‘फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ 200 बच्चे पा रहे हैं मुफ्त शिक्षा
वो जो स्कूल के दरवाजे खोलता है, जेलों के दरवाजे बंद करता है-फ्रेंच लेखक, विक्टर ह्यूगो ने मेट्रो ब्रिज के नीचे खोला स्कूल...गरीब बच्चों को दे रहे हैं मुफ्त में शिक्षा...200 बच्चे पढ़ते हैं इस अनोखे स्कूल में।
देश की राजधानी दिल्ली में जहाँ लोग भाग दौड़ भरी जिंदगी में मसरूफ़ हैं वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो समाज की बेहतरी के लिए तन, मन और धन लगा रहे हैं. दिल्ली की लाइफ लाइन कही जाने वाली मेट्रो के ब्रिज के नीचे एक अनोखा स्कूल है। इस स्कूल का नाम है ‘फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’, यह आम स्कूल की तरह काम शिक्षा बांटने का करता है लेकिन यहां स्कूल जैसा कोई भी ढांचा मौजूद नहीं है। ना ही बेंच है और ना ही कुर्सियां। सिर्फ ज़मीन पर दरी और एक ब्लैक बोर्ड है. गर्मी, सर्दी और बारिश के दिनों में बच्चे इस खुले स्कूल में ही बैठने को मजबूर हैं, बस एक ही सहारा है वह मेट्रो ब्रिज का जो बच्चों को धूप और बारिश से बचाता है।
यह स्कूल लक्ष्मी चंद्र और राजेश शर्मा की इच्छाशक्ति से चल रहा है. इस स्कूल में एक दो नहीं बल्कि दो सौ ग़रीब बच्चे मुफ्त में शिक्षा हासिल करने और अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए आते हैं. ये बच्चे उन परिवारों से आते हैं जो बेहतर अवसर की वजह से गांवों और छोटे शहरों से पलायन कर दिल्ली आ बसे हैं। 2010 से लक्ष्मी चंद्र और राजेश शर्मा दिल्ली के यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास स्कूल चला रहे हैं। इनकी ईमानदार कोशिश की वजह से उन गरीब परिवारों के बच्चों का भविष्य संवर रहा है जिनके पास खाने को तीन पहर का भोजन नहीं. ऐसा ही कुछ अतीत लक्ष्मी चंद्र का भी रहा है। लक्ष्मी चंद्र के माता पिता बेहद गरीब थे और लक्ष्मी ने शिक्षा हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की है। आज भी लक्ष्मी अपने वे संघर्ष के दिन भूलते नहीं. वे कहते हैं,
‘मेरे गुरु ने मुझे शिक्षा दी और बदले में मुझसे पैसे नहीं लिए। गुरु का वह सकारात्मक प्रभाव आज भी मुझपर कायम है और मैं उसे आगे बढ़ा रहा हूँ। मैं परोपकार के लिए बच्चों को पढ़ाता हूं क्योंकि ग़रीब परिवार अपने बच्चों को पैसे देकर पढ़ाने में असमर्थ है।’
आज ‘फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ में 200 बच्चे मुफ्त में शिक्षा पा रहे हैं और साथ ही एक बेहतर इंसान बनने के गुण सीख रहे हैं. यह स्कूल उन्हें आत्मनिर्भर होने की दिशा में एक राह दिखा रहा है. यहां बच्चों को गणित, विज्ञान, अंग्रेजी समेत अलग अलग विषय पढ़ाए जा रहे हैं. लक्ष्मी चंद्र कहते हैं कि 1996 में दिल्ली में आने के बाद से वे पढ़ाने के काम जुटे हुए हैं। शुरुआती दिनों को याद करते हुए लक्ष्मी चंद्र कहते हैं, ‘जब मैं बिहार से पढ़ाई पूरी कर दिल्ली आया तो मुझे इन्हीं झुग्गी झोपड़ियों में रहने की जगह मिली और मुझे यह महसूस हुआ कि क्यों न जिन लोगों ने मेरी मदद की है, बदले में मैं भी कुछ दूं. मैंने 1996 से गरीब परिवारों के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया. मैंने जो मुश्किल हालात अपने युवास्था में देखे हैं, मैं वह कभी नहीं भूल सकता और इसी कारण मैंने मेट्रो ब्रिज के नीचे पढ़ाने का काम शुरू किया।’ लक्ष्मी चंद्र कहते हैं कि शिक्षा सभी का अधिकार है और शिक्षा के कारण ही मानसिकता में बदलाव आता है. 2010 में जब इस स्कूल की शुरुआत हुई तो उन्हें अनगिनत परेशानियों का सामना करना पड़ा. सबसे बड़ा संकट बच्चों के बैठने का था. वहां गंदगी की भरमार थी और असमाजिक तत्वों का डेरा. ऐसे में लक्ष्मी चंद्र ने हार नहीं मानी और सच्ची कोशिश की। शुरु में बच्चों के पढ़ने के लिए कॉपी, किताब, पेंसिल और पीने का पानी का भी इंतजाम नहीं था. लेकिन वक्त के साथ यह इंतजाम भी होता चला गया। लक्ष्मी चंद्र कहचे हैं कि शुरुआती दिनों में लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया लेकिन बच्चों को पढ़ाने का जज्बा इस कदर था कि इन चीजों ने कभी उनका ध्यान नहीं खींचा। लक्ष्मी चंद्र कहते हैं कि शुरुआती दिनों में छोटी छोटी जरूरतें पूरी करने में काफी दिक्कतें पेश आती थीं. उन्होंने कबाड़ से बैठने के लिए चटाई और मैट का इंतजाम किया. धीरे धीरे लोग भी इस स्कूल के बारे में जानने लगे और पढ़ने के लिए जरूरी सामान दान करने लगे लेकिन किसी से आर्थिक मदद नहीं मिली. लक्ष्मी चंद्र कहते हैं,
‘जब मैं उन परिवारों के घरों में जाता हूं जहां के बच्चे हमारे यहां पढ़ने आते हैं, मुझे उनसे मिलने वाली प्रशंसा से काफी उत्साह मिलता है. वे कहते हैं कि हमारे बच्चे आपके यहाँ पढ़ने जाते हैं और अब वे स्कूल जाने से हिचकते नहीं। वे रात को भी किताब खोलकर पढ़ने बैठते हैं. बच्चे अपने अभिभावकों से कहते हैं कि वे भी जीवन में सफल व्यक्ति बनना चाहते हैं। मुझे यह सुनकर बहुत गर्व महसूस होता है. मुझे लगता है कि वाकई में हम समाज में बदलाव लाने के लिए कुछ कर रहे हैं।’
लक्ष्मी चंद्र अपनी एक छात्रा फरीन के बारे में बताते हैं कि वह दसवी में अंग्रेजी में 80 फीसदी नंबर लेकर आई थी और अब वह बारहवीं क्लास में पढ़ाई कर रही है। फरीन जैसे न जाने कितने बच्चे फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज में पढ़कर अपना भविष्य संवार रहे हैं। लक्ष्मी चंद्र कहते हैं कि परिवार की आर्थिक दिक्कतों के बावजूद उन्हें गरीब बच्चों को पढ़ाने में आनंद आता है. उनके दो बच्चे हैं, बेटी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और बेटा ग्रैजुएशन में है. बेटा भी अपने पिता के स्कूल में बच्चों को पढ़ाता है। लक्ष्मी चंद्र कहते हैं,
‘मेरा बेटा दिपांशु भी मेरी विचारधारा से प्रभावित है और बच्चों को पढ़ाने में खूब दिल लगाता है. उसे ऐसा करता देखा मुझे बहुत खुशी होती है।’
लक्ष्मी चंद्र आगे भी इस स्कूल को इसी तरह से चलाना चाहते हैं लेकिन आर्थिक मदद की कमी और बुनियादी ढांचा नहीं होने के कारण वे स्कूल का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं।