पिता का सपना पूरा करने के लिए 1 एकड़ में उगाया 100 टन गन्ना, किसानों को दिखा रहा सही राह
1 एकड़ में 100 टन गन्ना उगाने वाले सुरेश...
सुरेश की विधियां और बीज आदि मध्य प्रदेश और कर्नाटक में काफी प्रचलित हैं। वह ‘सुगरकेन ग्रोअर्स ऑफ इंडिया’ नाम के फेसबुक पेज से भी जुड़े हैं। वह किसानों की मदद के लिए वॉट्सऐप ग्रुप और ‘होए अमही शेतकारी’ नाम से यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं।
वह 1 एकड़ में 25 से 30 टन गन्ने का उत्पादन कर लेते थे। उनका सपना था कि वह इस उत्पादन को 100 टन तक ले जाएं, लेकिन उनके सपने को लंबा इंतजार करना पड़ा।
सुरेश ने तो अपनी पढ़ाई कम उम्र में ही छोड़ दी, लेकिन उनके बेटे ने MBBS की डिग्री ली है और उनका छोटा बेटा भी डॉक्टर बनने की तैयारी कर रहा है।
कहते हैं कि पिता की अधूरी ख्वाहिशें बेटा पूरी करता है। कुछ ऐसी ही कहानी है महाराष्ट्र के सांगली जिले के कराडवाड़ी गांव के रहने वाले अपासो कबाडे और उनके बेटे सुरेश कबाडे की। सुरेश ने पिता के सपने को पूरा करते हुए एक एकड़ में 100 टन गन्ने का उत्पादन करके एक मिसाल कायम की है। अपासो के पास 30 एकड़ की पुश्तैनी जमीन थी। एक स्थानीय चीनी मिल से गन्ने के अच्छे दाम मिल रहे थे, इसलिए उन्होंने अपनी जमीन पर गन्ने की खेती शुरू कर दी। वह 1 एकड़ में 25 से 30 टन गन्ने का उत्पादन कर लेते थे। उनका सपना था कि वह इस उत्पादन को 100 टन तक ले जाएं, लेकिन उनके सपने को लंबा इंतजार करना पड़ा।
सालों बाद उनके बेटे सुरेश ने उनकी इस ख्वाहिश को पूरा किया और एक एकड़ में 100 टन का उत्पादन करके दिखाया। इस उत्पादन की एक खास बात यह भी है कि हर गन्ना 20 फीट से अधिक लंबा और लगभग 4 किलो का है। सुरेश ने इस साल अपनी पहली फसल से 40 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। सुरेश को कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है। सुरेश अपनी सफलता के लिए अपने साथी मजदूरों और पत्नी पद्मजा को खास धन्यवाद देते हैं।
सुरेश की विधियां और बीज आदि मध्य प्रदेश और कर्नाटक में काफी प्रचलित हैं। वह ‘सुगरकेन ग्रोअर्स ऑफ इंडिया’ नाम के फेसबुक पेज से भी जुड़े हैं। वह किसानों की मदद के लिए वॉट्सऐप ग्रुप और ‘होए अमही शेतकारी’ नाम से यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं। सुरेश ने कम उम्र में ही खेती शुरू कर दी थी। 9वीं कक्षा के बाद ही उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि अब उन्हें पढ़ाई नहीं, खेती की ओर रुख करना चाहिए। सुरेश ने तो अपनी पढ़ाई कम उम्र में ही छोड़ दी, लेकिन उनके बेटे ने MBBS की डिग्री ली है और उनका छोटा बेटा भी डॉक्टर बनने की तैयारी कर रहा है।
सुरेश बताते हैं कि उनके भाई-बहन अच्छे पढ़े-लिखे हैं, इसलिए जब उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला लिया, तब सभी को बड़ी निराशा हुई। हालांकि, परिवार ने आखिरकार इस बात को समझा कि उन्हें खेती पसंद है। सुरेश ने कई प्रयोगों के साथ शुरूआत की थी। सौभाग्य से स्थानीय राजाराम बापू चीनी मिल ने वसंत दादा चीनी संस्थान (पुणे) के प्रोफेसर आबासाहेब सालुंके को किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया।
सुरेश बताते हैं कि आबासाहेब ने हमारे खेतों का दौरा किया और हमारी समस्याओं का समाधान बताया। आबासाहेब ने किसानों को जानकारी दी कि किस तरह के उर्वरक गन्ना उगाने के लिए सहयोगी होते हैं और उनका सटीक इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। सुरेश कहते हैं कि इससे पहले तक उन्हें नहीं पता था कि वह अपनी फसलों में किस तरह के रसायनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके मुताबिक, गांव में कोई नहीं जानता था कि एनपीके में कितनी नाइट्रोजन और डीपीए में कितना पोटाश होता है। सुरेश ने जानकारी दी कि इन सुझावों के बाद उनके उत्पादन में 70 प्रतिशत तक इजाफा हुआ और इसके बाद उन्होंने कई और प्रयोग भी किए।
सुरेश ने खेती में किए गए प्रयोगों के बारे में भी जानकारी दीः
1) मिट्टी है अहम
सुरेश बताते हैं कि सही उत्पादन के लिए सही मिट्टी का चुनाव बहुत जरूरी है। सुरेश ने इस साल मार्च से ही प्रयोग शुरू किए थे। सुरेश ने सेस्बानिया नाम की जैविक खाद लगाई। सुरेश ने बताया कि जब पौधों से फूल निकलने वाले होते हैं, तब उन्हें कुचल दिया जाता है और मिट्टी में मिला दिया जाता है। ऐसा करने से मिट्टी गन्ने के उत्पादन के लिए उपयोगी हो जाती है क्योंकि यह पौधा कार्बन का अच्छा स्त्रोत होता है और इसकी जड़ो में नाइट्रोजन जैसे जरूरी तत्व मौजूद होते हैं।
2) ऐसे तैयार करें जमीन
एक बार जब मिट्टी तैयार हो जाए तब 5-6 फीट की दूरी पर 10 इंच से 1 फीट तक गहरे गड्ढे खोदने चाहिए। इसके बाद इन गड्ढों के आस-पास, जहां पर सीधी धूप आती हो, वहां पर उर्वरक डाले जाएं।
3) सही बीज मतलब सफल फसल
सुरेश का सुझाव है कि गन्ने की फसल के लिए ‘वन आई सीड’ सबसे उपयोगी रहते हैं। सुरेश, बीजों को पहले एक लीटर पानी में 20 प्रतिशत क्लोरो के साथ फिर एक लीटर पानी में बैविस्टिन और आखिर में इतने ही पानी के साथ 5-10 मिलीलीटर जर्मिनेटर से धोने की सलाह भी देते हैं। इसके बाद बीजों को 3 इंच गहरे गड्ढों में डाल देना चाहिए। ये गड्ढे एक-दूसरे से 2.5 फीट की दूरी पर होने चाहिए।
4) सिंचाई का सही तरीका
सुरेश ने सिंचाई का तरीका बताते हुए कहा कि पौधों को तभी पानी देना चाहिए, जब जरूरत हो। यादें साझा करते हुए सुरेश बताते हैं कि वह कई बार इस सही समय के इंतजार में रातभर जागते रहे ताकि पौधों को उचित समय पर उपयुक्त मात्रा में पानी मिल सके।
5) समय का है बड़ा खेल
पौधा लगाने के 30वें दिन, जब अंकुर दिखने लगें तब सुरेश ने पौधे के पास गढ्ढा करके जड़ों में जरूरी पोषक आहार डाले और फिर गड्ढों को ढंक दिया। सुरेश ने इस प्रक्रिया को 65वें, 85वें, 105वें, 135वें. 165वें और 225वें दिन पर भी दोहराया। सुरेश का कहना है कि हमें जरूरत पड़ने पर पौधों से खराब हो चुकीं पत्तियों को अलग करते रहना चाहिए। सुरेश ने इन पत्तियों का भी इस्तेमाल किया। उन्होंने इन पत्तियों को अलग से गड्ढा खोदकर गाड़ दिया ताकि इनसे जैविक खाद बन सके।
6) अवशेषों को भी भुनाया
सुरेश ने खेती के बाद बचे अवशेषों को जलाया नहीं बल्कि ट्रैक्टर आदि की मदद से कूचा और इसके बाद खेत को गड्ढे खोदने के बाद जमा हुई मिट्टी से ढांक दिया। सुरेश ने बताया कि ये अवशेष समय के साथ जमीन के लिए उपयोगी हो जाते हैं।
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