पर्दे पर खलनायक की भूमिका निभाने वाले प्राण की दरियादिली का कायल था जमाना
तिरछे होंठो से शब्दों को चबा-चबा कर बोलना सिगरेट के धुंओं का छल्ले बनाना और चेहरे के भाव को पल-पल बदलने में निपुण प्राण ने उस दौर में खलनायक को भी एक अहम पात्र के रूप में सिने जगत में स्थापित कर दिया। खलनायकी को एक नया आयाम देने वाले प्राण के पर्दे पर आते ही दर्शको के अंदर एक अजीब सी सिहरन होने लगती थी। प्राण की अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शको के सामने पेश किया।
बॉलीवुड में प्राण एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने पचास और सत्तर के दशक के बीच फिल्म इंडस्ट्री पर खलनायकी के क्षेत्र में एकछत्र राज किया और अपने अभिनय का लोहा मनवाया।
साल 1970 में आई फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की असफलता के बाद शो-मैन राज कपूर टीनएज प्रेमकथा पर आधारित ‘बॉबी’ फिल्म का निर्माण कर रहे थे। इस फिल्म के लिए प्राण को राज कपूर लेना चाहते थे, लेकिन प्राण उन दिनों बॉलीवुड में सर्वाधिक पैसे लेने वाले कलाकारों में शमिल थे। राज कपूर की आर्थिक हालत उन दिनों अच्छी नही थी, इसलिए वह चाहकर भी प्राण को अपनी फिल्म के लिए अप्रोच नहीं कर पा रहे थे। वहीं प्राण को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने राज कपूर की 'बॉबी' में काम करने के लिए हां कह दिया और पारिश्रमिक के तौर पर सिर्फ एक रुपया शगुन के लिया।
हिन्दी फिल्मों के जाने माने एक्टर प्राण का नाम जब भी लिया जाता है, तो सामने एक ऐसा चेहरा नजर आता है जो अपने दमदार अभिनय से हर किरदार में 'प्राण' डाल देता था। बॉलीवुड में प्राण एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने पचास और सत्तर के दशक के बीच फिल्म इंडस्ट्री पर खलनायकी के क्षेत्र में एकछत्र राज किया और अपने अभिनय का लोहा मनवाया। उन्होंने जितने भी फिल्मों में अभिनय किया उसे देखकर ऐसा लगा कि उनके द्वारा अभिनीत पात्रों का किरदार केवल वे ही निभा सकते थे। तिरछे होंठो से शब्दों को चबा-चबा कर बोलना सिगरेट के धुंओं का छल्ले बनाना और चेहरे के भाव को पल पल बदलने में निपुण प्राण ने उस दौर में खलनायक को भी एक अहम पात्र के रूप में सिने जगत में स्थापित कर दिया।
खलनायकी को एक नया आयाम देने वाले प्राण के पर्दे पर आते ही दर्शको के अंदर एक अजीब सी सिहरन होने लगती थी। प्राण की अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। रूपहले पर्दे पर प्राण ने जितनी भी भूमिकाएं निभाईं उनमें वह हर बार नए तरीके से संवाद बोलते नजर आए। खलनायक का अभिनय करते समय प्राण उस भूमिका में पूरी तरह डूब जाते थे। उनका गेटअप अलग तरीके का होता था। फिल्मों में काम करने से पहले वे निर्माता से वे फ़िल्म के किरदार का स्केच बनवाते थे।
एक महान चरित्र अभिनेता का सफरनामा
प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था और उनका जन्म 12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनको अभिनय का शौक बचपन से ही था, छुटपन में मोहल्ले की रामलीला में उन्होंने एक बार सीता का किरदार निभाया था। पढ़ाई पूरी करने के बाद प्राण अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगे। एक दिन पान की दुकान पर उनकी मुलाकात लाहौर के मशहूर पटकथा लेखक वली मोहम्मद से हुई। वली मोहम्मद ने प्राण की सूरत देखकर उनसे फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया। प्राण ने उस समय वली मोहम्मद के प्रस्ताव पर ध्यान नही दिया लेकिन उनके बार-बार कहने पर वह तैयार हो गए।
फिल्म यमला जट से प्राण ने अपने सिने करियर की शुरूआत की। फिल्म की सफलता के बाद प्राण को यह महसूस हुआ कि फिल्म इंडस्ट्री में यदि वह करियर बनाएंगे तो ज्यादा शोहरत हासिल कर सकते है। इस बीच भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद प्राण लाहौर छोडक़र मुंबई आ गए। प्राण ने लगभग 22 फिल्मों में अभिनय किया और उनकी फिल्में सफल भी हुईं लेकिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि मुख्य अभिनेता की बजाय खलनायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। वर्ष 1948 में उन्हें बांबें टॉकीज की निर्मित फिल्म जिद्दी में बतौर खलनायक काम करने का मौका मिला । फिल्म की सफलता के बाद प्राण ने यह निश्चय किया कि वह खलनायकी को ही करियर का आधार बनाएंगे और इसके बाद प्राण ने लगभग चार दशक तक खलनायकी की लंबी पारी खेली और दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
सत्तर के दशक में प्राण ने खलनायक की छवि से बाहर निकलकर चरित्र भूमिका पाने की कोशिश में लग गए। वर्ष 1967 में निर्माता -निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी फिल्म उपकार में प्राण को मलंग काका का एक ऐसा रोल दिया जो प्राण के सिने करियर का मील का पत्थर साबित हुआ। वैसे कम ही लोग जानते होंगे कि फिल्मों में अपनी एक्टिंग से सबको अपना दीवाने बनाने वाले प्राण अभिनेता नहीं बल्कि फोटोग्राफर बनना चाहते थे।
खेलों के प्रति प्राण का प्रेम सभी को पता है। 50 के दशक में उनकी अपनी फुटबॉल टीम 'डायनॉमोस फुटबॉल क्लब' काफी लोकप्रिय रही है। प्राण अकेले ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने कपूर खानदान की हर पीढ़ी के साथ काम किया। चाहे वह पृथ्वीराज कपूर हो, राजकपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर, रणधीर कपूर, राजीव कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर। प्राण सिकंद को साल 2001 में भारत सरकार ने कला क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया। फिल्म 'उपकार' (1967), 'आंसू बन गए फूल' (1969) और 'बेईमान' (1972) के लिए प्राण को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 1997 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से भी नवाजा गया। साल 2013 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के सम्मान भी प्रदान किया गया।
प्राण जितना बड़ा दिल हर किसी के पास नहीं होता
हर किसी के जीवन के कुछ अनछुए, अंजान पहलू होते हैं। प्राण को बतौर अभिनेता तो सभी जानते हैं लेकिन बतौर इन्सान भी वह बहुत अच्छे हुआ करते थे, ये बात बहुत कम लोगों को ही पता है। फिल्मी पर्दे पर छाई उनकी इस नेगेटिव छवि के पीछे एक दरियादिल इन्सान रहता था। भले ही फ़िल्मों में उन्होंने हमेशा ही नकारात्मक भूमिकाएं निभाईं, लेकिन असल ज़िन्दगी में उनके पास एक नेक दिल हुआ करता था। वह अपने बारे में बाद में पहले लोगों के बारे में सोचा करते थे। प्राण साहब ने साल 1972 में फ़िल्म 'बेइमान' के लिए बेस्ट सपोर्टिग का फिल्मफेयर अवार्ड लौटा दिया था, क्योंकि कमल अमरोही की फ़िल्म 'पाकीजा' को एक भी पुरस्कार नहीं मिले थे। ऐसे अभिनेता आज के समय में दुर्लभ है।
साल 1970 में आई फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की असफलता के बाद शो-मैन राज कपूर टीनएज प्रेमकथा पर आधारित ‘बॉबी’ फिल्म का निर्माण कर रहे थे। इस फिल्म के लिए राज कपूर प्राण को लेना चाहते थे, लेकिन प्राण उन दिनों बॉलीवुड में सर्वाधिक पैसे लेने वाले कलाकारों में शमिल थे। राज कपूर की आर्थिक हालत उन दिनों अच्छी नहीं थी, इसलिए वह चाहकर भी प्राण को अपनी फिल्म के लिए अप्रोच नहीं कर पा रहे थे। वहीं प्राण को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने राज कपूर की 'बॉबी' में काम करने के लिए हां कह दिया और पारिश्रमिक के तौर पर सिर्फ एक रुपया शगुन के लिया। इसी तरह सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के करियर को संवारने में प्राण के योगदान को भूला नही जा सकता है। बताया जाता है कि प्राण की सिफारिश पर ही प्रकाश मेहरा ने अमिताभ को ‘जंजीर’ के लिए साइन किया था।
जीवन के आखिरी सालों में प्राण व्हील चेयर पर आ गए थे। वर्ष 1998 में प्राण में दिल का दौरा पड़ा था। उस समय वह 78 साल के थे, फिर भी मौत को उन्होंने पटकनी दे दी थी, लेकिन 12 जुलाई, 2013 को सभी को हमेशा के लिए अलविदा कहकर वह दूर चले गए। वो भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपने दमदार अभिनय के कारण वह हमेशा हम सबके दिल में बसे रहेंगे।
-प्रज्ञा श्रीवास्तव