गर्भवती महिलाओं को पोषण देने के लिए कर्नाटक में शुरू हुई 'मथरु पूर्णा' स्कीम
महिलाओं को गर्म तैयार किया हुआ भोजन जिसमें चावल, पत्तेदार सब्जियां, सांबर के साथ दाल, 200 मिलीलीटर दूध, उबला हुआ अंडा, अंकुरित फलियां महीने में 25 दिनों के लिए उपलब्ध कराई जाएंगी।
अधिकतर आंगनबाड़ी सेंटर में स्टाफ की भारी कमी है। ज्यादातर जगहों पर एक वर्कर और हेल्पर की मदद से काम किया जा रहा है। ऐसे सेंटर में इस योजना को लागू करना मुश्किल है।
कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया ने बीते सोमवार को 'मथरु पूर्णा' स्कीम की शुरुआत की। इस योजना का मकसद राज्य की 12 लाख गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना है। राज्य के सचिवालय में विधानसभा के बैंक्वेट हॉल में गर्भवती महिलाओं को खाना परोसते हुए सिद्धमैया ने कहा, 'इस योजना का लक्ष्य महिलाओं और बच्चों के अंदर कुपोषण को कम करना है।' उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत महिलाओं को न्यूट्रिशन, सलाह और अन्य मातृत्व लाभ आंगनबाड़ियों के जरिए दिए जाएंगे।' कर्नाटक सरकार ने वित्त वर्ष 2017-2018 के लिए कर्नाटक के सभी 30 जिलों में इस योजना को लागू करने के लिए 302 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।
राज्य के महिला एवं बाल विकास मंत्री उमाश्री ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, 'हमने पिछले साल इस योजना को पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर चार ताल्लुके में लॉन्च किया था। जिसकी सफलता के बाद इसे पूरे राज्य में लागू किया जा रहा है।' महिलाओं को गर्म तैयार किया हुआ भोजन जिसमें चावल, पत्तेदार सब्जियां, सांबर के साथ दाल, 200 मिलीलीटर दूध, उबला हुआ अंडा, अंकुरित फलियां महीने में 25 दिनों के लिए उपलब्ध कराई जाएंगी। सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'महिला और बाल विकास मंत्रालय के पूरक और पोषण कार्यक्रम के बावजूद कर्नाटक में मातृ एवं बाल स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों की तुलना में धीमा रहा है। जिसके कारण 'मथरु पूर्णा' योजना को शुरू किया गया है।'
राज्य आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एसोसिएशन की अध्यक्ष एस. वरालक्ष्मी ने इस योजना पर प्रकृतिक्रिया देते हुए कहा कि इस योजना का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं के रोजाना आहार में हो जाने वाली कमी को पूरा करना है। उन्होंने कहा कि यह योजना काफी अच्छी है, लेकिन इसे जमीनी धरातल पर लागू करना असली चुनौती है। इससे आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को भी लाभ मिलेगा। वरालक्ष्मी ने कहा, 'अधिकतर आंगनबाड़ी सेंटर में स्टाफ की भारी कमी है। ज्यादातर जगहों पर एक वर्कर और हेल्पर की मदद से काम किया जा रहा है। ऐसे सेंटर में इस योजना को लागू करना मुश्किल है।'
उन्होंने कहा कि इसके अलावा अभी भी गांव में छुआ-छूत जैसी समस्याएं व्याप्त हैं। जिस वजह से कई तथाकथित अपर कास्ट की महिलाएं अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग की महिलाओं द्वारा बने भोजन को नहीं स्वीकार करती हैं। हमने सरकारी स्कूल में चलने वाली मध्यान्ह भोजन योजना का हश्र देखा है। गर्भावस्था में तो और भी ज्यादा रीति-रिवाजों और परंपरा का पालन किया जाता है। सरकार की ओर से बताया गया है कि इस योजना के जरिए गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को कम करने की कोशिश करते हुए राज्य में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के औसत दैनिक सेवन और अनुशंसित आहार भत्ते के बीच की खाई को पाटने का लक्ष्य रखा गया है।
यह भी पढ़ें: 'लड़के ही बुढ़ापे का सहारा होते हैं' वाली कहावत को झुठला रही है ये बेटी