भारत में पहली बार होगा यूट्रस ट्रांसप्लांट
ट्रांसप्लांट पुणे के गैलेक्सी केयर हॉस्पिटल में किया जायेगा। अस्पताल का एक पूरा दल इसके लिए तैयार किया गया है। सर्जन शैलेश पुणतांबेकर, स्त्री रोग विशेषज्ञ और 12 सदस्यों वाली टीम द्वारा ट्रांसप्लांट को अंजाम देंगे। अब तक पूरी दुनिया में केवल 25 यूट्रस ही ट्रांसप्लांट किए गये हैं, जिनमें सिर्फ 10 ट्रांसप्लांट सफल हुए हैं।
दुनिया का सबसे सुंदर एहसास है माँ बनना। एक नन्हें जीव को इस दुनिया में लाना किसी आश्चर्य और खुशनसीबी से कम नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें ये खुशनसीबी नसीब नहीं। कई कोशिशों के बाद भी नन्हें कदमों की आहट और किलकारी जिन घरों में गूंज नहीं पाती, उनसे जाकर पूछें कि उन्हें ये कमी कितनी खलती है! लेकिन अब उन्हें परेशान होने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं, क्योंकि भारत में भी गर्भाशय ट्रांसप्लांट होने जा रहा है और यदि ये प्रयास सफल रहा, तो इसे आगे भी किया जायेगा...
दुनिया का पहला यूट्रस ट्रांसप्लाट बेबी, फोटो साभार: medscapea12bc34de56fgmedium"/>
यूट्रस ट्रांसप्लांट, यानि की बच्चेदानी (गर्भाशय) ट्रांसप्लाट की पहली सफल सर्जरी 2014 में स्वीडन में हुई थी। अब भारत भी इस दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है। ये ट्रांसप्लांट भारत में लाखों महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बन कर आया है, जिसकी मदद से बांझपन का दंश झेल रही औरतें भी मां बनने का सुख भोग सकेंगी।
यूट्रस यानी कि बच्चेदानी ट्रांसप्लांट में एक महिला का यूट्रस सर्जरी द्वारा दूसरी महिला के शरीर में सावधानीपूर्वक लगाया जाता है। लेकिन सिर्फ यूट्रस का लगाना ही काफी नहीं है, बल्कि शरीर द्वारा नये शरीर के यूट्रस को स्वीकार किया जाना भी बेहद जरूरी है। इस संपूर्ण प्रक्रिया का उद्देश्य उन महिलाओं को गर्भ धारण योग्य बनाना है, जिनका यूट्रस किसी वजह से खराब हो गया हो। यूट्रस ट्रांसप्लांट सिर्फ उन्हीं महिलाओं में किया जाता है, जिनका यूट्रस या तो पूरी तरह खराब हो चुका होता है या फिर जिनके पास जन्म से ही यूट्रस न हो। जैसा कि आंकड़े कहते हैं, प्रत्येक 4 हजार महिलाओं में से 1 के पास जन्म से यूट्रस नहीं होता।
यूट्रस ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में पूरे 1 साल लगते हैं। ट्राेसप्लांट से पहले औरत के शरीर से अंडों को निकाल लिया जाता है और उसके पति के शुक्राणुओं के साथ फ्रीज कर के रख दिया जाता है। स्वास्थ्य के सही होने पर उन्हें महिला के यूटरस में स्थापित कर दिया जाता है। महिला के गर्भ धारण करने के बाद भी महिला का खास ध्यान रखना जरुरी होता है। बच्चे न होने तक गर्भपात या प्री-मेच्योर डिलिवरी होने का खतरा बना रहता है।
हाल ही में राज्य सरकार द्वारा यूट्रस ट्रांसप्लांट को अनुमति मिलने बाद बड़ौदा की 26 वर्षीय नेहा भारत की पहली यूट्रस ट्रांसप्लांट मां बनने जा रही हैं। नेहा को उनकी 41 वर्षीय मां के द्वारा ही यूट्रस दिया जा रहा है। 18 मई यानि की कल पुणे के गैलेक्सी केयर हॉस्पिटल में भारत का पहला यूट्रस ट्रांसप्लांट किया जायेगा। नेहा कहती हैं, 'मां बनने का सुख दुनिया में सबसे बड़ा है।' दो साल पहले नेहा का 3 बार गर्भपात हो चुका है और एक बच्चे को तो वे पैदा होते ही खो चुकीं थी। नेहा का यूट्रस पूरी तरह से नष्ट हो चुका था और भविष्य में प्रेगनेंसी की उम्मीद न के बराबर थी, लेकिन राज्य सरकार के फैसले ने उनकी ज़िंदगी में उम्मीद की एक नई किरण को जगाया है।
नेहा के ट्रांसप्लांट के बाद 19 मई को 22 वर्षीय श्वेता का भी यूट्रस ट्रांसप्लांट किया जायेगा। विवाह के बाद बच्चा न होने पर पता चला कि श्वेता के पास जन्म से ही यूट्रस नहीं है। श्वेता को उनकी 45 वर्षीय मां अपना यूट्रस दे रहीं हैं। अस्पताल के निदेशक डॉ. शैलेश पुणतांबेकर ने मीडिया को बताया, कि 'ट्रांसप्लांट की पूरी तैयारियां हो चुकी हैं। नेहा के अलावा दो ट्रांसप्लांट और किए जायेंगे।' ट्रांसप्लांट पुणे के गैलेक्सी केयर हॉस्पिटल में किया जायेगा। अस्पताल का एक पूरा दल इसके लिए तैयार किया गया है। सर्जन शैलेश पुणतांबेकर, स्त्री रोग विशेषज्ञ और 12 सदस्यों वाली टीम द्वारा ट्रांसप्लांट को अंजाम देंगे। अब तक पूरी दुनिया में केवल 25 यूट्रस ही ट्रांसप्लांट किए गये हैं, जिनमें सिर्फ 10 ट्रांसप्लांट सफल हुए हैं। पहली सफल सर्जरी स्वीडन में 2014 में हुई थी। अब भारत भी इस दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है। ये ट्रांसप्लांट भारत में लाखों महिलाओं के लिए उम्मीद किरण बन कर आया। जिस कारण बांझपन का दंश झेल रही औरतें अब मां बनने का सुख भोग सकेंगी।
क्या होता है ट्रांसप्लांट यूट्रस का बच्चा पैदा होने बाद?
बच्चा होने के बाद चाहे तो औरत अपना ट्रांसप्लांट यूट्रस निकलवा सकती है या फिर चाहे तो दूसरे बच्चे के होने तक रख भी सकती है, लेकिन दो बच्चे होने के बाद ट्रांसप्लांट यूट्रस निकलवाना अनिवार्य है, क्योंकि यूट्रस न हटवाने से औरत के शरीर में कई प्रकार के इंफेक्शन हो सकते हैं, इसलिए उसे रखे रहना काफी खतरनाक है।
यूट्रस ट्रांसप्लांट के फायदे
यूट्रस ट्रांसप्लांट उन महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बनकर आया है, जो मां बनने का सपना छोड़ चुकीं हैं। ये ट्रांसप्लांट आशा देता है उन परिवारों को जिनके घर में संतान नहीं है। मेडिकल फील्ड में इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। अब सरोगेसी की बजाए महिलाएं खुद बच्चे को जन्म दे पाएंगी। इस ट्रांसप्लांट की कामयाबी से भारत को भी फायदा होगा।
यूट्रस ट्रांसप्लांट में होने वाली मुश्किलें
यूट्रस ट्रांसप्लांट सबसे मुश्किल सर्जरी है। क्योंकि बच्चेदानी पेल्विक रीजन में होती है जहां बहुत पतली धमनियों में खून बहता है। इसे जोड़ना बहुत मुश्किल है और रिजेक्शन का खतरा भी रहता ही है। इसमें सर्जरी द्वारा एक महिला का यूट्रस दूसरी महिला के शरीर में लगाया जाता है। खतरा ये है, कि बॉडी दूसरे के ऑर्गन को स्वीकार नहीं करती। सर्जरी के दौरान ब्लड वेसेल्स को बचाना, ब्लड टिशू को डेड होने से पहले कनेक्ट करने जैसे चैलेंज होते हैं। गर्भ धारण करने के बाद भी गर्भपात का खतरा बना रहता है और साथ ही बच्चे के समय से पहले जन्म लेने का खतरा भी बढ़ जाता है।
भारत मेडिकल क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। दूर देशों से भारत में कई लोग इलाज करवाने आते है। इसका मुख्य कारण भारत की सस्ती मेडिकल सुविधाएं हो सकती हैं, ऐसे में भारत में यूट्रस ट्रांसप्लांट एक बहुत बड़ा कदम साबित होगा। उम्मीद है, कि नेहा और श्वेता की ही तरह भारत की लाखों महिलाएं इस सुविधा का लाभ उठा सकेंगी।
-प्रज्ञा श्रीवास्तव