जीएसटी सुविधा प्रोवाइडर के लिए 34 कंपनियां होंगी सूचिबद्ध
जीएसटी के लिए तकनीकी समाधान देने वाली कंपनी जीएसटीएन (जीएसटी नेटवर्क) ने 34 कंपनियों को जीएसटी सुविधा प्रोवाइडर (जीएसपी) के लिए सूचीबद्ध किया है, जिनमें टीसीएस, डेलोइटे और ईवाई जैसी चुनिंद कंपनियां शामिल होंगी।
वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के सर्वर और करदाताओं के बीच संपर्क (इंटरफेस) सुविधा देने वाली 34 सूचीबद्ध कंपनियों में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, डेलोइटे टच, ईवाई और टैली सॉल्युशंस भी शामिल हैं। जीएसटी के लिए तकनीकी समाधान देने वाली कंपनी जीएसटीएन (जीएसटी नेटवर्क) ने इन 34 कंपनियों को जीएसटी सुविधा प्रोवाइडर (जीएसपी) के लिए सूचीबद्ध किया है।
जीएसपी का काम करदाता और अन्य हितधारकों को जीएसटी प्रणाली से संपर्क बनाने के लिए नवोन्मेषी और सरल सुविधाएं देना होगा। इसमें किसी संस्थान का पंजीकरण कराने से लेकर रिटर्न फाइल करते वक्त बिल इत्यादि की जानकारी को अपलोड करना तक शामिल है।
जीएसटीएन के अनुसार इन 34 कंपनियों में कार्वी डाटा मैनेजमेंट, मास्टेक लिमिटेड, मदरसन सूमी इंफोटेक, एनएसडीएल ई-गर्वनेंस इंफ्रास्ट्रक्चर, रामको सिस्टम, रिलायंस कारपोरेट आईटी पार्क लिमिटेड, टेरा सॉफ्टवेयर, अलंकित लिमिटेड, बोधट्री कंसल्टिंग, बोट्री सॉफ्टवेयर, सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज, कंप्यूटर एज और सिगनेट इंफोटेक भी शामिल हैं।
उधर दूसरी तरफ सीबीईसी के चेयरमैन नजीब शाह ने कहा है, कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद भविष्य में इस प्रणाली के तहत कर स्लब को घटाने पर विचार कर सकती है। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) के प्रमुख शाह ने कहा है, कि इस प्रणाली के तहत प्राप्त राजस्व व राज्यों को मुआवजा भुगतान का विश्लेषण के बाद जीएसटी परिषद इस बारे में फैसला कर सकती है।
उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के बाद यह उद्योग जीएसटी की प्रस्तावित दरों में कटौती की मांग कर रहा है। प्रस्तावित स्लैब 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत व 28 प्रतिशत के हैं।
शाह ने कहा कि केंद्र व राज्यों को अप्रत्यक्ष करों से फिलहाल 8 लाख करोड़ रुपये मिलते हैं, जिनमें सीमा शुल्क शामिल नहीं है। जीएसटी प्रणाली के तहत भी इतनी ही राशि में कर आना चाहिए।
शाह ने एसोचैम के एक कार्य्रकम में कहा, कि कर स्लैब में किसी भी बदलाव के बारे में राजस्व के आकलन के बाद ही फैसला किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस बारे में ‘जीएस परिषद को पूरी छूट है।’ केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली जीएसटी परिषद ने नवंबर में चार स्लैब वाले ढांचे पर सहमति जताई थी।
सरकार जीएसटी को अगले साल अप्रैल से लागू करने का लक्ष्य लेकर चल रही है
साथ ही एक रपट में यह बात सामने आई है, कि नोटबंदी के साथ वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू होने से कर अनुपालन बेहतर होगा एवं सरकार का राजकोषीय गणित भी सुधरेगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर मध्यम एवं दीर्घावधि में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। लेंडिंगकार्ट समूह और डुन एंड ब्रैडस्ट्रीट इनसाइट के एक अध्ययन में यह अनुमान जताया गया है। रपट के अनुसार बड़े मूल्य के नोटों को बंद करने का निर्णय समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करने और नकदी रहित एवं पारदर्शी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की दिशा में एक सही कदम है। डुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री अरूण सिंह ने कहा कि हालांकि इस कदम से निकट भविष्य में पूरी जीडीपी वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन मध्यम एवं दीर्घ अवधि में यह अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाएगा।
उधर दूसरी तरफ जीएसटी परिषद की महत्वपूर्ण बैठक से कुछ दिन पहले केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) के चेयरमैन नजीब शाह ने कहा, कि डेढ़ करोड़ रुपये से कम के कारोबार वाली इकाइयों पर केवल राज्यों का ही नियंत्रण हो इस तरह की मांग से केंद्र के अधिकार कम होंगे और वह कमजोर होगा। इस नए कर में केंद्र और राज्यों का कहां कितना अधिकार होगा और किस प्रकार कर की वसूली होगी, इस पर सहमति नहीं बन पा रही है। इससे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित विधेयक पारित नहीं हो पा रहे हैं। सरकार जीएसटी को अगले साल एक अप्रैल से लागू करने की मंशा रखती है।
शाह ने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों यह सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध हैं, कि करदाता का आकलन सिर्फ एक कर प्रशासन के जरिये हो। उन्होंने कहा हालांकि जीएसटी का विचार दोहरे ढांचे पर आधारित है। लेकिन सरकार इस व्यवस्था को दोहरे आकलन में नहीं बदलना चाहती। उद्योग मंडल एसोचैम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शाह ने कहा, ‘बहस और विचार विमर्श सिर्फ इस बात के लिए हो रहा है कि क्या केंद्र सरकार को कुछ श्रेणी की वस्तुओं से बाहर रखा जाना चाहिए। मेरा गंभीरता से मानना है कि जब मैं आपको सशक्त कर रहा हूं, तो आप मुझसे अधिकार नहीं छीन सकते। यह कहकर कि आप कुछ वस्तुओं की श्रेणियों में नहीं हो सकते, आप मेरे अधिकार कम कर रहे हैं। इसके लेकर हमें आपत्ति है।’ शक्तिशाली जीएसटी परिषद ने नई कर व्यवस्था में करदाताओं के प्रशासनिक नियंत्रण पर विचार विमर्श किया है। परिषद में केंद्रीय वित्त मंत्री और राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हैं, लेकिन इस मुद्दे पर गतिरोध बरकरार है। इस मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए परिषद की बैठक अब 11-12 दिसंबर को होगी। शाह ने कहा, कि ‘हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि एक करदाता को राज्य या केंद्र किसी एक के कर प्रशासन से निपटना होगा।’
पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु जैसे राज्य छोटे करदताओं यानी डेढ़ करोड़ रुपये से कम की सालाना आय वालों के विशिष्ट नियंत्रण पर जोर दे रहे हैं।
यह मांग वस्तु और सेवाओं दोनों के लिए की जा रही है। लेकिन केंद्र करदाताओं को कारोबार के हिसाब से बांटने को तैयार नहीं है। शाह ने कहा कि हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं, कि एकल प्रशासन के सिद्धान्त का सम्मान होना चाहिए। मुझे भरोसा है कि यह मुद्दा सुलझ जाएगा। इसके साथ ही शाह ने उद्योग से कहा कि वह इस नई कर प्रणाली को अपनाने के लिए अपने सूचना प्रौद्योगिकी ढांचे को तैयार करे। उन्होंने कहा, ‘‘जीएसटी वास्तविकता है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पक्ष की ओर से इसकी तैयारियां हैं। मैं उद्योग से कहूंगा कि वह भी इसके लिए अपनी तैयारी पूरी रखे।’
जीएसटी परिषद की बैठक पिछले सप्ताहांत भी हुई थी, जिसमें करदाताओं के अधिकार क्षेत्र, आदर्श जीएसटी कानून, एकीकृत जीएसटी कानून तथा मुआवजा कानून के मसौदे पर विचार विमर्श हुआ था। पर यह बैठक बेनतीजा रही थी।