कचरे से निकलने वाले प्लास्टिक से टाइल्स बनाता है यह एनजीओ
बेंगलुरु स्थित इस नॉन प्रॉफिट एनजीओ ने कचरे में फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक से टाइल्स और सिंचाई के पाइप बनाने का काम शुरू किया है। बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके (BBMP) के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पूरे शहर में हर रोज 4,000 टन ठोस कचरा पैदा होता है जिसमें 20 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक का होता है।
हम भारतीय हर रोज 15,000 टन प्लास्टिक कचरे के रूप में फेंक देते हैं। प्लास्टिक से हमारे पर्यावरण को गंभीर खतरा पहुंचता है। सबसे ज्यादा नुकसान जलीय जीवों को होता है। वहीं पानी प्रदूषित होता है अलग।
आधुनिक जमाने में प्रदूषण का एक बड़ा कारण प्लास्टिक है। वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। इसका मतलब यह है कि हम भारतीय हर रोज 15,000 टन प्लास्टिक कचरे के रूप में फेंक देते हैं। प्लास्टिक से हमारे पर्यावरण को गंभीर खतरा पहुंचता है। सबसे ज्यादा नुकसान जलीय जीवों को होता है। वहीं पानी प्रदूषित होता है अलग। बेंगलुरु के एक एनजीओ ने इस समस्या से निपटने के लिए कारगर और अनोखा तरीका खोज निकाला है।
इस एनजीओ का नाम है- 'स्वच्छ'। बेंगलुरु स्थित इस नॉन प्रॉफिट एनजीओ ने कचरे में फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक से टाइल्स और सिंचाई के पाइप बनाने का काम शुरू किया है। बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके (BBMP) के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पूरे शहर में हर रोज 4,000 टन ठोस कचरा पैदा होता है जिसमें 20 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक का होता है। 2016 में इसी लिए सरकार ने प्लास्टिक के कई उत्पादों पर बैन लगा दिया था। लेकिन फिर भी कई रूपों में आज भी प्लास्टिक का इस्तेमाल जारी है।
'स्वच्छ' ने BBMP के साथ मिलकर 'री टाइल' की शुरुआत की जिससे प्लास्टिक के टाइल्स बनाने शुरू हुए। इन टाइल्स की खासियत यह होती है कि ये वजन में काफी हल्के होते हैं। इसीलिए इन्हें लगाने में आसानी होती है और ये काफी टिकाऊ भी होते हैं। इस कार्यक्रम के मुख्य अधिकारी वी राम प्रसाद कहते हैं कि इन टाइल्स को 150 डिग्री सेल्सियश तक की गर्मी में रखा जा सकता है और इनमें 35 टन भार सहने की भी क्षमता है। इसके अलावा इन टाइल्स पर फिसलने की संभावना शून्य हो जाती है।
वे कहते हैं, 'स्वच्छ टाइल रिसाइक्लिंग से बनी होती हैं और इन्हें पोलीप्रोपीलीन के जरिए बनाया जाता है। इनमें इंटरलॉकिंग एज भी होती हैं जिससे ये आसानीसे कहीं भी फिट हो जाती हैं। ये काफी लचीली होती हैं और लंबे दिनों तक इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इन्हें खराब हो चुकी फर्श पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इतना ही नहीं ये टाइल कई तरह के केमिकल्स की प्रतिरोधी हैं यानी इनपर रसायनों का प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए इनकी ज्यादा देखरेख नहीं करनी पड़ती।'
अब एनजीओ की तरफ से घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र करने का काम किया जाता है। इसके बाद उसे गाड़ी में लादकर सेंटर तक लाया जाता है जहां पर उसे अलग किया जाता है और वहां फिर प्रॉसेसिंग शुरू की जाती है। इन्हें 40 श्रेणियों में विभाजित किया जाता है ताकि सही से प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा सके। कचरे में प्लास्टिक के अलावा, कागज, लोहा और रबर भी होती है। इन्हें एक मशीन के जरिए बारीक करने की कोशिश की जाती है।
रामप्रसाद बताते हैं कि टाइल्स को ग्राहक की जरूरत के मुताबिक डिजाइन किया जाता है। उन्होंने बताया, 'शहर में शैंपू की बोतलें, रेस्टोरेंट के कंटेनर, दूध के पैकेट, पानी की बोतलें खाली फेंक दी जाती हैं और यह कचरे के रूप में इकट्ठा होता रहता है। हम इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं।' वे बताते हैं कि 15 प्लास्टिक की बोतलों से एक टाइल बना ली दाती है। वहीं 150 पॉलिथीन या इतने ही डिस्पोजेबल चम्मच लग जाते हैं।
'स्वच्छ' एनजीओ को ये प्लास्टिक BBMP की तरफ से दिए जाते हैं। टाइल्स बनाने से पहले जरूरत समझने के लिए 'स्वच्छ' की तरफ से रिसर्च किया जाता है। तब बनाने का काम शुरू होता है। फंडिंग के बारे में बताते हुए रामप्रसाद बताते हैं कि अभी तक उन्होंने किसी से संपर्क नहीं किया है, लेकिन अगर उन्हें कुछ आर्थिक सहायता मिल जाए तो इस काम को और भी अच्छे से किया जा सकता है। 'स्वच्छ' टाइल्स बनाने के साथ ही कूड़े बीनने वाले बच्चों के लिए भी काम करता है। 2014 में 'स्वच्छ' ने BBMP के साथ समझौता करते हुए पुनर्वास का कार्यक्रम शुरू किया था।
दुनिया की कई संस्थाओं ने प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए री-यूज, री-साइकिल, रिड्यूज, इन तीन तरीकों को अपनाने की सलाह दी है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है प्लास्टिक का एक बड़ा हिस्सा आज भी कचरे के रूप में नदियों और समुद्र में जा रहा है। इसे रोकने के अगर सही उपाय नहीं किए गए तो ये हमारे लिए मुसीबत बन जाएंगे।
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