इकोसिस्टम पर फ़िदा फ़रविज़ा का प्रकृति से गहरा याराना
पर्यावरण की हिफाजत के लिए संघर्षरत फ़रविज़ा फ़रहान दुनिया की पहली ऐसी लड़की हैं, जो विकास के नाम पर नष्ट किए जा रहे पहाड़, नदी, जंगल, लुप्तप्राय वन्य जीवों की रक्षा करना ही अपने जीवन का पहला और आखिरी मक़सद बना चुकी हैं।
वह प्रकृति से बर्बर आचरण करने वालों के खिलाफ आम लोगों को भी संगठित कर रही हैं ताकि मनमानी सड़क, जल विद्युत परियोजना, नई बस्तियों की बसावट आदि को अदालत से अवैध घोषित करा सके।
फ़रविज़ा फ़रहान को प्रकृति से ऐसा सघन प्रेम हो गया है कि वह पर्यावरण की हिफाजत के लिए अकेले-अकेले भी संघर्ष की हद तक जाने को तैयार हैं। इकोसिस्टम बचाना ही उनकी जिंदगी का पहला और आखिरी मक़सद बन गया है। इस समय वह इंडोनेशिया में लिसर इकोसिस्टम के संरक्षण में जुटी हैं। लीसर इकोसिस्टम दुनिया का वह आखिरी स्थान है, जहां कई दुर्लभ जीव प्रजातियां आज भी बची हुई हैं। वह कहती हैं- 'ज़रा सोचिए कि आप एक बड़े से पेड़ की छांव में खड़े हैं और आप ऊपर देखते हैं तो आपको हॉर्नबिल की आवाज़ सुनाई देती है।
इसके बाद आप आसपास देखते हैं तो आपको गिब्बनों (बंदर) की आवाज़ कहीं दूर से सुनाई पड़ती है। तभी आप देखते हैं कि एक मादा वानर अपने बच्चे को सीने से चिपकाए पेड़ की शाखाओं पर झूल रही है और कुछ ही देर में आप पाते हैं कि लंगूरों का एक झुंड आपकी तरफ दांत दिखाते हुए चीख रहा है। इन सबके बीच कुछ दूरी से आपको मशीनों की आवाज़ भी सुनाई पड़ती है। आप उस आवाज़ को अपने करीब आते महसूस करते हैं। जैसे-जैसे वह आवाज़ नज़दीक आती जाती है, आप कोशिश करते हैं कि कुछ भी करके इसे बंद कर दें और आसपास जो इतनी प्यारी आवाज़ें बह रही हैं, उन्हें बचा लें। आप जैसे-जैसे जंगल में बढ़ते जाते हैं, उसे बचाने का मन उतना कठोर होता चला जाता है।'
प्रकृति के साथ अपने इस दोस्ताना एहसास का जिक्र करती हुई फ़रविज़ा फ़रहान बताती हैं कि 'कभी मैं समुद्र और उसमें पाए जाने वाले कोरल से प्यार करने लगी थी। मैंने बचपन में ही तय कर लिया था कि अपनी बाकी ज़िंदगी प्रकृति के लिए ही न्योछावर कर दूंगी। इसके बाद मैंने मरीन बायोलॉजिस्ट की पढ़ाई की। मैं समुद्र से प्यार करती थी लेकिन मैंने देखा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का हाल बेहाल है। उसकी बुरी हालत से मन को गहरा धक्का लगा। उस वक़्त मैंने भोलेपन में सोचा कि इस प्रकृति को मैं ही बचाऊंगी। वह एक अगंभीर खाम खयाली थी कि मैंने जंगलों को चारों ओर से तार लगाकर उनको बचाने के बारे में सोचा। आज वह पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में अपने एनजीओ 'यायासन हाका' के माध्यम से उन सभी चीजों का विरोध कर रही हैं, जिनसे प्रकृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। 'यायासन हाका' तेल बनाने वाली बिना परमिट के जंगल काट रही कंपनी के ख़िलाफ़ मुकदमा भी कर चुका है।'
फ़रविज़ा को लगता है कि प्रकृति को सबसे ज्यादा नुकसान विकास के नाम पर हो रही मनमाना खुराफातों से हैं। कहीं अंधाधुन वन काटे जा रहे हैं, तो कहीं पहाड़ ढहाए जा रहे हैं, कहीं नदियों का रुख मोड़ा जा रहा है तो पर्यटन के नाम पर पहाड़ी चोटियों तक पर बिल्डिंग बना दी जा रही हैं। प्रकृति का इस तरह शोषण करने से सबसे ज्यादा खतरा मानवता को ही है। दुनिया भर में हर साल जितना पौधरोपण का डंका बजाया जाता है, उससे ज्यादा पेड़ों का सफाया कर दिया जा रहा है। तमाम उद्योग प्रकृति के विनाश पर निर्भर हो गए हैं। लीसर पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के क्रम में उनके एक मुकदमे से एक कंपनी पर 26 मिलियन अमरीकी डालर का जुर्माना लग चुका है।
फ़रविज़ा फ़रहान का एक खास ध्यान अपने देश में बाघ, ओरंगुटन, हाथी और गैंडा प्रजातियों की सुरक्षा पर भी है। वहां कई लुप्तप्राय प्रजातियों की जिंदगी को खतरा पैदा हो गया है। उनकी रखवाली करना उनका एक जुनून सा हो गया है। गंभीर रूप से लुप्तप्राय मेगा-जीवों के ठिकानों पर वह लगातार नजर रख रही हैं। वह एक तरफ उनकी सुरक्षा, दूसरी तरफ उन्हें बचाने के कानूनी उपायों का सहारा ले रही हैं। उनकी एक मोबाइल मॉनिटरिंग यूनिट भी है, जो वन्यजीव संरक्षण में तैनात रह रही है। इसके साथ ही वह प्रकृति से बर्बर आचरण करने वालों के खिलाफ आम लोगों को भी संगठित कर रही हैं ताकि मनमानी सड़क, जल विद्युत परियोजना, नई बस्तियों की बसावट आदि को अदालत से अवैध घोषित करा सके।
उनका मानना है कि करिश्माई जंगली प्रजातियां हमारी दुनिया को अद्वितीय बनाती हैं। जब वह गायब हो जाएंगी, अंततः लीसर पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो जाएगा। लीज़र इकोसिस्टम को सबसे बड़ा ख़तरा उन दैत्याकार बड़ी कंपनियों से है, जो भारी मुनाफे की होड़ में 'सुमात्रा, अमेज़न और मदगास्कर आदि में पूरा इकोसिस्टम बर्बाद करने पर आमादा हैं। तेल निकालने के लिए वे जंगलों के दुख को तिल का ताड़ बनाने में जुटी हैं।
फ़रविज़ा फ़रहान बताती हैं कि वह पहले लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ने के लिए कहती थीं लेकिन अब प्रकृति के विनाश को ज़्यादा से ज़्यादा देखने के लिए कहती हैं। फ़रविज़ा फ़रहान बताती हैं कि बाढ़, भूस्खलन, सूखा आदि प्राकृतिक आपदाएं भी एक बहुत ही वास्तविक खतरा हैं। इस ओर से दुनिया की हर सरकार को अपना दिल-दिमाग खोलकर रखना होगा। उन्हे सोचना और तय करना ही होगा, क्योंकि इसी प्रकृति पर हमारी भावी पीढ़ियां निर्भर हैं। इसके लिए एक जमीनी आंदोलन को भी तेज करना है। वह कहती हैं कि 'यह अच्छा है कि मैं अपने ज्ञान और वास्तविक इरादे से पूरी तरह से प्रभावित हूं। अपने प्रयासों में अगर वह जीत रही हैं तो इससे नागरिक जरूरतें भी स्थायी तौर पर संरक्षित हो रही हैं।'
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