इंजीनियर से फैशन डिजाइनर और फिर एसीपी बनकर अपराधियों में खौफ भरने वाली मंजीता
अहमदाबाद की पहली महिला एसीपी मंजीता...
मंजीता ने अपने कठिन परिश्रम की बदौलत पहले ही प्रयास में 2011 में परीक्षा पास कर ली और 2013 में अहमदाबाद की प्रथम महिला एसीपी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
घर में आईएएस और आईपीएस लोगों की भरमार होने के बावजूध उनके दिमाग में कभी अधिकारी बनने का ख्याल नहीं आया। यही वजह थी कि स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने अपने मन मुताबिक इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने का फैसला किया।
रात के दो बजे का वक्त और एक लेडी पुलिस ऑफिसर अपने सहयोगी के साथ बुर्का पहनकर जुए के अड्डे पर सीक्रेट ऑपरेशन के तहत छापेमारी करती है और वहां से 2 सरगना समेत 28 लोगों को गिरफ्तार भी कर लेती है। सुनने में भले ही यह काल्पनिक लग सकता हो, लेकिन यह किसी फिल्म की कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। यह कहानी है अहमदाबाद में असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस मंजीता वंजारा की। मंजीता का नाम सुनकर ही इलाके के बड़े-बड़े अपराधियों का कलेजा कांपने लगता है। उनकी छवि एक सख्त पुलिस ऑफिसर की है जो रात में अकेले छापेमारी करने, जान का जोखिम भी ले लेती हैं।
मंजीता का आईपीएस बनने का सफर कुछ ज्यादा ही दिलचस्प रहा है। वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं जहां हर कोई सिविल सर्विस में था। घर में आईएएस और आईपीएस लोगों की भरमार होने के बावजूध उनके दिमाग में कभी अधिकारी बनने का ख्याल नहीं आया। यही वजह थी कि स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने अपने मन मुताबिक इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने का फैसला किया। निरमा यूनिवर्सिटी गुजरात से बीटेक करने के बाद उन्होंने उस फील्ड में करियर नहीं बनाया। उनका मन फैशन डिजाइनिंग की ओर भागने लगा था इसलिए ग्रैजुएशन खत्म होते ही उन्होंने देश के प्रतिष्ठित फैशन डिजाइनिंग संस्थान निफ्ट में अप्लाई कर दिया।
निफ्ट में पढ़ाई करने के बाद उन्हें एक बड़े ब्रैंड के साथ बतौर फैशन डिजाइनर की नौकरी मिल गई। लेकिन इसी वक्त उन्हें थोड़ा और पढ़ने का मन किया और उन्होंने एजुकेशन में मास्टर कंप्लीट किया। इतने सालों में मंजीता को कई तरह के अनुभव हासिल हुए और उन्हें कई चुनौतियों व संघर्ष का भी सामना करना पड़ा। एक अच्छे-खासे समृद्ध परिवार में जन्म लेने के बावजूद मंजीता के परिवार वालों ने उन्हें कभी जरूरत से ज्यादा सुविधाएं नहीं दीं। उन्हें कभी कार चलाने को नहीं दी गई और हमेशा से सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने को कहा गया। यह सब इसलिए किया गया ताकि उन्हें एक आम आदमी के जिंदगी में आने वाली परेशानियों से रूबरू कराया जा सके।
पोस्ट ग्रैजुएशन के वक्त ही उन्हें यह ख्याल आया कि एक नागरिक के तौर पर हम अपने समाज और देश को क्या दे रहे हैं। इसके बाद उन्हें लगा कि सिविल सर्विस में जाना चाहिए और समाज की सेवा करनी चाहिए। पोस्ट ग्रैजुएशन के वक्त ही उन्होंने सिविल सेवा की तैयारियां शुरू कर दीं। हर कोई जानता है कि इस परीक्षा को देश की सबसे कठिन परीक्षा माना जाता है। शायद इसीलिए इस परीक्षा की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों को काफी वक्त तैयारी में देना पड़ता है। मंजीता ने अपने कठिन परिश्रम की बदौलत पहले ही प्रयास में 2011 में यह परीक्षा पास कर ली और 2013 में अहमदाबाद की प्रथम महिला एसीपी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
ऐसा नहीं है कि मंजीता सिर्फ पढ़ाई में ही अव्वल रही हैं। वो भारतनाट्यम और कुचिपुड़ी नृत्य की पारंगत डांसर भी रही हैं। वह कहती हैं, 'मेरे लिए देश और उसमें रहने वाले नागरिकों की सेवा करना पहला कर्तव्य लगता है। हमें उनकी समस्याएं सुननी होती हैं और जितनी हो सके उसका समाधान भी निकालना होता है। मेरे कई दोस्त ऐसे हैं जो लाखों रुपये हर महीने कमाते हैं, लेकिन मेरे लिए किसी गरीब की मदद करना, किसी बच्चे को शिक्षा उपलब्ध कराना या मुश्किल में फंसे किसी इंसान के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।'
वह कहती हैं, 'मेरे लिए सिविल सेवा में आने का मकसद पैसे कमाना कभी नहीं रहा है। मैं हमेशा से लोगों की मदद करना चाहती थी और इस काम में मुझे खुशी मिलती है।' मंजीता ने अपने पुलिस विभाग की ओर से गरीब महिलाओं के जीविकोपार्जन के लिए 'सुरक्षासहाय' नाम से एक योजना चलाई है जिसमें एक एनजीओ की मदद से चारानगर की महिलाओं को रोजगार मुहैया करवाया जाता है। दरअसल इस इलाके में अवैध शराब बनाने का धंधा काफी चलता है और शराब पीकर मौत के भी मामले अक्सर देखने सुनने को मिलते हैं। मंजीता उन विधवा महिलाओं को शराब बनाने के बजाय कोई प्रतिष्ठित काम दिलवाने में मदद करती हैं।
मंजीता के पिता केजी वंजारा भी आईएएस अफसर रहे हैं और उनकी भाभी सुधांबिका ने भी 2014 में यूपीएससी का सिविल सर्विस एग्जाम पास किया था। मंजीता के अंकल डीजी वंजारा गुजरात के बहुचर्चित आईपीएस अफसर में गिने जाते हैं। उनकी मां एक ऐसे गांव से आती हैं जहां पर शिक्षा का कोई साधन उपलब्ध नहीं था। लेकिन उन्होंने अपनी बेटी और बहू को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और ऑफिसर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मंजीता कहती हैं कि इंजीनियर से फैशन डिजाइनर और फिर एसीपी बनने का सफर काफी शानदार रहा और वह कहती हैं कि अभी काफी कुछ करना बाकी है।
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