Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

घूंघट से निकलकर ऑस्ट्रेलिया में सम्मानित होने वाली गीता देवी राव

गीता सिर्फ आठवीं तक पढ़ी हुई हैं, लेकिन गांव की सरपंच बनकर उन्होंने अपने गांव रायपुर की छवि बदल डाली है। हाल ही में गीता ब्रिसबेन, मेलबर्न और सिडनी से अपनी यात्रा पूरी करके लौटी हैं...

घूंघट से निकलकर ऑस्ट्रेलिया में सम्मानित होने वाली गीता देवी राव

Friday June 09, 2017 , 4 min Read

ग्रामीण महिलाओं को सशक्‍त करने की जो पहल हुई उसमें पंचायती राज का बड़ा योगदान है। कुछ समय पहले तक गांवों में ये आम धारणा बन गई थी, कि अपनी पत्नी, बहू या बहन को चुनाव लड़वा दो, आरक्षण का फायदा लेकर वो जीत जाएंगी और असली राज परिवार के पुरुषों का रहेगा, लेकिन पंचायत प्रतिनिधि के रूप में अपने हक के लिए लड़ना महिलाओं ने अब सीख लिया है और राजस्थान (ग्राम रायपुर) की 'गीता देवी राव' इस सशक्त उदाहरण हैं...

image


ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी संभालना 34 वर्षीय गीता के लिए आसान नहीं था। सड़क निर्माण, पानी की समस्या, बिजली की समस्या और आवास की समस्या पर काम तो हर सरपंच करता है, लेकिन गीता ने सरपंच बनने के बाद जिला कलेक्‍टर के सामने एक ही बात रखी और वो थी गांव की लड़कियों के लिए कुछ खास करना। कुछ ऐसा करना जिस ओर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया था।

घूंघट को किनारे छोड़ कामयाबी की नित नई मिसालें गढ़ती महिलाओं ने ये साबित कर दिया है, कि अब उन्हें काम करने के लिए पति, भाई, पिता, बेटे या फिर किसी भी पुरुष का सहारा नहीं चाहिए। ग्रामीण महिलाओं को सशक्‍त करने की जो पहल हुई उसमें पंचायती राज का बड़ा योगदान है। गांवों में ये आम धारणा बन गई थी कि अपनी पत्नी, बहू या बहन को चुनाव लड़वा दो, आरक्षण का फायदा लेकर वो जीत जाएंगी और असली राज तो उनके परिवार के पुरुषों का रहेगा, लेकिन पंचायत प्रतिनिधि के रूप में अपने हक के लिए लड़ना महिलाओं ने सीख लिया है। अब वे पुरुष नौकरशाहों के साथ भी मुखर होकर संवाद करने में हिचकिचाती नहीं है। स्वयं सहायता समूह के सहारे समाज में अपनी सशक्‍त उपस्थिति भी दर्ज करा रही है।

'गांव के मर्दों और बुजुर्गों के सामने घूंघट हटाकर काम करना आसान नहीं होता। पर मुझे खुशी है कि मैंने अपनी पंचायत को नई पहचान दी है।'

- गीता देवी राव, बीबीसी से बातचीत मेंरायपुर गांव की सरपंच गीता देवी राव की प्रेरक कहानी

गीता ने अपने गांव रायपुर की छवि बदल डाली है। कुछ समय पहले कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया के दल ने सिरोही यात्रा के दौरान गीता का काम देखा और उन्हें ऑस्ट्रेलिया आने का न्योता दिया। हाल ही में ब्रिसबेन, मेलबर्न और सिडनी में अपने अनुभव साझा कर रायपुर लौटीं गीता ने बीबीसी को बताया, 'मैं अकेली दिल्ली तक भी नहीं गई थी। पहली विदेश यात्रा और वहां अपने प्रेजेंटेशन को लेकर मन में स्वाभाविक धुकधुकी तो थी ही। पर फिर मन ही मन दोहराया- कुछ करना है तो डरना नहीं।'

ये भी पढ़ें,

जंगल बचाने के लिए जान दांव पर लगाने वाली 'लेडी टार्जन' जमुना टुडू

राजस्थान के आदिवासी सिरोही जिले के रायपुर ग्राम पंचायत की सरपंच हैं गीता देवी राव। रेवदर ब्लॉक की इस ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी संभालना सरपंच बनी 34 वर्षीय गीता के लिए चुनौती भरा था। इन्होंने जिला कलेक्‍टर के सामने एक ही बात रखी कि सड़क निर्माण, पानी, बिजली, आवास ये काम तो हर सरपंच करवाता है, लेकिन गीता को अपने गांव की लड़कियों के लिए कुछ खास करना था। उनके गांव में लोग अपनी लड़कियों को नहीं पढ़ाते हैं और उनकी छोटी उम्र में ही शादी करवा देते हैं। गीता ये सब रोकना चाहती हैं। गीता देवी अपने सारे काम खुद करती हैं।

वे अपनी ग्राम पंचायत में 'स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत काम करवाती हैं। गीता की पंचायत में नौ गांव आते हैं जहां से लोग पंचायत में नहीं पहुंच पाते तथा योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। इसे देखते हुए गीता ने एक विशेष अभियान चलाया 'सरपंच आपके द्वार।’ अभियान के तहत पूरे पंचायत के अधिकारियों के साथ हर गांव में कैंप लगाकर लोगों की समस्याओं का निपटारा किया जाता है। गीता के प्रयासों से प्रभावित होकर इस बार उन्हें गणतंत्र दिवस पर प्रशासन की ओर से सम्‍मानित भी किया गया है।

गीता की भ्रूण हत्या विरोधी मुहिम

आठवीं तक पढ़ी गीता दो बेटियों की मां हैं। उनका लक्ष्य है गांव में कॉलेज खोलना। रायपुर पंचायत अब बाल विवाह विरोधी और भ्रूण हत्या विरोधी मुहिम में भी जुट गई है। लड़कियों के जन्म पर पेड़ लगाने और सामाजिक चेतना के संदेश किशोरी केंद्र की पहचान बने हैं। लड़कियों को बाल-विवाह, कन्या भ्रूण-हत्या, दहेज जैसे मुद्दों पर जागरूक करती हैं। उनका यही एक सपना है कि उनकी पंचायत में किसी लड़की का बाल-विवाह न हो और लड़कियों को अच्छी शिक्षा मिले।

ये भी पढ़ें,

अमेरिका में अपने स्टार्टअप से हज़ारों लोगों को रोज़गार दे रही हैं भारतीय महिला सुचि रमेश