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अपनी मेहनत की कमाई और दान की मदद से कैब ड्राइवर ने खड़ा किया अस्पताल

कैब ड्राइवर को बहन की बीमारी से मिली प्रेरणा, खोल दिया अस्पताल...

अपनी मेहनत की कमाई और दान की मदद से कैब ड्राइवर ने खड़ा किया अस्पताल

Wednesday February 21, 2018 , 5 min Read

सैदुल के पास अपनी बहन का इलाज कराने के पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने सोच लिया कि वह किसी भी तरह से अपने गांव में एक अस्पताल बनाएंगे। बीते 12 सालों के संघर्ष के बाद सैदुल का सपना सच हो गया है और कोलकाता के बाहरी इलाके, पुनरी गांव में उन्होंने एक अस्पताल बनवा दिया है।

सैदुल के साथ सृष्टि (दाएं) (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सैदुल के साथ सृष्टि (दाएं) (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


टैक्सी चलाने से इतनी कमाई नहीं हो सकती थी कि आसानी से एक अस्पताल खड़ा किया जा सके। इसलिए सैदुल ने अपनी टैक्सी पर बैठने वाले यात्रियों से दान मांगना शुरू किया। कई सारे अच्छे और भले यात्री मिले जिन्होंने इस काम में अपना पूरा सहयोग दिया।

कोलकाता में टैक्सी चलाने वाले सैदुल लस्कर जब 17 साल के थे तभी उनकी बहन का देहांत हो गया था। यह आसमयिक मृत्यु उचित इलाज न मिल पाने की वजह से हुई थी। लेकिन यह मौत सैदुल के मन पर एक गहरा प्रभाव छोड़ गई। उन्होंने सोच लिया कि वह अब किसी को पैसों और इलाज के आभाव में मरने नहीं देंगे। सैदुल के पास अपनी बहन का इलाज कराने के पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने सोच लिया कि वह किसी भी तरह से अपने गांव में एक अस्पताल बनाएंगे। बीते 12 सालों के संघर्ष के बाद सैदुल का सपना सच हो गया है और कोलकाता के बाहरी इलाके, पुनरी गांव में उन्होंने एक अस्पताल बनवा दिया है।

12 सालों के संघर्ष के बाद आज यह दिन आया है जब सैदुल ने अपने सपने को पूरा किया। इस असप्ताल का नाम मारुफा स्मृति वेलफेयर फाउंडेशन है। मारूफा सैदुल की बहन का नाम था जिसकी याद में यह अस्पताल बना है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक इस गांव से लगभग 100 गांव लाभान्वित होंगे। इसी शनिवार से अस्पताल की ओपीडी शुरू हो जाएगी, लेकिन बाकी की सुविधाओं के लिए अभी छह महीने का समय और लग सकता है। अस्पताल में 30 बेडों की सुविधा की गई है।

सैदुल का अस्पताल बनाने का यह सफर आसान नहीं था। वह याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने अस्पताल बनवाने के लिए दो बीघा जमीन खरीदने का प्लान बनाया। लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। उन्होंने अपनी पत्नी से यह बात शेयर की। उनकी पत्नी ने अपने सारे गहने सैदुल को दे दिए और कहा कि वे इसे बेचकर जमीन खरीद लें। उनकी पत्नी शमीमा ने बताया, 'इन्होंने अस्पताल बनवाने के लिए मुझसे मेरे गहने मांगे। हमने काफी लंबी बहस की लेकिन इन्होंने मुझे समझा ही लिया। पिछले 9 सालों से ये अपनी कमाई का एक-एक पैसा बचा रहे हैं जिससे कि अस्पताल बन सके।'

एक कार्यक्रम के दौरान सैदुल

एक कार्यक्रम के दौरान सैदुल


टैक्सी चलाने से इतनी कमाई नहीं हो सकती थी कि आसानी से एक अस्पताल खड़ा किया जा सके। इसलिए सैदुल ने अपनी टैक्सी पर बैठने वाले यात्रियों से दान मांगना शुरू किया। कई सारे अच्छे और भले यात्री मिले जिन्होंने इस काम में अपना पूरा सहयोग दिया। ऐसे ही एक यात्री थी जिन्होंने महीने की पूरी सैलरी सैदुल को दान कर दी। अस्पताल के उद्घाटन के मौके पर उन्हें भी बुलाया गया था। वह यात्री 23 साल की युवा मकैनिकल इंजीनियर सृष्टि थीं जो कि साउथ सिटी से सैदुल की टैक्सी पर सफर करने निकली थीं। जिस वक्त सैदुल ने उनसे अस्पताल बनवाने की बात बताई उस वक्त सृष्टि के पास सिर्फ 100 रुपये एक्स्ट्रा थे। उन्होंने ये 100 रुपये सैदुल को पकड़ाए और उनका नंबर ले लिया।

सैदुल ने बताया कि पिछले साल जून में सृष्टि उनके अस्पताल में आईं और उन्हें 25,000 रुपये दिया। यह सृष्टि के पहले महीने की सैलरी थी। सैदुल ने कहा कि उन्होंने सृष्टि में अपनी बहन का अक्स देख लिया। जिस जगह यह अस्पताल बना है वहां आस पास इलाज की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। अस्पताल बनने के बाद लगभग 100 गांवों के लोगों को इलाज के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा और उनका इलाज मुफ्त में हो जाएगा। अस्पताल बनने की बात सुनकर आस-पास गांव के लोग भी मदद करने के लिए आगे आए और हरसंभव सहायता की। इसीलिए अस्पताल का एक और फ्लोर बन सका।

अभी तक इस अस्पताल को बनने में 36 लाख रुपये खर्च हो गए हैं। वर्तमान की योजना के मुताबिक अस्पताल का पहला फ्लोर बाहर के मरीजों के लिए होगा और दूसरे फ्लोर पर पैथोलॉजी की लैब होगी। सैदुल को कई संगठनों से भी मदद मिली है। संगठन की तरफ से उन्हें एक्सरे मशीन और एक ईसीजी मशीन मिली है। सैदुल का सपना भी काफी बड़ा है। अस्पताल के बाद वह यहां एक नर्सिगं स्कूल खोलना चाहते हैं जिससे स्थानीय लड़कियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार दिया जा सके। अस्पताल में आंखों का डिपार्टमेंट संभालने वाले जॉय चौधरी ने कहा कि सैदुल की नीयत और मेहनत देखकर वे यहां काम करने के लिए आए थे।

अस्पताल में ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट का जिम्मा शिरीष चौधरी संभाल रहे हैं। उन्होंने कहा, 'एक अस्पताल बनाना काफी जिम्मेदारी का काम है और इसकी बुनियादी जरूरतों के लिए ही 2 से 3 करोड़ रुपये लग जाते हैं। मैं 'बंचबो' नाम के एक एनजीओ का सदस्य हूं। हम भी सैदुल की मदद के लिए सामने आए। शुरुआत में हमने ओपीडी की सुविधा आरंभ की है, बहुत जल्द ही हम बाकी डिपार्टमेंट भी शुरू करेंगे। मुझे लगता है कि किसी काम को अगर मिलकर किया जाए तो आसानी से उसे अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।' उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में और लोग भी इस मुहिम से जुड़ेंगे और मानवता की सेवा के लिए आगे आएंगे।

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