कैसे जन्मा था 45 साल पुराना ब्रांड Campa Cola, कामयाबी के अर्श पर पहुंचने और फिर फर्श पर आने की कहानी..
साल 2022 में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कैंपा ब्रांड को प्योर ड्रिंक्स ग्रुप (PURE DRINKS GROUP) से कथित तौर पर 22 करोड़ रुपये में खरीदा था.
50 साल पुराना सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड कैंपा कोला (Campa Cola) एक बार फिर चर्चा में है. वजह, 70 के दशक में भारतीय सॉफ्ट ड्रिंक बाजार पर राज करने वाले कैंपा कोला ब्रांड की वापसी हो गई है. मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries Limited) की सब्सिडियरी रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड (RCPL) ने कैंपा कोला को फिर से पेश करने की घोषणा की है. शुरुआती दौर में इसके तीन फ्लेवर- कैंपा कोला, कैंपा लेमन और कैंपा ऑरेंज उपलब्ध होंगे. पहले यह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मिलेगा, बाद में इसे चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में पेश किया जाएगा.
साल 2022 में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कैंपा ब्रांड को प्योर ड्रिंक्स ग्रुप (PURE DRINKS GROUP) से कथित तौर पर 22 करोड़ रुपये में खरीदा था. कैंपा कोला 1970 और 1980 के दशक में भारतीय सॉफ्ट ड्रिंक बाजार में भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में लीडर हुआ करता था. बाद में साल 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार की उदारीकरण नीति के बाद विदेशी कंपनियों पेप्सी (Pepsico) और कोक (Coca-Cola) की भारतीय बाजार में एंट्री हो गई. धीरे-धीरे इन कंपनियों की धाक जमती गई और कैंपा कोला भारतीय बाजार से बाहर हो गई. आइए डालते हैं एक नजर कैंपा कोला के अस्तित्व में आने, कामयाब होने और फिर फर्श पर आने की कहानी...
कोका-कोला से पड़ी नींव
कैंपा कोला की कहानी की शुरुआत में कोका-कोला का बहुत बड़ा हाथ कहा जा सकता है. कहानी शुरू होती है साल 1949 से, जब भारत में कोका-कोला ने पहली बार एंट्री की. कोका-कोला ने भारत के मुंबई बेस्ड PURE DRINKS GROUP के साथ मिलकर भारतीय बाजार में प्रॉडक्ट उतारे थे. प्योर ड्रिंक्स ग्रुप, भारत में कोका-कोला का बॉटलिंग प्लांट चलाता था. अमीरों से होते हुए धीरे-धीरे कोका-कोला का चस्का आम लोगों की जुबान पर भी चढ़ गया. साल 1958 में Coca-Cola Export Corporation (CCEC) नाम से एक एंटिटी बनाई गई. 1971 आते-आते कोका-कोला की पैठ भारतीय बाजार में काफी मजबूत हो चुकी थी. PURE DRINKS ग्रुप 1970 के दशक तक कोका-कोला का एकमात्र निर्माता और वितरक था. लेकिन कोल्ड ड्रिंक बनाने के लिए जो कॉन्सन्ट्रेटर इस्तेमाल किया जाता था वह कोका कोला के अमेरिकी प्लांट से ही बनकर आता था. द प्योर ड्रिंक्स ग्रुप और कैंपा बेवरेजेस प्राइवेट लिमिटेड ने लगभग 20 वर्षों तक पूरे भारतीय सॉफ्ट ड्रिंक इंडस्ट्री पर अपना दबदबा बनाए रखा.
फिर कोका-कोला भारत से हुई एग्जिट
इसके बाद आया साल 1973, जब इंदिरा गांधी सरकार ने The Foreign Exchange Regulation Act यानी FERA पास किया. इसके तहत हर कंपनी को RBI से हर तीन महीने बाद अपना इम्पोर्ट लाइसेंस रिन्यू करवाना था. एक्ट के तहत किसी भी विदेशी कंपनी को भारत में काम करने के लिए 2 शर्तें पूरी करनी जरूरी थीं. पहली, कंपनी के 60% शेयर किसी भारतीय कंपनी के नाम करना और दूसरी, सहयोगी भारतीय कंपनी के साथ अपने प्रॉडक्ट का सीक्रेट फॉर्मूला शेयर करना. इसके चलते कोका-कोला को भी अपना सीक्रेट फॉर्मूला शेयर करना था, जो उसे मंजूर न था. कंपनी ने सीक्रेट फॉर्मूला देने से इनकार कर दिया. दिसंबर 1976 में कोका कोला को अपना आखिरी इम्पोर्ट लाइसेंस मिला और उसके बाद अप्रैल 1977 में सरकार बदल गई. अब देश में मोरारजी देसाई सरकार थी और इसने सीक्रेट फॉर्मूला शेयर न किए जाने के कारण कोका कोला को लाइसेंस देने से मना कर दिया. लिहाजा कोका कोला को भारत से अपना बिजनेस समेटना पड़ा.
फिर लॉन्च हुआ Campa Cola
कोका-कोला के भारत से जाने के बाद, इसकी पॉपुलैरिटी को भुनाने के लिए मोरारजी देसाई सरकार ने एक सरकारी कोला ब्रांड डबल सेवन (77) लॉन्च किया. सरकारी कंपनी मॉर्डन फूड इंडस्ट्रीज को डबल सेवन बनाने का काम सौंपा गया. सरकार की पुरजोर कोशिशों के बावजूद लोगों को इसका टेस्ट पसंद नहीं आ रहा था. अब कहानी में एंट्री होती है PURE DRINKS GROUP के मालिक चरणजीत सिंह की. सिंह कोका कोला को लेकर सरकार के निर्णय से खुश नहीं थे. कोक के भारत छोड़ने के बाद उनकी कंपनी के 2,800 वर्कर्स की रोजी रोटी को लेकर चिंता पैदा हो गई. ऐसे में उन्होंने खुद की सॉफ्ट ड्रिंक लॉन्च करने का फैसला किया. द प्योर ड्रिंक्स ग्रुप ने साल 1977 में सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड कैंपा कोला को लॉन्च किया. ब्रांड का नारा "द ग्रेट इंडियन टेस्ट" था.
1992 तक रहा दबदबा
कैंपा कोला लोगों को पसंद आने लगा. इसका मुकाबला उस समय केवल Thumps Up जैसे ब्रांड से था, लेकिन कैंपा कोला उस पर हावी था. साल 1983 आते-आते मार्केट से मोरारजी देसाई सरकार का डबल सेवन गायब होने लगा. अब Campa Cola का भारतीय सॉफ्ट ड्रिंक बाजार में लगभग एकछत्र राज कायम होने लगा, जो साल 1992 तक बरकरार रहा. कैंपा कोला के मुंबई (वर्ली) और दिल्ली में बड़े बॉटलिंग प्लांट थे.
1992 में कोक की फिर से एंट्री और कैंपा का बुरा दौर शुरू
कैंपा कोला के बुरे दिन तब शुरू हुए, जब उदारीकरण के बाद 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने भारतीय बाजार के दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिए. फिर 1992 में कोका कोला ने भारतीय मार्केट में दोबारा कदम रख दिया. पेप्सिको 1989 में ही भारतीय बाजार में एंट्री ले चुकी थी. धीरे धीरे इन दोनों विदेशी कंपनियों ने Campa के मार्केट खाना शुरू कर दिया. 2000-2001 में, कैंपा कोला के दिल्ली में स्थित बॉटलिंग प्लांट और कार्यालय बंद कर दिए गए. 2009 में उत्पाद की एक छोटी मात्रा हरियाणा तक सिमट कर रह गई. 2012 आते-आते कंपनी रसातल में चली गई. साल 2013 में PURE DRINKS GROUP की संपत्तियों के मालिकाना हक की लड़ाई अखबारों की सुर्खियां बनी और यह ग्रुप लगभग बंद हो गया. अब एक बार फिर से कैंपा कोला ब्रांड रिवाइव हुआ है. अब देखना यह है कि मुकेश अंबानी की छत्रछाया में यह ब्रांड कितना आगे जा पाता है.