'द टेस्टमेंट' को मिला था प्रारंभिक दौर में ही ज़बर्दस्त झटका, लेकिन हिम्मत और हौसले से बढ़ाए क़दम
‘द टेस्टमेंट’ एक ऐसे स्टार्टअप की कहानी है, जिसने शुरू में ही ज़बर्दस्त झटके खाये, हिचकोलों से कश्ती डूब भी सकती थी, क्योंकि जिन्होंने संभालने का वादा किया था, उन्होंने ही इसको डुबोने का सामान तैयार कर दिया, लेकिन कहते हैं न कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है, इसको बनाने वालों ने हिम्मत नहीं हारी और एक कॉलेज पत्रिका से, जिसका सफर शुरू हुआ था, आज यह मैनपावर नेटवर्किंग वाला स्टार्टअप बन गया।
‘द टेस्टमेंट’ को विश्वविद्यालय की पत्रिका के तौर पर शुरू किया गया था। उनका लक्ष्य आईपी विश्वविद्यालय को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित करना था क्योंकि वे अपने अंदर टीयर2 शहर के संस्थान से पढ़ने की हीन भावना को दूर करना चाहते थे। इसकी शुरूआत अप्रैल, 2012 में हुई। शुरूआत में ‘द टेस्टमेंट’ टीम के लिए सबकुछ ठीक ठाक था। जुलाई, 2012 में कॉलेज मैनेजमेंट की ओर से निवेश का आश्वासन भी मिला। इतना ही नहीं राष्ट्रीय अखबारों में इनके काम की चर्चा भी होने लगी, लेकिन तब यह कार्य और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया था, जब इसके पहले निवेशक ने इनका साथ छोड़ दिया। इनको बड़ा झटका लगा था, जब कॉलेज ने इनका साथ छोड़ दिया था। कॉलेज का मैनेजमेंट अपने वादे से मुकर गया था और उसने शुरूआती निवेश से अपने हाथ खींच लिये थे। सह संस्थापक निशांत बताते हैं, “तब हम अपने काम को रोक भी सकते थे या हम दूसरा कोई काम कर सकते थे, लेकिन हमने इसे जारी रखने का फैसला लिया और आगे बढ़ते गये।”
‘द टेस्टमेंट’ में निशांत के अलावा अवनीश खन्ना और कुमार संभव दूसरे सह-संस्थापक हैं। इन तीनों ने आईपी विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की है। ‘द टेस्टमेंट’ ने ट्रेनिंग और डेवलपमेंट कंपनी के अलावा मीडिया और मार्केटिंग में मौके तलाशे। निशांत के मुताबिक “आर्थिक रूप से ये ज्यादा फ़ायदेमंद नहीं था, लेकिन इस यात्रा के दौरान हमने 12 महीनों के दौरान देशभर के 10 लाख छात्रों का एक नेटवर्क तैयार किया।”
‘द टेस्टमेंट’ कंपनियों को आंशिक तौर पर मैनपावर सप्लाई करने का काम करता है। ‘इसमें आज दैनिक आधार पर 10 शहरों से 60 लोग काम करते हैं। कंपनी का दावा है कि पिछले वित्तीय वर्ष में कंपनी ने चार सौ प्रतिशत तक बढ़ोतरी की है। निशांत के मुताबिक “पिछले वित्तीय वर्ष में हमने 30 लाख रुपये का राजस्व हासिल किया और अब उम्मीद है कि चालू वित्तीय वर्ष के दौरान ये 1.2 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।”
स्टार्टअप का दावा है कि उसको मिलने वाले हर प्रोजेक्ट में 20 प्रतिशत तक का अच्छा मार्जिन मिल जाता है। फिलहाल ये अपनी सेवाएं फोर्ड, जनरल मोटर्स, मारूति सुजुकी, यूबीएम के अलावा सफल स्टार्टअप जैसे उबर, क्विकर, अर्बनक्लेप, त्रिपदा, स्वजल आदि कंपनियों को दे रहे हैं। निशांत का कहना है कि “हम इन कंपनियों के लिए बाज़ार में अधिग्रहण और प्रशिक्षण के काम में मदद करते हैं।”
‘द टेस्टमेंट’ की योजना साल 2016-17 के अंत तक अपने राजस्व को 5 करोड़ रुपये तक पहुंचाने की है। साल 2015 में ‘इसके 10 शहरों में 20 ग्राहक हैं और इनके लिए कंपनी पाँच सौ से ज्यादा लोगों की मदद ले रही है। कंपनी की नजर अब इन हाउस ऑटोमेट वर्कफोर्स के साथ प्रबंधन और प्रशिक्षण प्रक्रियाओं का विकास करना चाहता है। कंपनी अब 20 और लोगों को अपने यहां रखने का मन बना रही है जो इस साल मुंबई और बेंगलुरू में काम करना शुरू कर देंगे। फिलहाल 90 प्रतिशत लोग पार्ट टाइम के तौर पर बाजार की मांग पूरी कर रहे हैं और ये सब असंगठित हैं या किसी एजेंसी के ज़रिए काम करते हैं। हालांकि ये एजेंसियाँ स्टार्टअप और विभिन्न ब्रांड के लिए नये जमाने की प्रौद्योगिकी की ज़रूरतों को समझने में काबिल नहीं हैं। ऐसे में मुकाबला ऐसी ही एजेंसियों के साथ है।
‘द टेस्टमेंट’ ने कभी भी बाहर से निवेश नहीं उठाया है। निशांत का कहना है कि “शीर्ष पायदान वाले संस्थानों के संस्थापकों के लिए निवेशक जुटाना आसान होता है, लेकिन हमारे संस्थान को ज्यादा लोग नहीं जानते इसलिए यहां पर बाहर से पूँजी जुटाना संभव नहीं था।”
आज ज्यादातर स्टार्टअप वेंचर कैपिटल के ज़रिए निवेश हासिल कर रहे हैं और उद्यमियों का विश्वास है कि बाहरी निवेश के जरिये अपना अस्तित्व बनाये रखना मुश्किल होता है। बावजूद साल 1997-2007 तक 900 तेजी से बढ़ती कंपनियों में से 756 ऐसी कंपनियां थी जिन्होंने निवेश हासिल करने की कोशिश नहीं की। निशांत के मुताबिक “बड़ा कारोबार खड़ा करने के लिए आपको ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं होती, जरूरत होती है कि आपके पास ना सिर्फ अच्छा बिज़नेस मॉडल हो बल्कि आपका मिशन भी सही हो। अपने चारों ओर देखिये हर जगह कीमतों को लेकर जंग छिड़ी हुई है ऐसे में आपको दूसरों के मुकाबले सस्ती सेवाएं देने का दबाव होता है वर्ना आप फेल भी हो सकते हैं।”