"जौनपुर के लोग मुंबई में दो काम में बड़े माहिर होते हैं, एक तो चटपटी पानीपुरी बनाकर बेचने में और दूसरा महाबोरिंग लिफ़्टमैन की नौकरी करने में। गज़ब का कॉन्ट्रास्ट है दोनों में। कुछ बिल्डिंग्स की लिफ़्ट में बिहारी और पहाड़ी इलाकों से आये लिफ़्टमेन भी पाये जाते हैं। इन सभी में कॉमन क्या है? आपको मालूम है, ये सभी अक्सर अपने मोबाइल में डाउनलोडेड फिल्में देखते हुए दिखते हैं और वे किस तरह की फिल्में होती हैं, जिन्हें देख इन लिफ़्टमेन का मूड इतना लिफ़्ट हो जाता है, कि वे अपने-अपने मोबाइल से चिपके रहते हैं? पढ़िये न, दिलचस्प है..."
मैं मुंबई में रहता हूं। एक हफ्ते पहले ही नये घर में शिफ्ट हुआ हूं। शिफ्टिंग के दौरान मैंने एक बहुत दिलचस्प बात देखी... मेरी बिल्डिंग का लिफ़्टमैन। अब आपको लगेगा, कि लिफ़्टमैन की ज़िंदगी में सिवाय लिफ़्ट के बटन दबाने के क्या दिलचस्प हो सकता है? दरअसल, उनकी भी ज़िंदगी का एक ऐसा चैप्टर है, जो बेहद इंटरेस्टिंग है।
घर का सामान बहुत ज़्यादा था और मूवर्स ऐंड पैकर्स के साथ कई दफा लिफ़्ट में ऊपर नीचे भी होना पड़ा, कि कहीं कुछ दिलअजीज़ सामानों का नुक्सान न हो जाये। इसी बीच मैंने देखा कि मेरी बिल्डिंग का लिफ़्टमैन स्टूल पर बैठा लिफ़्ट का बटन दबाने के बाद अपने टचस्क्रीन मोबाईल में मशरूफ़ हो जाता। बार-बार उसे इस तरह मोबाईल में खोता देख, मेरी जिज्ञासा बढ़ गई और मैंने पाया कि लिफ़्टमैन अपने मोबाईल पर कोई फिल्म देख रहा था। कुछ और बिल्डिंग्स में भी मैने लिफ़्टमेन को अपने अपने मोबाईल में इसी तरह गुम होते हुए देखा था। तब मैंने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था, लेकिन अपनी बिल्डिंग के लिफ़्टमैन को देखने के बाद मुझे लगा, कि क्या बाकी के लिफ़्टमेन भी फिल्में ही देखते हैं या कुछ और करते हैं और यदि फिल्में ही देखते हैं, तो ये फिल्में आती कहां से हैं?
मैंने सोसाईटी के कुछ लिफ़्टमेन से बातचीत करनी शुरू की, उनसे पूछा कि मोबाईल पर इतनी सारी फिल्में कहां से आती हैं? ये तो थोड़ा बहुत पता था ही, कि डाउनलोडिंग की भी अपनी एक अवैध इंडस्ट्री है। पर अब जो सबसे ज़्यादा दिलचस्प मामला सामने आया, वो यह था, कि ये लोग किस तरह की फिल्में देखते हैं? तो पता चला कि वे उस तरह की फिल्में देखना पसंद करते हैं, जिनमें हिरोइन यूनिफॉर्म में होती हैं। चाहे वो पुलिस की यूनिफॉर्म हो या फिर डाकू की। साथ ही उन्हें हिरोइन्स का रिवेन्ज लेना भी बेहद पसंद है। बदला लेती हुई औरतों के देख कर उन्हें मज़ा आ जाता है।
"बेशक ये सभी अब बड़े शहरों की हाइ-राइज़ बिल्डिंग्स की लिफ़्ट्स में काम करते हैं, लेकिन इनके सबकॉन्शस में ये बात ज़रूर है कि इनके इलाके की महिलाओं को अपने हिस्से का बदला ले ही लेना चाहिए।"
इनमें से ज्यादातर लोग उत्तर भारत के यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा और पहाड़ी राज्यों के गाँवों से आते हैं। ये समाज के बहुत अधिक मजबूत तबके से नहीं आते। इनकी वहां अपनी कोई ‘से‘ नहीं होती और उन समाजों में महिलाओं को दबा कर रखा जाता रहा है। बेशक ये सभी अब बड़े शहरों की हाइ-राइज़ बिल्डिंग्स की लिफ़्ट्स में काम करते हैं, लेकिन इनके सबकॉन्शस में ये बात ज़रूर है कि इनके इलाके की महिलाओं को अपने हिस्से का बदला ले ही लेना चाहिए। अपनी फैंटसीज़ को पूरा करने के लिए इन्होंने फिल्मों का सहारा लिया। फिर चाहे रेखा की खून भरी मांग हो या श्रीदेवी की शेरनी। एक और फिल्म है जिसकी टीआरपी काफी हाई देखी गई और वो है मुंबई की किरण बेदी।
"किस तरह हर इंसान के अंदर कुछ न कुछ पॉज़िटिव करने या देखने की ख़्वाहिश है। ये बात और है, कि अपनी रोजी-रोटी की लड़ाई के चलते वे कुछ ख़ास कर नहीं सकते, लेकिन उनका दिल ये चाहता है, कि हर किसी की पोज़िशन थोड़ी-सी लिफ़्ट ज़रूर हो जाये, जो पहले से है वो ज़रा बेहतर हो जाये।"
अगली बार आप जब कभी किसी हाई-राइज़ बिल्डिंग में जायें और लिफ़्टमैन को फिल्म देखते हुए देखें, तो ज़रा ये मालूम करने की कोशिश ज़रूर करें कि लिफ़्ट में मौजूद लिफ़्टमैन कौन-सी फिल्म देख रहा है। उसके दिल और दिमाग में चल क्या रहा है, कुछ पता तो लगे...