किसान के बेटे ने पूरी की डॉक्टर की पढ़ाई, गांव में अस्पताल खोलने की तमन्ना
डॉक्टर मेघनाथन के लिए पढ़ाई का सपना देखना काफी मुश्किल था। उनके पिता किसान हैं और इस वजह से मेघनाथन को भी खेत में काम करना पड़ता था। घर का खर्च खेती से ही चलता था इसलिए उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं था।
बीते मंगलवार को लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में दीक्षांत समारोह में मेघनाथन को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गोल्ड मेडल से सम्मानित किया। उन्हें 2018 के पीडियाट्रिक्स विभाग में सर्वश्रेष्ठ छात्र के रूप में शीतला चरण बाजपेयी गोल्ड मेडल मिला।
तमिलनाडु के कालिपट्टी गांव में रहने वाले किसान पुत्र मेघनाथन पी. डॉक्टर बन गए हैं। बीते मंगलवार को लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में दीक्षांत समारोह में मेघनाथन को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गोल्ड मेडल से सम्मानित किया। उन्हें 2018 के पीडियाट्रिक्स विभाग में सर्वश्रेष्ठ छात्र के रूप में शीतला चरण बाजपेयी गोल्ड मेडल मिला। अब मेघनाथन अपनी पढ़ाई पूरी कर गांव लौटेंगे और वे वहां पर बच्चों के लिए हॉस्पिटल खोलना चाहते हैं। दरअसल मेघनाथन के गांव के 100 किलोमीटर के दायरे में कोई अस्पताल नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर मेघनाथन के लिए पढ़ाई का सपना देखना काफी मुश्किल था। उनके पिता किसान हैं और इस वजह से मेघनाथन को भी खेत में काम करना पड़ता था। घर का खर्च खेती से ही चलता था इसलिए उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं था। इस वजह से मेघनाथन रात में 2 बजे से लेकर सुबह 8 बजे तक पढ़ते थे। इससे काम और पढ़ाई का संतुलन बना रहता था। इसके बाद वह स्कूल जाते और वहां से लौटकर सीधे खेत पहुंचते जहां उनके पिता काम कर रहे होते। मेघनाथन खेतों में अपने पिता का हाथ बंटाते।
हालांकि मुश्किल सफर तय कर इस मुकाम तक पहुंचने वाले मेघनाथन अकेले नहीं हैं। मेघनाथ के साथ ही डॉ. आरोही गुप्ता को ठाकुर उल्फत सिंह गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। आरोही को एमडी (पीडियाट्रिक्स) में अच्छा प्रदर्शन करने पर यह पुरस्कार दिया गया। आरोही कहती हैं, 'यह मेरे माता-पिता का सपना था कि मैं डॉक्टर बनूं। वक्त के साथ ही यह सपना मेरा भी हो गया। अब मैं एक एनजीओ खोलना चाहती हूं ताकि गरीब मरीजों का मुफ्त में इलाज कर सकूं।'
इसके साथ ही एमडीएस में डॉ. स्नेहकिरण रघुवंशी को प्रोफेसर एनके अग्रवाल पुरस्कार मिला। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'मैं हमेशा से दांतों की डॉक्टर बनना चाहती थी। UPPGME में अच्छी रैंक मिलने के बाद मुझे केजीएमयू में दाखिला मिल गया। मेरी बहन एक पैथलॉजिस्ट है और अब मैं डेंटिस्ट्री के क्षेत्र में कुछ अच्छा करना चाहती हूं।' केजीएमयू के दीक्षाांत समारोह में बेटियों ने अपनी मेधा का अनूठा प्रदर्शन किया। सर्वाधिक 67 प्रतिशत मेडल बेटियों ने झटके। लड़कों के खाते में महज 33 प्रतिशत मेडल ही आए। कुल मेडल में से 84 लड़कियों को मिले तो 42 मेडल लड़कों के खाते में आए। प्रतिष्ठित हीवेट गोल्ड मेडल सहित आठ गोल्ड व एक सिल्वर मेडल एमबीबीएस की छात्र कृतिका गुप्ता को मिले।
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