महिला में तब्दील हो चुकी निशा को भेजा गया था पुरूषों की जेल...अब अधिकारों की जंग के लिए अमेरिका ने किया सम्मानित
ट्रांसजेंडर निशा को सहना पड़ा यौन उत्पीड़न एवं हिंसा अधिकारों के लिए लड़ी लड़ाई
निशा अयूब को मुस्लिम बहुल मलेशिया की जेल में केवल इसलिए तिरस्कार, हिंसा, गिरफ्तारी और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, क्योंकि वह ट्रांसजेंडर हैं, लेकिन उन्होंने तमाम प्रताड़नाओं को झेलने के बाद भी हार नहीं मानी और अपने साथ-साथ देश में समूचे ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए खड़े होने का संकल्प लेकर उदाहरण पेश किया।
ट्रांसजेंडरों के खिलाफ कड़े इस्लामी कानूनों के कारण एक समय टूट चुकी निशा ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की, लेकिन उन्होंने बाद में हिम्मत बटोरकर ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए जंग शुरू करने का फैसला किया और वह निजी जोखिम के बावजूद देश की सबसे प्रतिष्ठित एलजीबीटी कार्यकर्ता बनीं। वह अमेरिका के विदेश मंत्रालय द्वारा इंटरनेशनल वूमेन ऑफ करेज के रूप में नामित होने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला बनीं।
मलेशियाई मुस्लिम महिलाओं की तरह स्कर्ट और लंबी बाजू वाली कमीज पहनी 37 वर्षीय निशा ने कहा, ‘‘वे आपके साथ इस तरह व्यवहार करते हैं कि जैसे आपके कोई अधिकार और प्रतिष्ठा है ही नहीं ।’’
निशा ने सीड फाउंडेशन में एएफपी को बताया कि उन्हें अपने ट्रांसजेंडर होने के कारण परिवार एवं समाज की अवहेलना सहनी पड़ी।
उन्हें वर्ष 2000 में मात्र 21 वर्ष की आयु में ‘‘गैर इस्लामी’’ व्यवहार के मुस्लिम संदिग्ध के तौर पर गिरफ्तार किया गया। शरिया अदालत ने निशा को ‘एंटी क्रॉसड्रेसिंग’ कानून के तहत तीन महीने कारावास की सजा सुनाई।
निशा ने कहा कि वह उस समय तक पूरी तरह एक महिला में तब्दील हो चुकी थीं लेकिन उन्हें पुरूषों के कारागार में भेजा गया।
उन्होंने बताया कि जज ने कहा कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ‘‘ ताकि मैं एक असल मुस्लिम पुरूष बनकर बाहर आउं।’’ उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की खातिर लड़ने के लिए 2010 में जस्टिस फॉर सिस्टर्स की सह स्थापना की और चार साल बाद सीड फाउंडेशन की स्थापना की जो ट्रांसजेंडर लोगों, यौन कर्मियों, एचआईवी पीड़ितों एवं हाशिए पर रह रहे अन्य समूहों के लिए काम करता है। (एएफपी )