रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के अनमोल बोल
रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन आर्थिक मामलों के बहुत बड़े जानकार हैं। उनकी गिनती दुनिया में आर्थिक मामलों के सबसे बड़े विशेषज्ञों/ अर्थशास्त्रियों में होती है। वे भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के प्रमुख आर्थिक सलाहकार भी रह चुके हैं।उन्होंने भारत में वित्तीय सुधार के लिये योजना आयोग द्वारा नियुक्त समिति का नेतृत्व भी किया हैं। तीन साल तक वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख अर्थशास्त्री व अनुसंधान निदेशक भी रहे । उन्होंने भारत में वित्तीय सुधार के लिये योजना आयोग द्वारा नियुक्त समिति का नेतृत्व भी किया हैं। देश और दुनिया के नामचीन शिक्षा संस्थाओं में उन्होंने कई सारे विद्यार्थियों को बिज़नेस के मन्त्र सिखाए हैं। कारोबार की दुनिया की बारीकियां समझाई हैं। वो जो भी बोलते हैं उसका बहुत बड़ा महत्त्व होता है। उनके बोल अनमोल है और कुछ ऐसी ही उनके विचार यहाँ इस मकसद से प्रस्तुत किये जा रहे हैं कि पढ़नेवाले उसका फायदा उठायें।
1. देशों के बीच तो असमानता कम हो रही है, लेकिन देश के अन्दर बढ़ रही है। इस असमानता को दूर करने के लिए शिक्षा को सर्व सुलभ बनाना होगा।
2. अनुसन्धान से सम्बद्ध विश्वविद्यालय में आम कालेजों के मुकाबले पढ़ाई ज्यादा खर्चीली है। जब तक तकनीक और शिक्षकों का एक साथ बेहतर उपयोग करना नहीं सीख लेते तब तक अच्छी अनुसन्धान वाली यूनिवर्सिटी में शिक्षा महंगी बनी रहेगी। योग्य छात्रों को इसे सुलभ बनाने के लिए डिग्री का खर्च छात्रों के वहन करने लायक बनाना होगा। इस समस्या के दो समाधान हैं पहला बैंकों से शिक्षा लोन और दूसरा परोपकार द्वारा की जा सकती है। पूर्व छात्रों में दान की परंपरा विकसित करने की जरूरत है।
3. भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव से काफी हद तक संरक्षित है। दो बार सूखे और कमजोर अंतरराष्ट्रीय बाजार के बावजूद भारत 7.5 फीसद की वृद्धि दर्ज करने में सफल रहा है। भारत में बुनियादी सुधारों की रफ्तार को तेज करना राजनीतिक दृष्टि से मुश्किल काम है, लेकिन बैंकों के बहीखाते साफ-सुथरा करने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने से तेज वृद्धि हासिल की जा सकती है। श्रम बाजार सुधारों से वृद्धि को प्रोत्साहन दिया जा सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया को विरोध का सामना करना पड़ेगा। सुधारों को कायम रखने से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है। साथ ही गतिविधियों को बढ़ाया जा सकता है।
4. नए नियम अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक नीति के इर्द-गिर्द बनाए जाने चाहिए। भारत जैसे उभरते बाजारों को अपनी आवाज तेजी से उठानी चाहिए, जिससे वैश्विक एजंडे के निर्धारण में उनकी बात को भी महत्त्व दिया जाए। अर्थव्यवस्था की क्षमता बढ़ाने के लिए बुनियादी सुधार महत्त्वपूर्ण हैं। प्रतिस्पर्धा और समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी का स्तर बढ़ाया जाना चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोगों को श्रमबल में लाया जा सके।
5. ज्यादा छूट के जरिए आय प्राप्त करना स्टार्टअप के लिए कोई व्यावहारिक कारोबारी मॉडल नहीं है। अगर आप आय न कि मुनाफा केवल 50 प्रतिशत छूट वाली बिक्री के जरिए प्राप्त कर रहे हैं, तो यह दीर्घकाल के लिए व्यावहारिक नहीं हो सकता। सभी कंपनियां व्यवहारिक बनने की कोशिश कर रही हैं, कुछ को अभी भी बड़े पैमाने पर वित्त पोषण प्राप्त हो रहा है। कुछ के लिए यह स्वभाविक है कि वे काम नहीं कर पाए, जिससे कंपनी बंद होगी। इनके लिए ऐसी नीति हो, जिससे स्टार्टअप के लिए बाहर निकलना आसान हो ताकि संसाधन का बेहतर रूप से उपयोग हो सके।
6. आंकड़ों का बेहतर हिसाब-किताब किया जाना जरूरी है क्योंकि इससे किसी चीजों के छूट जाने की स्थिति से बचा जा सकेगा और अर्थव्यवस्था को होने वाले मुनाफे का पता चल सकेगा। हिसाब-किताब में सावधानी बरतने की जरूरत है। हम जीडीपी की गणना जिस तरह से कर रहे हैं उसमें दिक्कतें हैं यही कारण है कि ग्रोथ की बात करते समय हमें कभी-कभी सावधानी बरतने की जरूरत है.
7. हम जीडीपी की गणना कैसे करते हैं इसको लेकर हमें थोड़ा सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि कई बार लोगों के अलग अलग क्षेत्रों में जाने से भी ग्रोथ मिलती है। यह महत्वपूर्ण है कि जब लोग किसी नए क्षेत्र में जा रहे हों तो ऐसा कुछ करंर जिससे वैल्यू एडिशन हो। हम कुछ खोते हैं, कुछ पाते हैं और आखिरी में क्या हासिल करते हैं, इसकी गणना करते समय सतर्क रहें।
8. सहनशीलता और एक-दूसरे के लिए सम्मान की भावना से समाज में संतुलन कायम होगा, जो विकास के लिए जरूरी है। आर्थिक तरक्की के लिए बहस जरूरी है। चीजों पर प्रतिबंध लगाने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है नए-नए विचारों को जगह देने के लिए माहौल सुधारने की जरूरत है, इसके जरिए ही विकास का रास्ता खुलेगा।
9. बैंकों से काफी मात्रा में कर्ज ले रखी बड़ी कंपनियों को बेहतर आचरण करना चाहिए। 'गंभीर रूप से कर्ज में डूबे होने के बावजूद ऐसे लोगों को जन्मदिन की बड़ी-बड़ी पार्टियों जैसे फिजुलखर्च से बचना चाहिए। इससे गलत संदेश जाता है। यह कोई बड़ी कंपनियों, धनी लोगों का मामला नहीं है। यह कोई रॉबिन हुड वाला मामला नहीं है। यह समाज में गलत काम करने वालों से जुड़ा मामला है। अगर आप काफी कर्ज लेने के बाद भी जन्मदिन की बड़ी पार्टी पर फिजलुखर्च करते हैं, इससे लोगों को लगेगा कि मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है। 'आपका खर्च में कटौती पर ध्यान रहना चाहिए।
10. कंपनियों को शेयरधारकों का मूल्य अधिकतम करते समय समाज को नहीं भूलना चाहिए। आम लोगों की बचत के लिए मुद्रास्फीति की ऊंची दर 'साइलेंट किलर' की तरह है। महंगाई दर के नीचे रहने से जमा दर कम रहने के बावजूद एक आम पेंशनभोगी अपने मूलधन और उस पर मिलने वाले ब्याज से अधिक डोसा खरीद सकता है। आम लोगों की बचत को महंगाई के दीमक से बचाना रिजर्व बैंक की प्राथमिकता है।
11. आज एक सेवानिवृत्त पेंशनभोगी अपनी बचत से अधिक से अधिक खरीदने में सक्षम है। लेकिन, वह इसे समझ नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनका पूरा ध्यान केवल ब्याज की नीची दर पर केंद्रित हो गया है। वह महंगाई दर में आई गिरावट से मिलने वाले लाभ को नहीं समझ पा रहे हैं, जो पहले के 10 प्रतिशत से कम होकर 5.5 प्रतिशत रह गई है।
12. जमीन जायदाद के विकास से जुड़ी कंपनियों को चाहिए कि मकानों के दाम कम करे ताकि ज्यादा लोग संपत्ति खरीदने के लिये प्रोत्साहित हों। मुझे उम्मीद है कि अब जब ब्याज दरें नीचे आ रही है, लोग कर्ज के लिये आगे आएंगे और खरीदारी बढ़ेगी और मुझे यह भी उम्मीद है कि कीमतों में इस रूप से समायोजन होगा जिससे लोग मकान खरीदने के लिये प्रोत्साहित हों।
13. 'कामगारों का उपयोग कई ऐसे उत्पादक क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहां उत्पादकता काफी बढ़ी है, जैसे फैक्ट्री का काम, बैंकिंग आदि। लेकिन कुछ सेक्टर की तकनीक में कोई सुधार नहीं आया है, ऐसे सेक्टरों में उत्पाद के दाम जल्दी बढ़ते हैं। डोसे के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। इसी वजह से वह महंगा हो रहा है।
14. राजकोषीय मजबूती के रास्ते से थोड़ा भी हटने से अर्थव्यवस्था की स्थिरता को नुकसान होगा। वैश्विक स्तर पर आर्थिक चुनौतियों के बीच अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने वाले कारकों को लेकर कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता है और सरकार व आरबीआई को महंगाई कम करने का प्रयास जारी रखना चाहिए।
15. मुझे नहीं पता आप मुझे क्या कहेंगे. सांता क्लाज? मैं नहीं जानता. मैं इन चीजों से प्रभावित नहीं होता. मेरा नाम रघुराम राजन है और मेरा जो काम है, मैं वही करता हूं। मैं यह कहना चाहता हूं कि टिकाऊपन और विकास दोनों शब्द साथ-साथ चलते हैं। दोनों जरूरी हैं। इसलिए मेरे पास जो गुंजाइश थी, मैंने वह कर दिया। मैं यह स्वीकार नहीं करता कि हम आक्रामकता अपना रहे हैं।