किसान के बेटे बुद्धि प्रकाश ने भरी हौसलों की उड़ान और हिमाचल में पर्यटन को पहुँचाया नयी ऊंचाई पर
बुद्धि प्रकाश ठाकुर को आज भी वे दिन अच्छी तरह से याद हैं, जब उनका मकान सिर्फ एक कमरे का हुआ करता था। हिमाचल प्रदेश के खखनाल गाँव में एक कमरे वाले इसी मकान में पूरा परिवार रहता था। बूढ़ी दादी, माता-पिता, दो बहनें और बुद्धि प्रकाश- यानी पूरे 6 लोग एक ही कमरे में उठते-बैठते, जागते-सोते थे। एक कमरे वाले इस मकान का दरवाज़ा जब अंदर से खुलता तो सामने एक बरामदा होता। यही बरामदा एक कमरे वाले मकान को विस्तार देता और इसमें परिवार के कई काम होते थे। गर्मी के दिनों में बरामदे का भरपूर फायदा उठाया जाता, लेकिन ठंड के मौसम में एक कमरे का मकान ही सभी को महफूज़ रखता था। मज़बूत हड्डियों को भी कंपकंपा देने वाली खखनाल गाँव की ठंड में परिवार एक ही कमरे में अपने को समेेटे रखने पर मजबूर था। इसी एक कमरे के मकान से अपनी कारोबारी यात्रा शुरू करने वाले बुद्धि प्रकाश आज हिमाचल प्रदेश के उसी खखनाल गाँव में एक शानदार रिसोर्ट के मालिक हैं और इस रिसोर्ट में 55 कमरे हैं। बुद्धि प्रकाश की कहानी एक कमरे के मकान से 55 कमरों वाले शानदार रिसोर्ट के मालिक बनने तक की ही नहीं है। ये कहानी और भी आगे की है। ये कहानी एक ग़रीब किसान के बेटे के करोड़पति कारोबारी बनने की है। सैलानियों की सहूलियत के लिए एक मामूली से इंसान के निजी स्तर पर, बतौर ऑपरेटर, विमान-सेवा शुरू करने वाले हिमाचल प्रदेश के पहले उद्यमी बनने की है।बुद्धि प्रकाश ठाकुर का जीवन और उनकी कामयाबियाँ एक मिसाल हैं। उनकी कामयाबी की कहानी असंख्य लोगों को प्रेरणा देने का माद्दा रखती है। संघर्ष और अथक प्रयास से मिली कामयाबी की इस कहानी में लोगों को सीखने के लिए बहुत कुछ है।
कामयाब उद्यमी और कारोबारी बुद्धि प्रकाश की कहानी हिमाचल प्रदेश के खखनाल गाँव से शुरू होती है। उनका जन्म इसी गाँव के एक ग़रीब किसान परिवार में हुआ। पिता के पास 7 बीघा ज़मीन थी और इसी ज़मीन पर खेती-बाड़ी कर वे अपने परिवार को चलाते थे। बुद्धि प्रकाश के जन्म से पहले उनके माता-पिता को दो लड़कियाँ हुई थीं। पिता को अपने बेटे बुद्धि प्रकाश से काफी उम्मीदें थीं, इसकी वजह से उन्होंने उनका दाख़िला खखनाल गाँव की सरकारी प्राथमिक पाठशाला में करवाया। बुद्धि प्रकाश ने इसी पाठशाला से पांचवी तक की पढ़ाई की। इसके बाद उनका दाख़िला पास ही जगतसुख गाँव के सरकारी हाई स्कूल में करवा दिया गया। इस स्कूल से बुद्धि प्रकाश ने दसवीं की परीक्षा पास की। चूँकि वे घर के बड़े लड़के थे, बुद्धि प्रकाश ने छोटी-सी उम्र में ही खेती-बाड़ी में अपने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया था। वे गायों को चराने पहाड़ पर ले जाते थे। पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ बुद्धि प्रकाश ने खेत में जुताई, निराई, बुआई और कटाई का काम भी सीख लिया था। धान के खेतों में पिता का साथ देने में बुद्धि प्रकाश को बहुत मज़ा आता था।
पिता भी हमेशा बुद्धि प्रकाश के कामकाज और उनके ज़िम्मेदाराना व्यवहार से बहुत खुश रहते थे। दसवीं की पढ़ाई पूरी होते ही इंटर की पढ़ाई की लिए पिता ने अपने लाड़ले बेटे को चंडीगढ़ भेज दिया। बुद्धि प्रकाश ने चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल से ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान भी वे जब कभी अपने गाँव आते खेती-बाड़ी और दूसरे कामकाज में अपने पिता की मदद करना नहीं भूलते थे।
बुद्धि प्रकाश के पिता बहुत ही मेहनती इंसान थे। बुद्धि प्रकाश के पिता जब तीन साल के थे तभी उनके सिर से उनके पिता का साया उठ गया था। बुद्धि प्रकाश के पिता का जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने अपने घर-परिवार को चलाने के लिए लोक-निर्माण विभाग में दिहाड़ी मज़दूर के तौर पर भी काम किया था।
हालात उस समय से सुधरने लगे जब बुद्धि प्रकाश के पिता ने सेब के बाग़ किराये पर लिए और सेब की खेती भी शुरू की। पिता ने अपने सेब के कारोबार को धीरे-धीरे विस्तार देना शुरू किया। सेब के कारोबार को विस्तार देने में बुद्धि प्रकाश ने बड़ी भूमिका अदा की। इसी दौरान बुद्धि प्रकाश और उनके पिता ने लकड़ी का भी कारोबार शुरू किया। सेब के निर्यात के लिए ज़रूरी लकड़ी के डिब्बे बनाते हुए बुद्धि प्रकाश और उनके पिता ने अपने घर-परिवार की आर्थिक स्थिति मज़बूत की। लकड़ी का कारोबार करने की सलाह बुद्धि प्रकाश के पिता को उनके ससुर से मिली थी। ससुर के पास लकड़ी काटने की मशीन थी, जो उन्होंने अपने दामाद को दे दी थी। इसी मशीन से सेब की डिब्बे बनाते हुए भी बुद्धि प्रकाश के पिता ने अपने कारोबार को विस्तार दिया।
ग्रेजुएशन के लिए बुद्धि प्रकाश ने चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय के गवर्नमेंट कॉलेज फॉर मेन में दाख़िला लिया, लेकिन, गाँव में बढ़ते कारोबार की वजह से उन्हें बीए के रेगुलर कोर्स में दो साल पूरे करने के बाद तीसरे साल की पढ़ाई को कॉरेस्पोंडेंस के ज़रिए पूरा करना पड़ा।
खेती-बाड़ी, सेब की खेती और फिर लकड़ी के डिब्बे बनाने का कारोबार करने के बाद बुद्धि प्रकाश को लगा कि अगर वे होटल के कारोबार में आएँ तब उन्हें खूब फायदा होगा। बुद्धि प्रकाश का गाँव मनाली से केवल नौ किलोमीटर दूर था। बुद्धि प्रकाश बचपन से ही देखते आ रहे थे कि हर साल हज़ारों सैलानी मनाली और हिमाचल प्रदेश के दूसरे शहरों और पर्यटक-स्थलों को आते हैं। बुद्धि प्रकाश ये भी ग़ौर करते आये थे कि हिमाचल आने वाले सैलानियों की संख्या साल दर साल लगातार बढ़ती जा रही है। सैलानियों की वजह से होटल का कारोबार भी लगातार बढ़ता चला जा रहा है। इसी तथ्य ने बुद्धि प्रकाश के कारोबारी दिमाग में नए विचार को जन्म दिया। विचार था अपना खुद का होटल खोलना और सैलानियों को शानदार सुविधाएँ देते हुए कारोबार करना।
होटल खोलने के सपने ने बुद्धि प्रकाश की नींद-चैन उड़ा दी। अपने सपने को साकार करने के लिए उन्होंने जी-जान लगा दिया। 1996 में बुद्धि प्रकाश ने अपने गाँव खखनाल में ‘सार्थक रिसॉर्ट’ की नींव रखी। सैलानियों के ठहरने के लिए कमरे बनाने का काम भी शुरू हुआ, लेकिन काम शुरू करने के बाद अहसास हुआ कि होटल खड़ा करना आसान काम नहीं है। पूँजी की किल्लत की वजह से कमरे बनाने का काम बीच में कुछ महीनों के लिए रोकना पड़ा। पूँजी की किल्लत इस वजह से भी आयी थी कि उस साल फसल खराब हो गयी थी।
कमरों का काम रुका ज़रूर था, लेकिन बुद्धि प्रकाश का सपना जिंदा था। उन्होंने ठान ली थी कि वे होटल का कारोबार हर हाल में करेंगे। इस सपने ने उन्हें चैन की नींद सोने नहीं दी। 1999 में आख़िरकार निचली मंजिल पर पांच कमरे बनकर तैयार हुए। सैलानी आकर बुद्धि प्रकाश के रिसोर्ट में ठहरने लगे। बुद्धि प्रकाश ने विदेशी सैलानियों के लिए ख़ास इंतज़ाम किये हुए थे। उन्होंने कुछ कमरों में रसोई घर भी बनाया था, ताकि विदेशी सैलानी अपनी मन-मर्ज़ी के हिसाब के अपने पकवान बनाकर खा-पी सकें। बुद्धि प्रकाश का ये आईडिया चल पड़ा। शुरुआती दौर में बुद्धि प्रकाश ने एक कमरे का किराया 1200 रुपये प्रति माह रखा। ज्यादा दिन रहने वाले सैलानियों को ख़ास छूट दी गयी। दो साल तक इसी तरह कारोबार चला।
2001 में ‘सार्थक रिसोर्ट’ को नया आयाम मिला। बुद्धि प्रकाश को जब ये पता चला कि यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने एक नयी स्कीम शुरू की है, तब उन्हें लगा कि ये उनके लिए अपने कारोबार को बड़ा करने का शानदार मौका है। बुद्धि प्रकाश ने बिना समय गँवाए यूथ हॉस्टल की फ्रैन्चाइज़ के लिए आवेदन कर दिया। बुद्धि प्रकाश के रिसोर्ट को फ्रैन्चाइज़ मिल भी गया। यूथ हॉस्टल के नियमों के मुताबिक बुद्धि प्रकाश को अपने रिसोर्ट में डॉर्मिटोरी यानी ख़ास छात्रावास बनवाना पड़ा। बुद्धि प्रकाश ने सार्थक रिसोर्ट में 40 बिस्तर वाली डॉर्मिटोरी बनवाई।
फ्रैन्चाइज़ और डॉर्मिटोरी की वजह से सार्थक रिसोर्ट में आने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ती चली गयी। साथ ही साथ उसकी लोकप्रियता भी खूब बढ़ने लगी। हालात ने बुद्धि प्रकाश ने सपने को नए पंख दिए। साल 2004 में उन्होंने सार्थक रिसोर्ट में 10 नए कमरे जोड़े, जिससे सार्थक रिसोर्ट मैं कमरों की संख्या बढ़कर 15 हो गयी।
साल 2006 बुद्धि प्रकाश के कारोबारी जीवन में नयी रोशनी लेकर आया। इसी साल उन्हें कोलकाता ट्रेड फेयर में हिस्सा लेने का मौका मिला। कोलकाता ट्रेड फेयर में बड़े-बड़े होटलों ने अपने स्टाल लगाए थे। इस ट्रेड फेयर में हिस्सा लेने से बुद्धि प्रकाश को बहुत फायदा हुआ। यहाँ उन्होंने होटल कारोबार की बारीकियों को जाना और समझा। उन्हें अहसास हो गया कि 15 कमरों वाले रिसोर्ट से कारोबार को बढ़ाया नहीं जा सकता है। कमरे ज्यादा होंगे तो मार्केटिंग करने में आसानी होगी।
कोलकाता ट्रेड फेयर में बुद्धि प्रकाश ने मार्केटिंग के गुर भी सीख लिए थे। कोलकाता से वापस लौटने के बाद उन्होंने खखनाल में अपने रिसोर्ट में एक और मंज़िल बनवा दी। इससे रिसोर्ट में कमरों की संख्या बढ़कर 25 हो गयी। साल 2009 में रिसोर्ट की बिल्डिंग को एक और मंज़िल ऊंचा किया गया। अब कमरों की संख्या बढ़कर 35 हो गयी। इसके बाद भी विस्तार का काम जारी रहा। रिसोर्ट में साल 2010 में 9 और 2011 में 12 नए कमरे जोड़े गए और रिसोर्ट में कमरों की संख्या बढ़कर 55 हो गयी। और इसी के साथ, कभी एक कमरे में अपने भरे-पूरे परिवार के साथ ग़रीबी के थपेड़े खाते हुए गुज़र-बसर करने वाला एक सामान्य किसान का बेटा 55 कमरों वाले शानदार रिसोर्ट का मालिक बन गया।
रिसोर्ट में कमरों की संख्या बढ़ाते रहने के बावजूद चुनौतियाँ कम नहीं हुई थीं। संघर्ष जारी था। चूँकि सभी सैलानी सीधे मनाली जाते थे खखनाल को पर्यटन के नक़्शे पर लाना आसान नहीं था। चुनौती ये भी थी कि मनाली से पूरे नौ किलोमीटर दूर बने रिसोर्ट की ओर सैलानियों को आकर्षित करना भी मुश्किल काम था। बुद्धि प्रकाश के लिए सबसे फ़ायदेमंद बात ये थी कि जिस जगह उनका रिसोर्ट बना, वो काफी सुन्दर जगह है। रिसोर्ट से प्राकृतिक सौन्दर्य का भरपूर आनंद लिया जा सकता है। बुद्धि प्रकाश ने सैलानियों को आकर्षित करने के लिए न सिर्फ रहने और ठहरने का बढ़िया इंतज़ाम किया बल्कि खान-पान और आसपास के रमणीय स्थानों तक सैलानियों को ले जाने के लिए ख़ास इंतज़ाम भी किये। बुद्धि प्रकाश ने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर ट्रेड और टूरिज़्म से जुड़े बड़े-बड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और अपने ‘सार्थक रिसोर्ट’ का प्रचार किया। बुद्धि प्रकाश की मेहनत रंग लाई और उनका प्रयास सार्थक साबित हुआ। सार्थक रिसोर्ट की वजह से खखनाल गाँव पर्यटन के नक़्शे पर आ गया।
बड़ी बात ये भी थी कि बुद्धि प्रकाश के परिवार और सारे खानदान में किसी ने भी कारोबार नहीं किया था। सभी पूर्वज किसान थे और खेती-बाड़ी ही जीवन का आधार थी, लेकिन बुद्धि प्रकाश ने परंपरा तोड़ी और एक नयी परंपरा का आगाज़ किया। इससे भी बड़ी बात ये है कि जब बुद्धि प्रकाश ने होटल कारोबार में कदम रखा था तब वे इस कारोबार के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे, लेकिन उन्होंने जो कुछ अपनी नज़रों से देखा, उससे बहुत कुछ समझा था और कारोबार करने का साहस जुटाया था। मनाली में होटल न शुरूकर अपने गाँव में रिसोर्ट बनवाकर उसे मशहूर करते हुए बुद्धि प्रकाश ने अपनी उद्यमिता का भी परिचय दिया।
बुद्धि प्रकाश ने बताया, “मुझे होटल के कारोबार की ‘एबीसीडी’ भी नहीं मालूम थी। मैंने देखा था कि हिमाचल में सैलानी बहुत आते हैं और इन सैलानियों की वजह से सारे होटल भरे रहते हैं। सैलानियों की लगातार बढ़ती संख्या ने मुझे भी होटल के कारोबार में उतरने के लिए प्रेरित किया। मैंने एक-दो साल में अपना कारोबार नहीं जमाया है, मैंने कदम दर कदम तरक्की की है।”
साल 2009 में बुद्धि प्रकाश ने ‘हिमाचल हॉलीडेज़’ के नाम से एक और कंपनी शुरू की। इस कंपनी में उनकी पत्नी भी डायरेक्टर हैं। ‘हिमाचल हॉलीडेज़’ को शुरू करने का मकसद सैलानियों को उनकी सुविधा और बजट के अनुसार अलग-अलग पैकेजों के ज़रिए हिमाचल की यादगार और शानदार सैर करवाना है।
होटल इंडस्ट्री में अपने पाँव जमा लेने और कामयाबी की एक अनूठी कहानी लिख लेने के बाद बुद्धि प्रकाश एक और बड़ी नायाब कहानी लिखने को तैयार हुए।
कारोबार करते-करते बुद्धि प्रकाश ने धन-दौलत और शोहरत खूब कमा ली थी। धन-दौलत की वजह से परिवार की ग़रीबी दूर हुई। जिस खखनाल गाँव में एक कमरे के मकान में रहने को मजबूर थे, उसी गाँव में बुद्धि प्रकाश ने अपनी मेहनत और उद्यमिता ने न सिर्फ 55 कमरों वाला रिसोर्ट बनाया बल्कि अपने परिवार के लिए शानदार मकान भी बनवाया। बुद्धि प्रकाश ने घर के बड़े लड़के होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बखूबी निभायीं। बुद्धि प्रकाश की दो बड़ी बहनें, एक छोटा भाई और एक छोटी बहन हैं। कामयाब कारोबारी बनने के बाद बुद्धि प्रकाश ने अपने छोटे भाई को पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया भेजा। चार साल तक ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने के बाद छोटे भाई जब स्वदेश लौट आये तब बुद्धि प्रकाश को लगा कि दोनों भाइयों का मिलकर होटल कारोबार करना परिवार की ताकत को एक ही जगह सीमित करना होगा। बुद्धि प्रकाश ने जमे-जामये होटल कारोबार की बड़ी जिम्मेदारियां अपने छोटे भाई को सौंपकर कुछ नया और बड़ा करने की सोची।
इसी सोच-विचार में बुद्धि प्रकाश ने वो करने का फैसला लिया, जो कि पूरे हिमाचल प्रदेश में किसी ने भी नहीं किया था। बड़े-बड़े कारोबारियों ने भी ये काम करने का साहस नहीं जुटाया था। बुद्धि प्रकाश ने हवाई-यात्रा सेवा के कारोबार में कदम रखने का फैसला लिया था। फैसला सामन्य नहीं था। साहसी फैसला था। कारोबार में जोखिम बहुत था। किसी के पास इस कारोबार को हिमाचल में निजी तौर पर, बतौर ऑपरेटर, करने का अनुभव भी नहीं था, लेकिन बुद्धि प्रकाश ने ठान ली थी कि वे अपने सपनों का नए पंख लगाकर ऊंची उड़ान भरेंगे और हवाई-यात्रा सेवा का कारोबार में करेंगे।
इस साहसी फैसले के पीछे एक ख़ास वजह भी थी। बुद्धि प्रकाश बताते हैं, “हिमाचल प्रदेश बहुत ही सुन्दर राज्य है। यहाँ पहाड़ हैं, नदियाँ हैं और बर्फ भी है। मैंने दुनिया के कुछ देशों की सैर की और मैं अपने अनुभव के आधार पर ये कह सकता हूँ कि हिमाचल जितना सुंदर प्रदेश और कोई नहीं है, लेकिन हिमाचल की सबसे बड़ी समस्या कनेक्टिविटी है। रेल सेवा है ही नहीं और हवाई सेवा नाम-मात्र के लिए है। अगर आपको हिमाचल प्रदेश में कहीं जाना है तो सिर्फ सड़क-मार्ग से ही जाना होगा। चूँकि सारा इलाक़ा पहाड़ी क्षेत्र है, सड़क से सफ़र आसान नहीं है और एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने में घंटों लग जाते हैं। मुझे लगा कि हवाई-सेवाएँ शुरू कर कनेक्टिविटी की समस्या को दूर किया जा सकता है। और, इस समस्या के दूर होने पर ज्यादा से ज्यादा सैलानी हिमाचल आ-जा सकते हैं।”
सैलानियों की सहूलियत के मकसद से बुद्धि प्रकाश ने विमानन उद्योग में अपने कदम रखे। अपने एक साथी मित्र के साथ मिलकर उन्होंने एक कंपनी बनाई नाम रखा हिमालयन बुल्स प्राइवेट लिमिटेड और फिर ‘एयर हिमालय’ के नाम से हवाई-यात्रा सेवा की शुरुआत करने का फैसला लिया, लेकिन काम आसान नहीं था। इरादा नेक था और हौसला बुलंद, लेकिन विमान के मालिक बुद्धि प्रकाश को अपने विमान देने के लिए राज़ी नहीं थे। विमान मालिकों के लिए एक बिलकुल नई कंपनी पर विश्वास करना मुश्किल था। ये स्वाभाविक भी था और इसकी वजह ये भी थी कि बुद्धि प्रकाश की कंपनी को विमानन उद्योग में किसी तरह का कोई अनुभव हासिल नहीं था। नए-नवेले लोगों के भरोसे विमान सौंपना मालिकों को जोखिम भरा काम लग रहा था, लेकिन बेंगलुरु की ‘डेक्कन चार्टर’ ने बुद्धि प्रकाश के हौसले की दाद दी और विमान किराये पर दिया।
2 अप्रैल, 2014 बुद्धि प्रकाश के जीवन में ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। इसी दिन ‘एयर हिमायल’ के पहले विमान ने उड़ान भरी और बुद्धि प्रकाश के एक बड़े सपने को साकार किया। जैसे ही पहले विमान ने उड़ान भरी बुद्धि प्रकाश की खुशी की कोई सीमा नहीं रही। विमान की उड़ान के साथ ही बुद्धि प्रकाश के सपनों को नए और मज़बूत पंख मिल गए। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में भी ये अनोखा दिन था। पहली बार किसी निजी कंपनी ने बिज़नेस क्लास की चार्टर सेवा शुरू की थी।
बुद्धि प्रकाश की ख़ुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही। ‘एयर हिमायल’ ने साल 2014 में 2 अप्रैल से लेकर 31 जुलाई तक सैलानियों को चंडीगढ़ और कुल्लू के बीच हवाई-यात्रा सेवाएं दीं, लेकिन बहुत कम सैलानियों ने इस हवाई-यात्रा सेवा का लाभ उठाया। बुद्धि प्रकाश को उम्मीद थी कि 9 सीटों वाला विमान हर बार पूरा भरा हुआ ही जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बुद्धि प्रकाश कहते हैं, “मैंने एविएशन सेक्टर की ‘एबीसीडी’ सीखे बगैर इसमें कदम रखा था। हमारी मार्केटिंग भी सही नहीं थी। सैलानियों से वैसा रिस्पान्स नहीं मिला जैसी की उम्मीद थी। पहला साल हमारे लिए बहुत खराब था।”
हकीकत ये थी कि पहले साल की हवाई-यात्रा सेवा की वजह से बुद्धि प्रकाश की कंपनी को करीब डेढ़ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन महत्वपूर्ण बात ये रही कि वे नुकसान से तिलमिलाए नहीं। उनके हौसले बुलंद रहे। उन्हें लगा कि पहले साल के अनुभव से उन्होंने बहुत कुछ सीखा और वे इस बार की ग़लतियाँ दुबारा नहीं करेंगे। इसी दौरान बुद्धि प्रकाश को ये आभास हुआ कि हिमाचल प्रदेश में एविएशन फ्यूल पर वैट यानी वैल्यू एडेड टैक्स 27 फीसदी है और अगर इस टैक्स को घटा दिया जाता है तो यात्री भाड़ा कम होगा और लोग हवाई-यात्रा की ओर आकर्षित होंगे। बुद्धि प्रकाश ने एविएशन फ्यूल पर वैट कम करवाने के लिए कोशिशें शुरू कर दीं। अकेले दम पर की गयीं इन कोशिशों का नतीजा ये हुआ कि एविएशन फ्यूल पर वैट को 27 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी कर दिया गया। इससे एविएशन फ्यूल की कीमत 75 रुपये के घटकर 45 रुपये हो गयी।
बुद्धि प्रकाश ने नए जोश के साथ हवाई-यात्रा सेवा के दूसरे साल में क़दम रखा, लेकिन, कुछ कारणों से उनके साथी मित्र ने उनका साथ छोड़ दिया, लेकिन वे निराश नहीं हुए और आगे बढ़े। साल 2015 में बुद्धि प्रकाश ने अपनी एक दूसरी कंपनी हिमाचल हॉलीडेज के ज़रिए पिनाकल एयर प्राइवेट लिमिटेड से करार किया। फैसला लिया गया कि 10 अप्रैल को हवाई-यात्रा सेवा शुरू की जायेगी। ऑनलाइन बुकिंग भी शुरू हो गयी, लेकिन कुछ कारणों से पिनाकल कंपनी विमान नहीं भेज पायी। 10 से 21 अप्रैल तक की बुकिंग कैंसिल करनी पड़ी और यात्रियों को उनके रुपये वापस लौटाने पड़े।
उस दिन को अपने कारोबारी जीवन का सबसे दुखद दिन बताते हुए बुद्धि प्रकाश ने कहा, “मैं यात्रियों का दर्द समझ सकता था। हम पर विश्वास जताकर लोगों ने कई दिनों पहले बुकिंग करवाई थी। विमान-सेवा रद्द होने की वजह से यात्रियों को बहुत परेशानी हुई। वैसे तो हमने ही उनकी यात्रा का बंदोबस्त किया, लेकिन मुझे बहुत दुःख हुआ।” बुद्धि प्रकाश को डर इस बात का भी था कि इस घटना की वजह से कहीं उनकी कंपनी की विश्वसनीयता पर प्रश्न-चिह्न न खड़ा हो जाय।
बड़ी बात ये भी है कि यात्रियों का विश्वास बनाये रखने के लिए बुद्धि प्रकाश ने एक यात्री की बुकिंग होने पर भी विमान उड़ाया था। अगर वे चाहते तो विमान के आधा भी न भरा होने की वजह से उस दिन की विमान-सेवा को रद्द कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था। बुद्धि प्रकाश साल 2015 में 10 अप्रैल को विमान-सेवा शुरू नहीं कर पाए थे, लेकिन उनके अथक प्रयास की वजह से 22 अप्रैल को विमान-सेवा शुरू हुई और 25 जून तक चली। दूसरे साल भी बुद्धि प्रकाश को घाटा हुआ। साल 2015 में घाटा 25 लाख रुपये के आसपास था। लगातार दो सालों के घाटे के बावजूद बुद्धि प्रकाश ने हार नहीं मानी। तीसरे साल उन्होंने हैदराबाद की आईआईसी टेक्नोलॉजी लिमिटेड के साथ करार किया। साल 2016 में ‘एयर हिमालय’ के विमान ने 29 मई से 10 जुलाई तक उड़ान भरी। इस साल बुद्धि प्रकाश ने शिमला और धर्मशाला के बीच भी विमान चलाने के लिए बुकिंग शुरू की थी, लेकिन इस सेक्टर में एक भी बुकिंग नहीं हुई, जिसकी वजह से उन्होंने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया। फिर बुद्धि प्रकाश ने पूरे उत्साह के साथ चंडीगढ़-शिमला और चंडीगढ़-कुल्लू के बीच विमान-सेवाएँ प्रदान कीं। जहाँ बुद्धि प्रकाश को ‘एयर हिमालय’ की वजह से पहले साल में डेढ़ करोड़ और दूसरे साल में पच्चीस लाख रुपये का नुकसान हुआ वहीं तीसरे साल उन्हें न नुकसान हुआ न ही कोई फायदा। तीन साल के अनुभव से बुद्धि प्रकाश ने बहुत कुछ सीखा है और उन्होंने ठान ली है कि वे ‘एयर हिमालय’ की उड़ान जारी रखेंगे।
बुद्धि प्रकाश इन दिनों ‘एयर हिमालय’ के लिए फंडिंग जुटाने की कोशिश में हैं। उन्हें यकीन है कि फंडिंग होने पर वे हिमाचल प्रदेश में हवाई-यात्रा सेवा को नयी और ऊंची मंज़िल पर पहुंचा सकते हैं। वे कहते हैं, “मेरी कुछ सीमाएँ हैं। अगर हमें फंडिंग मिल जाए तो हम बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश में एविएशन सेक्टर में ग्रोथ की संभावनाएँ बहुत ही ज्यादा हैं।” ख़ास बात ये भी है एक ग़रीब किसान के घर में जन्म लेने के बावजूद विमान-सेवा शुरू कर अपने कारोबारी जुनून का परिचय देने वाले बुद्धि प्रकाश ठाकुर ने बड़े सपने देखना बंद नहीं किया है। विमान मालिकों के नख़रों के परेशान बुद्धि प्रकाश अपने बल बूते ही विमान खरीदने का सपना संजोये हुए हैं। इतना ही नहीं, उनका इरादा होटल कारोबार में भी बड़े पैमाने पर विस्तार करने का है। वे जल्द ही मनाली में ‘सार्थक रीजेंसी’ के नाम से एक बड़ा शानदार होटल शुरू करने की तैयारी में हैं। अगर आंकड़ों की बात की जाए तो बुद्धि प्रकाश का ‘सार्थक रिसोर्ट’ सालाना 2 करोड़ रुपये और उनकी ‘हिमाचल हॉलीडेज़’ डेढ़ करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है।
बुद्धि प्रकाश की एक और बड़ी दिलचस्प बात ये भी है कि ज़मीन पर खेतों में किसानी से शुरू किये अपने सफ़र को आकाश में विमान-सेवा तक की ऊंचाई तक ले जाने के बावजूद वे अपने जीवन में सादगी बनाये हुए हैं। वे अब भी ज़मीन से जुड़े हुए हैं और नया इतिहास लिखने के बावजूद उनमें न रौब है न ठाट-बाट। सीधा-सादा जीवन है, लेकिन सपने और विचार बहुत ही बड़े हैं। बुद्धि प्रकाश की एक और बड़ी खासियत ये है कि वे हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इतना ही नहीं पर्यटन-उद्योग से जुड़े होटल-मालिकों, कर्मचारियों, वाहन-मालिकों, दुकानदारों, छोटे-बड़े कारोबारियों के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष और आन्दोलन करते रहते हैं। बुद्धि प्रकाश आथित्य-क्षेत्र में इतना रम और जम चुके हैं कि हिमाचल प्रदेश आने वाले सैलानियों की मेहमाननवाज़ी को नए आयाम पर पहुंचाने में भी कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ रहे हैं। मौजूदा समय में उनका संघर्ष रोहतांग पास पर प्रति दिन की वाहन-सीमा को बढ़ाने के लिए है। रोहतांग पास में पर्यावरण को पेट्रोल और डीज़ल के वाहनों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बुद्धि प्रकाश इलेक्ट्रिकल वाहन हिमाचल मंगवाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। रोहतांग पास के नज़ारे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी वहाँ आते हैं, लेकिन प्रति दिन की वाहन सीमा तय होने की वजह से कई लोगों को निराश लौटना पड़ता है। बुद्धि प्रकाश नहीं चाहते हैं कि हिमाचल आने वाला कोई भी सैलानी निराश लौटे।