों में उपलब्ध थीं वे बच्चों की अभिरुचि स्तर से मेल नहीं खाती थीं, इसलिए यह महत्वपूर्ण था कि किताबों का चयन स्वयं सावधानीपूर्वक किया जाए जो बच्चों के स्तर के अनुकूल हों। कम कीमत पर कई ऐसे स्थान हैं, जहां आपको 40 रुपये में अच्छी पुस्तकें मिल जाएंगी। इसलिए मेरे दिमाग में मोटे तौर पर एक विचार था कि क्यों न काॅलेज के उन बहुत सारे छात्रों को इससे जोड़ा जाए जो स्वयंसेवा भाव से बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। 

‘मैंने सोचा मैं इसे अपने जीवन के बहुत बाद के दिनों में करूंगी, जब मैं काम से छुटकारा पा जाऊंगी।’ 

हालांकि, यंग इंडिया फेलोशिप में, उन्हें एक प्रोजेक्ट से जुड़ने का मौका मिला जिससे एक ओर तो लाभ कमाने का और दूसरी ओर सामाजिक कारणों से जुड़ने का जरिया बना। 

‘विचार और विषय को एक योजना का रूप देकर काम करने की जरूरत होती है। आपको इसके लिए कम से कम तीन लोगों की एक टीम की आवश्यकता होती है। इसलिए मैंने योजना बनाने का विचार और प्रक्रियाओं के निर्माण को पसंद किया, मैंने योजना बनाई, किस आयु वर्ग पर मुझे ध्यान देना है और इससे सम्बन्धित अन्य विवरण। जल्द ही मेरे साथ इस योजना से प्रियंका जुड़ गई, उसने भी लेडी श्रीराम काॅलेज से तुरंत स्नातक किया था। उसने पुस्तकालय माॅडल पर काम किया था और उसने पाया कि मैंने उसकी उम्मीदों के अनुसार इस योजना पर कार्य नहीं किया था। इसलिए वह मुझे सहायता देने के उद्देश्य से इससे जुड़ गई। दूसरा जुड़नेवाला व्यक्ति राहुल था, जिसे एक वर्ष का अनुभव था और एक ओल्ड एज होम में कार्य करने की मजबूत स्वयंसेवी पृष्ठभूमि थी। इसलिए राहुल ने भोजन-आवास और संचालन का जिम्मा लेने का बीड़ा उठाया, जबकि प्रियंका और मैंने निरूपण और विचारण पर केन्द्रित किया।’

जल्द ही तीनों ने टाई-अप करने की संभावना तलाशनी शुरू की। वे दिल्ली में कुटुम्भ फाउंडेशन और दो सामुदायिक केन्द्रों के सम्पर्क में आए जो भारतीय फेलो के लिए एक्स-टीच द्वारा संचालित था। अक्तूबर 2014 में उन्होंने 'वर्डस्वर्थ' प्रोजेक्ट के तहत कार्य शुरू किया। ‘मैंने बच्चों के बीच पहुंच बनाने के साथ शुरुआत की, मैं यह निश्चिंत होना चाहती थी कि उन्हें सही पुस्तक मिले। 

स्वयंसेवी कार्यक्रम चलाने से हुआ यह कि स्वयंसेवक कुछ घंटों के लिए आते थे, अपना कार्य करते और चले जाते। उनकी चीजों का दस्तावेजीकरण कर पाना वास्तव में कठिन था। इसलिए मैंने सुनिश्चित किया कि सभी विवरण सही स्थान पर होने चाहिए। सर्वप्रथम हमने ‘पीटर रैबिट’ के साथ रीडिंग टेस्ट शुरू की। यह दुखद और डरावना दोनों था कि बच्चे वहां बुनियादी अंग्रेजी नहीं समझ सकते थे। उन्हें अंग्रेजी शब्द के आस-पास के स्थानीय भाषा के शब्द से थोड़ा-बहुत साहचर्य था। इसलिए मैंने इसे एक बिन्दु बनाया और संदर्भ में समृद्ध साधारण पुस्तकें और कहानियों को लेने का विचार किया जिससे बच्चों को आसानी से पढ़ाया जा सके,’ वर्षा बताती हैं। 

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विस्तार से बताते हुए वर्षा कहती हैं, ‘इससे अधिकतर बच्चे जब मूल शब्द जान गए और व्याकरण के प्रश्नों का सही जवाब दे सकते थे, परन्तु उन्हें संबंधित अर्थों के साथ श्रृंखलाबद्ध वाक्यों में बहुत सारी कठिनाइयां महसूस होती थीं। 'वर्डस्वर्थ' प्रोजेक्ट में अधिकतर प्रक्रियाएं बच्चों की प्रगति के आकलन और जांच के इर्दगिर्द घूमती रहती थी।’ वाचन काल के दौरान क्या बच्चे शांतभाव से पढ़ रहे थे? या ‘क्या यह बच्चा अपनी कक्षा में सक्रिय रूप से भाग ले सका? जैसे सवालों का स्वयंसेवक शिक्षक नियमित आधार पर जवाब देते थे ‘हां या नहीं।’ तब, हमने स्वयंसेवक शिक्षकों के व्यक्तिगत पक्षपात को कम करने के लिए 0-5 पैमाना को आकलन अंक के लिए निर्धारित किया।’

अपनी व्यक्तिगत योजना पर बोलते हुए वर्षा कहती हैं, ‘मैंने सोचा कि दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संगठन के साथ एक या दो वर्ष तक कार्य कर देखती हूं, ताकि मैं 'वर्डस्वर्थ' प्रोजेक्ट को सोपान के इर्द-गिर्द पहुंचा सकूं। अंततः मैं शिक्षा में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करना पसंद करूंगी (परियोजना प्रबंधन क्षेत्र में)। मेरी आदर्श दुनिया में यात्रा, लेखन और शिक्षा के क्षे़त्र में प्रोजेक्ट के संचालन के लिए मैं अपनी पसंद को जोड़ कर रखती हूं। 'वर्डस्वर्थ' प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए वर्षा कहती हैं: 

‘विकास के संदर्भ में कई चीजें होनी चाहिए: 1. कम से कम कुछ सतत आय स्रोत, जिसे अनुदान या आवर्ती दाता कहते हैं, को प्राप्त करते हुए परियोजना को वित्तीय रूप से टिकाउ बनना। 2. गहराई और पैमाना में विकास। दोनों वर्तमान प्रक्रिया में सुधार करना व संसाधन जुटाने पर कार्य करना और उसी के साथ-साथ और अधिक केन्द्रों और क्षेत्रों का विस्तार करना। 3. अंततः प्रक्रियाओं की राह में एक विस्तृत निर्देशिका विकसित करना ताकि कोई भी व्यक्ति अपने शहर में वड्र्सवर्थ प्रोजेक्ट प्रारम्भ करने के विचार के बारे में उत्साहित हो सके।'