पानी के लिए हर चौखट से खाली हाथ लौटने के बाद गांव की महिलाओं ने खोद लिया अपना कुआं
50 साल की गंगाबाई और 60 साल की उनकी जेठानी रामकली ने गांव के कुएं के लिये अपनी जमीन मुफ्त में दे दी। इतना ही नहीं गंगाबाई और रामकली ने कचहरी जाकर कुएं के लिए जमीन गांव को दिये जाने का हलफनामा भी दे दिया।
सरकारी अफसरों से लेकर गांव के मर्दों तक से लगाई थी पानी के लिये गुहार...
सब ने मजाक बनाया, मगर महिलाओं ने कर दिखाया...
पानी के लिए देश के तमाम इलाकों में हाहाकार मचा है। हर तरफ एक ही तरह की तस्वीर है। किल्लत, किल्लत और किल्लत। पानी टैंकर के पीछे भागते सैंकड़ों लोग, सिर पर बर्तन लिए महिलाओं का पानी के लिए जद्दोजहद करना। लेकिन इन्हीं तमाम तस्वीरों में एक और तस्वीर है, जिसकी असलियत जानने के बाद आपको सुकून मिलेगा। महिलाओं को अबला समझने वाली सोच उस समय शर्मसार हो गई, जब इलाके में एक चमत्कार हो गया। “गांव में पानी तो इंद्र देव की मेहरबानी से ही आ पायेगा” ये सोच रखने वाला समाज उस वक्त भौंचक्का खड़ा देख रहा था, जब चट्टानों के बीच में से पानी की धारा फूट पड़ी और जिन्हें अबला समझा जा रहा था वो हाथ में कुदाल, गेंती, फावड़ा लेकर खुशी से नाच रही थीं। ये इन बीस महिलाओं की इच्छाशक्ति, जी तोड़ मेहनत और कुछ करनें का जुनून ही था, जिसने पानी की समस्या से जूझ रहे इलाके को पानी की सौगात दे डाली। 40 दिन की अथक मेहनत से उन महिलाओं नें कुआं खोद कर पानी निकाल दिया, जिनका पहले मजाक बनाया जा रहा था। कुएं से पानी आने के बाद बेकार पड़ी जमीन पर आज महिलाएं सब्जियां उगा रही हैं।
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के खालवा ब्लॉक का लंगोटी गांव आदिवासी बहुल गांव है। 19 सौ की आबादी वाले इस गांव में पानी को लेकर काफी समस्या हो गई। गांव में दो हेंडपंप थे, वो भी धीरे-धीरे कर के सूख गये। बरसात के दिन तो कट गये। बरसात के बाद का एक महीना भी जैसे-तैसे कट गया। मगर उसके बाद महिलाओं की परेशानी बढने लगी। 2011 के बाद से ही पानी को लेकर परेशानी बढ गई थीं। और इस परेशानी का सारा बोझ गांव की औरतों पर आ गया।
सुबह उठकर दो से ढाई किलोमीटर दूर पैदल-पैदल बर्तन लेकर दूसरे गांव पानी के लिए जाना पड़ता था। वहां जाकर भी बिजली और खेत मालिक के रहम का इंतजार होता था। कई बार औरतों को खाली बर्तन लेकर वापस आना पड़ता था। पानी की परेशानी हर दिन बढती जा रही थी। हर महिला अपने घर में मर्दों से पानी को लेकर कुछ करने की मिन्नत करती रहती थी। मगर हर घर में यह आवाज़ जैसे उठती थी, वैसे ही खामोश हो जाती थी। फिर नई सुबह के साथ वही पानी के लिए जिल्लत और मशक्कत का सामना करना पड़ता था।
अब महिलाओं के सब्र का बांध टूटने लगा था। घर की चारदिवारी के बीच निकलने वाली आवाज़ बाहर आना शुरु हो गई। एक-एक करके गांव की महिलाएं जुटने लगीं। घर के मर्दों से तो वो लम्बे अरसे से मिन्नत कर रहीं थी। मगर इस इलाके में पानी लाने की जिम्मेदारी महिलाओं की थी, सो गांव के मर्दों की सेहत पर भी कोई असर नहीं हुआ। महिलाओं से साफ कह दिया गया कि जैसे अब तक लाती रही हो, वैसे ही लेकर आओ। अब बारी थी पंचायत के पास जानें की। महिलाओं ने पंचायत के पास जाकर गुहार लगाई कि कपिलधारा योजना के तहत उनके गांव में कुआं खुदवा दिया जाए। मगर पंचायत भी जैसे चल रहा है वैसे चलने दो कि सोच पाले बैठी थी। महिलाओं को आश्वासन देकर टरका दिया गया। लेकिन महिलाएं अपनी जिद्द पर अडी रहीं। एक दिन, दो दिन, 10 दिन, महीना भर महिलाओं के पंचायत में आने का सिलसिला चलता रहा। पंचायत ने भी अपनी जान छुडानें के लिये फाइल बनाकर सरकारी अफसरों को भेज दी और महिलाओं को सरकारी दफ्तर का रास्ता दिखा दिया। सरकारी दफ्तरों में भी फाइल का वही हश्र हुआ, जो अकसर होता है। एक टेबिल से दूसरी टेबिल तो एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर फाइले चक्कर खाती रहीं। फाइलों के बाद अब चक्कर खाने की बारी गांव की महिलाओं की थी। लम्बे अरसे तक सरकारी अफसरों, बाबुओं के चक्कर लगाने के बाद उन्हें समझ में आ गया कि सरकारी काम करवाना आसान नहीं है।
सरकारी उदासीनता ने महिलाओं को पूरी तरह से तोड़ दिया। लेकिन कहते हैं हर समस्या का समाधान भी चोट लगने के बाद ही निकलता है। महिलाएं नए सिरे उठने की तैयारी करने लगीं। सभी ने एक सुर में निर्णय लिया कि अब हम दूसरे गांव में कुएं पर पानी लेने नहीं जायेंगी। बल्कि कुएं को ही अपने गांव लेकर आयेगीं। कोई मदद करे या न करे। गांव की इन अनपढ़ और कम पढ़ी-लिखी 20 महिलाओं ने संकल्प लिया कि हम मिलकर गांव में कुआं खोदेंगे। अब सवाल ये था कि कुआं कहां खोदा जाये। कौन अपनी जमीन पर गांव का कुआं खोदने की इजाज़त देगा। इसका समाधान भी इस बैठक में हो गया। 50 साल की गंगाबाई और 60 साल की उनकी जेठानी रामकली ने गांव के कुएं के लिये अपनी जमीन मुफ्त में दे दी। इतना ही नहीं गंगाबाई और रामकली ने कचहरी जाकर कुएं के लिये जमीन गांव को दिये जाने का हलफनामा भी दे दिया।
जब यह बात गांव भर में फैली कि औरतें कुआं खोदनें जा रही हैं तो गांव के तमाम मर्दों नें इन 20 महिलाओं का मजाक बनाना शुरु कर दिया। ताने दिये जाने लगे, तंज कसे जाने लगे कि 10 फिट मिट्टी तो खोद लोगे मगर जब चट्टानें आयेंगी तब क्या करोगे। कहते हैं जब इरादें मज़बूत हो तो ऐसी छोटी-मोटी चीज़ें आड़े नहीं आतीं। चट्टान की तरह मजबूत इरादों वाली महिलाओं ने तय किया कि जिसके घर पर जमीन खोदने का जो भी औजार हो वो लेकर आ जाये। दूसरे दिन घर का काम निपटाकर महिलाएं अपने-अपनें घरों से गैंती, फावडा, कुदाल, तगारी, तसले, हथौडे लेकर निकल पडीं। घरवालों ने रोकने की कोशिश की पर पानी सिर से ऊपर था, इसलिए महिलाओं ने किसी की एक नहीं सुनी। तय समय पर रामकली और गंगाबाई की जमीन पर सब महिलाएं जमा हुईं। नारियल फोड़कर जमीन खोदने की शुरुआत हो गई। दिन एक-एक कर बीतने लगे और धरती ने भी महिलाओं का साथ दिया। साथी हाथ बढाना की तर्ज पर काम चलता रहा। एक हाथ गहरा गड्ढा हुआ फिर दो हाथ, फिर पांच हाथ फिर आठ हाथ। मगर आठ हाथ के बाद जमीन के अंदर बडी बडी चट्टानें आना शुरु हो गईं। यही इन महिलाओं की असली अग्निपरीक्षा थी। महिलाओं के इस कार्य के विरोध में खड़े मर्द फिर से सिर उठाने लगे। मर्द यह जानने को उत्सुक थे अब ये क्या कर पायेंगी? सच कहते हैं दृढ़ इच्छा शक्ति और बुलंद हौसलों के सामने चट्टान भी मिट्टी में मिल जाते हैं। महिलाओं के हौसले नहीं टूटे, अलबत्ता चट्टान जरुर टूटने लगी। चट्टानें टूटने लगीं और महिलाओं की राह से हटने लगीं। महिलाओं पर हंसने वाले चेहरों पर अब हंसी की जगह कौतूहल था। लेकिन कहते हैं कि सकारात्मक सोच न रखने वाले हमेशा बुरा ही सोचते हैं। अब भी समाज के एक बड़े तबके को यकीन था कि महिलाएं चाहे जो कर लें, पानी तक पहुंच पाना नामुमकिन है।
एक दिन दोपहर में अचानक गांव में शोर होने लगा कि घाघरा पल्टन (औरतों का झुंड) के कुएं से पानी निकल आया है। पूरा गांव कुएं के आसपास जमा हो गया। बड़ा अनोखा मंजर था, कुएं की बड़ी सी चट्टान टूटी बिखरी पड़ी थी और बीचों बीच से पानी की धार फूट रही थी। पूरी 20 महिलाएं जमीन से 25 फिट नीचे गीत गाते हुए एक दूसरे का हाथ पकडकर नाच रही थीं। देखने वाले अचंभे में थे। खुश तो सब थे मगर कुछ बोलने की, शाबाशी देने की ताकत गांव के मर्दों में नहीं बची थी। वाकई एक चमत्कार हो गया था। गांव के ही नहीं बल्कि आसपास के, पंचायत के और सरकारी अफसर मौके पर पहुंच गये, ये देखने के लिए कि किस तरह गांव की 20 आदिवासी महिलाओं ने अपने हौंसले के दम पर कुएं को गांव में लाकर दिखा दिया।
26 साल की फूलवती ने योरस्टोरी को बताया,
"मेरे हाथों में छाले पड गये थे, खून निकलनें लगा था। सभी औरतों की यही हालत हो गई थी। मगर खुशी इस बात की है कि अब हमें न तो दूर जाकर पानी लाना पड़ता है और न ही पानी मांगकर जलील होना पडता है। आज हम कुएं के पानी से बेकार पड़ी जमीनों पर सब्जियां उगा रहे हैं।"
गाँव की औरतों की इस काम में मदद करने वाली संस्था स्पंदन की सीमा प्रकाश ने योरस्टोरी को बताया,
"यह काम आसान नहीं था पर औरतों ने कर दिखाया। 30 फीट तक खुदाई का काम आसान नहीं होता। अब इस कुएं में सालभर पानी रहता है। औरतें सब्जियां भी उगा रही हैं। अब तो औरतों के चेहरे की चमक और उनका आत्मविश्वास देखते ही बनता है।"
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