दंतेवाड़ा का पालनार गांव 11 महीने में हुआ डिजिटल
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
नक्सल प्रभावित इस गाँव में इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं थी और नजदीकी एटीएम मशीन व बैंक शाखा जैसी चीजें भी 22 किलोमीटर दूर ही मिल पाती थीं। लेकिन कलेक्टर के प्रयास ने गांव को पूरी तरह डिजिटल कर दिया।
सरकारी योजनाओं जैसे जनधन बैंक खातों से हर व्यक्ति को जोड़ने के लिए रुपे कार्ड की उपलब्धता की जानकारी दी गई, साथ ही आधार कार्ड पंजीयन का कार्य भी नए सिरे से शुरू किया गया।
छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला बीते एक दशक से भी अधिक समय से माओवादी गतिविधियों के लिए सुर्खियों में बना रहा है। नक्लसियों के आतंक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के इस्तेमाल जैसी चीजों के लिए भी ग्रामीणों को उनसे अनुमति लेनी पड़ती थी। हालांकि सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण समय के साथ चीजों में परिवर्तन हुआ। नक्सलियों का आतंक कम हो रहा है, लेकिन संवेदनशीलता अभी भी बनी हुई है।
दंतेवाड़ा जिले के पालनार गांव में भी स्थिति ऐसी ही थी। नक्सल प्रभावित इस गाँव में इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं थी और नजदीकी एटीएम मशीन व बैंक शाखा जैसी चीजें भी 22 किलोमीटर दूर ही मिल पाती थीं। 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के तीन दिन बाद इस गाँव को इस बात की जानकारी मिल सकी।
पालनार में भी ग्रामीण पुराने नोटों को बदलना चाहते थे, लेकिन दैनिक मजदूरी पर आश्रित ज्यादातर जनसंख्या के लिए 22 किलोमीटर लम्बी यात्रा करना एक मुश्किल काम जैसा ही था। तब पहली बार दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने ऐसे गाँवों के लिए डिजिटलीकरण के महत्व को समझा।
इंटरनेट कनेक्टिविटी और मोबाइल कवरेज न होने के साथ ग्रामीणों में डिजिटल साक्षरता और खराब बुनियादी ढांचे जैसी कई बड़ी समस्याएं सामने खड़ीं थीं। उसी समय पास के ही क्षेत्र में एस्सार समूह का खनन अभियान चल रहा था, जिसने इस इलाके में 10 एमबीपीएस का ऑप्टिक फाइबर कनेक्शन स्थापित किया हुआ था।
दंतेवाड़ा जिला के कलेक्टर सौरभ कुमार ने कम्पनी से संपर्क किया और उनसे अनुरोध किया कि वे अपने नेटवर्क को पालनार तक विस्तारित करें। कलेक्टर की पहल पर एस्सार ने इस इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया, इसके साथ ही कुछ समय में नजदीकी साप्ताहिक बाजार केंद्र में वाई-फाई हॉटस्पॉट क्षेत्र स्थापित करने के लिए बीएसएनएल से भी संपर्क किया गया।
आधारभूत संरचना की स्थापना के साथ प्रशासन से स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करने का फैसला किया, जिससे वे अपने डिजिटलीकरण से परिचित होकर अपने साथी ग्रामीणों को वित्तीय और डिजिटल साक्षरता के पहलुओं से परिचित करा सकें। इसके बाद नुक्कड़ नाटक जैसे जागरुकता कार्यक्रमों के जरिए एटीएम, आधार कार्ड, बायोमीट्रिक फिंगरप्रिंट की पहचान प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने का काम किया गया। प्रशासन के प्रतिनिधियों ने स्थानीय लोगों के साथ जुड़े रहने और इन प्रक्रियों के सतत संचालन के लिए नियमित बैठकों का आयोजन किया।
सरकारी योजनाओं जैसे जनधन बैंक खातों से हर व्यक्ति को जोड़ने के लिए रुपे कार्ड की उपलब्धता की जानकारी दी गई, साथ ही आधार कार्ड पंजीयन का कार्य भी नए सिरे से शुरू किया गया। सामान्य ग्रामीणों के बाद दुकानदारों को डिजिटल भुगतान के बारे में भी व्यापक रूप से प्रशिक्षित करने का कार्य किया गया।
इन सभी गतिविधियों के कुछ महीनों के भीतर ही इस क्षेत्र में ऐसी दुकानों की संख्या दोगुना हो गई, जहां पर माइक्रो एटीएम के माध्यम से निकासी और भुगतान किया जा सके। लेनदेन की प्रक्रिया में डिजिटल साक्षरता की सुधरती दर ने जिला प्रशासन को प्रोत्साहित किया।
कुल मिलाकर सिर्फ 11 महीनों के भीतर ही पालनार इस स्थिति में पहुंच गया कि हर दुकान ऑनलाइन भुगतान स्वीकार करने के लिए सक्षम है। लोगों ने भी लेनदेन में डिजिटलीकरण को स्वीकार किया और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने का कार्य भी किया। कुछ महीनों पहले तक जिस जगह पर इंटरनेट कनेक्टिविटी तक नहीं थी, वहां पर एक अस्थिर राजनैतिक माहौल के बाद भी लोग सोशल मीडिया जैसी चीजों को पसंद कर रहे हैं और इनसे सफलतापूर्वक जुड़ रहे हैं।
संक्षेप में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अन्य गांवों के लिए पालनार एक उदाहरण है कि किस तरह डिजिटलीकरण को उत्कृष्ट ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है और कितनी आसानी से उसे अपनाया जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि ग्रामवासियों ने इस बात को न सिर्फ समझा बल्कि समस्याओं और खतरनाक माहौल से घिरी अपनी जिंदगी से लड़कर, ऊपर उठकर आए।
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