सेवा एवं वस्तु कर (जीएसटी) को देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बेहतर कदम बताए जाने के बावजूद कांग्रेस ने आज स्पष्ट किया कि वह इससे संबंधित कानून में कर की मानक दर 18 प्रतिशत से अधिक न रखे जाने की अपनी मांग पर कायम रहेगी। साथ ही पार्टी ने कहा कि जीएसटी संबंधित कानून में विवाद निस्तारण तंत्र का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए।
राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने आज जीएसटी से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी जीएसटी विचार का समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन संप्रग सरकार ने वर्ष 2011 से वर्ष 2014 के बीच जीएसटी विधेयक को पारित कराने का प्रयास किया किन्तु उस समय की मुख्य विपक्षी पार्टी का सहयोग न मिल पाने के कारण यह विधेयक पारित न हो सका। उन्होंने कहा कि मौजूदा राजग सरकार ने भी 18 महीने तक बिना मुख्य विपक्षी दल के सहयोग के इस विधेयक को पारित कराने की कोशिश की किन्तु वह भी विफल रही। अब सरकार ने पिछले पांच छह महीने से सबको साथ लेने का प्रयास किया है और उसके अच्छे परिणाम भी सामने आए हैं।
पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने आरोप लगाया कि मौजूदा विधेयक का मसौदा बहुत ही लचर है। उन्होंने कहा कि हर कर का यही मकसद होता है कि इससे प्राप्त होने वाला राजस्व केंद्र अथवा राज्यों की संचित निधि में जाए। उन्होंने कहा कि इस वर्तमान विधेयक में इसे लेकर अस्पष्टता है। उन्होंने कुछ राज्यों को एक प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाने का अधिकार देने संबंधी प्रावधान को हटा लेने के सरकार के फैसले का स्वागत किया।
चिदंबरम ने कहा कि एक तो यह प्रावधान पूर्व प्रभाव से लागू होना था तथा इसके कारण पूरे देश में एक समान कर होने का मकसद विफल हो रहा था। उन्होंने विवाद निस्तारण तंत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार का प्रस्ताव है कि जीएसटी काउंसिल की आपसी विवाद निस्तारण व्यवस्था न होने की स्थिति में इसके लिए कोई तंत्र वह स्वयं तय करेगी। उन्होंने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीएसटी का जो मूल विधेयक बनाया था, उसमें विवाद निस्तारण के लिए एक स्पष्ट तंत्र था। इस विधेयक में भी स्पष्ट तंत्र होना चाहिए अन्यथा ऐसे विवादों में न्यायपालिका कानून के प्रावधानों को खारिज कर सकती है।
चिदंबरम ने जीएसटी के लिए कर की मानक दर 18 प्रतिशत से अधिक न रखे जाने की वकालत करते हुए कहा कि देश में एक समान जीएसटी कर दर के लिए मानक दर होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपनी इस मांग पर कायम है। पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि मौजूदा संविधान संशोधन विधेयक के बाद संसद में जो दो अन्य विधेयक आएंगे, सरकार को उसमें जीएसटी की मानक दर का प्रावधान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी इस बारे में अन्य दलों के साथ बातचीत कर सहमति बनाने का प्रयास करेगी। चिदंबरम ने यह भी कहा कि सरकार मौजूदा संविधान संशोधन विधेयक के बाद जीएसटी के संबंध में जो दो अन्य विधेयक ले कर आएगी उन्हें धन विधेयक न बनाया जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक सदन उस पर मतदान करे और दूसरा सदन केवल बहस करके रह जाए। उन्होंने कहा कि सरकार बार बार कई विधेयकों को धन विधेयक घोषित करवा रही है, उसके खिलाफ कांग्रेस के एक नेता उच्चतम न्यायालय गए हैं ताकि धन विधेयकों की सही परिभाषा निर्धारित हो सके।
भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने कहा कि मौजूदा विधेयक में प्रवर समिति के संशोधनों को स्वीकार किया गया है और राज्यों के कर लगाने के अधिकार को केन्द्र के साथ जोड़ा जा रहा है। इसके अलावा जीएसटी परिषद के निर्माण का भी प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि जीएसटी परिषद का निर्माण सहकारी संघवाद की भावना के अनुरूप किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विधेयक को लाने का उद्देश्य अप्रत्यक्ष कर, कर के उपर कर इत्यादि जैसी जटिलताओं के कारण व्यापारिक गतिविधियों के विकास को बाधा पहुंचाने वाले कारकों से निजात दिलाना और कर प्रणाली को सरल बनाना है ताकि एक जैसा बाजार व्यवस्था हो और देश में व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार हो। उन्होंने कहा कि जीएसटी के कारण देश में कर आधार बढ़ेगा और राज्यों की अधिप्राप्तियां भी बढ़ेंगी।
सपा के नरेश अग्रवाल ने कहा कि उनकी पार्टी न चाहते हुए भी इस विधेयक का समर्थन करती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि लोगों में यह संदेश जाये कि देश की प्रगति की राह में वह बाधा बन रही है। राजग सरकार को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि जब कभी भी वे विधेयक लेकर आते हैं तो ऐसा माहौल बनाया जाता है कि देश के वातावरण में भारी बदलाव आने जा रहा है। उन्होंने पूछा, ‘‘आपके पुराने विधेयकों का क्या हुआ। काले धन के बारे में क्या राय है। ’’ उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये कि राज्यों के अपने हिस्से के लिए कहना न पड़े बल्कि अपने आप राज्य का हिस्सा राज्य को और केन्द्र का हिस्सा उसे स्वत: प्राप्त हो जाये। उन्होंने कहा कि सरकार को इसे धन विधेयक नहीं बनाना चाहिये। अग्रवाल ने कहा कि जीएसटी परिषद में वीटो के अधिकार की व्यवस्था की गई है उसमें केन्द्र सरकार का वीटो अधिकार (एक तिहाई) अधिक प्रभावी हो जायेगा और उसके फैसले अधिक मायने रखेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘ जीएसटी कानून आने के बाद अगर तम्बाकू पर अतिरिक्त कर लगाते हैं तो क्या केन्द्र उसे रोकेगा? ’’ उन्होंने कहा कि छोटे व्यापारी जीएसटी का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने मांग की है कि 10़ लाख रूपये सालाना से कम कारोबार वाले व्यापारी को जीएसटी से छूट मिलनी चाहिये। सपा नेता ने सरकार से जानना चाहा कि खाद्य पदार्थो पर कितना जीएसटी होगा और क्या इससे महंगाई बढ़ेगी?
अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, ‘‘यह संविधान संशोधन विधेयक खुद असंवैधानिक है क्योंकि यह राज्यों की राजकोषीय स्वायत्ता का उल्लंघन करता है। इससे तमिलनाडु को स्थायी रूप से राजस्व की हानि होगी इसलिए हम इसका विरोध करते हैं। ’’ उन्होंने कहा कि संघवाद भारतीय संविधान का मूलभूत तत्व है और यह विधेयक उस संघवाद की अवहेलना करता है। उन्होंने कहा कि जीएसटी कर के दायरे से पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदाथरे को स्थायी रूप से बाहर रखा जाना चाहिये। अन्नाद्रमुक नेता ने कहा कि तमिलनाडु को इस विधेयक के कारण 9,270 करोड़ रुपये की हानि होगी। उन्होंने मांग कि राज्यों को होने वाली हानि के लिए मुआवजा राशि पांच वषरे के लिए दी जाये और आगे भी हानि होती है तो इस अवधि को आगे बढ़ाने की व्यवस्था हो। उन्होंने कहा कि राज्यों को स्रोत आधारित उपकर लगाने की अनुमति दी जाये ताकि उनके राजस्व हानि
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने विधेयक का समर्थन करते हुए इस विधेयक के संबंध में कांग्रेस और भाजपा दोनों के रख पर चुटकी ली। उन्होंने कहा कि दोनों दलों ने जिस तरह से विगत 10 वषरे से जीएसटी को लेकर खेल किये हैं उसके लिए उन्हें ओलम्पिक मेडल मिल सकता था। दोनों दलों के नेताओं की जीएसटी के संबंध में की गई टिप्पणियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लोगों का बयान इस बात पर निर्भर करता है कि वे सत्ता पक्ष में बैठे हैं अथवा विपक्ष में।
जद.यू के शरद यादव ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि कई तरह के कर कानून होने के कारण भ्रष्टाचार बढ़ता है और जीएसटी के आने से यह कम होगा। गौरतलब है कि इस विधेयक के संबंध में आम सहमति कायम करने में उनकी भी भूमिका रही है।
माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि कुछ कर लगाने का अधिकार राज्यों पर भी छोड़ा जाना चाहिए था। उन्होंने राज्यों के अधिकारों की रक्षा पर विचार करने का आश्वासन देने की मांग की। येचुरी ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि जीएसटी के कारण कमजोर तबके के लोग प्रभावित न हों। उन्होंने कहा कि अगर जीएसटी की सीमा को तय नहीं किया जाता तो यह आगे बढ़ता जायेगा जिसका बोझ विशेष तौर पर गरीबों पर होगा। उन्होंने कहा कि जीएसटी विधेयक का अंतिम लक्ष्य आम जनता का हित होना चाहिये।
बीजद के ए वी सिंह देव ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि बाजारों की विविधताओं को एक करने के लिए इस तरह का विधेयक जरूरी है। उन्होंने कहा कि ओडिशा जैसे खनिज सम्पन्न राज्य को अपने यहां हरित कर लगाने की अनुमति दी जानी चाहिये। इसके अलावा तम्बाकू और तम्बाकू के उत्पादों पर भी कर लगाने की अनुमति प्रदेश सरकार को होनी चाहिये। उन्होंने जीएसटी परिषद में केन्द्र सरकार के वीटो के अधिकार पर आपत्ति जताई और कहा कि यह एकपक्षीय संतुलन की स्थिति होगी।
बसपा के सतीशचंद्र मिश्र ने कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, जीएसटी काउंसिल के पास व्यापक अधिकार होंगे और वह करों की सीमा तय करेगी। इस प्रकार राज्यों से कर तय करने का अधिकार छीन लिया गया है। लेकिन उस स्थिति में क्या होगा जब किसी राज्य के पास कोई मुद्दा होगा। ऐसे में तो संघीय ढांचे को नुकसान होगा। राकांपा के प्रफुल पटेल ने कहा कि कुछ राज्यों में राजस्व निर्माण गतिविधियों से आता है और इन राज्यों को चिंता है कि इस विधेयक में उनके हितों की रक्षा होगी या नहीं। उन्होंने कहा कि जीएसटी का अनुपालन बहुत मुश्किल होगा।
तेदेपा के सी एम. रमेश ने कहा कि विधेयक में इस बात के प्रावधान नहीं हैं कि कर व्यवस्था कैसी होगी।
मनोनीत नरेंद्र जाधव ने कहा कि जीएसटी महंगाई कम करने में मददगार होगा तथा कर दायरे को व्यापक बनाएगा।
निर्दलीय राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि जीएसटी की सफलता के लिए प्रत्यक्ष कर में सुधार करने होंगे।
कांग्रेस के विवेक तनखा ने कहा कि विवाद निवारण प्रणाली के बारे में शुरू से ही स्पष्टता होनी चाहिए। उन्होने कहा कि राज्यों को कर बंटवारे के मुद्दे पर भी विचार करना होगा।
भाजपा के अजय कुमार संचेती ने कहा कि यह विधेयक राज्यों की अलग अलग कर व्यवस्था में समरूपता लाएगा।
सपा के सुरेंद्र सिंह नागर ने कहा कि इस विधेयक से सेवाएं महंगी होंगी, आम आदमी प्रभावित होगा। इससे छोटे व्यापारियों को लाभ नहीं होगा। इससे कुछ क्षेत्रों में लाभ जरूर मिलेगा, इसलिए वह इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन कुछ शंकाएं हैं। वित्त मंत्री को इसे लागू करने की समयसीमा बतानी चाहिए और कर की अधिकतम सीमा भी बतानी चाहिए, नहीं तो यह बार..बार बढ़ाई जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर कृषि उत्पादों पर कर लगाया गया तो वे महंगे होंगे। इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए।
बीजद के दिलीप कुमार तिर्की ने कहा कि विधेयक स्वागत योग्य है। यह एक प्रगतिवादी विधेयक है। इससे सबको फायदा होगा। उड़ीसा के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
तेदेपा के गरिकापति मोहन ने कहा कि जीएसटी से पहले पांच वष्रो में राज्यों को राजस्व की हानि होगी, उसकी भरपाई की जानी चाहिए। इसमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
मनोनीत के. पारासरन ने कहा कि इसे एक वित्त विधेयक माना जाना चाहिए, धन विधेयक नहीं। इसमें करों और सेवा की परिभाषा को स्पष्ट नहीं किया गया है जिसे स्पष्ट किया जाना चाहिए।
सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के एच लाचुंगपा ने विधेयक को स्वागत योग्य बताया, लेकिन साथ ही कहा कि इससे सिक्किम को ज्यादा नुकसान हो सकता है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
कांग्रेस के पी. भट्टाचार्य ने कहा कि इस विधेयक से उत्पादन से लेकर खपत तक सभी करों में एकरूपता होगी। भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए इस विधेयक का विरोध किया था और अब वही इसे देश के हित में बता रही है। भाजपा ने पूर्व में इस विधेयक का जो विरोध किया, उसे इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।
भाजपा के महेश पोद्दार ने कहा कि विधेयक बिल्कुल सही समय पर लाया गया है। व्यापारी अब अपने व्यापार को तेजी से बढ़ा पाएंगे। देश के राज्यों के बीच खड़ी अदृश्य बर्लिन दीवार गिर जाएगी। उन्होंने कहा कि यह आजादी के बाद उठाया गया सबसे बड़ा कदम है। इससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, उत्पादन के क्षेत्र में मदद मिलेगी और उत्पादन की लागत कम होगी। पोद्दार ने कहा कि जीएसटी विधेयक ‘एक निशान, एक विधान और एक कराधान’ को दर्शाता है। यह सबको साथ लेकर चलने वाला विधेयक है। वाईएसआर कांग्रेस के वी. विजयसाई रेड्डी ने कहा कि इस विधेयक से राज्यों को जो नुकसान होगा, उसे पूरा करने का प्रावधान किया जाना चाहिए।
कांग्रेस के एम वी राजीव गौड़ा ने कहा कि कर की अधिकतम सीमा 18 प्रतिशत सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसी से वित्तीय अनुशासन का अनुपालन होगा। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे छोटे करदाताओं को परेशानी नहीं हो।
द्रमुक के टीएस एलंगोवन ने कहा कि इसमें तमिलनाडु के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए और तंबाकू उत्पादों को भी छूट की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
कांग्रेस के नरेंद्र बुढानिया ने कहा कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने जीएसटी विधेयक को देश के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया था, अब वही इसे राष्ट्रहित में बता रहे हैं। प्रधानमंत्री को सदन में आकर माफी मांगनी चाहिए। अगर वह नहीं आते हैं तो वित्तमंत्री अरण जेटली माफी मांग सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे स्थानीय निकायों पर असर पड़ेगा और इसके लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। जो कर वसूल किया जाएगा, उसका बंटवारा कैसे होगा। इस बात की व्यवस्था होनी चाहिए कि कर का बंटवारा सही और जल्दी हो।
शिवसेना के अनिल देसाई ने कहा कि विधेयक समूचे आर्थिक क्षेत्र को बदल देगा। इससे कर जटिलताओं का समाधान होगा।
शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल ने कहा कि विधेयक से अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आएगा। यह विधेयक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दिमाग की उपज था और इसके लिए उन्हें राष्ट्र से सराहना मिलनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि खाद्य वस्तुओं पर शून्य कर लगना चाहिए। -पीटीआई