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कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ

अंग्रेजी राज के खिलाफ हुंकार भरने वाले देशप्रेमी कवियों, शायरों की कुछ यादगार पंक्तियां...

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ

Tuesday August 15, 2017 , 5 min Read

जंग-ए-आजादी के दौरान अँग्रेजी हुकूमत से संघर्ष की ध्वनियाँ जिस तरह हिंदी साहित्य में सुनाई पड़ती थीं, उनमें राष्ट्रीय-सांस्कृतिक जीवन और चिंतन की गहरी अभिव्यक्ति होती थी। उन महाकवियों के गीतों में असीम शक्ति होती है, क्योंकि उसमें जनता का जीवन-स्पंदन, जिजीविषा और संकल्पना निहित होती थी। जीवन-संघर्ष की अंतर्ध्वनियाँ साहित्य में सहजता से निस्सृत होकर स्वर में फूटती हैं। हिंदी साहित्य के आलोचक डॉ. जीवन सिंह का कहना है कि स्वतंत्रता संग्राम में बड़े कवियों के हस्तक्षेप की शुरुआत भारतेंदु हरिश्चंद्र से शुरू होती है और मैथिलीशरण गुप्त से होती हुई निराला तक आती है। गद्य में प्रेमचंद इस दृष्टि से बड़े रचनाकार हैं।

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‘निराला’ को सबसे बड़े कवि के रूप में मान्यता देने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के समय जनता के यथार्थ को तो व्यक्त किया ही, ‘आजादी’ के बाद भी एक दशक से अधिक समय तक अंग्रेजों के लीक पर चल रही राज्य व्यवस्था से समझौता नहीं किया।

कवि महेंद्र नेह कहते हैं कि मेरी दृ्ष्टि में स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ को ही माना जाना चाहिए। यद्यपि स्वतंत्रता संग्राम में अनेक राष्ट्रवादी कवियों, माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जैसे महारथियों के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ जैसे अनेक कवियों को कुछ कम नहीं आंका जा सकता है? ‘निराला’ को सबसे बड़े कवि के रूप में मान्यता देने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के समय जनता के यथार्थ को तो व्यक्त किया ही, ‘आजादी’ के बाद भी एक दशक से अधिक समय तक अंग्रेजों के लीक पर चल रही राज्य व्यवस्था से समझौता नहीं किया।

कवि एवं पत्रकार सुरेश अवस्थी कहते हैं कि अधर्म का संहार कर धर्म स्थापना की सार्थक प्रेरणा देने वाले श्रीमदभगवत गीता के रचनाकार श्रीकृष्ण, जातिपांत व वर्ग संघर्ष के विरुध्द सेनानी तैयार करने के लिए रामराज की संकल्पना प्रस्तुत करने वाले गोस्वामी तुलसीदास, सामाजिक विसंगतियों और आडम्बर के विरुध्द शंखनाद करने वाले कबीरदास से लेकर आजादी की लड़ाई में जनमानस को अपनी कविताओं से सेनानी बनने को प्रेरित करना वाला हर कवि बड़ा है क्योंकि सभी के सृजन का उद्देश्य पवित्र था। आलोचक आशीष मिश्रा कहते हैं कि मैं राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ा कवि टैगोर को मानता हूँ और हिन्दी में निराला को। कवि शहंशाह आलम लिखते हैं- स्वतंत्रता संग्राम के सभी कवि बड़े थे, महान थे, इज़्ज़त पाने के हक़दार थे। सभी कवियों ने आज़ादी के वक़्त हमारे भीतर नई चेतना जगाई थी। गजलकार एएफ नजर लिखते हैं - स्वतन्त्रता संग्राम के दौर में मुख्य रूप से मैथलीशरण गुप्त, नागार्जुन, फैज अहमद फैज, अल्लामा मोहम्मद इकबाल, रामधारी सिंह दिनकर, जय शंकर प्रसाद, सुमित्रा नंदन पंद आदि ने भारतीय जन मानस में राष्ट्रीय चेतना, उत्साह और आशा का संचार किया

भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में हिंदी कवियों और शायरों की ओजस्वी वाणी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भला उन्हें कैसे विस्मृत किया जा सकता है। प्रस्तुत हैं अंग्रेजी राज के खिलाफ हुंकार भरने वाले देशप्रेमी कवियों, शायरों की कुछ यादगार पंक्तियां-

राम प्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।

बहादुर शाह जफर

हिंदिओं में बू रहेगी जब तलक ईमान की।

तख्त ए लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।

भारतेंदु हरिश्चंद्र

अंगरेज राज सुख साज सजे सब भारी।

पै धन विदेश चलि जात इहै अति ख्वाऱी।।

सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई।

हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखी ना जाई।।

मैथिलीशरण गुप्त

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।

वह नर नहीं है पशु निरा और मृतक सामान है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

भारती! जय विजय करे।

स्वर्ग सस्य कमल धरे।

माखन लाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं

चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं

चाह नहीं सम्राटों के सर पर हे हरि ! डाला जाऊं

चाह नहीं देवों के सिरपर चढूं, भाग्य पर इठलाऊं

मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फ़ेंक

मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जावें वीर अनेक।

रामनरेश त्रिपाठी

एक घड़ी भी भी परवशता, कोटि नरक के सम है

पल पर की भी स्वतंत्रता, सौ स्वर्गों से उत्तम है।

जयशंकर प्रसाद

हिमाद्रि तुंगश्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयंप्रभा समुंज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती

अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञा सोच लो

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो

अराति सैन्य सिन्धु में, सुबाडवाग्नि से जलो

प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो, बढ़े चलो।

जगदम्बा प्रसाद मिश्र 'हितैषी'

शहीदों के मजारों पे लगेंगे हर बरस मेले

वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।

श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,

जिससे उथल-पुथल मच जाए,

एक हिलोर इधर से आए,

एक हिलोर उधर से आए।

सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

कामता प्रसाद गुप्त

प्राण क्या हैं देश के लिए के लिए।

देश खोकर जो जिए तो क्या जिए।

इकबाल

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।

हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा।

बंकिम चन्द्र चटर्जी

वन्दे मातरम्!

सुजलां सुफलां मलयज शीतलां

शस्य श्यामलां मातरम्! वन्दे मातरम्!

पढ़ें: नहीं आता हर किसी को किताबों से प्यार करना