Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

मणिपुर की पुरानी कला को जिंदा कर रोजगार पैदा कर रही हैं ये महिलाएं

मणिपुर की पुरानी कला को जिंदा कर रोजगार पैदा कर रही हैं ये महिलाएं

Monday December 11, 2017 , 4 min Read

कलाप्रधान अपने देश में भी न जाने कितनी कलाएं अपनी अंतिम सांसें गिनने को मजबूर हैं। ऐसे समय में मणिपुर के गांवों में एक अनूठी पहल चलाई जा रही है।

साभार: इम्पैक्ट अल्फा

साभार: इम्पैक्ट अल्फा


महिलाओं के लिए नेस्ट नाम की एक संस्था ने पुराने शिल्पों को बाजार में लाकर नए अवसर खोले हैं। 

वैश्विक कनेक्टिविटी और उद्यमियों के नेटवर्क की वजह से मणिपुर की विशिष्ट ब्लैक मिट्टी के बर्तनों को भारत और दुनिया भर के बाजारों में लाया जा रहा है। जिससे स्थानीय कारीगरों, मुख्य रूप से महिलाएं अपने परिवारों और गांवों में नए अधिकार प्राप्त कर रही हैं।

कला ही जीवन है, ऐसा हम पढ़ते, सुनते आए हैं। लेकिन समांतर रूप से एक और कटु सच्चाई ये भी है कि इतनी मेहनत करने वाले कलाकारों का जीवन ही अंधकार में रह जाता है, उनके सामने जीविकोपार्जन की समस्या हमेशा मुंह बाए रहती है। लोग कला की तारीफ तो करते हैं लेकिन कलाकृतियों को खरीदने में रुचि नहीं दिखाते। ऐसे में धीरे-धीरे कला के अनेको रूप विलुप्त हो जाते हैं। कलाप्रधान अपने देश में भी न जाने कितनी कलाएं अपनी अंतिम सांसें गिनने को मजबूर हैं। ऐसे समय में मणिपुर के गांवों में एक अनूठी पहल चलाई जा रही है।

मणिपुर, भारत के सुदूर पूर्व में एक पहाड़ी राज्य है। जिसे देश के स्विट्जरलैंड के रूप में जाना जाता है। सुरम्य क्षेत्र में गांवों के निवासियों को लगातार समस्या के साथ कुश्ती करनी पड़ती है। एक सतत आजीविका पैदा करना, उनके लिए सबसे बड़ा चैलेंज है। लेकिन अब वहां के निवासियों खासकर महिलाओं के लिए नेस्ट नाम की एक संस्था ने पुराने शिल्पों को बाजार में लाकर नए अवसर खोले हैं। वैश्विक कनेक्टिविटी और उद्यमियों के नेटवर्क की वजह से मणिपुर की विशिष्ट ब्लैक मिट्टी के बर्तनों को भारत और दुनिया भर के बाजारों में लाया जा रहा है। जिससे स्थानीय कारीगरों, मुख्य रूप से महिलाएं अपने परिवारों और गांवों में नए अधिकार प्राप्त कर रही हैं।

गांव के हस्तशिल्प एक अनौपचारिक आर्थिक क्षेत्र का हिस्सा हैं जो सतत विकास लक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण है। एशियन डेवलपमेंट सोसाइटी के मुताबिक, दक्षिण पूर्व एशिया में चार नई नौकरियों में से तीन के लिए शिल्पकार हैं। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, दक्षिण एशिया में करीब 50 मिलियन घर आधारित श्रमिक महिलाएं हैं। क्रिस्टीन लेन जो कि नेस्ट की मुख्य विपणन अधिकारी हैं, कहती हैं कि जब महिलाएं काम करती हैं, अर्थव्यवस्थाएं आगे बढ़ती हैं। न्यूयॉर्क शहर का गैर लाभ जो विकासशील देशों में कला और शिल्प की नौकरियों के संरक्षण में काम करता है।

साभार: पिनट्रेस्ट

साभार: पिनट्रेस्ट


नेस्ट, भारत में 12,000 से अधिक कारीगरों के साथ व्यवसाय करता है। इन उत्पादों में हथकरघा, रेशम बुनाई, छपाई और पारंपरिक इकत डाइंग सहित विभिन्न शिल्पकलाएं होती हैं। नेस्ट समूहों के लिए व्यापारिक प्रशिक्षण भी प्रदान करता है और कारीगरों को ब्रांडों और खुदरा विक्रेताओं से जोड़ता है। नेस्ट के संस्थापक रेबेका वान बर्गन के मुताबिक, "अगर हम उनकी सहायता करने के लिए कुछ नहीं करते हैं तो घर से काम करने वाली महिलाओं की यह शिल्प परंपरा खो जाएगी।" मुंबई के सामाजिक प्रभाव फर्म दश्र के मुताबिक, शिल्प के वैश्विक बाजार में 400 अरब डॉलर का मूल्य है, लेकिन भारत में इसके 2 फीसदी से भी कम कम हैं।

मणिपुर में मिट्टी के बर्तनों का निर्माण नागा जनजातियों द्वारा किया जाता है, जो कई पीढ़ियों से स्थानीय मिट्टी और पत्थरों से प्लेटें, कटोरे, कप और मूर्तियां बना रहे हैं। लोंगपी हैम के नाम से जाना जाने वाला काली मिट्टी का बर्तन विश्व प्रसिद्ध रहा है। मिट्टी के बर्तनों को मची पेड़ की पत्तियों से पॉलिश किया जाता है। जिससे बर्तनों का रंग अलग ही निखरकर आता है।

ये भी पढ़ें: रॉकेट साइंस के क्षेत्र में भारत को शिखर पर पहुंचाने वाली भारत की मिसाइल महिला टेसी थॉमस