ट्रेन में मांगकर इकट्ठे किए पैसे से किन्नर गुड़िया ने खोली फैक्ट्री, बच्ची को गोद लेकर भेजा स्कूल
गुड़िया की कहानी बेहद दुख भरी रही है। वाराणसी में ही जलीलपुर के एक गरीब बुनकर परिवार में जन्मीं गुडिया के घर वालों को जब पता चला कि वो किन्नर हैं तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ, लेकिन हकीकत को स्वीकारना ही पड़ा और फिर क्या हुआ उसके बाद...
गुड़िया शिक्षा को लेकर काफी प्रतिबद्ध नजर आती हैं। उन्होंने कहा कि लोग लड़कियों को कमतर मानते हैं इसीलिए वह जैनम को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाना चाहती हैं। वह कहती हैं कि अब उनके जीवन का मकसद ये ही दो बेटियां हैं।
हमारे समाज में किन्नरों को अच्छी नजर से देखने की आदत नहीं है। उन्हें हमेशा से प्रताड़ित किया जाता है। किसी को यह भी नहीं समझ आता कि वे भी बाकियों की तरह इंसान ही हैं। समाज की इसी उपेक्षा के चलते उन्हें सड़कों पर मांगने या बधाई देकर रोजी-रोटी कमाना पड़ता है। लेकिन बदलते वक्त के साथ ही कुछ किन्नर समाज में सबसे कंधा मिलाकर न केवल चल रहे हैं, बल्कि नाम भी कमा रहे हैं। ऐसे ही एक किन्नर हैं, वाराणसी में रहने वाली गुड़िया। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में रहने वाली गुड़िया ने समाज द्वारा ठुकराए और प्रताड़ित करने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और शारीरिक अक्षमता को दरकिनार रखते हुए खुद का काम शुरू किया।
गुड़िया ने लोगों को अपने काम से नजीर पेश की है। वह बाकी किन्नरों की तरह बधाई देकर या गाना गाकर मांगने का काम नहीं करती हैं। बल्कि वे तो धागे बनाने वाले पावरलूम का काम करती हैं। जो भी उन्हें ये काम करते हुए देखता है, दंग रह जाता है। गंगा के उस पार रामनगर में रहने वाली गुड़िया ने अपने घर में ही पावरलूम लगा रखा है। इसके जरिए उन्होंने चार लोगों को जहां रोजगार दिया है, वहीं प्राइवेट अस्पताल से लावारिस बच्ची को गोद लेकर नजीर पेश की है। इतना ही नहीं वह अपने भाई की दिव्यांग बच्ची की भी जिंदगी संवार रही हैं।
एनबीटी की खबर के मुताबिक गुड़िया लावारिस मिली बेटी को पाल रही हैं। वह उसे स्कूल भी भेजती हैं। वह खुद ही उसे स्कूल छोड़ने और लाने जाती हैं। उस बच्ची का नाम उन्होंने जैनम रखा है। उन्होंने जिस दिव्यांग बच्ची को गोद लिया है उसका नाम नर्गिस है। गुड़िया शिक्षा को लेकर काफी प्रतिबद्ध नजर आती हैं। उन्होंने कहा कि लोग लड़कियों को कमतर मानते हैं इसीलिए वह जैनम को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाना चाहती हैं। वह कहती हैं कि अब उनके जीवन का मकसद ये ही दो बेटियां हैं।
गुड़िया की कहानी बेहद दुख भरी रही है। वाराणसी में ही जलीलपुर के एक गरीब बुनकर परिवार में जन्मीं गुडिया के घर वालों को जब पता चला कि वो किन्नर हैं तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। हकीकत को मन मारकर मानना पड़ा, लेकिन अच्छी बात यह रही कि उनके परिजनों ने साथ दिया। लेकिन हमारा समाज अभी भी पिछड़ा हुआ ही है। 16 साल की उम्र में आस पड़ोस के लोगों ने ताना कसना शुरू किया तो गुड़िया घर छोड़ भाग निकलीं। वह तीन साल बाद वापस लौटीं और परिजनों की इजाजत से गुरु रौशनी के साथ मंडली में बधाई गाने जाने लगी।
किन्नर मंडली के साथ बधाई गाने जाने के दौर में भी दुर्भाग्य ने गुड़िया का पीछा नहीं छोड़ा। बचपन में खाना बनाते समय जल जाने से उसके शरीर का आधा हिस्सा जला हुआ है। ऐसे में लोग देख कहते कि, आदमी मरने के बाद जलता है तुम तो शमशान से आ रही हो।' लेकिन यह काम भी गुड़िया ने कुछ ही दिनों में छोड़ दिया और फिर वे ट्रेनों में भीख मांगने लगीं। इसके बाद उन्होंने पैसे जोड़े और अपने भाई की मदद से घर बनाया और पावरलूम की फैक्ट्री भी लगा ली। वह अपने भाई की बेटी नर्गिस का पूरा ख्याल रखती हैं।
गुड़िया बताती हैं कि कारोबारियों की तानी की पावरलूम पर बुनाई उसे सारे खर्च काटने के बाद भी महीने में 15 हजार रुपये तक बच जाता है। वह सारा काम खुद नहीं करती हैं। उन्होंने तानी लाने व तैयार माल पहुंचाने के लिए एक कर्मचारी रखा है। उसके पावरलूम में महीने भर में 700- 800 मीटर तानी से डिजाइन के अनुसार कपड़ा तैयार होता है। गुड़िया संघर्षों की मिसाल हैं। वे पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से ही उनकी योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ को साकार कर रही हैं।
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