कर्नाटक के विनायक ने शुरू की पक्षियों को बचाने की नई पहल
कर्नाटक के बीदर में रहने वाले 'विनायक वंगापल्ली' परिंदों को गर्मी से बचाने का प्रयास कर रहे हैं और साथ ही दूसरों को भी अपने इस नेक काम से प्रेरित कर रहे हैं...
डाउन टू अर्थ पत्रिका में छपी पक्षियों की आधिकारिक गणना के मुताबिक भारत में पक्षियों की आबादी खतरनाक दर से गिर रही है। वर्ष 2015 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी की गई पक्षी की नवीनतम रेड लिस्ट से यह पता चला है कि भारत में कुल 180 पक्षियों की प्रजातियां विभिन्न पर्यावरणीय वजहों से खतरे में हैं या विलुप्त होने वाली हैं। जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक प्रणाली की पक्षियों को बचाने के लिए बड़ी चुनौती हैं। बढ़ते तापमान की वजह से पक्षी खुद को असहाय महसूस करते हैं और उड़ान नहीं भर पाते। कई बार तो कमजोर और बीमार होकर नीचे भी गिर पड़ते हैं।
विनायक का बचपन पशु पक्षियों की गोद में बीता था। उनकी सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचहाहट से शुरू होती थी। उस वक्त पक्षियों की भूख-प्यास दूर करने के लिए उनके घर के बाहर कटोरे में पानी और दाना रख दिया जाता था। घर की इस पुरानी याद से उन्हें पक्षियों को बचाने का आइडिया आया और वह इस पहल को साकार करने में लग गए।
कर्नाटक के बीदर में रहने वाले विनायक वंगापल्ली परिंदों को गर्मी से बचाने का प्रयास कर रहे हैं और दूसरों को भी अपने काम से प्रेरित कर रहे हैं।
दिन ब दिन बढ़ते तापमान और बेतहाशा गर्मी की मार से हर कोई जूझ रहा है। फिर चाहे वो इंसान हो या बेजुबान। वैसे हम इंसान गर्मी के थपेड़ों से बचने के लिए कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेते हैं, लेकिन बेचारे बेजुबान पक्षियों को पर्यावरण की मार झेलनी पड़ रही है। हमें प्यास लगती है तो हम कहीं भी पानी मांग कर पी लेते हैं, लेकिन बेजुबान पशु पक्षियों को पानी की तलाश में तड़पना पड़ता है। कर्नाटक के बीदर में रहने वाले विनायक वंगापल्ली परिंदों को गर्मी से बचाने का प्रयास कर रहे हैं और दूसरों को भी अपने काम से प्रेरित कर रहे हैं।
डाउन टू अर्थ पत्रिका में छपी पक्षियों की आधिकारिक गणना के मुताबिक भारत में पक्षियों की आबादी खतरनाक दर से गिर रही है। वर्ष 2015 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी की गई पक्षी की नवीनतम रेट लिस्ट से यह पता चला है, कि भारत में कुल 180 पक्षियों की प्रजातियां विभिन्न पर्यावरणीय वजहों से खतरे में हैं या विलुप्त होने वाली हैं। जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक प्रणाली की पक्षियों को बचाने के लिए बड़ी चुनौती हैं। बढ़ते तापमान की वजह से पक्षी खुद को असहाय महसूस करते हैं और उड़ान नहीं भर पाते। कई बार तो कमजोर और बीमार होकर नीचे भी गिर पड़ते हैं।
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कैसे शुरू हुआ परिंदों को बचाने का सिलसिला?
पिछले कुछ सालों में कर्नाटक के बीदर जिले में भयंकर गर्मी की वजह से पशु-पक्षियों पर गंभीर असर पड़ा है। यहां का तापमान अब 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जिसके परिणामस्वरूप कुएं, बोरवेल और अन्य जल जल के स्रोत समय से पहले ही सूख जाते हैं। गर्मी की वजह से इस इलाके के सारे पक्षी बांध और झील वाले इलाकों की तरफ प्रवास करने लगे। इस स्थिति से चिंतित होकर बीदर फोटोग्राफिक सोसाइटी के 24 साल के नौजवान सदस्य विनायक ने गांव के पक्षियों को बचाने का बीड़ा उठाया। 2015 में इलाके में काफी सूखा पड़ गया था और इस वजह से कई पक्षियों की मौत हो गई थी। जिसे देखकर विनायक द्रवित हो उठे।
विनायक का बचपन पशु पक्षियों की गोद में बीता था। उनकी सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचहाहट से शुरू होती थी। उस वक्त पक्षियों की भूख-प्यास दूर करने के लिए उनके घर के बाहर कटोरे में पानी और दाना रख दिया जाता था। घर की इस पुरानी याद से उन्हें पक्षियों को बचाने का आइडिया आया और वह इस पहल को साकार करने में लग गए। उन्होंने बाबा आम्टे से प्रेरणा ली जो जंगली जानवरों और पक्षियों के संरक्षण के लिए मशहूर हैं।
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विनायक ने सबसे पहले अपने गांव वालों से पक्षियों के लिए दाना और पानी रखने का सुझाव दिया। हालांकि शुरू में उन्हें काफी दिक्कतें आईं। क्योंकि गांव में बिल्लियां और कुत्ते पक्षियों पर टूट पड़ते थे और उनकी जान तक ले लेते थे। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने एक तिकोना स्टैंड डिजाइन किया। जो कि महज एक स्कॉयर फीट की जगह लेता है और पक्षियों को कुत्ते बिल्लियों से सुरक्षित भी रख सकता है।
इस स्टैंड की मदद से उन्होंने न जाने कितने पक्षियों की सेवा की। स्टैंड में रखे दाना पानी के लिए सैकड़ों पक्षी उनके घर पर आने लगे। विनायक बताते हैं, कि गर्मी में यह आंकड़ा बढ़ जाता है हजारों की तादाद में पक्षी उनके गांव आते हैं। वह कहते हैं पक्षियों को बचाने की मुहिम उनके लिए किसी सुंदर क्षण से कम नहीं है। उनकी इस पहल की लोग तारीफ तो करते हैं, लेकिन आश्चर्य भी कम नहीं होते। विनायक की पहल से उनके एक दोस्त साईनाथ भी काफी प्रभावित हुए। इस काम में मदद करने के लिए उन्होंने पक्षियों की आवाज को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया और इस आवाज को वह स्टैंड के पास लगा देते हैं। इस आवाज से पक्षी आकर्षित होते हैं और पानी के लिए दौड़े चले आते हैं। उन्होंने इसके साथ ही चेरी के पौधे लगाए जिससे पक्षी अपना पेट भर लेते हैं।
वाकई में विनायक की यह छोटी-सी पहल हमें काफी प्रेरणा देती है। हम सभी को इन बेजुबानों के लिए कुछ तो जतन करना ही चाहिए। इसके लिए हम भी अगर चाहें तो काफी कुछ कर सकते हैं। हमारा छोटा सा प्रयास न जाने कितने पक्षियों की जिंदगी बचा सकता है।
घरों के बाहर पानी के बर्तन भरकर टांगें या बड़ा बर्तन या किसी कटोरे में पानी भरकर रखें। अगर हो सके तो छत में भी पानी की व्यवस्था करें, छायादार जगह बनाकर वहां पानी के बर्तन भर कर रखें। सुबह आंखें खुलने के साथ ही घरों के आस-पास गौरेया, मैना व अन्य पक्षियों की चहक सुनाई पड़ेगी, तो आपका मन भी खुश हो जाएगा।