इन 5 स्टार्टअप्स के पास है बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने का समाधान
अगर वायु प्रदूषण अपने उच्च स्तर पर पहुंच जाए तो सांस रोग, हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर जैसी कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
भारत के खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर ने वैश्विक ब्रैंड्स के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार अवसर भी प्रस्तुत किया है। हनीवेल, डाइकिन, पैनासोनिक और कई अन्य प्लेयर्स ने भारतीय बाजार में अपने प्रदुषण-रोधी ऑफर्स के साथ प्रवेश किया है।
वायु प्रदूषण से ऐसी तमाम बीमारियां होती हैं जो एक समय के बाद लाइलाज हो जाती हैं। इनमें कई प्रकार की सांस की बीमारी, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां भी शामिल हैं। विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक (World Air Quality Index) के मुताबिक, दिल्ली में वायु गुणवत्ता इस साल जून में खतरनाक स्तर पर रही। एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक इंडेक्स 999 दर्ज किया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वायु प्रदूषण अपने उच्च स्तर पर पहुंच जाए तो सांस रोग, हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर जैसी कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, भारत के खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर ने वैश्विक ब्रैंड्स के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार अवसर भी प्रस्तुत किया है। हनीवेल, डाइकिन, पैनासोनिक और कई अन्य प्लेयर्स ने भारतीय बाजार में अपने प्रदुषण-रोधी ऑफर्स के साथ प्रवेश किया है। आज हम आपको ऐसे ही स्टार्टअप्स के बारे में बता रहे हैं जो वायु प्रदूषण से निपटने और विभिन्न स्तरों पर समाधान प्रदान करने के लिए अपने इनोवेटिव आइडियाज के साथ मार्केट में उपलब्ध हैं।
फीनिक्स रोबोटिक्स
ओडिशा स्थित आईओटी स्टार्टअप ने एक पर्यावरण निगरानी उपकरण, Aurassure डिजाइन किया है। यह स्मार्ट सिटीज के लिए ऑनलाइन वायु प्रदूषण निगरानी प्रणाली का क्लाउड-कनेक्टेड नेटवर्क है। इस नेटवर्क के माध्यम से, इंडस्ट्रीज हाई-रिजॉल्यूशन प्रदूषण डेटा तक पहुंच सकते हैं। यह डिवाइस अलग-अलग जगहों से विभिन्न वायु गुणवत्ता मानकों को कैप्चर कर इसे वेब प्लेटफॉर्म पर स्टोर करती है। इस डेटा को मोबाइल ऐप पर भी एक्सेस किया जा सकता है। इसमें दर्ज कुछ पैरामीटर इस प्रकार हैं- नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), नाइट्रोजन मोनोऑक्साइड (NO), ओजोन (O3), मीथेन (CH4), अमोनिया (NH 3), PM2.5, PM10, UV, तापमान पैरामीटर जैसे तापमान, आर्द्रता (humidity), वर्षा, प्रेशर, हवा की गति और हवा की दिशा। ये डिवाइस स्मार्ट शहरों में अच्छे से काम कर सके इसके लिए इसे ईथरनेट, जीपीआरएस, वाईफाई और लोरा इनैबल्ड बनाया गया है।
कंपनी का दावा है कि वायु गुणवत्ता जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों और शोध संस्थानों में 'पोर्टेबल सैल्यूशन' को लगाया जा सकता है। यह उपकरण कृषि में भी उपयोगी हो सकता है। दरअसल किसान सिंचाई में सुधार के लिए रिकॉर्डेड डेटा का उपयोग कर सकते हैं, और प्रतिकूल जलवायु परिवर्तनों से फसलों के लिए सुरक्षा उपाय भी ले सकते हैं। इस डिवाइस में शहरी बाढ़ निगरानी प्रणाली भी है जो नहरों और नदियों में पानी के स्तर को ट्रैक कर सकती है। 2015 में स्थापित फीनिक्स रोबोटिक्स के पीछे एनआईटी राउरकेला के 6 इंजीनियर अमीया कुमार सामंतारे, किशन कुमार पटेल, आकांक्षा प्रियादर्शिनी, आशीष साहू, नटराज साहू और आशुतोष सारंगी का दिमाग है।
शेलियोस (Shellios)
दिल्ली स्थित स्टार्टअप शेलियोस एक बाइक-फ्रैंडली सैल्यूशन का परीक्षण कर रहा है जो वायु प्रदूषण से निपटने में मदद करेगा। कंपनी ने 1.6 किग्रा वजन वाला एयर प्यूरीफायर हेलमेट डिजाइन किया है। वे अभी इसका परीक्षण कर रहे हैं। वायु प्रदूषण को मापने वाले उपकरणों को तैयार करने के लिए कई तरह के इनोवेटिव काम हो रहे हैं, लेकिन शेलियोस ने इससे एक कदम आगे बढ़ाया है। प्यूरीफायर हवा को फिल्टर करता है जिससे कम से एक बाइकर तो शुद्ध सांस ले सकता है। यह हैलमेट एक ब्लूटूथ-इनैबल्ड ऐप के साथ भी आता है जो राइडर को क्लीनिंग की जरूरत होने पर इनफॉर्म कर देगा।
अंदर के क्लीनिंग फंक्शन एक बैटरी संचालित मॉड्यूल पर चलते हैं, जिसमें 2,600 एमएएच युनिट वाली बैटरी होती है। बैटरी चार्ज करने के लिए एक माइक्रो-यूएसबी पोर्ट का उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ-साथ, हेलमेट पर मौजूद चमड़े की पैडिंग और सुरक्षात्मक परतें अलग-अलग हैं जो पार्ट्स को साफ करना आसान बनाती हैं।
चक्र इनोवेशन
2016 में आईआईटी-दिल्ली के पूर्व छात्र अर्पित धूपर, कुशाग्र श्रीवास्तव और प्रतीक सचान द्वारा स्थापित, चक्र इनोवेशन जेनरेटर से निकलने वाले डीजल की कालिख (Soot) को स्याही और पेंट में परिवर्तित करता है।
चक्र शील्ड एक विलायक (solvent) आधारित विधि पर काम करता है। यह लगभग 90 प्रतिशत कणों के उत्सर्जन को एकत्र करता है, जो एक प्रकार का काला कार्बन होता है। इसके बाद ये उत्सर्जन भारी धातुओं और कैंसरजनों को हटाने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरता है। फिर इसे शुद्ध कार्बन आधारित रंग में परिवर्तित किया जाता है। अंतिम चरण में, विभिन्न प्रकार के स्याही और पेंट बनाने के लिए कार्बन को अन्य रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये टेक्नोलॉजी डीजल इंजन पर बिना किसी गलत प्रभाव डाले डीजल जेनरेटर से निकलने वाले 90 प्रतिशत से अधिक कण पदार्थ उत्सर्जन को कैप्चर करने का दावा करती है।
योरस्टोरी को हाल ही में दिए इंटरव्यू में कुशाग्र ने कहा, "हम अपने उत्पाद के लिए कई इंडस्ट्रियल हाउसेस, आईटी कंपनियों, हॉस्पिटैलिटी कॉमप्लैक्सेस और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ भी बातचीत कर रहे हैं। हमारी प्रदूषण से बनी स्याही का उपयोग बड़े कंप्यूटर निर्माताओं द्वारा भारत में अपने पैकेजिंग को प्रिंट करने के लिए किया जा रहा है। अब तक, टेलीकॉम, एफएमसीजी, रियल एस्टेट, एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस जैसे उद्योगों सहित दिल्ली एनसीआर में चक्र शील्ड के साथ 35 साइटें चल रही हैं।"
नासोफिल्टर्स (Nasofilters)
नजल फिल्टर (नाक फिल्टर) को दिल्ली स्थित कंपनी नैनोक्लीन द्वारा बेचा जा रहा है। इसकी स्थापना 2017 में आईआईटी-दिल्ली के प्रतीक शर्मा, तुषार व्यास और जतिन केवलानी की एक टीम ने की थी। नेनोक्लीन ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्रों, प्रोफसरों और वर्तमान में पढ़ रहे छात्रों ने एक नेनो-रेस्पिरेटरी फिल्टर बनाया है। जो महज 10 रुपए में आपको दिल्ली में पीएम 2.5 और सांस संबंधित बीमारियों से लड़ने में भी मदद करेगा। ये 10 रुपये में मिलना वाला फिल्टर जब आप सांस लेते हैं तो हानिकारक कणों को आपकी नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश को रोक सकता है। कंपनी का दावा है कि पीएम 2.5 को ब्लॉक करने में इस फिल्टर की 95 प्रतिशत दक्षता दर है। कण पदार्थ वायुमंडल में तरल बूंदों में दर्ज छोटे कणों का मिश्रण होता है। फेफड़ों के अंदर पहुंचने पर पीएम 2.5 सांस और हृदय रोग का कारण बन सकता है।
नासोफिल्टर नैनो टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सांस लेने में कोई बाधा न हो। नेनोक्लीन ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ प्रतीक शर्मा के मुताबिक ये फिल्टर इस्तेमाल करने वाले कि नेजल ओरिफिस (नासिका छिद्र) पर चिपक जाएगा और पार्टिकुलेट मैटर को शरीर में घुसने से रोकेगा। बाजार में उपलब्ध अन्य पारंपरिक (फेस मास्क) विकल्पों के विपरीत, यह सांस लेने को सीमित नहीं करता है क्योंकि इसे नाक पर आसानी से पहना जा सकता है। एक नासोफिल्टर 12 घंटे के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि एक फिल्टर को आप एक ही बार इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ये इतना सस्ता है कि इसे हर कोई आसानी से ले सकता है। ये दिल्ली में कंपनी की वेबसाइट, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, पेटीएम और अपोलो फार्मेसी स्टोर पर उपलब्ध हैं। ये फिल्टर धूल से बचाने और अस्थमा रोगियों के साथ-साथ एलर्जी की रक्षा करने का भी दावा करते हैं।
परसैपियन (PerSapien)
2017 में लॉन्च हुई नाक में पहनने वाली ये डिवाइस एक योग्य आईआईटी वैज्ञानिकों की टीम ने बनाया है। इस टीम में पद्मश्री प्रो. रणदीप गुलेरिया (एम्स के निदेशक) और प्रोफेसर पॉल यॉक, (फादर ऑफ बायोडिजाइन, स्टैनफोर्ड यूनीवर्सिटी), और टीम शशि रंजन, देबयन साहा, योगेश अग्रवाल, आकांक्षा गुप्ता और हर्ष शेठ शामिल हैं। यह डिवाइस PerSapiens नामक कंपनी के तहत बेची जाती है। नाक में पहनने वाला ये प्रोडक्ट यूज एंड थ्रो वाला है। इसे बार-बार साफ करने की जरूरत नहीं होती है। यह प्रदूषकों को फेफड़ों में पहुंचने से रोकता है। इसे पहनने में किसी अटैचमेंट की जरूरत नहीं होती है ये केवल 2 सेमी का होता है। ये डिवाइस अमेजॉन और उनकी ऑफिशियल वेबसाइट पर बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए 347 रुपये की प्रारंभिक कीमत पर उपलब्ध है। हालांकि ये डिवाइस एयरलेंस ऐप के जरिए चलती है जोकि इसके साथ मुफ्त में मिलता है।
यह भी पढ़ें: बेघरों का फुटबॉल वर्ल्डकप: भारत की यह टीम भी चुनौती के लिए तैयार