Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

IIM ग्रेजुएट गरिमा विशाल ने शिक्षा से वंचित बच्चों में जगाई शिक्षा की अलख

बिहार की 28 वर्षीय गरिमा विशाल ने शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करने के लिए देश में लागू शिक्षा प्रणाली से अलग हट कर नई शिक्षा प्रणाली के साथ एक बेहतरीन सफर की शुरुआत की है।

IIM ग्रेजुएट गरिमा विशाल ने शिक्षा से वंचित बच्चों में जगाई शिक्षा की अलख

Wednesday May 03, 2017 , 7 min Read

2011 में, जब गरिमा भुवनेश्वर में इंफोसिस के लिए काम कर रही थीं, तब उन्हें अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का एहसास हुआ। वे जहां रहती थीं, वहां उनके पड़ोस में कुछ ऐसे बच्चे भी रहते थे, जो कभी स्कूल नहीं गये थे। मालूम करने पर जब गरिमा ने ये जाना कि आसपास के इलाकों में दूर-दूर तक ऐसा कोई स्कूल नहीं, जहां उन गरीब बच्चों का भी दाखिला करवाया जा सके, तो उन्होंने उन बच्चों को खुद पढ़ाने का फैसला लिया। सफर आसान तो नहीं था, लेकिन लोग मिलते गये कारवां बनता गया।

image


गरिमा जब तक भुवनेश्वर में रहीं तब तक सबकुछ बढ़िया चला, लेकिन जब उनका वहां से जाने का समय आया तब गरिमा को एहसास हुआ कि उन्हें बच्चों की इवनिंग क्लासिज़ को बंद करना होगा। ऐसे में ये सुनिश्चित करने के लिए कि उनका प्रयास व्यर्थ न जाये, गरिमा ने ज्यादातर बच्चों को मामूली फीस के साथ निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवा दिया।

2014 में स्थापित बिहार के मुजफ्फरपुर में ‘डेजावू स्कूल ऑफ इनोवेशन’ में तीन-स्तंभ शिक्षा प्रणाली (three-pillar education system) का अनुसरण किया जाता है। मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग स्नातक और IIM लखनऊ से MBA की पढ़ाई करने वाली गरिमा विशाल बिहार के सेलर शहर से हैं। गरिमा कहती हैं,

'मेरे पिता ने हमेशा मुझे और मेरे भाई-बहनों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि वे आज के समाज में शिक्षा का महत्व समझते हैं। मैं अपने शहर की पहली महिला स्नातक थी, जिसने मुझे और मेरे माता-पिता को प्रेरणा के साथ लंबे समय तक बच्चों को शिक्षित करने के लिए नैतिक दायित्व भी दिया।'

साल 2011 की बात है, उन दिनों गरिमा भुवनेश्वर में इंफोसिस के लिए काम कर रही थीं। उन्हें अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का एहसास हुआ। उनके पड़ोस में कुछ बच्चे थे, जो कभी भी स्कूल नहीं गये थे। गरिमा को ये जान कर आश्चर्य हुआ कि आसपास के इलाकों में कोई ऐसा कोई स्कूल नहीं था जहाँ ये बच्चे जा सकते हों। उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मलि रहा था। वे बच्चे गुजरात के एक ऐसे समुदाय से थे, जिनके लिए शहर के उड़िया माध्यम के सरकारी स्कूलों में खुद को समायोजित करना बेहद मुश्किल था। गरिमा ने 30 ज़रूरतमंद बच्चों से अपने काम की शुरूआत की, जिसमें गरिमा बच्चों को अॉफिस से लौटने के बाद शाम के समय गणित, अंग्रेजी और हिन्दी पढ़ाती थीं। इसी बीच उनके साथ सबसे अच्छी बात ये हुई कि किसी ने उन गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना कमरा उन्हें दे दिया। बच्चों के साथ अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए, गरिमा कहती हैं,

'मैं वास्तव में इन बच्चों की मदद करना चाहती थी। माता-पिता भाषा की बाधा के कारण असहाय स्थिति में थे, लेकिन बच्चे अच्छी हिंदी बोल लेते थे। शुरू में माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए नहीं भेजना चाहते थे, क्योंकि उन्हें बच्चों के पढ़ने के बजाय उनका काम करना ज्यादा पसंद था। लेकिन अंततः उन्होंने बहुत उत्साहित हो कर हमारा सहयोग किया'

गरिमा जब तक भुवनेश्वर में रहीं तब तक सबकुछ बढ़िया चला, लेकिन जब उनका वहां से जाने का समय आया तब गरिमा को एहसास हुआ कि उन्हें बच्चों की इवनिंग क्लासिज़ को बंद करना होगा। ऐसे में ये सुनिश्चित करने के लिए कि उनका प्रयास व्यर्थ न हो जाये, गरिमा ने ज्यादातर बच्चों को मामूली फीस के साथ निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवा दिया।

image


डेजावू स्कूल ऑफ़ इनोवेशन सभी प्रकार की पृष्ठभूमि से आने वाले प्राथमिक स्तर के लगभग 100 से अधिक छात्रों को शिक्षा दे रहा है, विद्यालय के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर लागत और जगह, गरिमा और उसके ससुराल वालों द्वारा वहन किया जाता है। विद्यालय में प्रति माह 800 रुपये की मामूली फीस ली जाती है, जिसे माता-पिता की वित्तीय स्थिति को देखते हुए कम भी कर दिया जाता है।

‘डेजावू स्कूल ऑफ़ इनोवेशन'

भुवनेश्वर में बच्चों को पढ़ाने के बाद, गरिमा के लिए पीछे मुड़ कर देखने का कोई मौका नहीं आया। वो बिहार के मुजफ्फरपुर चली आईं। शिक्षा के क्षेत्र में अपने काम को जारी रखने की इच्छा के साथ गरिमा ने शहर में एक स्कूल खोलने का फैसला किया। ये देखते हुए कि शहर और राज्य के अधिकांश विद्यालयों ने अकादमिक विषयों को महत्व दिया है और व्यक्तित्व और बच्चों के समग्र विकास पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है, उन्होंने एक नया दृष्टिकोण तैयार करने का निर्णय लिया। इस प्रकार से ‘डेजावू स्कूल ऑफ़ इनोवेशन’ के विचार ने जन्म लिया।

ये नाम डेजा+वू के संयोजन से बना है, जहां डेजा का मतलब है कि वर्तमान स्थिति का अनुभव पहले से ही होना (स्कूल का माहौल ऐसा है, जैसे बच्चों को लगता है कि वे पहले से ही इस जगह पर आ चुके हैं, इकदम घर जैसा) और वू का अर्थ है खुशी की भावना। स्कूल के बारे में बात करते हुए गरिमा कहती हैं,

'इस विद्यालय का लक्ष्य न केवल शिक्षा प्रदान करना है, बल्कि नवाचार और विचारधारा की स्वतंत्रता के व्यक्तित्व और संस्कृति को भी विकसित करना है। स्कूल ने कई लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। मैंने प्रत्येक स्तंभ में कई अभिनव तकनीकों को लागू किया है। मेरे पास डॉक्टरों और इंजीनियरों की एक टीम है, जो मुझे स्कूल के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती हैं।'

गरिमा के अनुसार शिक्षा प्रणाली के तीन स्तंभ होते है- शिक्षक, छात्र व माता-पिता और इस प्रणाली में बच्चों के समग्र विकास के लिए सभी तीन स्तंभों पर समान रूप से ध्यान दिया जाता है। गरिमा का स्कूल उन उच्च शिक्षित महिलाओं को रोजगार देता है जो शादी के बाद काम नहीं कर रही होती हैं। इन शिक्षिकाओं को कक्षा के बाद प्रतिदिन लगभग एक से दो घंटे तक प्रशिक्षित किया जाता हैं, इसके अतिरिक्त पेशेवर शिक्षकों की भी भर्ती की गयी है। गरिमा कहती हैं, 

'ये व्यक्ति और समाज दोनों के लाभ के लिए समाज की अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग करने का एक प्रयास है।'

शिक्षा प्रणाली के दूसरे स्तंभ के बारे में बात करते हुए गरिमा कहती हैं, 

'छात्रों के लिए पाठ्यक्रम दुनिया भर के कार्यक्रमों के कई शोध और विश्लेषण के बाद तैयार किया गया है। हम सभी कक्षाओं के लिए गतिविधि आधारित शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। प्रत्येक बच्चे पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि प्रत्येक बच्चा अद्वितीय होता है। प्रत्येक बच्चे के मानसिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास की निगरानी करने और विशेष कमजोरियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए हम पॉल एच ब्रुस पब्लिशिंग कंपनी, लंदन द्वारा डिजाइन किए गए ASQ (Age Stage Questionnaire) का उपयोग करते हैं। संक्षेप में, हम बच्चे के मस्तिष्क और शरीर के दोनों हिस्से, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का ख्याल रखते हैं।"

बच्चों को पढ़ाने के दौरान जमीन की वास्तविकता को समझने के बाद तीसरे स्तंभ की स्थिति स्पष्ट हुई। गरिमा को एहसास हुआ कि बच्चे स्कूल में चार से पांच घंटे तक रहते हैं, जबकि घर पर अधिक समय बिताते हैं, जहां एक सोच का निर्माण होता और बच्चों की सीखने की अवस्था होती है। इसलिए गरिमा का स्कूल समय-समय पर अभिभावकों को भी प्रशिक्षण देता है। बच्चों के समग्र विकास के लिए स्कूल बाल चिकित्सा विशेषज्ञ, भौतिक चिकित्सक और विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर अतिथि व्याख्यान आयोजित करता है। माता-पिता को इंटरनेट, ईमेल आदि का उपयोग करने के बारे में जानकारी दी जाता हैं और यहां तक कि मोबाइल का उपयोग करना भी सिखाया जाता है। इसके द्वारा स्कूल को उन माहौल में भी (जहां माता-पिता को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा या किसी भी प्रकार की शिक्षा नहीं मिल पाई थी) सांस्कृतिक परिवर्तन लाने की उम्मीद है। डेजावू स्कूल ऑफ़ इनोवेशन सभी प्रकार की पृष्ठभूमि से आने वाले प्राथमिक स्तर के लगभग 100 से अधिक छात्रों को शिक्षा दे रहा है, विद्यालय के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर लागत और जगह, गरिमा और उसके ससुराल वालों द्वारा वहन किया जाता है। विद्यालय में प्रति माह 800 रुपये की मामूली फीस ली जाती है, जिसे माता-पिता की वित्तीय स्थिति को देखते हुए कम भी कर दिया जाता है।

image


भविष्य की योजनाओं पर बात करते हुए गरिमा कहती हैं, 'हम बिहार के अन्य हिस्सों में भी उसी मॉडल को दोहराने और अपनी क्षमता और पहुंच की सीमा तक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की योजना बना रहे हैं। मैं चाहती हूं कि लोगों को इस पहल के बारे में मालूम चले और लोग इस से प्रेरणा लें। जो लोग अभी भी समाज में परिवर्तन लाने के बारे में सोच रहे हैं, वे परिवर्तन का माध्यम बन सकते हैं और अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।'

-प्रकाश भूषण सिंह