इन दो पुलिस ऑफिसर्स ने नहीं की धमकियों की परवाह, ईमानदारी से काम करते हुए आसाराम को दिलाई सजा
2,000 से ज्यादा धमिकयों भरे पत्र और सैकड़ों फोन कॉल्स के बावजूद इन पुलिस अॉफिसर्स ने आसाराम को सजा दिलवाने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका...
मीडिया में हाल के दिनों में काफी चर्चित इस केस की जिम्मेदारी 20 अगस्त 2013 को आईपीएस ऑफिसर अजय लांबा को मिली थी। अजय उस वक्त जोधपुर पश्चिम के डेप्युटी पुलिस कमिश्नर थे। पुलिस ने आसाराम पर पुलिस ने राजस्थान के अपने आश्रम में शाहजहांपुर की नाबालिग बच्ची के साथ रेप करने के जुर्म में नवंबर 2013 में चार्जशीट दाखिल की थी।
देशभर में आसाराम के अनुनाइयों की संख्या लाखों में है। इसीलिए इस केस को संभालना काफी मुश्किल था। अजय लांबा बताते हैं कि इस केस के दौरान उन्हें 2,000 से ज्यादा धमिकयों भरे पत्र और सैकड़ों फोन कॉल्स आईं।
आसाराम को बलात्कार के जुर्म में उम्रकैद की सजा मिलने के साथ ही आखिरकार उस नाबालिग बच्ची को न्याय मिल ही गया जिसने इतनी लंबी और मुश्किल लड़ाई लड़ी। लेकिन आसाराम को सजा दिलवाने में उन पुलिस अधिकारियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिनके बारे में शायद ही लोगों को पता होगा। इस केस में दो पुलिस ऑफिसर्स ने अहम भूमिका निभाई। पहले 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा और दूसरी सीओ चंचल मिश्रा।
मीडिया में हाल के दिनों में काफी चर्चित इस केस की जिम्मेदारी 20 अगस्त 2013 को आईपीएस ऑफिसर अजय लांबा को मिली थी। अजय उस वक्त जोधपुर पश्चिम के डेप्युटी पुलिस कमिश्नर थे। पुलिस ने आसाराम पर पुलिस ने राजस्थान के अपने आश्रम में शाहजहांपुर की नाबालिग बच्ची के साथ रेप करने के जुर्म में नवंबर 2013 में चार्जशीट दाखिल की थी। आसाराम पर पोक्सो, किशोर न्याय अधिनियम सहित आईपीसी की कई धाराएं लगी थीं। केस में आसारम के साथ चार और आरोपियों को शामिल किया गया था। पांच साल लंबे चले इस केस में बीते 25 अप्रैल को स्पेशल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और आसाराम को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
देशभर में आसाराम के अनुनाइयों की संख्या लाखों में है। इसीलिए इस केस को संभालना काफी मुश्किल था। अजय लांबा बताते हैं कि इस केस के दौरान उन्हें 2,000 से ज्यादा धमिकयों भरे पत्र और सैकड़ों फोन कॉल्स आईं। हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए अजय ने कहा, 'इन पत्रों और कॉल्स में मुझे और मेरे परिवार को जान से मारने की धमकियां दी जाती थीं। मेरा फोन हमेशा बजता रहता था। एक वक्त के बाद मैंने अनजाने नंबरों से आने वाली कॉल्स उठानी बंद कर दी। जब मेरा ट्रांसफर उदयपुर हुआ तब जाकर ये कॉल और पत्रों का सिलसिला बंद हुआ।' उन्होंने कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी को स्कूल भेजना बंद कर दिया था और अपनी पत्नी को घर से बाहर निकलने से मना कर दिया था।
अजयपाल ने केस की इन्वेस्टिगेशन के लिए पांच पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की एक टीम बनाई जिसका नेतृत्व चंचल मिश्रा कर रही थीं। चंचल ने ही आसाराम को इंदौर से गिरफ्तार किया था। अजयपाल ने बताया कि उन्होंने एक आरोपी को गवाह की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया था। उस आरोपी ने कबूल किया था कि उसका अगला टार्गेट चंचल मिश्रा ही थीं। दैनिक भास्कर से बातचीत में चंचल ने बताया कि वह एक साथ दो जगह का काम देखती थीं। उन्होंने केस के लिए महीनों तक छुट्टी नहीं ली और अपने घर भी नहीं गईं। उन्होंने बताया कि केस को बंद करने और गवाहों को भटकाने की काफी कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने पूरी हिम्मत के साथ काम किया।
केस की सुनवाई करते हुए स्पेशल कोर्ट ने 77 साल के आसाराम को दोसी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। जज ने बुधवार को आसाराम को आईपीसी की धारा 376, बाल यौन अपराध निषेध अधिनियम (पॉक्सो) और जूवेनाइल जस्टिस ऐक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिया। चंचल मिश्रा अभी भीलवाड़ा में डेप्युटी एसपी के पद पर तैनात हैं तो वहीं अजयपाल लांबा अब जोधपुर में एंटी करप्शन ब्यूरो में एसपी हैं। फैसला आने के बाद दोनों को काफी खुशी हुई।
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