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अरबपति की बेटी हिना बन गईं जैन साध्वी विशारदमाला

कारोबारी की बेटी क्यों बन गई साध्वी?

हिना हिंगड़ सूरत (गुजरात) की अब नई पहचान साध्वी विशारदमाला हो गई है। 28 साल की हिना ने अध्यात्मिक गुरु आचार्य विजय यशोवर्मा सुरेश्वरजी महाराज से पूरे विधि-विधान के साथ जैन दीक्षा ग्रहण की है। उनके पिता अशोक कुमार यार्न के अरबपति कारोबारी हैं। हिना अहमदनगर विश्वविद्यालय की एमबीबीएस गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं।

हिंना हिंगड़

हिंना हिंगड़


 अप्रैल 2018 में सूरत के एक हीरा व्यापारी का 12 वर्षीय बेटा भव्य शाह जैन भिक्षु बन गया। उसी महीने मुंबई के प्रतिष्ठित हीरा व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले सीए मोक्षेश करोड़ों की संपत्ति छोड़ जैन भिक्षु बन गए।

जीवन से ऐसी विरक्ति, आज के अर्थप्रधान युग में, जबकि एक-एक इंच जमीन के लिए भाई अपने मां-बाप, भाई-बहन को क्षमा करने के लिए तैयार नहीं, अरबों की संपत्ति छोड़कर कोई साधु बन जाए, सुनकर किसी को भी अचरज हो सकता है लेकिन यह सिद्ध कर दिखाया है अरबपति पिता की गोल्ड मेडलिस्ट एमबीबीएस डॉक्टर बेटी हिना हिंगड़ ने, जिन्होंने जैन भिक्षु की दीक्षा ले ली है। अब हिना हिंगड़ से बदलकर उनका नाम हो गया है साध्वी विशारदमाला। वह एमबीबीएस टॉपर रही हैं। दरअसल, बड़े कारोबारियों की उच्च शिक्षाप्राप्त सुयोग्य संतानें मोह-माया से विमुख होकर जैन भिक्षु बनने लगी हैं। जून 2017 से अब तक कई श्रद्धालु अपने करोड़पति-अरबपति घर-परिवार से नाता तोड़कर जैन धर्म की दीक्षा ले चुके हैं। यह विरक्ति धन-संपत्ति के प्रति त्याग की पराकाष्ठा का आज सबसे जीवंत उदाहरण मानी जा सकती है।

जून 2017 में गुजरात बोर्ड के 12वीं (कॉमर्स) के टॉपर वर्षील शाह ने जैन धर्म में दीक्षा ली थी। सितंबर 2017 मध्य प्रदेश के एक दंपति ने अपनी 3 साल की बच्ची और 100 करोड़ की संपत्ति को छोड़ जैन धर्म में दीक्षा ले ली। अप्रैल 2018 में सूरत के एक हीरा व्यापारी का 12 वर्षीय बेटा भव्य शाह जैन भिक्षु बन गया। उसी महीने मुंबई के प्रतिष्ठित हीरा व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले सीए मोक्षेश करोड़ों की संपत्ति छोड़ जैन भिक्षु बन गए। मोक्षेश का परिवार जेके कॉर्पोरेशन का मालिक है, जिनकी डायमंड, मेटल और शुगर इंडस्ट्रीज हैं। मोक्षेश का कहना है कि वह अब एक विनम्र छात्र के रूप में धर्म का 'ऑडिट' करना चाहते हैं। मोक्षेश ने दसवीं क्लास में 93.38 फीसदी और 12वीं में 85 फीसदी अंक प्राप्त किए थे। इसके बाद उन्होंने एचआर कॉलेज से कॉमर्स की पढ़ाई की। इसी दौरान उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई भी की और सांगली में परिवार का मेटल बिजनस जॉइन किया। हिना से पहले भिक्षु बन चुके भव्य शाह को परफ्यूम और महंगी कारों का शौक रहा है। आखिरी दिन उनके घर वालों और दोस्तों ने उनका ये शौक एक बार पुनः पूरा किया। उन्हे फरारी गाड़ी में बैठाकर घुमाया था।

उल्लेखनीय है कि जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते हैं। संभेद्रिखर, राजगिर, पावापुरी, गिरनार, शत्रुंजय, श्रवणबेलगोला आदि जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ हैं। पर्यूषण या दशलाक्षणी, दिवाली और रक्षाबंधन इनके मुख्य त्योहार हैं। अहमदाबाद, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल आदि के अनेक जैन आजकल भारत के अग्रणी उद्योगपति और व्यापारियों में गिने जाते हैं। जैन धर्म के उद्भव की स्थिति अस्पष्ट है। जैन ग्रंथों के अनुसार धर्म वस्तु का स्वाभाव समझाता है, इसलिए जब से सृष्टि है, तब से धर्म है, और जब तक सृष्टि है, तब तक धर्म रहेगा, अर्थात् जैन धर्म सदा से अस्तित्व में था और सदा रहेगा।

इतिहासकारों द्वारा जैन धर्म का मूल भी सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ा जाता है, जो हिन्द आर्य प्रवास से पूर्व की देशी आध्यात्मिकता को दर्शाता है। सिन्धु घाटी से मिले जैन शिलालेख भी जैन धर्म के सबसे प्राचीन धर्म होने की पुष्टि करते हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार वर्तमान में प्रचलित जैन धर्म भगवान आदिनाथ के समय से प्रचलन में आया है। यहीं से जो तीर्थंकर परम्परा प्रारम्भ हुई। वह भगवान महावीर या वर्धमान तक चलती रही, जिन्होंने ईसा से 527 वर्ष पूर्व निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान महावीर के समय से पीछे कुछ लोग विशेषकर यूरोपियन विद्वान् जैन धर्म का प्रचलित होना मानते हैं। उनके अनुसार यह धर्म बौद्ध धर्म के पीछे उसी के कुछ तत्वों को लेकर और उनमें कुछ ब्राह्मण धर्म की शैली मिलाकर खडा़ किया गया। जिस प्रकार बौद्धों में 24 बुद्ध हैं, उसी प्रकार जैनों में भी 24 तीर्थंकर हैं।

हिना हिंगड़ ने सूरत (गुजरात) में पूरे विधि-विधान और जैन परंपरा के अनुसार दीक्षा ग्रहण की है। हिना कुमारी की अब नई पहचान साध्वी श्री विशारदमाला हो गई है। 28 साल की हिना ने अध्यात्मिक गुरु आचार्य विजय यशोवर्मा सुरेश्वरजी महाराज से दीक्षा ली है। अहमदनगर विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हिना पिछले तीन वर्षों से प्रैक्टिस कर रही थीं। वह अपने छात्र जीवन में ही अध्यात्म में रमने लगी थीं। उनके इस फैसले का परिवार वालों ने विरोध किया लेकिन वह अपने फैसले पर अडिग रहीं और आखिरकार उनके परिजनों को हिना की इच्छा का सम्मान करना पड़ा। हिना का मानना है कि सांसारिक जीवन छोड़कर जैन भिक्षु बन जाना हर किसी के बस की बात नहीं है।

हिना अपनी छह बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनका परिवार मूल रूप से घाणेराव (पाली, राजस्थान) का रहने वाला है। पिता अशोक कुमार का यार्न का कारोबार है। पिछले पांच वर्षों से वह मुंबई में रह रहे हैं। एमबीबीएस टॉपर रहीं हिना हिंगड़ पिछले कई सालों से अपने परिजनों को सन्यास के लिए मना रही थीं। हिना ने दीक्षा से पहले जरूरी 48 दिनों का ध्यान पूरा किया। आचार्य विजय बताते हैं कि हिना ने अपने पिछले जन्म में किए गए ध्यान और श्रद्धा की वजह से जैन धर्म की दीक्षा लेना स्वीकार किया है। इतनी कम उम्र और पढ़ी-लिखी भिक्षु बनने वाली हिना कोई पहली नहीं हैं। इससे पहले भी कइयों ने संसारिक जीवन त्याग कर संन्यास का रास्ता स्वीकारा है।

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