"देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में साहित्य, कला और संगीत का प्रतिष्ठित संगम lit-0-fest अपने तीसरे संस्करण में एक अनूठी पहल कर चुका है, जो उसे देश में होने वाले बाकी के लिटरेचर फेस्टिवल्स से अलग और बड़ा बनाती है। ऐसा पहली बार हो रहा है, कि कोई लिटरेचर फेस्टिवल एक सामाजिक पहल करते हुए किसी गांव को अडॉप्ट करके उसकी बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य तरह की ज़रूरतें पूरी करेगा। यह अपने आप में एक अनोखा प्रयोग है, जिसे आज तक किसी लिचरेचर फेस्टिवल ने नहीं किया है।"
"lit-O-fest ने अपने तीसरे संस्करण में एक अनूठी पहल की है जो उसको अन्य लिटरेचर फेस्टिवल्स से अलग बनाती है।"
इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, कि कोई लिटरेचर फेस्टिवल गंभीरता से किसी गांव की ओर अपना रुख करेगा। सिवाय किताबों, कविताओं, कहानियों के हमने वहां कुछ नहीं देखा। बहुत हुआ तो थोड़ा-बहुत गीत संगीत। अभी तक हमारे देश में लिटरेचर फेस्टिवल का जो स्वरूप बना है या बनता दिख रहा है उसमें पैनल डिस्कशन के अलावा फिल्म और संगीत पर ही बात होती रही है।
एक अनुमान के मुताबिक, इस वक्त पूरे देश में छोटे-बड़े करीब साढ़े तीन सौ लिटरेचर फेस्टिवल होते हैं और कमोबेश सभी एक जैसे ही होते हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में साहित्य, कला और संगीत का प्रतिष्ठित संगम, लिट-ओ-फेस्ट ने अपने तीसरे संस्करण में एक अनूठी पहल की है जो उसको अन्य लिटरेचर फेस्टिवल्स से अलग बनाती है। पिछले दो संस्करणों में lit-0-fest ने साहित्य, कला और संगीत की दुनिया में अपना एक मुकाम हासिल किया था, जहां हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के दिग्गजों के अलावा संगीत और कला के क्षेत्र की मशहूर हस्तियों ने इस उत्सव में शिरकत की थी। लेकिन अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझते हुए और उसके निर्वहन के लिए lit-0-fest ने इस बार साहित्य, कला और संगीत को गांव तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। इस सिलसिले में मुंबई के पास के शाहपुरा जिले के दहीगांव को lit-0-fest ने गोद लिया है ।
"lit-0-fest दहीगांव में शिक्षा को बढ़ावा देने, कौशल विकास, स्वच्छता अभियान आदि के बारे में वहां के लोगों को जागरूक बना रहा है। फेस्टिवल शुरू होने के पहले उस गांव में एक स्कूल का जीर्णोद्धार करवा दिया गया है और वहां लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाये गये हैं। इस फेस्ट की योजना है, कि वहां के स्कूल में ई-एजुकेश को बढ़ावा दिया जाये।"
"लिट ओ फेस्ट से जुड़े प्रकाशकों ने इस पुस्तकालय के लिए किताबें देने का एलान भी किया है।"
नोटबंदी के पहले शुरू हुई इस पहल के बाद अब मुंबई के इस साहित्य महोत्सव ने तय किया है, कि लोगों को ई-बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग सिखाया जायेगा। लिट-ओ-फेस्ट की फेस्टिवल डायरेक्टर स्मिता पारिख के मुताबिक, "लिटरेचर के साथ-साथ लिटरेसी भी आवश्यक है।"
lit-O-fest की डायरेक्टर स्मिता पारिख मानती हैं, कि हमारे देश में इतना खूबसूरत साहित्य सृजन हुआ है, कि उसके पाठक बनाना भी हमारी जिम्मेदारी है और अपनी इसी जिम्मेदारी को समझते हुए lit-O-fest ने महानगर के पास के गांव में पाठक तैयार करने का बीड़ा भी उठाया है। इस योजना को पंख लगाने के लिए दहीगांव में एक पुस्तकालय की स्थापना की जा रही है। इस फेस्टिवल से जुड़े प्रकाशक इस पुस्तकालय के लिए मुफ्त किताबें देने का काम करेंगे। इस मायने में अगर देखा जाये, तो मायानगरी मुंबई में 23 और 24 फरवरी को आयोजित होने वाला यह साहित्योत्सव अपनी तरह का एक अलग उत्सव है, जो बाकी के उत्सवों के सामने एक मिसाल कायम कर रहा है।
lit-O-fest का 2017 सत्र साहित्य, संगीत और कला के अलावा शिक्षा और सुरक्षा पर मंथन करने का अवसर भी प्रदान कर रहा है। हिंदी के मशहूर कवि केदारनाथ सिंह के अलावा लता मंगेशकर पर बेहद गंभीर किताब लिखनेवाले यतीन्द्र मिश्र, कहानीकार गीताश्री, वाणी प्रकाशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी और सीएसडीएस में प्रोफेसर अभय कुमार दुबे "खोई हुई दास्तां " पर बात करेंगे।
गीत-संगीत पर अंकित तिवारी से लेकर अनु मलिक, अनूप जलोटा, सोनू निगम, हरिहरन और अमृता फड़णबीस की महफिल जमने वाली है। एक और दिलचस्प सत्र बायोग्राफी बनाम आटोबॉयोग्राफी का है जिसमें सीमा सोनिक, शाहिद रफीक और यतीन्द्र अपने अनुभवों को साझा करेंगे। इसके अलावा सौरभ दफ्तरी, मेघना पंत, अंजलि कृपलानी, अश्विन सांघी जैसे लेखक भी इस लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत कर रहे हैं।
दो साल पहले मुंबई के मशहूर जेजे कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स से जो सफर शुरू हुआ था वो सेंट जेवियर्स कॉलेज से होते हुए अब मेडिकल जिमखाना तक पहुंच चुका है। मुंबई में आयोजित इस lit-O-fest में सत्रों का कैनवस बहुत बड़ा है। गैर हिंदी प्रदेश मुंबई में आयोजित इस लिटरेचर फेस्टिवल में हिंदी को लेकर भी कई तरह के सत्र होंगे। यह बात खासतौर पर रेखांकित की जानी चाहिए, कि चाहे वो हिंदी कविता पाठ का सत्र हो या फिर लखनऊ शहर और उसके मिजाज पर सत्र। गुरू शिष्य परंपरा पर सोनम मानसिंह से बातचीत का भी एक सत्र रखा गया है।
lit-O-fest की खास बात यह है कि इसके पहले आयोजक नवोदित लेखकों की पांडुलिपियां मंगवाते हैं और फिर उनका जूरी द्वारा चुनाव करके उसे प्रकाशित करवाते हैं। पिछले वर्ष चुनी गई पांडुलिपियों का प्रकाशन हो चुका है और इस साल आयोजित lit-O-fest में उसको जारी किया जायेगा। इसमें बिंदू चेरुन्गात का उपन्यास मेरी अनन्या, करण बजाज की जिंदगी तुमसे है और वैशाख राठौड़ का सरनेम प्रमुख हैं। इस साल भी आमंत्रित पांडुलिपियों में से जूरी ने चुनाव कर लिया है और कश्मीर की कहानियों को प्रमुखता से चुना गया है।
यदि हम समग्रता में विचार करें, तो मुंबई में आयोजजित होनेवाले इस लिटरेचर फेस्टिवल ने तीन साल में ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है और लिटरेचर फेस्टिवल को गांवों से जोड़ने की अनूठी पहले करके इसके आयोजकों ने अन्य लिटरेचर फेस्टिवल्स के सामने एक मिसाल तो पेश की है, चुनौती भी दी है। क्योंकि यदि शब्द के कद्रदान बचेंगें तभी तो सृजन भी बचेगा और सृजन का उत्सव भी।