Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

8वीं के बाद न पढ़ने के मलाल ने शीला को कुछ करने पर किया मजबूर, आज बंजारा समाज की महिलाओं को बना रही हैं आत्मनिर्भर

8वीं के बाद न पढ़ने के मलाल ने शीला को कुछ करने पर किया मजबूर, आज बंजारा समाज की महिलाओं को बना रही हैं आत्मनिर्भर

Thursday February 25, 2016 , 7 min Read


ये कहानी है पिछडे समाज से आई एक ऐसी महिला की जो चाहकर भी ज्यादा पढ नहीं सकी, समाज में औरतों के काम करने को लेकर आजादी भी नहीं साथ में आर्थिक तंगी भी। मगर उसने अपने हौंसले पस्त नहीं होने दिये। लगातार संघर्ष करती रही और आज न केवल खुद अपने पैरों पर खड़ी हैं बल्कि शहर से वापस अपने गांव आकर गांव की औरतों को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए जी जान से जुट गई। उसने एक नई शुरुआत कर जो चिंगारी जलाई है उसकी रौशनी धीरे-धीरे आस-पास के गांव तक पहुंच रही है और उसका असर भी दिख रहा है। 

इंदौर से 40 किलोमीटर दूर खंडवा रोड पर बसा है गांव ‘ग्वालू’। 12 सौ की आबादी वाले ग्वालू गांव में ही शीला राठौर पैदा हुईं। शुरु से ही पढने का काफी शौक था। मगर 8वीं के आगे पढ़ नहीं पाई। गांव में 8वीं के बाद स्कूल नहीं था। दूसरा, बंजारा समाज की शीला के सामने समाज के नियम कायदे भी आड़े आ गये जिससे वो बाहर जाकर पढ ना सकीं। 19 साल की उम्र में शीला की शादी इंदौर के मुकेश राठौर से हो गई। शीला गांव छोडकर इंदौर तो आ गईं मगर जिंदगी में कुछ न कर पाने का मलाल उन्हें सालने लगा। मलाल होने की बड़ी वजह थी, शीला की ज़िंदगी जो घर के चूल्हे-चौके तक सिमट के रह गई थी। समय बीता और राठौर दम्पत्ति के घर में बच्चा हुआ। शीला का पति मुकेश एक फैक्ट्री में छोटी सी नौकरी करता था। जिससे घर का खर्च आराम से चल जाता था। मगर बच्चे के जब स्कूल में एडमीशन की बात हुई तो शीला ने अच्छी शिक्षा दिलाने की ठान ली। अतिरिक्त खर्च बढ़ जाने से शीला ने पहले कपडों की सिलाई करना सीखा फिर पास की ही एक रेडीमेड फैक्ट्री में काम करना शुरु कर दिया। आमदनी बढी तो खुद की एक सिलाई मशीन खरीदकर शीला ने मार्केट से ऑर्डर लेना शुरु कर दिया। काम चल निकला।


image


शीला बीच-बीच में अपने मायके जाती रहतीं। उसे एक बात बहुत कचोटती थी कि उसके गांव में आज भी औरतें घूंघट करके घर के काम में खुद को खपा देती हैं। अकेले घर के मर्द की कमाई से दाल-रोटी तो चल जाती है मगर तरक्की के नाम पर कुछ भी नहीं होता। शीला ने निर्णय लिया कि इंदौर छोडकर गांव में ही कुछ करना चाहिये। शीला के इस कदम की उसके पति और ससुरालवालों ने भी तारीफ की। परिवार का हौसला मिलते ही शीला अपनी सिलाई मशीन के साथ अपने गांव आ गईं। गांव में घर-घर जाकर औरतों को समझाने का काम शुरु हुआ। बंजारा समाज में औरतों को बाहर जाकर काम करने की इजाजत समाज नहीं देता था। तो पहले समाज के मुखिया को समझाया गया। 5 महीने की मशक्कत के बाद औरतों को इसके लिये तैयार किया गया। गांव की कई महिलाओं के पास सिलाई मशीन थी, जिससे वो पति, बच्चों के तो कपडे सिल लेती थीं, मगर इसे रोजगार बनाने के बारे में कभी सोचा नहीं था। शीला ने एक के बाद एक 10 महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करने के लिये तैयार कर लिया। अपने पिता के घर में ही एक कमरे में इस उद्योग को शुरु किया गया। दो महीने तक औरतों को ट्रेनिंग देने के बाद अगस्त 2015 में इस नये उद्योग की शुरुआत हुई जिसमें शर्ट की कॉलर बनाने का काम लिया गया। कॉलर बनाने के काम में इतनी सफाई आने लगी की नवम्बर से शीला को शर्ट बनाने के ऑर्डर मिलने लगे। जो महिलाएं कभी घर से बाहर निकलने का सोच भी नहीं सकती थीं, आज वो 2-3 घंटे काम करके 15 सौ से 25 सौ रुपये महीना तक कमाने लगीं। 


image


ग्वालू गांव में आये इस बदलाव के बाद पास के ही एक गांव चोरल में भी इस बात को लेकर चर्चा चल पड़ी। चोरल की महिलाएं भी शीला की फैक्ट्री देखने और काम सीखने आने लगीं। और आखिरकार चोरल की 15 महिलाओं ने भी काम करने की इच्छा जाहिर कर दी। मगर परेशानी ये थी कि हर रोज काम करने के लिये चोरल की महिलाओं का ग्वालू तक आना मुश्किल था। इस मुश्किल का भी हल निकाला गया। महिलाओं का उत्साह देखकर चोरल की एक संस्था ने उन्हें उद्योग खोलने के लिए जगह मुहैया करवा दी। शीला ने मुद्रा योजना के तहत 20 हजार रुपये का ओवरड्राफ्ट लिया और उससे कुछ और पैडल मशीनें खरीदकर चोरल में भी उद्योग शुरु कर दिया। आज दोनों गांव की 25 महिलाएं अपने घर-गृहस्थी के काम के बाद समय निकालकर 2-4 घंटा काम करती हैं। इन महिलाओं के लिए शीला इंदौर जाकर ऑर्डर लेती हैं, कच्चा माल लेकर गांव आती हैं और दो दिन में तैयार कर शर्ट सिल कर वापस भेज दी जाती है। 6 महीने की मशक्कत के बाद आज इनका टर्नओवर 80 हजार रुपये तक पहुंच गया है। और आलम ये है कि हर महिला को लगभग 2 हजार रुपये महीना मिल रहा है और शीला भी अपना पूरा वक्त देकर 10 हजार रुपये महीना तक कमा रही हैं।


image


शीला ने योरस्टोरी को बताया, 

"पहले मै शर्ट सिलती थी तो इसकी पूरी कमाई मुझे मिलती थी, तब मैंने सोचा कि क्यों ना ये कला गांव की महिलाओं को भी सिखा दी जाये जिससे वो कुछ पैसा अपने घर के लिये कमा सकें और घर से बाहर निकलकर अपनी काबिलियत को पहचानें। अपने व्यवसाय को बढाने और इनकी कमाई बढाने के लिये अब इन्हें धीरे धीरे फुल टाईम काम करने के लिये तैयार किया जा रहा है। साथ ही गांव की अन्य महिलाओं को भी जोडने का प्रयास जारी है। आगे हम शर्ट की कटिंग से लेकर उसे पूरा तैयार करने तक का काम यहीं पर करेंगे।"

शीला जल्दी ही इंटरलोक, पिको के साथ आधुनिक मशीनें लगाने वाली हैं, जिससे शर्ट को पूरी तरह यहीं तैयार करके भेजा जा सके। शीला के उद्योग की मदद करने वाली संस्था के प्रभारी सुरेश एमजी ने बताया, "जल्दी ही अन्य महिलाओं को भी वाटरशेड से 4 हजार रुपये का व्यक्तिगत लोन दिलवाया जा रहा है। जिससे वो भी सिलाई मशीन खरीदकर इस उद्योग में शामिल हो सकें। साथ ही शीला के उद्योग को आदिवासी विभाग की घुमक्कड जाति की योजनाओं के तहत एक लाख रुपये का लोन दिलवाया जायेगा। जिससे वो आधुनिक मशीन लगाकर काम को आगे बढा सकें। हम इंदौर प्रशासन के साथ मिलकर इन महिलाओं की तरक्की के लिये योजना बना रहे हैं।"


image


इंदौर कलेक्टर पी. नरहरी ने योरस्टोरी को बताया, 

"शीला ने हमारे जिले में एक मिसाल कायम की है। आगे बढने का हौसला रखने वाली महिलाओं के लिए जिला प्रशासन हमेशा ही तैयार रहता है। शीला का उत्साह देखकर हमने तत्काल मुद्रा योजना के तहत 20 हजार रुपये का कर्ज उपलब्ध करवाया, जिससे वो अपना कारोबार आगे बढा सकें। ऐसी उद्यमी महिलाओं को किसी भी तरह की परेशानी नहीं आने दी जायेगी। हम इनके उत्पाद को अच्छे दाम पर बेचने के साथ ही मार्केटिंग और प्रोडक्शन बढाने की प्लानिंग कर रहे हैं। आप देखेंगे कि कुछ समय बाद ये महिलाऐं पूरे देश में मिसाल कायम कर देंगी।"

एक छोटी सी शुरुआत करके 8 महीने में ही शीला और उसकी साथी महिलाओं ने अपने आप को आत्मविश्वास के साथ लाकर समाज के सामने खडा कर दिया है। आज भले ही इनका कारोबार छोटा हो, मगर इनकी लगन को देखकर साफ है कि ये सफर अब थमनें वाला नहीं है। ऐसे में सबसे बड़ी बात है कि ये महिलाएं भले ही स्टार्टअप इंडिया के बारे में न जानती हों पर इनका विकास, बंजारा समाज का विकास निश्चित तौर पर देश के विकास में सहायक है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में अहम योगदान है। 

ऐसी ही और प्रेरणादायक कहानियाँ पढ़ने के लिए हमारे Facebook पेज को लाइक करें

अब पढ़िए ये संबंधित कहानियाँ:

4 अनपढ़ आदिवासी महिलाओं ने जंगल से लाकर बेचना शुरु किया सीताफल, कंपनी बनाई, टर्नओवर पहुंचा करोड़ो में

104 साल की कुंवर बाई ने अपनी बकरियां बेचकर घर में बनाया शौचालय, पीएम ने पैर छूकर लिया आशीर्वाद 

'मन की बात' ने बदल दी इस 'तिकड़ी' की किस्मत, नौकरी करने के बजाय अब दूसरों को दे रहे हैं रोजगार