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बंजारों को स्थायित्व और पहचान दिलाने में जुटीं पत्रकार मित्तल पटेल की अनूठी कोशिश

बंजारों को स्थायित्व और पहचान दिलाने में जुटीं पत्रकार मित्तल पटेल की अनूठी कोशिश

Tuesday December 01, 2015 , 7 min Read

72 हजार बंजारों के बनवाये वोटर आईकार्ड...

60 लाख रुपये से ज्यादा का बांटा लोन...

वोकेशनल ट्रेनिंग और घर बनाने में करते हैं मदद...


कभी आप किचन में इस्तेमाल होने वाली छुरी की धार तेज करने वालों से मिले हैं या आपने रस्सियों पर चलने वाले किसी नट को देखा है या फिर कभी सपेरे के खेल का मजा लिया है। भले ही अब ऐसे लोग मुश्किल से दिखाई देते हों लेकिन क्या कोई इस बात पर यकीन करेगा कि हमारे देश में ऐसे लोगों की आबादी करोड़ों में है जिनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। जिनके पास वो सुविधाएं नहीं हैं जो किसी आम भारतीय नागरिक के पास होते हैं। ये वो लोग हैं जिनको आप और हम खानाबदोश या बंजारा जनजाति के नाम से जानते हैं और इनके इसी हक की लड़ाई लड़ रही है गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली मित्तल पटेल। जो कभी पत्रकार बन यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थीं लेकिन आज ये खानाबदोश समुदाय के लोगों को ना सिर्फ उनके अधिकार दिला रही हैं बल्कि उनके विकास के लिए उम्मीदों के नये दरवाजे भी खोल रही हैं।

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मित्तल पटेल जब पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही थी तो उसी सिलसिले में उनको ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिला। तब इनको पता चला कि अकेले गुजरात में सरकारी दस्तावेजों में 28 खानाबदोश जनजातियां हैं, जबकि 12 और ऐसी जनजातियां थी जो किसी सरकारी कागज में दर्ज नहीं थी। घुमंतू होने के कारण इनके पास सबसे बड़ा संकट था अपनी पहचान का। जैसे इनके पास वोटर आईकार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट कुछ भी नहीं था, क्योंकि सदियों से वो अपने व्यवसाय के कारण एक गांव से दूसरे गांव घूमा करते थे। ये लोग ऐसा कोई काम नहीं करते हैं जो एक जगह रहकर ज्यादा दिन तक किया जा सके।इनका कोई एक ठिकाना नहीं होता था इस वजह से जैसे आम लोगों का कोई ना कोई मूल निवास होता है वैसा इनके पास नहीं था।

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शुरूआत में मित्तल पटेल चाहती थीं कि वो सरकार और खानाबदोश लोगों के लिए काम करने वाली स्वंय सेवी संगठनों को इनकी परेशानी के बारे मे बतायें ताकि उनकी इस दिक्कत को दूर किया जा सके, लेकिन धीरे धीरे जब ये इनकी समस्याओं को और ज्यादा गहराई से समझने लगीं तो इन्होने फैसला लिया कि क्यों ना खुद ही इस क्षेत्र में काम किया जाये। जिसके बाद इन्होने “विचरता समुदाय समर्थन मंच” की स्थापना की। संगठन की शुरूआत से पहले इन्होने खानाबदोश लोगों की दिक्कतों को दूर करने के लिए साल 2007 में गुजरात के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात की और उनको वो इस बात का यकीन दिलाने में कामयाब हुई कि ऐसे लोगों के लिए वोटर आई कार्ड कितने जरूरी हैं। जिसके बाद आयोग उन लोगों के वोटर आई कार्ड बनाने को तैयार हुआ जिनके बारे में इन्होने आयोग को जानकारी दी। इस तरह उन्होने पहली बार 20 हजार से ज्यादा लोगों के वोटर आई कार्ड बनवाये जो घुमंतू जनजाति के थे।

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मित्तल पटेल के मुताबिक ज्यादातर लोगों को ये नहीं पता होता कि इन लोगों के साथ कैसे काम किया जाये। जैसे उन्होने इस बात को समझ लिया था कि घुमंतू जाति के लोग भले ही साल भर कहीं भी घूमे लेकिन मॉनसून के दौरान वो यात्रा नहीं करते। वो हर साल ऐसे गांव में ठहरते हैं जहां उनको सबसे ज्यादा प्यार मिलता है। इस बात को उन्होने चुनाव आयुक्त के सामने भी रखा और आयोग से कहा कि जहां पर ये लोग मॉनसून के मौसम में हर साल ठहरते हैं उसे इनका स्थायी पता मान लेना चाहिए। इस तरह उस गांव को मिलने वाली सुविधाओं के ये भी हिस्सेदार बन गये। इसके बाद ऐसे लोगों का ना सिर्फ वोटर आई कार्ड बनना शुरू हुआ बल्कि उनका राशनकार्ड और दूसरी सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलने लगा। आज मित्तल पटेल 72 हजार से ज्यादा लोगों के वोटर कार्ड बनाने में मदद कर चुकी हैं। हाल ही में उन्होने एक कैम्प के जरिये 500 खानाबदोश लोगों के वोटर कार्ड बनवाएं हैं।

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सिर्फ वोटर कार्ड या राशन कार्ड बनवा कर मित्तल पटेल ने अपने जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ा बल्कि उनके विकास के लिए भी कई काम किये। उन्होने अपनी संस्था “विचरता समुदाय समर्थन मंच” के जरिये ऐसे जगह पर टेंट स्कूल चलाये जहां पर घुमंतू जाति के लोगों की अच्छी खासी संख्या है। आज गुजरात में इनका संगठन 13 जगहों पर टेंट स्कूल चला रहा है। इन्ही के प्रयासों की बदौलत आज गुजरात में 40 खानाबदोश जनजातियों में से 19 जनजातियों के बच्चों तक प्राइमरी शिक्षा पहली बार पहुंच रही है। इन स्कूलों में पहली क्लास से लेकर दसवीं क्लास तक की पढ़ाई कराई जाती है।

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खानाबदोश लोग जब एक जगह पर नहीं रहते हैं तो उनके बच्चे एक जगह रहकर कैसे पढ़ाई करेंगे? इस सवाल के जवाब में मित्तल पटेल का कहना है कि “ हमने देखा की बंजारा समुदाय के लोग अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते थे लेकिन वो काम धंधा भी नहीं छोड़ सकते थे इसलिए उनको दूर दराज के इलाकों में जाना पड़ता था, इस समस्या से निपटने के लिए हमने सौराष्ट्र, अहमदाबाद और राजनपुर में 4 होस्टल खोले। जहां आज सात सौ बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसे में उनके मां बाप भले ही महीनों काम पर चले जायें लेकिन उनके बच्चे एक जगह रहकर पढ़ाई कर सकते हैं।” दूसरी ओर मित्तल पटेल और उनकी टीम ने देखा कि जो पीढ़ियां सालों से किसी काम को कर रही थी वो पेशा अब खत्म होते जा रहा था ऐसे में इनके सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है। इस वजह से बंजारा समुदाय के काफी लोगों को भीख मांगने का काम शुरू करना पड़ा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इन लोगों ने उनको वोकेशनल ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया। इन लोगों की कोशिशों का ही नतीजा है कि अब तक करीब तीन सौ लोग वोकेशनल ट्रेनिंग ले चुके हैं।

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मित्तल पटेल का कहना है कि “बंजारा समुदाय के ज्यादातर लोग किसी के मातहत काम करना पसंद नहीं करते, इसलिए ज्यादा लोगों ने वोकेशनल ट्रेनिंग को लेकर रूची नहीं दिखाई और जब इन लोगों से इस बारे में बात की तो पता चला कि ये लोग अपना खुद का काम करना ज्यादा पसंद करते हैं।” इसी बात को ध्यान में रखते हुए मित्तल पटेल और उनकी टीम ने बंजारा समुदाय के लोगों को नया रोजगार शुरू करने के लिए ब्याज मुक्त लोन देने का काम शुरू किया। इस तरह बंजारा समुदाय के लोग चाय की दुकान खोलने से लेकर, सब्जी की दुकान, चूढ़ियां और बिंदी बेचने का काम या फिर ऊंट गाड़ी खरीदने के लिए लोन लेने लगे ताकि वो दूसरों के समान को एक जगह से दूसरी जगह लाने ले जाने का काम कर सकें। मित्तल पटेल बताती हैं कि इस काम को इन लोगों ने काफी पसंद भी किया है। तभी तो मार्च, 2014 से अब तक ये लोग 430 बंजारा समुदाय के लोगों को लोन दे चुके हैं। ये इन लोगों को साढ़े तीन हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक का लोन देते हैं। इस तरह कुल मिलाकर 65 लाख रुपये का लोन अब तक बांटा जा चुका है। खास बात ये कि लोन चुकाने के लिये जो किस्त तय की जाती है वो काम को देखकर होती है।

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एक अनुमान के मुताबिक अकेले गुजरात में 60 लाख से ज्यादा आबादी खानाबदोश है। ऐसे में उनके लिये पक्के घर की व्यवस्था करना कठिन चुनौती भी है, लेकिन मित्तल पटेल और उनकी टीम इन लोगों को अपने घर बनाने में ना सिर्फ तकनीकी तौर पर बल्कि आर्थिक रुप से भी मदद करते हैं। जिन बंजारा समुदाय के लोगों को सरकार की ओर से रहने के लिए जमीन दी जाती है उनको ये मकान बनाने के लिए आर्थिक मदद भी देते हैं इसके अलावा जरूरत पड़ने पर बैंक से लोन दिलाने की व्यवस्था भी करते हैं। ये इन्ही की कोशिशों का नतीजा है कि ये अब तक 265 घर बनवा चुके हैं जबकि 300 घर बनवाने का काम जारी है। आज मित्तल पटेल और उनकी संस्था गुजरात के 9 जिलों में बंजारा समुदाय के लोगों के विकास का काम कर रही है।


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