एक दीवार नेकी की
समाज में जब भी कोई दीवार उठी है, तो न जाने कितनों के आंसुओं से सींची गई है, लेकिन ‘नेकी की दीवार’ ने इस भ्रांति को बदल कर रख दिया है। नेकी की दिवार एक ऐसी दिवार साबित हुई है, जो जहां खड़ी हुई वहां लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी।
"जहां समाज में एक ओर नफरत की दीवारें खड़ी हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर सेवा भाव को दिल में बसाये शचीन्द्र ने एक अनोखी दीवार की नींव डाली और उसे नाम दिया है "नेकी की दीवार!"
"उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थापित की गई एक ऐसी दीवार जिसका नाम है ‘नेकी की दीवार’। यूँ तो दीवार नाम आते ही दिमाग में तरह तरह की इमारतें बननी शुरू हो जाती हैं लेकिन ‘नेकी की दीवार’ ने समाज में सेवा भाव की आसमान छूती अनोखी इमारत तैयार की है।"
नेकी की दीवार की शुरूआत शचीन्द्र कुमार मिश्र ने की, जिसे उन्होंने अपने प्रेम व समर्पण से सींचा है। शचीन्द्र प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं। वे एक माली की भांति अपने विद्यालय के सभी बच्चों के भविष्य को निखारने में पहले से ही रमे हुए थे और उन्हीं सबके बीच एक दिन इंटरनेट में सर्फिंग करते वक़्त ‘नेकी की दीवार’ नाम की एक तस्वीर देखते ही अपने शहर हरदोई में भी इस नेक काम की नींव रख दी। चले तो शचीन्द्र अकेले ही थे, लेकिन लोग जुड़ते गये, कारवां बढ़ता गया कि तर्ज़ पर उनसे उनके विद्यालय के कई शिक्षक जुड़े और बाद में शहर के कई सामाजिक कार्यकर्ता भी नेकी की दीवार मुहिम से जुड़ गये।
"शचीन्द्र अब अकेले नही हैं उनके साथ एक काफिला है, ऐसा काफिला जो गरीब व असहायों के होठों पर मुस्कान लाने के लिए शचीन्द्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता है।"
नेकी की दीवार असल में एक सोच है, जिसके अंतर्गत लोग ज़रूरतमंदों की मदद के लिए आगे आते हैं। इस प्रोग्राम के तहत लोग एक तय जगह पर इकट्ठे होते हैं और अपने साथ वो सारा सामान ले कर आते हैं, जो उनके लिए गैरज़रूरी है, जैसे कि पुराने कपड़े, जूते, किताबें, बर्तन या फिर कोई भी घरेलू सामान। इकट्ठे हुए सामान में जो जिसके काम का होता है, वहां मौजूद लोग अपनी-अपनी ज़रूरत की चीज़ उठा लेते हैं। यह एक बेहद ही ही नेक काम है, जो सिर्फ शचीन्द्र की वजह से ही मुमकिन हो पाया है।
शचीन्द्र का कहना है, कि "इस काम को करने में मुझे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सबसे ज़्यादा मुश्किल होता है, लोगों को यह समझाना, कि हम जो काम कर रहे हैं, असल में वो काम है क्या। मेरे इस काम का लोगों ने शुरू में मज़ाक भी उड़ाया। अकेले हर ज़िम्मेदारी को निभाना मुश्किल तो था, लेकिन नेक काम करने का जो आनंद और सुकून होता है, उसका कोई मोल नहीं। जो शुरू में मुझ पर हंसते थे, वे ही बाद में मेरे साथ हो लिए और देखते ही देखते सैकड़ों लोग मुझसे जुड़ गये। अब मेरे काम को लेकर लोग खुशी भी ज़ाहिर करते हैं और सराहना भी करते हैं।"
"शचीन्द्र किसी तरह का एनजीओ रन नहीं कर रहे हैं, न ही इन सबके लिए कहीं से किसी तरह की फंडिंग की उम्मीद करते हैं। ये काम वे बस अपने दिली सुकून के लिए कर रहे हैं। कुछ माह पहले ही शुरू हुए इस प्रोग्राम ने नजाने कितने असहायों और जरुरतमंदों की महीनों से अधूरी पड़ी जरूरतों को पूरा करने का काम किया है।"
हाल ही में, नेकी की दिवार के कार्यकर्ताओं ने एक अनोखी मुहीम के तहत रक्त दान किया। यह संगठन इसी तरह कई अच्छे काम कर रहा है, फिर बात चाहे गरीबों को भोजन कराने की हो या फिर उनका तन ढंकने की।
समाज में जब भी कोई दीवार उठी है, तो न जाने कितनों के आंसुओं से सींची गई है, लेकिन ‘नेकी की दीवार’ ने इस भ्रांति को बदल कर रख दिया है। नेकी की दिवार एक ऐसी दिवार साबित हुई है, जो जहां खड़ी हुई वहां लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी।