और, उसने लॉगिन कर ली अपनी दुनिया
अब चाहे उन्हें फूल पत्ती वाली कवयित्रियां कहो या उदंड, बेबाक स्त्रियां। सारी हदबंदिया टूट गईं हैं...
"औरत ने तकनीक के सहारे अपनी दुनिया खोज ली और रचनात्मकता के दम पर उसका विस्तार कर लिया। मर्दों की बनाई दुनिया और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित समय में अपना हिस्सा कब्जा लेना कोई उनसे सीखे। अब उनका चुप रहना बीते हुए कल की बात हो गयी है, आज चाहे राजनीतिक मुद्दा हो या धार्मिक एवं या अन्य कोई भी ऐसा मुद्दा जो स्त्रियों के जीवन को प्रभावित करता है, स्त्रियाँ मुखर होकर अपनी बात रखने लगी हैं।"
सोशली मीडिया के आने के बाद औरत मन की बातों को अब ताले में बंद करके नहीं रखती, बल्कि खुलकर बताती है। वो हवा में अपने स्वर का हिस्सा चाहती है। वो चाहती है, कि उसकी बात सुनी जाए और इसके लिए आज वो किसी की मोहताज़ नहीं हैं।
सोशल मीडिया ने औरत को एक मंच प्रदान किया हुआ है, जिसमें वो अपनी रचनात्मक क्षमता का प्रयोग कर सकती है। वो किसी भी उद्वेलित करती हुई घटना पर अपनी रचना लिख सकती है। उसके शब्द अब किसी समीक्षक या आलोचक के रहमो करम पर नहीं हैं। उसकी रचना किसी भी प्रशंसा से मुक्त है।
"सोशल मीडिया के माध्यम से स्त्रियों में जो रचनात्मक विस्फोट दिख रहा है, वह अचानक से नहीं आया है बहुत पहले से भरा पड़ा था, लेकिन उसके पास कोई ज़रिया नहीं था अपनी बात को इतनी बहादुरी से सामने रखने का। बात को कहने का मंच बदल गया है। सदियों से सांस्कृतिक विरासतों को संभाल कर रखने की जिम्मेदारी स्त्रियों के कंधे पर ही है, फिर चाहे वह लोकगीत हों या विवाह में गाए जाने वाले गीत। नागपंचमी, रक्षाबंधन पर रोचन रचने की बात हो या भाई दूज में भैया को सही सलामत बनाए रखने की कथाएँ, सभी स्त्रियों ने अपनी स्मृतियों के माध्यम से अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को सौंपी हैं।"
सदियों तक भारत में श्रुति ज्ञान की परम्परा रही है और स्त्रियाँ इस श्रुति में ही अपनी दुनिया खोजती रहीं और जीतीं रहीं, अपने रचनात्मक संसार को बसाती रहीं। मगर आज स्त्रियाँ न केवल इस श्रुति परम्परा से बाहर आईं, बल्कि उन्होंने अपनी रचना की नई दुनिया भी खोज ली। अपने काम और घर के बीच स्त्रियों के बीच एक रिक्त रचनात्मक स्थान था और स्त्रियों में इस रिक्तता को भरने की बेचैनी भी थी। इस बेचैनी और अंतर्द्वंद को फेसबुक जैसे सोशल प्लेटफॉर्म ने एक मंच दिया और स्त्रियों ने इस मौके को दोनों ही हाथों से लपक लिया। उन्हें व्यस्त जीवन की कुंठा और अपने साथ होने वाले भेदभावों को दुनिया के सामने रखने का एक अवसर मिला।
"सोशल मीडिया ने स्त्रियों की छिपी हुई रचनात्मकता को सामने लाकर उन्हें एक सेलिब्रिटी के भाव के साथ कई अपरिचितों के साथ संवाद स्थापित करने का भी मौक़ा दिया"
फेसबुक/ट्विटर ने स्त्री को एक तरफ तो दुनिया के सामने अपनी रचनात्मकता को लाने का मौक़ा दिया, वहीं दूसरी तरफ उनकी निजता को भी बनाए रखने का मौक़ा दिया। यहां छद्म पहचान के माध्यम से लिखा जा सकता है और सोशल मीडिया पर लाखों पाठक हैं। स्त्री अपने अनुसार यहां पाठक चुन सकती है, जो अभद्रता करें उन्हें ब्लॉक करने का भी विकल्प मौजूद है। सोशल मीडिया ने स्त्रियों की छिपी हुई रचनात्मकता को सामने लाकर उन्हें एक सेलिब्रिटी के भाव के साथ कई अपरिचितों के साथ संवाद स्थापित करने का भी मौक़ा दिया।
सोशल मीडिया के धुरंधर प्रयोग से कई स्त्रियों ने अपनी एक ख़ास पहचान बनाई है। यहां ये वो सबकुछ रच सकती हैं, जो वे रचना चाहती थीं। जहां न विचारधारा की दीवार है और न ही कुछ और बंधन! यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि सोशल मीडिया स्त्रियों की रचनात्मकता के लिए एक वरदान बनकर आया और उसने स्त्री को उसकी एक नई पहचान दी।