Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

‘मजदूर’ से ‘मालिक’ बनकर भगवान गवई ने लिखी कामयाबी की बेमिसाल कहानी

बुरे वक्त में भी पढ़ाई न छोड़ने का निर्णय ज़िंदगी भर काम आया...

‘मजदूर’ से ‘मालिक’ बनकर भगवान गवई ने लिखी कामयाबी की बेमिसाल कहानी

Tuesday June 20, 2017 , 7 min Read

भगवान गवई ने मजदूरी से अपना जीवन शुरू किया था लेकिन आज वे दुनिया के जाने माने करोड़पतियों में से एक हैं। वह यदि हालत से हार मानकर मजदूरी ही करते रहते, तो शायद कभी कामयाबी की कहानी के नायक नहीं बनते, लेकिन उन्होंने जोखिम उठाये, हार नहीं मानी और विपरीत परिस्थितियों का डट कर मुकाबला किया।

image


पिता की असमय मृत्यु होने से घर-परिवार की सारी ज़िम्मेदारी माँ पर आ गयी। माँ ने मेहनत-मजदूरी कर अपने चार बच्चों, दो बेटों और दो बेटियों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करना शुरू किया। एकसमय हालात इतने खराब हुए कि दो जून रोटी का इंतज़ाम करना भी बहुत ही मुश्किल हो गया था।

‘मजदूर’ से ‘मालिक’ बने प्रमुख दलित उद्यमी भगवान गवई का जन्म महाराष्ट्र के सिंदखेड़ में हुआ। उनका बचपन बेहद गरीबी में गुज़रा। पिता बेलदार थे और माँ भी खेतों में मजदूरी करती थी। पिता की असमय मृत्यु होने से घर-परिवार की सारी ज़िम्मेदारी माँ पर आ गयी। माँ ने मेहनत-मजदूरी कर अपने चार बच्चों, दो बेटों और दो बेटियों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करना शुरू किया। एकसमय हालात इतने खराब हुए कि दो जून रोटी का इंतज़ाम करना भी बहुत ही मुश्किल हो गया था। काम की तलाश में भगवान गवई की माँ मुंबई अपने बच्चों के साथ आ गईं।

महामायानगरी मुंबई ने बदली ज़िंदगी

भगवान गवई की माँ को मुंबई के कांदिवली इलाके में महिंद्रा एंड महिंद्रा की एककंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया। राहत वाली बात ये भी थी कि माँ को अपने बच्चों के साथ रहने के लिए वहीं पर एकझोपड़ी मिल गई। मुंबई, चूँकि बहुत ही बड़ा शहर है, माँ को बच्चों को दूर स्कूल भेजने में डर लगता था। इसी कारण दो तीन साल तक बच्चों की पढ़ाई छूट गई थी। बाद में उन्हें कांदिवली के ही म्यूनिसिपल स्कूल में भर्ती करवाया लेकिन कुछ ही दिनों बाद साइट का काम पूरा हो गया और इस परिवार का घर और काम दोनों छूट गए।

पढ़ाई के लिए बचपन में ही परिवार से दूर हो गए थे भगवान गवई

माँ को दूसरी जगह काम मिल गया। काम के लिए इस बार माँ को मुंबई से दूर महाराष्ट्र के ही रायगढ़ जिले के खोपोली जाना पड़ा। यहाँ पर स्टील का प्लांट बनाया जा रहा था। भगवान गवई की माँ और उनकेबड़े भाई को यहाँ काम मिल गया। लेकिन, एक बार बाद उन्हें फिर से अपना ठिकाना बदलना पड़ा। इस बार परिवार को काम के लिए नासिक जाना पड़ा, जहाँ तापड़िया टूल्स के सातपुर प्लांट में उन्हें मजदूरी का काम मिला। चूँकि माँ और बड़े भाई दोनों मजदूरी कर रहे थे भगवान गवई की पढ़ाई नहीं छूटी और वे पाँचवी क्लास में पहुँच गए। लेकिन नासिक में भी ज़्यादा दिन काम नहीं चला और माँ और बड़े भाई को इस बार रत्नागिरी जाना पड़ा। भगवान गवई की पाँचवी की पढ़ाई अधूरी थी इसीलिए वे पढ़ाई पूरी करने तक नासिक की साइट पर ही कुछ महीने रुक गए।

ये भी पढ़ें,

दसवीं के 3 छात्रों ने शुरू किया स्टार्टअप, मिल गई 3 करोड़ की फंडिंग

रत्नागिरी में भगवान गवई के परिवार को सरकारी अस्पताल, स्कूल, ऑफिस बनाने की साइट पर काम मिला।रत्नागिरी में काम की कमी नहीं रही और अगले चार साल तक वे सब वहीं रहे।

महत्वपूर्ण बात ये है कि भगवान गवई जिस स्कूल में पढ़ रहे थे वहाँ का माहौल काफी अच्छा थाि वे पढ़ाई में होशियार थे इसी वजह से उन्होंने तय किया कि वे पढ़ लिखकर ज़िंदगी में कुछ कर दिखाएंगे। उन्हें जैसे ही स्कूल से छुट्टियां मिलती वे भी मजदूरी करते। छोटी उम्र में भी वे मिस्त्री से लेकर कार्पेंटरी तक का काम सीख गए थे।

नौकरी ने संवारी ज़िन्दगी

1978 में भगवान गवई ने अखबार में एक विज्ञापन देखा। विज्ञापन था विश्वविख्यात कंपनी लार्सेन एंड टूब्रो (एल & टी) में नौकरी का। विज्ञापन देखकर भगवान गवई ने नौकरी के लिए एप्लाई कर दिया।उन्हें नौकरी मिल गयी और वे कंपनी में इंटरमिडिएट क्लर्क बन गए।नौकरी की वजह से आर्थिक तंगी मिटने लगी, लेकिन भगवान गवई ने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। 1982 में हिंदुस्तान पैट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) ने एससी-एसटी कोटे में भर्ती करने की मुहिम चलाई। भगवान गवई यहाँ मैनेजमेंट ट्रेनी चुन लिए गए। उधर वे बैंक की परीक्षा भी पास कर चुके थे,लेकिन उन्होंने बैंकिंग सैक्टर में न जाकर पैट्रोलियम इंडस्ट्री में आने का फैसला लिया जो आगे जाकर उनके जीवन का सबसे अहम और सही फैसला साबित हुआ।

1974 में चली राष्ट्रीयकरण की हवा के चलते सरकार ने पैट्रोलियम सैक्टर में कदम रखा और इस कंपनी की मालिक बन गई। इस अहम बदलाव से भगवान गवई जैसे कई दलित युवाओं को लाभ पहुंचा। 1985 में एचपीसीएल ने भगवान गवई को आईआईएम कोलकाता में मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के लिए भेजा। यह तीन महीने का एक्ज़ीक्यूटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम था जिससे भगवान गवई का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया। सरकारी कंपनी में उनके जातिगत भेदभाव का शिकार भी होना पड़ा था।

विवादों के चलते भगवान ने भारत में सरकारी नौकरी छोड़ दी और बहरीन चले गए। बहरीन में कैलटेक्स ऑइल जॉइन मेंउन्हें एचपीसीएल से 20 गुना ज़्यादा सैलरी मिल रही थी। इसी दौरान भगवान गवई ने माँ से सब्जी बेचने का काम छुड़वा दिया और गाँव में ज़मीन खरीदकर माँ और भाई को खेती करने भेज दिया तथा खुद बहरीन चले गए। सात साल में उन्हें तीन प्रमोशन मिले और उनकी सैलरी ढाई गुना हो गई। फिर दुबई में एमिरेटस नेशनल ऑइल कंपनी (इनोक) की नई रिफाईनरी से उन्हें डबल सैलरी का ऑफर आया और वे दुबई चले गए। यहाँ भगवान गवई का काम इनोक रिफाईनरी से दुनिया-भर में तेल भेजने का था। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात बकी मोहम्मद से हुई जिनसे भगवान गवई इनोक के लिए जहाज़ किराये पर लेते थे। बकी ने उनसे कहा कि अगर वे इतनी अच्छी तरह से ऑइल की ट्रेडिंग कर लेते हैं तो अपना काम क्यों नहीं शुरू कर लेते? अनपढ़ बकी खुद केवल हस्ताक्षर करना जानते थे, लेकिन फिर भी अपना बिज़नेस करते थे। उनसे प्रेरणा लेकर भगवान गवई ने बिज़नेस की दुनिया मेंकदम रखने का निर्णय लिया।

उतार-चढ़ाव भरा रहा शुरूआती कारोबारी जीवन

साल 2003 में भगवान गवई ने बकी के साथ मिलकर बकी फुएल कंपनी की शुरुआत की। इसमें उनका शेयर 25 प्रतिशत था। बकी की मार्केट में अच्छी जान-पहचान थी, इस वजह से तेल का कारोबार शुरू हो गया। दोनों पार्टनर रिफाईनरी से तेल खरीदकर दुनिया-भर में बेचते थे। कारोबार अच्छी तरह चल रहा था तभी बकी की माँ का निधन हो गया और उन्होंने कारोबार समेट लिया। फिर कज़ाकिस्तान में एमराल्ड एनर्जी नामक कंपनी के मालिक ने यही काम भगवान गवई को अपने साथ करने का ऑफर दे दिया और एक-डेढ़ साल में शेयर देने का वादा भी किया। मेहनती और होनहार भगवान गवई की मेहनत रंग लाई और साल 2008 तक इस कंपनी का टर्न ओवर 400 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया। लेकिन शेयर देने के वक़्त कंपनी का मालिक मुकर गया, इससे आहत होकर भगवान गवई ने फैसला किया कि अब वे अपनी कंपनी शुरू करेंगे।

कारोबार का दायरा बढ़ता गया, बढ़ती गयी आमदनी और ख्याति

भगवान गवई की मलेशिया में भी दो और कंपनियाँ हैं, जो ऑइल और कोयले की खरीद-फरोख्त करती हैं। इसके अलावा उनकी मैत्रेयी डेवलपर्स और बीएनबी लॉजिस्टिक्स में भी हिस्सेदारी है। मैत्रेयी डेवलपर्स दलितों की दोस्ती या मैत्री से बनी है जिसे 2006 में 50 लाख दलितों ने एक-एक लाख लगाकर 50 लाख के निवेश के साथ शुरू की थी। इसमें सब बराबर के भागीदार हैं। कंपनी फिलहाल मेन्यूफ़ेक्चरिंग का काम करती है और आगे चलकर उनका इरादा इस कंपनी की ज़मीन बेचकर दूसरे बिज़नेस में लगाने का है। बड़ी बात ये भी है कि भगवान गवई ने दलित युवाओं के मार्गदर्शन के लिए भी एक बहुत काम किया है। वे महाराष्ट्रमें कई जगह एक-एक दिन की वर्कशॉप लगा चुके हैं जिसमें बिज़नेस करने के गुर सिखाये जाते हैं। यह वर्क शॉप सभी के लिए खुली होती है लेकिन इसमें ज़्यादातर दलित हिस्सा लेते हैं। बिज़नेस में पैसे लगाने की चाह रखने वाले भी इस वर्क शॉप में हिस्सा लेते हैं।

ये भी पढ़ें,

श्वेतक ने बनाई एक ऐसी डिवाईस जो स्मार्ट फोन के माध्यम से करेगी स्वास्थ्य परीक्षण