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अपनी मेहनत के बूते हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर रहीं बेटियां

जीवन के हर क्षेत्र में आकाश छूने वाली बेटियां...

अपनी मेहनत के बूते हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर रहीं बेटियां

Friday March 16, 2018 , 7 min Read

जीवन को जीतना है तो संघर्ष करना होगा, वह चाहे कोई पुरुष हो या स्त्री, वैसे भारतीय समाज में अब लगातार स्त्रियों का क्षितिज विस्तार पा रही है। छत्तीसगढ़-झारखंड की पापड़ उद्यमियों से लेकर पंजाब-गुजरात की ऑटो रिक्शा चालक महिलाओं तक, वह जीवन के हर क्षेत्र में कामयाब हो रही हैं। यह बेटियों के जज्बे को सलाम करने का वक्त है।

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सिर्फ स्‍टैंड अप इंडिया के तहत ही महिलाओं को साढ़े छह हजार करोड़ रुपए से अधिक के लोन दिए जा चुकें हैं। इसके सम्बंध में विस्तार से जानकारी कर महिलाओं अपना जीवन खुशहाल कर सकती हैं।

जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं जब आकाश छूने लगी हैं, विश्व मंच पर सांगठनिक महाशक्तियां भी उनकी अगवानी, उनके हर तरह के समुन्नतिवादी सरोकारों को संरक्षण और सहयोग के पक्ष में उठ खड़ी हुई हैं। मोदी सरकार का तो नारा ही है- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। जब हम विपरीत परिस्थितियों में भी उठ खड़ी हुईं अपने देश की आज की कर्मठ स्त्रियों की बात करते हैं तो ऐसे असंख्य नाम सामने आने लगते हैं, जिन्हें रेखांकित किए बिना नहीं रहा जा सकता है।

ऐसी ही सफल महिलाओं में एक हैं इंदौर (म.प्र.) की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. आशा बक्शी। स्कूली शिक्षा के दिनों में उनको जितना अपनी किताबों से लगाव था, उतना ही कठिन था उनकी आर्थिक तंगी का मोरचा। मेडिकल की पढ़ाई तक तो ऐसा वक्त आ गया कि मां के अलावा कोई उनका मददगार नहीं रहा। आज उन्हीं कठिनाइयों को याद करते हुए वह खासकर स्त्री मरीजों के इलाज में अपने जीवन का पहला उद्देश्य देखती हैं। अपने-अपने वक्त से लड़ती हुई आज तमाम महिलाएं समूह बनाकर अपनी कठिनाइयों को परास्त कर रही हैं।

ऐसी ही हैं रायगढ़ (छत्तीसगढ़) जिले के तारापुर गांव की दो सौ स्त्रियां, जो दर्जनभर समूहों में एकजुट होकर विभिन्न प्रकार के पापड़, बड़ी, आचार, मिक्चर बना रही हैं। इतना ही नहीं, वह अपने क्षेत्र के बाजारों में खुद ही इसे बेंच भी आती हैं। इन स्त्रियों का राधाकृष्ण स्व-सहायता समूह, जो पिछले साल तक किलो-दो-किलो पापड़ बनाकर बेचता था, आज उसके प्रोडक्ट की हर महीने एक कुंतल तक सप्लाई है। इन महिलाओं के दर्जनभर संगठनों ने अब 'सितारा' ग्राम संगठन बना लिया है, जिनकी मदद में मध्य प्रदेश शासन भी आगे बढ़कर पचास हजार रुपए से ज्यादा की पहलकदमी कर रहा है।

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ये महिला-समूह बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छता अभियान, नशा मुक्ति जैसे सामाजिक कार्यों में भी हाथ बंटा रहे हैं। इसी तरह की कर्मठ महिलाओं का एक और इतिहास रांची (झारखंड) के सिरका गांव में लिखा जा रहा है, जहां की सालो देवी ‘जागृति सखी मंडल’ से जुड़कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में जुटी हैं। सालो ने शुरुआत में अपने समूह से पांच हजार रुपए लोन लेकर दो बकरियां खरीदीं। उनकी संख्या बढ़ती गई, जिन्हें बेचकर घर की जरूरत भर आमदनी होने लगी। फिर सालों ने 10 हजार का लोन लेकर अपने दो बेटों का स्कूल में नाम लिखाया। इसके बाद घर की मरम्मत के लिए पांच हजार, फिर व्यवसाय के लिए 50 हजार का लोन लिया। उनका खुद का जनरल स्टोर खुल गया।

दुकान से रोजाना एक हजार तक की कमाई हो रही है। वह इस तरह गरीबी के चक्रव्यूह से वह बाहर निकल आईं। घर के आस-पास के बच्चों पर समय देने लगीं। जागृति महिला समूह बनाया, जो अब जेएसएलपीएस से जुड़ गया है। तो इस तरह गांव-देहात की महिलाएं अब अपने बूते वक्त से लड़कर आगे निकल रही हैं। आधी आबादी के ऐसी कामयबियों के उदाहरण घर-घर की कहानी बनने लगे हैं।

ऐसी ही कर्मठ स्त्रियों के लिए विश्व-मंच ने भी हाथ बढ़ा दिया है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और अमेरिकन सेंटर ने मिलकर महिलाओं के लिए एक स्टार्टअप हब तैयार किया है, जिसके लक्ष्य में भारतीय महिलाएं भी हैं। इस स्टार्टअप को सफल बनाने के लिए भारत अब अमेरिका की मदद लेने जा रहा है। स्टार्टअप को किस तरह सफल बनाया जाए, इसके लिए अमेरिकी दूतावास ने पिछले दिनो दिल्ली के अमेरिकन सेंटर में नेक्सस स्टार्टअप हब शुरू करने का एलान किया। भारत में इस स्टार्टअप का उद्देश्य अमेरिका के कामयाब स्टार्टअप की जानकारी देने के साथ ही भारतीय उद्यमी महिलाओं के लिए अनुकूल हालात तैयार करना है।

इसके लॉन्ग टर्म इनक्यूबेशन के लिए चुनी गईं नौ कंपनियों के नेतृत्व में भारत की उद्यमी महिलाओं को प्रशिक्षण के साथ ही नेटवर्किंग की भी सुविधाएं दी जाएंगी। इसमें खास तौर से उद्यमिता में दिलचस्पी रखने वाली उन महिलाओं को आगे बढ़ाने का उपक्रम है, जो इस समय हमारे देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ रही हैं। इन महिलाओं को अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से ग्रांट भी दी जाएगी। हमारे देश की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने कई एक योजनाएं लॉन्‍च की हैं, जिनमें स्‍टैंडअप इंडिया, उज्‍ज्‍वला योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, किलकारी, सुकन्या समृद्धि योजना, मातृत्‍व अवकाश, राष्‍ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्‍व अभियान आदि उल्लेखनीय हैं।

सिर्फ स्‍टैंड अप इंडिया के तहत ही महिलाओं को साढ़े छह हजार करोड़ रुपए से अधिक के लोन दिए जा चुकें हैं। इसके सम्बंध में विस्तार से जानकारी कर महिलाओं अपना जीवन खुशहाल कर सकती हैं। इससे महिला उद्यमियों को उनके कारोबार से होने वाले फायदे पर तीन साल तक शत-प्रतिशत टैक्स की सरकार छूट दे रही है। अन्नपूर्णा योजना स्त्री शक्ति पैकेज पर 50 हजार तक लोन मिल रहा है। किसी महिला ने बिजनेस के लिए 2 लाख रुपये से ज्यादा का लोन लिया है, तो उसे ब्याज पर 0.50 प्रतिशत की रियायत दी जा रही है।

महिला उद्योग निधि योजना के तहत 10 लाख रुपए तक लोन मिल रहा है, जिसे 10 साल में चुकाना होगा। उद्योग-धंधे के अलावा जीवन के अन्य विविध क्षेत्रों में भी महिलाओं की प्रगति का लगातार विस्तार होता जा रहा है। एक ऐसा ही सफल क्षेत्र खेल-कूद का है, जिसके विज्ञापन, प्रायोजन और प्रमोशन की गतिविधियां ताजा सुर्खियां बन रही हैं। बीसीसीआई द्वारा सालाना केंद्रीय अनुबंध में संशोधन के बाद अब भारतीय महिला क्रिकेटरों की रिटेनरशिप फीस दुनिया में सबसे अधिक हो गई है। इस समय इंग्लैंड में महिला क्रिकेटरों को लगभग 45 लाख रुपए तक रिटेनरशिप फीस दी जा रही है, जबकि भारतीय महिला क्रिकेटरों की अनुबंध राशि 50 लाख रुपए हो गई है।

इधर कुछ वक्त से गांवों की महिलाएं जैविक खाद एवं जैविक दवाइयां बनाने के क्षेत्र में भी पैठ बनाने लगी हैं। कहीं ऑटो रिक्शे चलाकर वह आत्मनिर्भर बन रही हैं। अभी गुजरात जाइए, तो दिखेगा कि किस तरह पिंक शर्ट में महिलाएं राजकोट में पिंक रिक्शे चला रही हैं। उनके रिक्शे रोजाना राजकोट के गोंडल चौक से शापर-वेरावल के बीच फर्राटे भर रहे हैं। इसी तरह झारखंड में ट्रैफिक पुलिस ने महिलाओं के लिए पिंक लाईन ऑटो रिक्‍शे चलाने की पहल की है। दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) में आदिवासी महिलाएं ई-रिक्शे चलाकर जिंदगी की आधुनिकता में शामिल हो गई हैं। क्या पंजाब और क्या बिहार, मोहाली की बलजिंदर कौर ऑटोरिक्शा चलाकर अपना परिवार पाल रही हैं।

पिछड़े प्रदेश बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर भी महिलाएं ऑटो चला रही हैं। ऐसी ही एक प्रीपेड ऑटो चालक लक्ष्मी बताती हैं कि इस काम से उनका आत्मविश्वास जागा है। उनके ऑटो में बैठी महिलाएं खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं। दुनिया भर में विख्यात सफल महिला ओपरा विनफ्रे कहती हैं कि अगर आपको सफल होना है तो आप अपना कोई लक्ष्य नहीं बनाएं, बल्कि अपने काम को अच्छी तरह से करती जाएं। जो काम आपको दिया जाए केवल उसे अच्छी तरह से समाप्त करने का दृढ़ निश्चय भर कर चल पड़ें।

मैरी कॉम कहती हैं कि अगर वह दो बच्चों की मां होने के बावजूद मेडल जीत सकती हैं, तो फिर दूसरी महिलाएं भी सफलता के किसी भी हद को पार कर सकती हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा कहती हैं कि एक औरत के लिए उसके जीवन की सफलता सबसे पहले खुद के लिए प्रेरणा बनती है। सेरेना विलियम्स का मानना है कि जीवन में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता है। जीवन को जीतना है तो संघर्ष करना ही होगा, चाहे वह कोई पुरुष हो या स्त्री। बहरहाल, यह बेटियों के जज्बे को सलाम करने का वक्त है। उत्तराखंड में तो एक ऑटो चालक की बेटी ने जज की परीक्षा में टॉप किया है।

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