जनता और नगर निगम के बीच की खाई को पाटने की कोशिश, ‘जनताचौपाल’
नगर निगम से संबंधित कार्यों और समस्याओं की शिकायत के लिये मोबाइल एप्लीकेशन है ‘जनताचौपाल’...इंदौर के कुल 85 काॅर्पोरेटरों में से कम से कम 45 तो ‘जनताचौपाल’पर हैं पंजीकृत...आम जनता गूगल प्लेस्टोर से अपने एंड्राॅइड फोन पर डाउनलोड कर बन सकते है सदस्य...एडवर्ल्डटेक नामक एक स्टार्टअप के दो सहसंस्थापकों प्रभाकर सिंह और अजीत करवाडे के दिमाग की उपज है यह एप्प ...
हर्ष तोमर इंदौर मे रहते हैं और वे बीई के अंतिम वर्ष के छात्र हैं। एक छात्र के तौर पर आप रोजाना की कठोर पढ़ाई और परीक्षा में व्यस्त रहते हैं और ऐसे में घर में पानी की कमी से जूझने के बोझ से दूर ही रहना चाहते हैं। आपके जीवन में पहले से ही मुसीबतों की कोई कमी नहीं है। ऐसे में बेहद निराश हर्ष तकनीक का प्रयोग करते हुए इस समस्या से निजात पाने की कोशिश करते हैं। वे स्थानीय प्रशासन से संपर्क करने के लिये ‘जनताचौपाल’ नामक एक एप्लीकेशन का प्रयोग करते हैं। हर्ष कहते हैं, ‘‘मैं उस समय हैरान रह गया जब मैंने अपने क्षेत्र में व्याप्त पानी की समस्या के बारे में एप्लीकेशन पर पोस्ट किया और 24 घंटे से भी कम समय में संबंधित अधिकारी ने उसके बारे में प्रतिक्रिया दी।’’
‘जनताचौपाल’ इंदौर में विकसित हुई एक सोशल मीडिया आधारित मोबाइल एप्लीकेशन है जो भारत में ई-गर्वनेंस की दिशा मे आ रहे तकनीकी अंतरों को पाटने में बेहद मददगार साबित हो सकती है। एडवर्ल्डटेक नामक एक स्टार्टअप द्वारा विकसित की गई सोशल मीडिया आधारित मोबाइल एप्लीकेशन ‘जनताचौपाल’ न सिर्फ जनता को मंत्रियों के साथ जोड़ती है बल्कि जनता द्वारा सामने लाए गए मुद्दों को ‘ओपन‘, ‘इन प्रोगेस’ और ‘रिसोलव्ड’ के विकल्पों के माध्यम से प्रगति से भी रूबरू करवाती है। अभी तक फेसबुक जैसे वैश्विक सोशल मीडिया मंच पर ‘अनलाइक’ का विकल्प मौजूद नहीं है लेकिन यह एप्लीकेशन अपने उपयोगकर्ताओं को ‘अनवोट’ का विकल्प प्रदान करता है। और हाँ इस विकल्प को चुनने वालों की संख्या कोई बहुत कम नहीं है।
इंदौर में फरवरी 2015 में क्रियाशील होने के बाद से ‘जनताचौपाल’ के करीब 800 सक्रिय सदस्य हैं। इंदौर के कुल 85 काॅर्पोरेटरों में से कम से कम 45 तो स्वयं को ‘जनताचौपाल’ पर पंजीकृत करवा चुके हैं और इन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों के प्रशासनिक मुद्दों को हल करना भी प्रारंभ कर दिया है।
इसके एक और उपयोगकर्ता राजेंद्र थेरगांवकर का इंदौर के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाके छावनी में एक छपाई का कारखाना है। वे कहते हैं, ‘‘छावनी इलाके में कूड़ा-कचरा एक बहुत बड़ी समस्या है। मैं हमेशा इस समस्या को उठाता रहता था लेकिन निदान के मामले में अधिक सफल नहीं हो पाता था। इसलिये जब मैंने ‘जनताचौपाल’ के बारे में सुना तो मुझे लगा कि मुझे अपनी दिक्कत के बारे में संवाद करने का एक जरिया मिल गया है। इस प्रकार के एप्लीकेशन मेरे जैसे व्यस्त व्यक्ति को अपना समय बर्बाद किये बिना सामाजिक मुद्दों को उठाने का एक मंच प्रदान करते हैं।’’
इसके काम करने का तरीका
उपयोगकर्ता एक एप्लीकेशन को गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके बाद उन्हें एक प्रमाणिक मोबाइल मंबर और ई-मेल आईडी के साथ स्वयं को पंजीकृत करवाना पड़ता है जिसके बाद उन्हें एक सत्यापन कोड प्राप्त होता है। इसके बाद उन्हें अपने राज्य, लोकसभा क्षेत्र, विधानसभा क्षेत्र और वार्ड का चन करना होता है और वे अपने प्रोफाइल को कभी भी एडिट कर सकते हैं। एक बार रजिस्टर होने के बाद उपयोगकर्ता इस एप्लीकेशन के माध्यम से कोई मुद्दा उठाता है तो वह स्वचलित रूप से निर्वाचित सदस्य तक पहुंच जाता है जो उसकी वर्तमान स्थिति के आधार पर, अगर कार्य प्रगति में है तो ‘इन प्रोसेस’ और अगर समस्या का सफलतापूर्वक निदान कर दिया गया है तो ‘रिजोल्वड’ के विकल्प चुन सकता है। इसी प्रकार कोई भी निर्वाचित सदस्य भी अपने कामों को इसके द्वारा साझा कर सकता है या फिर बेहतर शासन के लिये अपने मतदाताओं और स्थानीय निवासियों से उनकी राय भी ले सकता है। इसके अलावा इसके माध्यम से इस ही इलाके के वे लोग जो आपस में एक दूसरे से अनिजान हैं मित्र बन जाते हैं। फोटो और वीडियो को साझा करने के विकल्प इसे अन्य प्रचलित सोशल मीडिया की तरह पभावी बना देत है।
अब सवाल यह उठता है कि ‘जनताचौपाल’ एक व्हाट्सएप समूह चैट या फिर फेसबुक पेज से कैसे बेहतर है? वार्ड संख्या 71 के काॅर्पोरेटर भरत पारिख कहते हैं, ‘‘ व्हाट्सएप समूह चैट या फिर फेसबुक पेज के माध्यम से मैं सिर्फ अपने ही वार्ड की समस्याओं के बारे में जान पाता था। तो ऐसे में जब कोई समस्या सुलझा ली जाती थी तो सिर्फ उसी विशेष समूह के उपयोगकर्ता उसके बारे में जान पाते थे। अब ‘जनताचौपाल’ के माध्यम से संपूर्ण इंदौर के लोगों को पता चलता है कि एक निश्चित क्षेत्र की समस्या को सुलझा लिया गया है। इस प्रकार यह हमें बेहतर काम करने के लिये प्रेरित करने के अलावा विकास में मामले में अन्य वार्डों से भी प्रतिस्पर्धा के लिये प्रोत्साहित करता है।’’
हालांकि यह सुविधा कई बार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर बहुत अधिक दबाव भी डाल देता है। वार्ड संख्या 65 की काॅर्पोरेटर सरिता मंगवानी कहती हैं, ‘‘मैं ‘जनताचौपाल’ को समस्याओं को लेकर 24 घंटे के भीतर प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले एक प्रभावी उपकरण के रूप में देखती हूँ। यह लोगों के बीच हमारी विश्वसनीयता को बढ़ाता है और हम उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिये और अधिक सजग होते हैं।’’
6 सदस्यों की एक न थकनेवाली टीम
‘जनताचौपाल’ एडवल्र्डटेक के दो सहसंस्थापकों पूर्व बैंककर्मी और आईटी कारोबार विश्लेषक प्रभाकर सिंह और एक बीबीए पासआउट अजीत करवाडे के दिमाग की उपज है। उन्होंने एक वर्ष पूर्व 4 अन्य सदस्यों अविनाश महाजन (सीटीओ) परियोजना प्रबंधन, अशोक मेहता (सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ) आईओएस के विकास, जितेंद्र शर्मा (सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ) एंड्राॅयड के विकास, को अपने साथ मिलाकर इसकी नींव रखी। प्रभाकर बताते हैं, ‘‘मेरा मानना है कि हमारा बेखबर होना हमारे देश में फैले भ्रष्टाचार की मुख्य वजह है। क्या आपको पता है कि टिन नंबर लेने के लिये किसी भी प्रकार का शुल्क देने की आवश्यकता नहीं पड़ती और इसे सिर्फ एक आॅनलाइन फाॅर्म भरकर प्राप्त किया जा सकता है? आम लोगों के इस आराम से मिलने वाले टिन नंबर को लेने के लिये सरकारी कार्यालयों में मौजूद दलालों को 10 हजार रुपये तक देने पड़ते हैं। मैं बीते काफी समय से ई-गर्वनेंस और डिजिटल भारत के बारे में सुनता आ रहा था लेकिन इन्हें संभव करने वाले उपकरण कहां थे? अपना खुद का एक व्यासाय शुरू करने का मेरा सपना एक ऐसी एप्लीकेशन तैयार करने का था जो लोगों के जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक हो।’’
एडवल्र्डटेक की यह टीम अबतक 5 राष्ट्रीय व्यापार प्लैन प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है जिनमें से तीन में ये विजेता रहे हैं और अपने स्टार्टअप को जारी रखने के लिये आवश्यक धन की भी व्यवस्था करने में सफल रहे हैं। नतीजतन वे अबतक बिना लाभ-हानि के व्यापार करने में सफल रहे हैं। इन्होंने लगातार काम करके 15 हजार से भी अधिक परिवारों का सर्वेक्षण पूरा किया जिसने इन्हें अपनी एप्लीकेशन को शुरू करने से पहले बाजार की जानकारी लेने और गुंजाइश को जानने में मदद की। इस शोध के माध्यम से इन्हें पता चला कि 90 प्रतिशत स्थानीय निवासियों को अपने काॅर्पोरेटरों के बारे में जानकारी ही नहीं है; 85 प्रतिशत किसी भी माध्यम के सहारे किसी भी निर्वावित जनप्रतिनिधि से जुड़े हुए नहीं हैं और इनमें से 70 प्रतिशत एंड्राॅइड फोन का प्रयोग करते हैं।
अजितेश कहते हैं, ‘‘हम जल्द ही पैसा कमाने में भी कामयाब होंगे और हम इस बात को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं। हम कुछ बेहतरीन काॅमर्शियल एप्लीकेशन तैयार करने की प्रक्रिया में हैं। हम अगले लोक सभा चुनावों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं क्योंकि हमारे पास प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित पर्याप्त डाटा है जो भविष्य में सरकार और अनुसंधान संस्थानों के लिये बहुत फायदेमंद हो सकता है।’’
ये बेहद ताज्जुब की बात है कि आज जब सोशल मीडिया और मोबाइल एप्लीकेशन के क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्धा का दौर है ऐसे में इस स्टार्टअप का अबतक कोई प्रतिद्वंदी सामने नही आया है। इसके संस्थापकों का मानना है कि ‘जनताचौपाल’ ‘एक अलग प्रकार का और विश्व का पहला राजनीतिक सोशल मीडिया एप्लीकेशन’ है। वे अब फंडिंग के लिये कुछ पूंजिपतियों के साथ वार्ता करने के अलावा इसके पेटेंट की प्रक्रिया भी कर रहे हैं।
हालांकि इनमें से कोई भी विलंब इनके हौसलों को डिगाने में कामयाब नहीं रहा है। ये अभी तक अपने दम पर बिना पैसे और किसी मार्गदर्शक के शोध करते रहे हैं। प्रभाकर जोड़ते हैं, ‘‘मेरा मानना है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था किसी विशेष सरकार द्वारा नहीं बल्कि तकनीक के दम पर लाई जा सकती है। आने वाला समय तकनीक का है और लोग बाहें फैलाकर इसका स्वागत कर रहे हैं।’’ जैसे-जैसे इसकी सफलता के चर्चे इंदौर की व्यस्त सड़को से दूसरे शहरों में फैल रहे हैं हो सकता है ‘जनताचौपाल’ को देश के अन्य भागों से भी प्रशंसक और उपभोक्ता मिलें।