चाय बेचने से मिलने वाले पैसों से गरीब मजदूर के बच्चों की पाठशाला चलाते हैं प्रकाश
कटक (ओडिशा) के डी. प्रकाश राव अपनी चाय की दुकान की कमाई से 'गरीब, नशे के लती, भीख मांगते अथवा बाल मजदूरी करते बच्चों' की चला रहे हैं पाठशाला...
अपनी चाय की दुकान की कमाई से 'गरीब, नशे के लती, भीख मांगते अथवा बाल मजदूरी करते बच्चों' की पाठशाला चला रहे कटक (ओडिशा) के डी. प्रकाश राव शहर की झोपड़पट्टी में रहते हैं। निजी संपत्ति के नाम पर उनके पास सिर्फ एक साइकिल है। अपने शरीर के अंग वह मेडिकल कॉलेज को डोनेट कर चुके हैं। सीमित आय से ही वह बच्चों को दूध-बिस्कुट का नाश्ता और भोजन देने के अलावा उनका रूटीन हेल्थ चेकअप भी कराते हैं।
आज इस स्कूल में चार से नौ आयुवर्ग के लगभग सत्तर बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। वह बच्चों की पढ़ाई, भोजन आदि के अलावा उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं। वह बच्चों को रुटीन हेल्थ चेकअप के लिए स्वयं लेकर सरकारी अस्पताल जाते हैं।
ओडिशा में 32.59 लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। दूसरी सचाई ये है कि ओडिशा छह से 14 साल के बच्चों की स्कूली शिक्षा के मानक से भी हाशिये पर बना हुआ हैं। इस राज्य में इस आयु वर्ग के बच्चों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है। इंटरनेशनल बैंक फोर रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट की ओर से पिछले साल नवंबर में ओडिशा को एजुकेशन के नाम पर जो 11.9 करोड़ डॉलर का ऋण दिया गया था, वह भी उच्च शिक्षा परियोजना के लिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2017 में यूपी की एक रैली में जब कह दिया कि 'हिंदुस्तान के सबसे ज्यादा गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी ओडिशा में है', तो इस पर ओडिशा विधानसभा में हंगामा मच गया था।
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 30 किलोमीटर की दूरी पर हावड़ा रेलमार्ग पर स्थित ऐसा ही एक जिला है कटक, जहां प्राचीनता और आधुनिकता का एक विशेष मिश्रण देखने को मिलता है। यहां के गरीब बच्चों की शिक्षा का उजाला फैलाने में जुटा है एक ऐसा व्यक्ति, जिसकी रोजी-रोटी का जरिया है चाय की एक छोटी सी दुकान। ऐसे शिक्षा साधक का नाम है डी. प्रकाश राव, जो विगत पचास साल से यहां के बक्सी बाजार में स्थित अपनी चाय की दुकान की आमदनी से गरीब बच्चों के लिए 'आशा आश्वासन' नाम से स्कूल चला रहे हैं। इस स्कूल में वह बच्चों को शिक्षा के साथ खाना भी उपलब्ध कराते हैं। पिछले पचास वर्षों से चाय बेच रहे प्रकाश राव बताते हैं कि वह अपनी आय का आधा हिस्सा देकर गरीब बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा संभालने के अलावा अस्पताल में मरीजों की भी मदद करते हैं। वह सुबह 10 बजे तक चाय बेचते हैं। उसके बाद अपनी पाठशाला में बच्चों को पढ़ाते हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री ने 'मन की बात' में कहा था- 'ऐसे कुछ ही लोग हैं, जो अपना सब कुछ त्याग कर दूसरों के हित और समाज के हित के लिए सोचते हैं। दूसरे के सपनों को अपना बनाने वाले और उन्हें पूरा करने के लिए खुद को खपा देने वाले झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे डी प्रकाश राव ने 70 से अधिक बच्चों के जीवन में उजाला भरा है। यह चाय वाला अपनी आय का 50 प्रतिशत घरेलू स्कूल पर खर्च कर रहा है।'
डी. प्रकाश राव बतात हैं कि बचपन में उन्हें पढ़ने का बड़ा शौक था लेकिन गरीबी के कारण पिता ने उनसे चाय की दुकान खुलवा दी। जब भी वह अपनी दुकान के आसपास की बस्तियों में वंचित-गरीब वर्गों के बच्चों के जीवन को माता- पिता की बेबसी के चलते बर्बाद होते देखते तो उन्हें लगता कि जैसे उनका स्वयं का बचपन उनकी आँखों के सामने पराजित हो रहा है। उसके बाद उन्होंने एक दिन इस दिशा में स्वयं कुछ करने का संकल्प लिया। उन्होंने वर्ष 2000 में अपने दो कमरों वाले घर के एक कमरे में लगभग एक दर्जन बच्चों को इकट्ठा कर पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे और भी बच्चे शामिल होते, बढ़ते गए। उनके काम को देखते हुए 'आशा और आश्वासन' महिला क्लब उनके मिशन में शामिल हो गया। क्लब की ओर से इन बच्चों के लिए 'आशा आश्वासन' नाम से ही दो कमरों का एक स्कूल बनवा दिया गया।
आज इस स्कूल में चार से नौ आयुवर्ग के लगभग सत्तर बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। वह बच्चों की पढ़ाई, भोजन आदि के अलावा उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं। वह बच्चों को रुटीन हेल्थ चेकअप के लिए स्वयं लेकर सरकारी अस्पताल जाते हैं। उन्होंने अपने शरीर के अंग पहले ही मेडिकल कॉलेज में डोनेट कर दिए हैं। साठ साल से अधिक उम्र के हो चुके डी प्रकाश राव कटक शहर में सड़क किनारे बसी तेलूगु झोपड़पट्टी में रहते हैं। स्वाध्याय से अब तो वह अच्छी हिन्दी और अंग्रेज़ी भी बोल लेते हैं। अब वह चाय दुकान को अपनी कमाई का ज़रिया नहीं, ग़रीब बच्चों की पढ़ाई का आर्थिक स्रोत मानते हैं। अठारह साल पहले उन्होंने अपनी कमाई से ही इस मिशन की शुरुआत की थी। उनके मन में हमेशा ये कसक बनी रहती है कि ग़रीबी के कारण वह कॉलेज की पढ़ाई नहीं कर सके थे। अब तो वह एक दिन में पांच-सात सौ रुपए कमा लेते हैं, जिसमें घर खर्च चलाने भर को रखकर बाकी बच्चों पर खर्च कर देते हैं।
हर बच्चे को सुबह नाश्ते में सौ मिली लीटर दूध और दो बिस्कुट और दोपहर के खाने में दाल-चावल दिया जाता है। अब तो प्रकाश राव के स्कूल में आधा दर्जन शिक्षिकाएं भी अध्यापन कर रही हैं। बच्चे इन टीचरों को ‘गुरु माँ’ कहते हैं। स्कूल के लिए एक रसोइया भी है, जो बच्चों के लिए खाना बनाता है। इस स्कूल में बच्चों को तीसरी कक्षा तक का कोर्स करवाया जाता है। उसके बाद बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में चौथी कक्षा में करवा दिया जाता है।
प्रकाश राव बताते हैं कि जब से उनके स्कूल की चर्चा प्रधानमंत्री ने की है, पिछले कुछ दिनों से उनकी ज़िन्दगी में अलग-सा बदलाव आ गया है। रोजाना लोग उनसे मिलने आने लगे हैं। फ़ोन पर लोगों की बधाइयां मिलती रहती हैं। प्रधानमंत्री की सराहना से उन्हें बेहद ख़ुशी हुई है। इस काम में उनका उत्साह बढ़ा है। 25 मई को उनके पास प्रधानमन्त्री कार्यालय से फ़ोन पहुंचा तो उनको विश्वास नहीं हुआ कि प्रधानमन्त्री उनसे मिलना चाहते हैं। उन्हे लगा कि कोई मज़ाक कर रहा है। बाद में जब कलेक्टर ऑफ़िस से फ़ोन आया कि मोदी जी उनसे मिलना चाहते हैं, इसके बाद वह अपने स्कूल के कुछ बच्चों को लेकर मिलने पहुंच गए। प्रधानमंत्री ने उनसे अपने पास सोफे पर बैठने के कहा तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद सोफ़े को झाड़ते हुए मोदी जी ने कहा कि 'आप मेरे पास बैठें। मैं आपके बारे में सब जानता हूं। मुझे आश्चर्य है कि आप इतना सब कैसे कर लेते हैं।'
उन्होंने बच्चों को गीत गाने के लिए कहा, जिस पर बच्चों ने उन्हें एक पुराने उड़िया फ़िल्म का गीत सुनाया। उनके साथ बात करते वक्त लग रहा था, जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में हूं। प्रकाश राव कहते हैं कि उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य इन बच्चों का भविष्य संवारना है। उनकी बस्ती के ज्यादातर निवासी शहर के सफ़ाईकर्मी हैं। वह उन बच्चों को लाकर अपने स्कूल में दाखिल कर लेते हैं, जिन्हे भीख मांगते, चोरी करते हुए पकड़े गए, नशे के चुंगल में फंसे हुए अथवा बाल मज़दूरी करते देख लेते हैं। पहले ऐसे कई एक बच्चों के माता-पिता उनके ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए थे। अपने बच्चों को मजदूरी करवाने के लिए पकड़ ले जाते लेकिन अब स्थितियां सुधर रही हैं। अब बच्चों के अभिभावक भी उनके भविष्य को लेकर गंभीर होने लगे हैं। निजी संपत्ति के नाम पर उनके पास बस एक साइकिल है। यह स्कूल बच्चों की सम्पत्ति है।
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